परमाणु हथियारों पर रोक के लिए नया अंतरराष्ट्रीय समझौता, नये युग की दिशा में पहला कदम
ट्रीटी ऑन द प्रोहिबिशन ऑफ़ न्यूक्लीयर वेपन्स के बारे में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव आश्वस्त हैं, उनके अनुसार यह पूरी दुनिया के लोगों की आकांक्षाओं का सम्मान है क्योंकि दुनियाभर में लोग मानवता को नष्ट करने में सक्षम परमाणु हथियारों के विरुद्ध लम्बे समय से आवाज उठा रहे हैं, यह समझौता परमाणु हथियारों को पूरी तरह से ख़त्म करने की दिशा में पहला कदम है......
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुमोदित एक नया अंतर्राष्ट्रीय समझौता, जिसके तहत परमाणु हथियारों का उत्पादन, भंडारण और उपयोग प्रतिबंधित होगा, 21 जनवरी 2021 से लागू हो जाएगा। हालांकि घोषित परमाणु हथियारों वाले देश और ऐसे देश जहां इन देशों ने परमाणु ठिकाना बनाया है, किसी ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं, पर संयुक्त राष्ट्र और इस दिशा में काम कर रहे दूसरे संगठनों के अनुसार इससे एक नए युग की शुरुआत होगी। इन संगठनों के अनुसार, संभव है कि इस समझौते से परमाणु हथियारों वाले देशों पर कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा।
संयुक्त राष्ट्र ने इस समझौते के ड्राफ्ट पर सितम्बर 2017 में चर्चा कराई थी, उस समय कुल 193 सदस्यों में से 122 ने इसके पक्ष में मत दिया था। पिछले सप्ताह ही होंडुरास इस समझौते को स्वीकृत करने वाला 50वां देश बन गया, संयुक्त राष्ट्र के नियमों के अनुसार किसी समझौते के ड्राफ्ट को 50 सदस्य देशों द्वारा मान्यता मिलाने के बाद यह अंतर्राष्ट्रीय समझौता बन जाता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित 'ट्रीटी ऑन द प्रोहिबिशन ऑफ़ न्यूक्लीयर वेपन्स' अब 50 देशों द्वारा मान्य है, इसलिए 21 जनवरी 2021 से यह अंतर्राष्ट्रीय समझौता बन जाएगा। इस समझौते को मान्यता देने वाले देशों में प्रमुख हैं – ऑस्ट्रिया, बांग्लादेश, आयरलैंड, माल्टा, मलेशिया, मेक्सिको, न्यूज़ीलैण्ड, नाइजीरिया, साउथ अफ्रीका, थाईलैंड, तुवालू, वियतनाम और वैटिकन।
घोषित परमाणु हथियार वाले देशों – अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस के साथ ही भारत, पाकिस्तान, नार्थ कोरिया और इजराइल ने इस समझौते से अपने को अलग रखा है। 24 जुलाई 2019 को लोकसभा में सरकार द्वारा बताया गया था कि इस समझौते से भारत ने अपने आप को अलग रखा है और भारत परमाणु अप्रसार संधि का अनुपालन करता है। सरकार के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के इस समझौते से परमाणु हथियारों पर कोई अंकुश नहीं लगेगा। दूसरी तरफ अमेरिका ने चेतावनी दी है कि 'ट्रीटी ऑन द प्रोहिबिशन ऑफ़ न्यूक्लीयर वेपन्स' को मान्यता देने वाले देश सामरिक दृष्टि से गलत कदम उठा रहे हैं और इसका खामियाजा उन्हें भविष्य में उठाना पड़ सकता है।
स्वीडन स्थित स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा 15 जून के प्रकाशित की गई वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के जिन 9 देशों में परमाणु हथियार हैं, उनमें से केवल दो देश – चीन और भारत - ने पिछले वर्ष अपने हथियारों की संख्या को बढ़ाया है। भारत ने वर्ष 2019 के दौरान पिछले वर्ष की तुलना में 10 नए परमाणु हथियार अपने जखीरे में शामिल किये हैं, फिर भी भारत के कुल परमाणु हथियारों की संख्या चीन की तुलना में बहुत कम तो है ही, यह संख्या पाकिस्तान के हथियारों से भी कम है।
