Democracy Versus Ethnic Democracy : मोदी के नेतृत्व में भारतीय लोकतंत्र बनता जा रहा है धार्मिक लोकतंत्र

Democracy Versus Ethnic Democracy : क्रिस्तोफे जफ्फ्रेलोट ने इस पुस्तक को नरेन्द्र मोदी के 20 वर्षों के राजनीतिक जीवन का गहन अध्ययन कर और हमारे देश में हजारों लोगों से बातचीत और साक्षात्कार के बाद तैयार किया है...

Update: 2021-09-20 13:03 GMT

(क्रिस्तोफे जफ्फ्रेलोट ने पीएम नरेंद्र मोदी के 20 साल के राजनीतिक जीवन पर आधारित पुस्तक प्रकाशित की है।)

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

Democracy Versus Ethnic Democracy जनज्वार. भारत भले ही दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र कहलाता हो पर यह एक उदाहरण है कि किस तरह एक चुनी सरकार देश को निरंकुश शासन और असहिष्णुता (anarchy and intolerance) के हवाले कर देती है - यह प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस (Princeton University Press) की वेबसाइट पर 'मोदीज इंडिया – हिन्दू नेशनलिस्म एंड द राइज ऑफ एथनिक डेमोक्रेसी' (Modi's India – hindu Nationalism and the Rise of Ethnic Democracy) के परिचय में लिखा है।

इस पुस्तक को मूल रूप से फ्रांस के राजनैतिक शोधार्थी और विद्वान् क्रिस्तोफे जफ्फ्रेलोट (Christophe Jaffrelot) ने फ्रेंच भाषा में लिखा है और इसका अंग्रेजी अनुवाद सिंथिया स्कोक (Cynthia Schoch) ने किया है जिसे प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित किया है। क्रिस्तोफे जफ्फ्रेलोट ने इस पुस्तक को नरेन्द्र मोदी के 20 वर्षों के राजनीतिक जीवन का गहन अध्ययन कर और हमारे देश में हजारों लोगों से बातचीत और साक्षात्कार (Real Time Interviews) के बाद तैयार किया है।

इस पुस्तक के परिचय में लिखा है, पिछले दो दशकों के दौरान मोदी जी ने हिन्दू राष्ट्रीयता (Hindu Nationalism) को राष्ट्रीय लोकवाद (National Populism) से जोड़ा, फिर इसके सहारे पहले गुजरात के चुनावों में फिर केंद्र में सत्ता पर काबिज हो गए। मोदी ने पहले तो विकास का झांसा दिया और फिर जातीय-धार्मिक उन्माद को हवा दी, जिससे बड़ी संख्या में जनता का ध्रुवीकरण (Polarization) हो गया और झुकाव उनकी तरफ हुआ और वे चुनाव जीतते रहे।


इन सबके कारण देश में सरकार के काम करने के तरीके में बदलाव आया और पूरी सत्ता केवल एक हाथ में सिमट गयी और मोदी के लगातार सोशल मीडिया (Social Media) और दूसरे तरीकों से जनता से सीधे संवाद के कारण केवल एक व्यक्ति पर टिकी सत्ता और मजबूत होती गयी। इस पुस्तक के अनुसार हमारे देश का लोकतंत्र धार्मिक लोकतंत्र (Ethnic Democracy) बन गया है, जिसमें बहुसंख्यक जातिया और धर्म के लिए ही लोकतंत्र रह गया है, और शेष आबादी दूसरे दर्जे का नागरिक (Second Grade Citizens) रह गयी है। इस पुस्तक में विस्तार से बताया गया है कि किस तरह हिन्दू राष्ट्रीयता के फैलाने के बाद धर्मनिरपेक्ष लोगों, बुद्धिजीवियों, विश्विद्यालयों और गैर-सरकारी संस्थानों पर हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इन सबने मिलकर देश को एक निरंकुश शासन के हवाले कर दिया है।

