Lala Lajpat Rai Biography in Hindi: शेर ए पंजाब लाला लाजपत राय जिनके लिए भगत सिंह सुखदेव राजगुरु फांसी पर चढ़ गए

Lala Lajpat Rai Biography in Hindi: भारत की आज़ादी का इतिहास क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और बहादुरी के कारनामों से भरा हुआ है।

Update: 2022-01-27 06:54 GMT

Lala Lajpat Rai Biography in Hindi: शेर ए पंजाब लाला लाजपत राय जिनके लिए भगत सिंह सुखदेव राजगुरु फांसी पर चढ़ गए

मोना सिंह की रिपोर्ट

Lala Lajpat Rai Biography in Hindi: भारत की आज़ादी का इतिहास क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और बहादुरी के कारनामों से भरा हुआ है। ऐसे ही एक वीर स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय थे। जिन्हें 'पंजाब केसरी' या 'पंजाब का शेर' के नाम से भी जाना जाता है। उनकी 157वीं जयंती पर जाने उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें।

जन्म परिवार और शिक्षा

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 में पंजाब के लुधियाना जिले के धुड़िके गांव में हुआ था। उनका परिवार अग्रवाल जैन परिवार था। उनके पिता मुंशी राधा कृष्ण अग्रवाल सरकारी स्कूल में उर्दू और फारसी के शिक्षक थे और माता गुलाब देवी पारिवारिक और धार्मिक व्यक्तित्व वाली महिला थीं। 1870 में पिता का स्थानांतरण रेवाड़ी हो जाने की वजह से उनकी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल रेवाड़ी पंजाब प्रांत में हुई थी। 1880 में कानून का अध्ययन करने के लिए उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में प्रवेश लिया।

लाहौर में अध्ययन के दौरान उनके जीवन में कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं और लोग शामिल हुए, जिन्होंने उनके जीवन की दिशा बदल दी थी। वे स्वामी दयानंद सरस्वती के हिंदू सुधारवादी आंदोलन से प्रभावित हुए थे। उसी दौरान वह उस समय के आर्य समाज लाहौर (1877 में स्थापित) के सदस्य बने और साथ ही लाहौर स्थित 'आर्य गजट' के संस्थापक और संपादक भी बने। उनकी मुलाकात पंडित गुरुदत्त और लाल हंसराज के से हुई जो ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विचारधारा रखते थे, और बाद में स्वतंत्रता सेनानी बने।

साल 1886 में लाला लाजपत राय लाहौर में अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने परिवार के साथ हिसार चले गए, जहां उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस शुरू की। 1892 में वे लाहौर हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस करने लगे। उन्होंने 'कलम की ताकत तलवार से ज्यादा होती है' के सिद्धांत पर अमल करते हुए भारत की स्वतंत्रता में योगदान के लिए ' द ट्रिब्यून' सहित कई समाचार पत्रों के लिए पत्रकारिता भी की थी। 1886 में उन्होंने महात्मा हंसराज को दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल की स्थापना में मदद की और आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती के अनुयाई बन गए।

राष्ट्रवाद का जज्बा

हिसार में वकालत की प्रैक्टिस करते हुए 1888 और 1889 में नेशनल कांग्रेस के वार्षिक सत्र में उन्होंने प्रतिनिधि के तौर पर लिया था। बचपन से ही उनके मन में देश प्रेम की भावना थी। कॉलेज के दिनों में जब वे देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी लाल हंसराज और पंडित गुरुदत्त के संपर्क में आए तो देशभक्ति की भावना और प्रबल हो गई। उन्होंने देश को गुलामी से आजाद कराने का प्रण लिया। देश को आजाद कराने के लिए वे क्रांतिकारी रास्ता अपनाने के पक्षधर थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ थे। उनका मानना था कि देश की आजादी के लिए कांग्रेस की पॉलिसी का नकारात्मक असर पड़ रहा है। जनता ने उन्हें गरम दल का नेता मानते हुए 'शेर -ए- पंजाब' के संबोधन से सम्मानित किया। वे देश को पूर्ण राज्य दिलाने के पक्षधर थे।

'लाल- बाल- पाल' तिकड़ी

लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल ने लाल बाल पाल का गठन किया। स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाया। उन्होंने कांग्रेस के नरम दल जिसका नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले कर रहे थे, के विरोध में गरम दल का गठन किया।

राजनीतिक कैरियर लाला

लाजपत राय ने वकालत छोड़ कर देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। उन्होंने दुनिया के सामने भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा किए गए अत्याचारों को दिखाने और बताने के लिए उल्लेखनीय प्रयास किए, ताकि दूसरे देशों से भी सहयोग मिल सके। इस सिलसिले में वह 1913 में जापान, 1914 में ब्रिटेन,1917 में यूएसए में गए। वहां उन्होंने भारत की आजादी से संबंधित कई व्याख्यान दिए 8 अक्टूबर 1917 में उन्होंने न्यूयॉर्क में इंडियन होमरूल लीग की स्थापना की। 1917 से 1920 तक वे अमेरिका में रहे।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ आंदोलन

