International Womens Day : राजस्थान की जिस झोपड़ी से निकला सूचना का अधिकार - नरेगा आंदोलन, उसकी नींव का पत्थर हैं अंशी बहन

International Womens Day : आईएएस अधिकारी अरुणा राय, भारतीय वायुसेना के उपाध्यक्ष के बेटे निखिल डे एवं राजस्थान के ग्रामीण परिवार से निकले शंकर सिंह ने इस झोपड़ी में रहकर गावों की समस्याओं को समझना उनका समाधान खोजना और उन्हें लागू करने के लिए आन्दोलन चलाना शुरू किया....

Update: 2022-03-08 14:33 GMT

(राजस्थान की जिस झोपड़ी से निकला सूचना का अधिकार - नरेगा आंदोलन, उसकी नींव का पत्थर हैं अंशी बहन)

हिमांशु कुमार का विश्लेषण

International Womens Day : आज हम सूचना का अधिकार कानून (RTI) का इसतेमाल करते हैं। इस कानून ने भारत के हरेक नागरिक को सरकार से सवाल पूछने का अधिकार दिया है। इसी तरह देश में मनरेगा कार्यक्रम (Mahatma Gandhi National Rural Employment Gurantee Act) चलता है जिसने करोड़ों ग्रामीण गरीबों को कम से कम एक सौ दिन का रोजगार दिया है जिससे करोड़ों लोगों के प्राण बचे हैं ।

लेकिन हममें से बहुत कम लोगों को पता है कि इन दोनों कानूनों का विचार, उसे बनाने के लिए अभियान की शुरुआत बहुत छोटे से गांव से हुई। राजस्थान के देवडूंगरी गांव में एक छोटी सी झोंपड़ी है जिसका फर्श आज भी कच्चा है। उस किचन में भारत के सभी राज्यों के हजारों सामाजिक कार्यकर्ता अधिकारी और नेता आकर खाना खाकर जा चुके हैं।

यह झोपड़ी किसान मजदूर शक्ति संगठन नामक जन संगठन का मुख्यालय है। आईएएस अधिकारी अरुणा राय, भारतीय वायुसेना के उपाध्यक्ष के बेटे निखिल डे एवं राजस्थान के ग्रामीण परिवार से निकले शंकर सिंह ने इस झोपड़ी में रहकर गावों की समस्याओं को समझना उनका समाधान खोजना और उन्हें लागू करने के लिए आन्दोलन चलाना शुरू किया।

इसी जगह से सूचना का अधिकार और नरेगा कानून का आन्दोलन निकला और सफलतापूर्वक बना और लागू हुआ लेकिन इन आंदोलनों के पीछे एक नींव का पत्थर भी है जो लगभग अनजाना है। उनका नाम है अंशी बहन।

अंशी बहन की शादी शंकर सिंह से हुई तब उनकी उम्र चौदह साल की थी और शंकर सिंह की सोलह साल। शंकर सिंह बताते हैं - मेरी मां विधवा थी उसने मुझे ग्यारहवीं तक पढ़ा दिया और कहा अब इसके आगे पढ़ाने की मेरी ताकत नहीं है।

शंकर सिंह बताते हैं - मैंने पकौड़े के ठेले पर नौकरी करने से लेकर कई तरह के काम किये। ऐसे समय में अंशी ही मेरे अस्तित्व को बचाने का आधार बनी। अंशी के पिता के पास कुछ जमीन थी। अंशी जाकर खेती में मदद करती और कुछ अनाज लाती थी जिसके कारण मैं आगे पढ़ पाया।

'जब मैं तिलोनिया नामक जगह पर स्थित बंकर राय के संगठन में आया और मैंने वहां समाज को बदलने की बातें सुनी तब मुझे बहुत अच्छा लगा। तब तक मैं सरकारी शिक्षक पद पर चुना जा चुका था लेकिन मैंने सरकारी नौकरी ना करके समाज बदलने का फैसला किया और मैंने अरुणा राय और निखिल डे के साथ जुड़ कर काम करने का फैसला किया।'

उन्होंने बताया कि हम लोगों ने देव डूंगरी नामके छोटे से गाँव में झोपडी बना कर रहना शुरू किया। हमने मर्यादा यह रखी कि हममे से हरेक व्यक्ति उतना ही मानदेय लेगा जितना इस इलाके में न्यूनतम मजदूरी होती है हम एक मजदूर से ज्यादा खर्च नहीं करेंगे। आज तक संगठन में इस नियम का पालन होता है। जब इन लोगों ने इस छोटे से गाँव में रहना शुरू किया और जन आन्दोलन शुरू किये तो सरकार के कान खड़े होने लगे।

अंशी बहन बताती हैं कि मेरे पास सीआईडी वाले आते थे और कहते थे तुम जिन लोगों के साथ रहती हो यह लोग नक्सलवादी हैं आतंकवादी हैं। अंशी बहन ने उस पुलिस अधिकारी से कहा कि आज के बाद यहां मत आना, मुझे पता है कि यह लोग कौन हैं।

अंशी बताती हैं कि यह सभी लोग आन्दोलन अभियान में दूर दूर चले जाते थे। इनके आंदोलनों में गरीबों को उनके हक़ दिलाना जमीन पर उनके अधिकार दिलाना शामिल था। यह लोग सरपंचों के भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रहे थे। इसकी वजह से बड़े लोगों ने आस पास के लोगों को हमारे खिलाफ भड़का दिया।

'लोग हमें गांव छोड़कर जाने के लिए धमकाते थे, कहते थे यहां नीच जात के लोगों को तुम लोग रसोई में बैठाकर खिलाते हो। हमारे बच्चों को स्कूल में डराया जाता था।' अंशी कहती हैं- 'मैं अपने छोटे बच्चों को लेकर रातभर जागती थी। मुझे हमेशा लगता था कि बस आज की रात किसी तरह गुजर जाय।

अंशी इस संगठन की वो गुमनाम सिपाही है जिसके कारण विजय अभियान सफल होते हैं। आज भी आप अभियानों में आंदोलनों में शंकर सिंह भाई को मंच पर युवाओं के साथ गीत गाते देखेंगे। आप आस पास नजर घुमायेंगे तो अंशी बहन वहीं बैठकर मुस्कुराते हुए ताली बजाती दिखाई देंगी।

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