Mahatma Gandhi Jayanti : 100 साल पहले गांधी ने देखा था वोकल फॉर लोकल का सपना
Mahatma Gandhi Jayanti : महात्मा गांधी उद्योगों को गांव ले जाने की बात करते थे, जिससे गांव के लोगों का पलायन शहर की ओर ना हो....
Mahatma Gandhi Jayanti : आज हम जिस वोकल फॉर लोकल (Vocal for Local) की बात करते हैं। आज से लगभग 100 साल पहले गांधी जी (Mahatma Gandhi) ने ऐसा सपना देखा था। जिसमें वास्तव में गाँव, गरीब, किसान का हित निहित था। गांधी हमेशा ग्रामीण भारत (Rural India) के विकास की बात करते थे।
यदि सरकारें महात्मा गांधी के विचारों को स्वीकार करतीं तो देश में बड़े-बड़े उद्योगों की जगह छोटे-छोटे कुटीर उद्योगों का जाल बिछा होता। तकनीक और उत्पादकता गांव और तहसील के स्तर तक पहुंच चुकी होती। आज जिस तरह से सभी उद्योगों को बड़े-बड़े उद्योगपतियों के हाथों बेच दिया जा रहा है, गांधी कभी ऐसा नहीं चाहते थे।
महात्मा गांधी भारतीय गाँवों और उनकी पंचायती व्यवस्था (Panchayati Raj) को आत्मनिर्भर (Self Dependent) बनाने के पक्ष में थे। गांधी जी ने एक छोटी सी पुस्तक लिखी हिंद स्वराज्य (Hind Swaraj)। यह किताब गांधी जी (Mahatma Gandhi) ने ट्रेन में बैठे-बैठे हाथ से लिख दी थी। लेकिन यह छोटी सी पुस्तिका आधुनिक भारत के विकास का दस्तावेज है।
गांधी ने अपनी पुस्तक 'हिन्द स्वराज' में पश्चिमी आधुनिकता का विरोध कर हमें यथार्थ को पहचानने का रास्ता दिखाया। ग्रामीण विकास को केन्द्र में रखकर उन्होंने वैकल्पिक टेक्नॉलोजी के साथ-साथ स्वदेशी और सर्वोदय के महत्व को बताया। उनके इस आदर्श प्रतिरूप का अनुसरण करके नैतिक, आर्थिक, आध्यात्मिक और शक्तिशाली भारत का निर्माण सार्थक बनाया जा सकता है।
गांधी उद्योगों को गांव ले जाने की बात करते थे, जिससे गांव के लोगों का पलायन (Migration) शहर की ओर ना हो। यदि गांधी के सोच को अपनाया गया होता तो वर्तमान कोरोना काल में जो मजदूरों का संकट हमने देखा कि कैसे मजदूरों के झुंड महानगरों से पैदल अपने गांव जाने को मजबूर हुए। शायद ना देखना पड़ता।
वर्तमान में एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) लोकल फॉर वोकल (Vocal For Local) की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर सभी सरकारी कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी बेच रहे हैं। गांधी उद्योग में पूर्ण रूप से निजीकरण के खिलाफ थे। उनका मानना था कि ऐसा करने से निजी कंपनियां अपनी मनमानी कर सकतीं हैं। मौजूदा सरकार गाँधी के आदर्शों की बात करती है, पर उन्हें लागू नहीं करती। पिछले कई वर्षों से लगातार सरकार सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण और विनिवेश करती दिख रही है।
गांव के लोगों के पास रोजगार हो और वे आत्मनिर्भर बनें यही गांधीजी का सपना था। लेकिन आज गाँव में ना ही तेल पिराई का कोल्हू बचा है ना ही हाथ से चलने वाला चरखा। गांधी सदैव स्वदेशी की बात किया करते थे। आज आधुनिकता और मशीनीकरण ने गांव से सभी स्वरोजगार वाले संसाधनों को प्रभावित कर दिया है। लेकिन समय ऐसा आ चुका है कि हमें गाँधी की मूल व्यवस्था पर लौटना ही पड़ेगा। ग्रामीण भारत की आत्मनिर्भरता पूरे भारत की विकास की तकदीर बदलने सकता है।