सभी समस्याओं की तरह तापमान वृद्धि के मामले में उदासीन मोदी सरकार, जलवायु परिवर्तन की बैठक के लिए बहाना संसद सत्र

सरकार उसी अंतरराष्ट्रीय बैठक में शिरकत करती है, जहां किसी और पर आक्षेप किया जा सके या फिर उलूल-जुलूल कुछ भी बोला जा सके, जहां वैज्ञानिक और तकनीकी विवेचना तय रहती हैं, वहां हमारी सरकार नदारद रहती है

Update: 2021-07-29 13:18 GMT

PM मोदी को लगता है कि विपक्ष संसद का सत्र चलने नहीं देता तो फिर एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय बैठक में पर्यावरण मंत्री ऑनलाइन तो जुड़ सकते थे

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। वर्ष 2014 के बाद से हमारे देश में एक ऐसी सरकार काम कर रही है जो केवल साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण, निरंकुश सरकार, जनता का दमन में माहिर है और दूसरी हरेक समस्या के प्रति उदासीन है और इसे निपटाने का नाटक करती है। इस सरकार के पास किसी भी समस्या के हल के नाम पर दूसरों पर जिम्मेदारी थोपना और पहले से भी बड़ी समस्या खड़ी कर नागरिकों को बेवकूफ बनाना है।

गरीबी, अर्थव्यवस्था, सामाजिक समरसता, असमानता, कोविड 19 और यहाँ तक कि बेरोजगारी के मामलों में यही इस सरकार ने किया है। केवल सामाजिक समस्याओं के साथ ही ऐसा इस सरकार ने किया हो, ऐसा नहीं है बल्कि पर्यावरणीय समस्याओं का भी निदान सरकार के पास ऐसा ही है।

तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन का भी मोदी सरकार इसी तरह से निदान कर रही है। आपने गौर किया होगा, पिछले दो-तीन वर्षों से वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण के समाचार अचानक कम हो गए हैं और जलवायु परिवर्तन की चर्चा सरकारी स्तर पर उभरने लगी है। अब तो पर्यावरण और वन मंत्रालय के साथ जलवायु परिवर्तन को भी जोड़ दिया गया है।

दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन पर इसी सप्ताह 51 देशों के मंत्रियों की एक बैठक थी, जिसमें नवम्बर में यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो शहर में आयोजित किये जाने वाले कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज की 26वें बैठक पर सघन मंत्रणा की जानी थी, उसमें भारत ने हिस्सा ही नहीं लिया। यह सरकार उसी अंतरराष्ट्रीय बैठक में शिरकत करती है, जहां किसी और पर आक्षेप किया जा सके या फिर उलूल-जुलूल कुछ भी बोला जा सके। जहां वैज्ञानिक और तकनीकी विवेचना तय रहती हैं, वहां हमारी सरकार नदारद रहती है। कारण बताया गया, संसद का सत्र चल रहा है।

दूसरी तरफ संसद में प्रधानमंत्री भोली सी सूरत बनाकर बेचारगी दिखाते हुए बताते हैं कि विपक्ष संसद चलने ही नहीं देता। यदि प्रधानमंत्री को लगता है कि विपक्ष संसद का सत्र चलने नहीं देता, तो फिर एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय बैठक में पर्यावरण मंत्री ऑन-लाइन तो जुड़ ही सकते थे। आश्चर्य यह है कि बैठक में हिस्सा नहीं लेने का ऐसा हास्यास्पद कारण उस देश ने बताया है, जहां संसद-सत्र के बीच में प्रधानमंत्री मोदी विदेश यात्राएं करते हैं। 23 जुलाई, 2018 को प्रधानमंत्री मोदी तीन अफ्रीकी देशों – रवांडा, यूगांडा और दक्षिण अफ्रीका – के पांच दिवसीय दौरे पर गए थे और उस समय संसद का सत्र चल रहा था।

इस सम्मलेन का आयोजन जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के 26वें अधिवेशन के यूनाइटेड किंगडम स्थित सचिवालय ने किया था और इसमें कुल 51 देशों को बुलाया गया था। कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज का अधिवेशन यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो शहर में नवम्बर में होना तय है। पर, इस अधिवेशन की तैयारियां पहले से ही जोर-शोर से की जा रही हैं, प्रारम्भिक चर्चाएँ लगातार की जा रही हैं, जिससे अधिवेशन के दौरान कुछ ठोस परिणाम निकल सकें।

कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के वर्तमान अध्यक्ष आलोक शर्मा ने कहा कि पहले सभी देशों को लन्दन आने का न्योता दिया गया था, पर बाद में जो न आ सके उन्हें वर्चुअल तौर पर जुड़ने की अनुमति दी गयी थी। इसके बाद भी भारत सरकार ने संसद-सत्र का हवाला देकर अधिवेशन से अपने आप को बाहर रखा। आलोक शर्मा के अनुसार यह अधिवेशन बहुत प्रभावी रहा और इसमें हरेक सदस्य तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने पर एकमत थे।

इसके अतिरिक्त पेरिस समझौते की कार्यप्रणाली, जिसे पेरिस रूल बुक के नाम से जाना जाता है, पर विस्तृत चर्चा की गयी। सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि रोकने से सम्बंधित दीर्घकालीन रणनीति प्रस्तुत करने पर भी सहमति जताई, जिससे कार्बन उत्सर्जन शून्य के स्तर तक पहुंचाने के लिए एक समय सीमा तय की जा सके।

अब तो भारत सरकार के किसी निर्णय से आश्चर्य भी नहीं होता। जिस संसद के अधिवेशन का हवाला देकर इस अधिवेशन से सरकार ने किनारा कर लिए, उसी संसद सत्र के बीच में पिछले सप्ताह भारत ने जी-20 देशों के ऊर्जा और जलवायु से सम्बंधित मंत्रीस्तर के अधिवेशन में हिस्सा लिया। इस अधिवेशन में भारत ने वही पुराना रवैय्या अपनाया और जलवायु परिवर्तन का पूरा ठीकरा विकसित देशों के सर पर फोड़ दिया। इन्ही सारे बेतुके दावों से भारत सरकार अपने कोयला-प्रेम को सही ठहराती है। इस अधिवेशन में भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने बताया कि दुनिया के कुल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में से भारत का योगदान महज 7.1 प्रतिशत है।

यह आंकड़ा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे भारत सरकार के आंकड़ों की बाजीगरी को समझने में मदद मिलती है। जून 2021 में फिक्की के महिला एसोसिएशन को संबोधित करते हुए तत्कालीन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा था कि पिछले 200 वर्षों में जितना भी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पूरी दुनिया में किया गया है, उसमें महज 3 प्रतिशत भारत का योगदान है।

आंकड़े पेश करना और उसका स्त्रोत नहीं बताना, यह बीजेपी सरकार की परंपरा के अनुरूप है और प्रकाश जावडेकर ने भी यही किया। प्रधानमंत्री मोदी भी लगातार ऐसा ही करते हैं। बहरहाल ऐसा कोई आंकड़ा कहीं भी उपलब्ध नहीं है, पर भारत सरकार यूरोप, अमेरिका और चीन को जिम्मेदार ठहराकर और झूठे आंकड़ों से जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि का हल निकालने में व्यस्त है।

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