1920 में अमेरिका से लौटने के बाद उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ पंजाब में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया। गांधी जी द्वारा 1920 में शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का उन्होंने पंजाब में नेतृत्व किया। जल्द ही लोग उन्हें 'पंजाब केसरी' और 'पंजाब का शेर' जैसे नामों से पुकारने लगे। उन्हें 1921 से 1923 तक जेल में रखा गया। लेकिन जब गांधी जी ने चौरी चौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला किया तो उन्होंने इस फैसले का विरोध किया और इस घटना के बाद कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई ।

अंग्रेजों के फैसले का विरोध

अंग्रेजों द्वारा जब 1905 में बंगाल विभाजन किया गया था। उन्होंने अंग्रेजों के इस फैसले का जबरदस्त विरोध किया। उन्होंने सुरेंद्रनाथ बनर्जी, बिपिन चंद्र पाल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों से हाथ मिला लिया। देश भर में स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाया जब वे अमेरिका प्रवास पर थे, तो अंग्रेजो ने उन्हें वापस भारत नहीं आने दिया। तब उन्होंने न्यूयॉर्क से ही भारत के लिए यंग इंडिया पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया, और न्यूयॉर्क में इंडियन इनफार्मेशन ब्यूरो की स्थापना की।

निधन

1928 में इंग्लैंड के प्रसिद्ध वकील सर जॉन साइमन के साथ सात सदस्यीय, 'साइमन कमीशन' भारत के संविधान में सुधार पर चर्चा के लिए भारत आया। लेकिन साइमन कमीशन में कोई भी भारतीय प्रतिनिधि शामिल नहीं किया गया था। इस वजह से भारतीय भड़क उठे और देश भर में विरोध प्रदर्शन होने लगे इन विरोध प्रदर्शनों में 'साइमन गो बैक' और 'साइमन वापस जाओ' के नारे लगने लगे।पंजाब में लाला लाजपत राय विरोध प्रदर्शन में आगे आ गए थे। साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लालाजी ने 'अंग्रेजों वापस जाओ' का नारा दिया।

यह घटना 30 अक्टूबर 1928 की है। लाला लाजपत राय साइमन कमीशन के विरोध में शांतिपूर्ण जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे। पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट ने जुलूस को रोकने के लिए लाठीचार्ज के आदेश दिए। पुलिस ने लाला लाजपत राय को मुख्य निशाना बनाया, और उनकी छाती पर लाठियां बरसाई इससे वह बुरी तरह जख्मी हो गए। इन चोटों से वह कभी उबर नहीं पाए, और 17 नवंबर 1928 को उनका निधन हो गया। इससे उनके अनुयायियों को गहरा धक्का पहुंचा। उनकी मृत्यु के लिए उन्होंने ब्रिटिश शासन को दोषी ठहराया ।

लाला लाजपत राय के आखिरी शब्द

लाठीचार्ज में बुरी तरह घायल होने के बाद लाला लाजपत राय ने कहा कि" मेरे शरीर पर मारी गई लाठियां हिंदुस्तान में ब्रिटिश राज के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित होगी " ।

लाला जी की मौत का बदला

देश की आजादी के लिए लालाजी ने जुनून की हद तक काम किया था। देश की आजादी के लिए लालाजी से प्रभावित होकर लाखों युवा क्रांतिकारी देश की आजादी के लिए प्रतिबद्ध थे। ऐसे में लाला जी की मौत से सारा देश उत्तेजित हो उठा था। चंद्रशेखर आजाद ,भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने की कसम खाई। लालाजी की मौत के ठीक 1 महीने बाद 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई। गोली मारकर उन्होंने अपनी कसम को पूरा किया । सांडर्स कांड मामले में ही सुखदेव राजगुरु और भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी।

लाला जी द्वारा लिखी हुई किताबें

आर्य समाज, यंग इंडिया, इंग्लैंड टू इंडिया, इवोल्यूशन जापान, इंडियास विल टू फ्रीडम, मैसेज ऑफ़ भगवत गीता, पॉलिटिकल फ्यूचर ऑफ इंडिया, भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या, द डिप्रेस्ड ग्लासेस,

  • यात्रा वृतांत- संयुक्त राज्य अमेरिका,
  • लाला लाजपत राय द्वारा किए गए अन्य कार्य
  • लाला लाजपत राय ने पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना की।
  • छुआछूत के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी।
  • हिंदू अनाथ राहत आंदोलन की नींव रखी थी।ताकि ब्रिटिश मिशनरियां अनाथ बच्चों को अपने साथ न ले जा सकें।
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