केवल केंद्र में ही नहीं बल्कि हरेक राज्य में सत्ता हड़पने की लालसा में पूरी सत्ता और अधिकार का केन्द्रीकरण (centralization) होता गया और इससे देश का संघीय ढांचा बिखर गया। इसी तरह निरंकुशता पर लगाम लगाने वाली सारी संवैधानिक संस्थाओं (constitutional institutions), जिसमें सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) भी शामिल है, को भी पूरी तरह से सरकारी कर दिया गया और इन संस्थाओं का स्वतंत्र अस्तित्व मिट गया। इस पुस्तक में विस्तार से बताया गया है कि किस तरह एक जीवंत प्रजातंत्र में विरोध के स्वर दबाकर और धर्म की आड़ में एक निरंकुश शासन और धार्मिक लोकतंत्र में बदला जा सकता है।

इस पुस्तक पर लेखक शांति प्रसाद चटर्जी ने कहा है, 'शानदार और सामयिक। यह उन लोगों की आंख खोलने का काम करेगी जिनकी आंखे बंद हैं और हिन्दू तालिबानी (Hindu Taliban) का सपना देखते हैं।' इस पुस्तक में बताया गया है कि भारतीय मीडिया की आजादी खत्म करने के लिए सरकार तरह-तरह के हथकंडे अपनाती है, जिसमें सरकारी विज्ञापन नीति, आयकर और दूसरी जांच एजेंसियों के छापे और प्रमुख मीडिया घरानों का सरकार के नजदीकी उद्योगपतियों के हाथों में चले जाना शामिल है। दूसरी तरफ भारतीय मीडियाकर्मियों (Indian Media) में साहस की और अपने पेशे के प्रति गंभीरता की कमी है, जिसके कारण अधिकतर पत्रकार अपनी मर्जी से सरकार के पक्ष में ही खबरें करते हैं। इस पुस्तक के अनुसार चुनाव आयोग अपनी पूरी आजादी खो चुका है।

सर्वोच्च न्यायालय अपने पिछले चार प्रधान न्यायाधीश के दौरान सरकार के विरुद्ध कोई फैसला नहीं सुना पाया है, जिसका कारण सरकार द्वारा कुछ न्यायाधीशों का ब्लैकमेल, कुछ न्यायाधीशों का सरकार के धार्मिक भावना के साथ खड़े होना और पदमुक्त होने के बाद के बाद सरकारी नियुक्ति या फिर राज्यसभा में नामांकन का लालच है।

धार्मिक निरंकुशता के दौर में सरकारों में उच्चवर्गीय राजनीतिज्ञों का दबदबा बढ़ गया है और आरक्षण अब हाशिये पर है। आर्थिक तौर पर देश पूंजीवादियों के हित साध रहा है। इन सबसे धार्मिक उन्माद और सत्ता की निरंकुशता बढ़ती जा रही है। धार्मिक उन्माद की हालत यह है कि संघ से जुड़े बजरंग दल जैसे हिन्दू गिरोह अल्पसंख्यकों के साथ मारपीट, धमकी और हत्या खुलेआम कर रहे हैं। दूसरी तरफ पुलिस जो राज्यों के नियंत्रण में है, वह भी केंद्र के धार्मिक उन्माद में अपनी पूरी भागीदारी निभा रही है।

सवाल यह है कि इस पुस्तक की विशेषता क्या है, क्योंकि इस सत्ता की निरंकुशता और समाज में फैलता धार्मिक उन्माद तो सामाजिक सरोकारों से जुड़े हरेक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट और इंडेक्स में बताया जाता है। इस पुस्तक की विशेषता है कि इसमें नरेंद्र मोदी के सत्ता में रहते 20 वर्षों का सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुतीकरण है, ना कि किसी एक वर्ष या एक घटना के बारे में। दूसरी विशेषता यह है कि यह पुस्तक हमें भविष्य के लिए सचेत करती है। इसके अनुसार धार्मिक उन्मादता और कट्टरता समाज के निचले तबके तक पहुंच चुकी है, इसलिए अब सरकार भी बदल जाए तब भी यह कट्टरता, धार्मिक उन्माद और हिंसक आचरण खत्म नहीं होगा।


Tags:    

Similar News