Mahatma Gandhi Jayanti : महात्मा गांधी पर कुछ हिंदी कवितायें
Mahatma Gandhi Jayanti : गांधी जी ने कला के हरेक पहलू को भी प्रभावित किया है। लगभग हरेक भाषा में गांधी जी पर साहित्य रचा गया है, या फिर उनके लेखों और पुस्तकों का अनुवाद किया गया है....
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
Mahatma Gandhi Jayanti जनज्वार। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) जैसे हस्ती दुनिया में किसी भी व्यक्ति की नहीं रही है – आप गांधी जी को इज्जत दे सकते है, उनके आदर्शों पर चलने की ठान सकते हैं या फिर आप उन्हें पसंद नहीं भी कर सकते हैं – पर गांघी जी को नकार नहीं सकते| हमारी सरकार भी गांधी जी को एक सैनिटरी इंस्पेक्टर (Sanitary Inspector) से अधिक कुछ नहीं समझती, हत्यारे नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) को पूजती है पर विदेशों में जाते ही गांधी जी विदेशियों द्वारा याद करा ही दिए जाते हैं। वैसे भी झूठ और हिंसा के सिंहासन पर बैठे हमारे शासकों को सत्य, न्याय और अहिंसा की मूर्ति महात्मा गाँधी में क्यों दिलचस्पी होने लगी?
गांधी जी ने कला के हरेक पहलू को भी प्रभावित किया है। लगभग हरेक भाषा में गांधी जी पर साहित्य रचा गया है, या फिर उनके लेखों और पुस्तकों का अनुवाद किया गया है। बहुत सारे मूर्तिकारों और चित्रकारों के रचनाओं का केंद्र बापू रहे हैं। अनेक फ़िल्में गांधी जी को केंद्र में रखकर बनाई गयी हैं और अनेक टीवी धारावाहिक भी इसी विषय पर हैं| अपने जीवन काल और बाद में भी गांधी जी अनेक कवियों के प्रिय विषय रहे हैं| दुष्यंत कुमार (Dushyant Kumar) की एक कम चर्चित पर सशक्त कविता है, गांधी जी के जन्मदिन पर।
गांधी जी के जन्मदिन पर
मैं फिर जनम लूंगा
फिर मैं इसी जगह आउंगा
उचटती निगाहों की भीड़ में
अभावों के बीच
लोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगा
लँगड़ाकर चलते हुए पावों को कंधा दूँगा
गिरी हुई पद-मर्दित पराजित विवशता को
बाँहों में उठाऊँगा ।
इस समूह में
इन अनगिनत अचीन्ही आवाज़ों में कैसा दर्द है
कोई नहीं सुनता
पर इन आवाजों को और इन कराहों को
दुनिया सुने मैं ये चाहूँगा
मेरी तो आदत है
रोशनी जहाँ भी हो उसे खोज लाऊँगा
कातरता, चु्प्पी या चीखें,
या हारे हुओं की खीज जहाँ भी मिलेगी
उन्हें प्यार के सितार पर बजाऊँगा
जीवन ने कई बार उकसाकर
मुझे अनुलंघ्य सागरों में फेंका है
अगन-भट्ठियों में झोंका है,
मैने वहाँ भी ज्योति की मशाल प्राप्त करने के यत्न किये
बचने के नहीं,
तो क्या इन टटकी बंदूकों से डर जाऊँगा?
तुम मुझकों दोषी ठहराओ
मैने तुम्हारे सुनसान का गला घोंटा है
पर मैं गाऊँगा
चाहे इस प्रार्थना सभा में
तुम सब मुझपर गोलियाँ चलाओ
मैं मर जाऊँगा
लेकिन मैं कल फिर जनम लूँगा
कल फिर आऊँगा
हिंदी के मूर्धन्य कवि रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) की एक प्रसिद्ध कविता है- गांधी।
गांधी
देश में जिधर भी जाता हूँ,
उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ
"जड़ता को तोड़ने के लिए
भूकम्प लाओ,
घुप्प अँधेरे में फिर
अपनी मशाल जलाओ,
पूरे पहाड़ हथेली पर उठाकर
पवनकुमार के समान तरजो,
कोई तूफ़ान उठाने को
कवि, गरजो, गरजो, गरजो"
सोचता हूँ, मैं कब गरजा था ?
जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,
वह असल में गाँधी का था,
उस गाँधी का था, जिस ने हमें जन्म दिया था
तब भी हम ने गाँधी के
तूफ़ान को ही देखा,
गाँधी को नहीं
वे तूफ़ान और गर्जन के
पीछे बसते थे
सच तो यह है
कि अपनी लीला में
तूफ़ान और गर्जन को
शामिल होते देख
वे हँसते थे
तूफ़ान मोटी नहीं,
महीन आवाज़ से उठता है
वह आवाज़
जो मोम के दीप के समान
एकान्त में जलती है,
और बाज नहीं,
कबूतर के चाल से चलती है
गाँधी तूफ़ान के पिता
और बाजों के भी बाज थे
क्योंकि वे नीरवताकी आवाज थे
कवि और लेखक रूपम मिश्र (Rupam Mishra) की भी एक कविता का शीर्षक है- गांधी| यह एक विशेष कविता है, जिसमें गांधी जी के बारे में फैलाई गयी तमाम अफवाहों का भी समावेश है।
गाँधी
तुम उदास न होना गाँधी
सत्य अभी भी संसार में सबसे ज़्यादा चमकता है
झूठ अभी सत्य के पीछे छुपकर खड़ा होता है
अब भी क्रूरता को कहना ही पड़ता है — अहिंसा परमोधर्मः
आततायी अब भी न्याय का सहारा लेकर
अपने दम्भ को उजागर करते हैं
प्रार्थना सभाओं में अब भी गाए जाएँगे — वैष्णव जन ते......
हाँ, ये खेद रहेगा कि वहाँ बैठे जन पराई पीर न जानेंगे
अब भी जिसमें ज़रा भी करुणा बची होगी
वो गोडसे नाम सुनते ही शर्म से सिर झुका लेगा
साबरमती के बूढ़े फकीर, तुम युगप्रवर्तक थे
क्षमा दया का पारावार जानने के लिए
संसार तुम्हारे समक्ष हमेशा हाथ फैलाता रहेगा
अभी एकदम निराश न होना गाँधी
लोग धीरे-धीरे ही सही लौटेंगे अहिंसा की ओर
देखना एकदिन कृष्ण लौट आएँगे समरभूमि से गोकुल
राम की आँखों से दुख के आँसू गिरेंगे शम्बूक वध पर
कर्ण प्रतिकार भूलकर न्याय को सिर माथे पर रखेगा
एकलव्य के कटे अँगूठे को देखकर द्रोण ग्लानि से भर जाएँगें
तुम आस बचाए रखना गाँधी, आने वाला युग अन्धी जड़ता को ठोकर मारेगा
जानते हो गाँधी, अभी भी बच्चे चश्मा, लाठी और एक कमज़ोर सी देह की छाया देखकर उल्लास से कहते हैं — वो देखो गांधी!!
भले ही उनके कोमल मन पर थोप दिया गया है कि
देश मे दंगो का कारण गांधी हैं
अब भी धारा का सबसे पिछड़ा व्यक्ति तुम्हें जानता है गांधी
भले इस झूठ के साथ कि पाकिस्तान बनने का कारण गांधी थे
कवि असंगतघोष (Asangatghosh) की एक चर्चित कविता है, गांधी मुझे मिला|
गाँधी मुझे मिला
गांधी
मुझे मिला
गांधी चौक में
पीपल की छाँव तले
खोमचे के पीछे
ओटले पर खड़ा-खड़ा
अपनी नाक खुजाता
बिना चश्मा लगाए
कभी चाट
कभी फल
कभी चाय
कभी कपड़े
वगैरह बेचता हुआ
वह घिरा था
अपनों से
चेलों से
अनुयायियों से
नेताओं से और
पूंजीपतियों से
इनमें से कोई नहीं चाहता
कि गांधी
दिखाई दे
जनता को और
सार्थक करे चौक का नाम
क्योंकि इसके लिए
किसी न किसी को
करना होता जतन
और यदि कोई जतन होता तो,
घेरा कम होता
धरना अनशन वगैरह के लिए
जगह कम न पड़ती
इसलिए वे नहीं चाहते
कि घेरा कम हो
गांधी जनता को दिखे
भले ही लगाता रहे
गांधी!
खोमचा
रेहड़ी वगैरह वगैरह
और चिल्लाता रहे
"सेब पपड़ी चना चबेनावालाजी"