वार्षिक रिपोर्ट के 51वें संस्करण में बताया गया है कि चीन के पास 320 परमाणु वारहेड्स हैं, पाकिस्तान के पास 160 और भारत के पास 150 वारहेड्स हैं। पिछली वार्षिक रिपोर्ट में भी पाकिस्तान के वारहेड्स की संख्या यही थी, जबकि भारत के पास 140 और चीन के पास 290 वारहेड्स थे। दुनिया के कुल 9 देशों (अमेरिका, रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया, फ्रांस, इजराइल और इंग्लैंड) के पास परमाणु हथियार हैं। जनवरी 2020 तक दुनिया में कुल 13400 परमाणु हथियार थे, जिसमें से लगभग 90 प्रतिशत हथियार अमेरिका और रूस के पास हैं। सबसे अधिक, 6375 रूस के पास और 5800 अमेरिका के पास हैं। इंग्लैंड के पास 215 परमाणु हथियार हैं।
भारत और पाकिस्तान धीरे-धीरे अपने परमाणु हथियारों की संख्या बढाते जा रहे हैं, पर कुल हथियारों की संख्या कभी सार्वजनिक नहीं करते। चीन बहुत तेजी से अपने परमाणु हथियारों का आधुनिकीकरण कर रहा है, नए हथियार विकसित कर रहा है और इनके उपयोग के नए तरीके भी इजाद कर रहा है। परमाणु हथियारों से लैस विमानों को भी अपने देश में ही बना रहा है। चीन ऐसा देश है जो नए परमाणु हथियारों को बार-बार मिलिट्री परेड में शामिल करता है, फिर भी अपने देश के हथियारों की जानकारी सार्वजनिक नहीं करता। इस रिपोर्ट के अनुसार परमाणु हथियारों के कारण दुनिया पहले से अधिक खतरनाक होती जा रही है, क्योंकि लगभग हरेक क्षेत्र में देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। अधिकतर परमाणु हथियार संपन्न देशों में यह रक्षा योजनाओं के केंद्र में है और कुछ देश, जैसे भारत और पाकिस्तान, तो सीधे तौर पर परमाणु हथियारों की धमकी भी देने लगे हैं।
अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोराडो बोल्डर और रुत्गेर्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ब्रायन तून की अगुवाई में एक विस्तृत अध्ययन कर भारत और पाकिस्तान के बीच यदि परमाणु युद्ध छिड़ गया तब के नुकसान का आंकलन किया है।इस अध्ययन को जर्नल ऑफ़ साइंस एडवांसेज ने वर्ष 2018 में प्रकाशित किया था। इसके अनुसार यदि भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध होता है तो इसका सीधा प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ेगा। इस युद्ध से 5 करोड़ से 12.5 करोड़ लोग मरेंगे, यानी मरने वालों की कुल संख्या द्वितीय विश्व युद्ध के 6 वर्ष के दौरान दुनिया भर में मरने वालों की कुल संख्या से भी बहुत अधिक होगी।
इस अध्ययन के अनुसार अनुमान है कि पूर्ण परमाणु युद्ध की स्थिति में पहले सप्ताह के दौरान दोनों देश सम्मिलित तौर पर कुल 250 परमाणु बमों का इस्तेमाल करेंगे और हरेक परमाणु बम से लगभग 7 लाख जानें जायेंगी। इस स्थिति में दुनिया की औसत मृत्यु दर दुगुनी से भी अधिक हो जायेगी। परमाणु बम के विस्फोट से तो कम मौतें होंगीं पर इसके बाद जो आग फैलेगी उससे ज्यादा जानें जायेंगी। इन वैज्ञानिकों के अनुसार हिरोशिमा में परमाणु बम गिराने के बाद जिस 'मशरुम क्लाउड' की चर्चा की जाती है या चित्र दिखाए जाते हैं वह भी विस्फोट के कारण नहीं थे बल्कि आग लगाने के कारण बने थे।
भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध होने की स्थिति में वायुमंडल में लगभग 3.63 करोड़ टन धुआँ पहुंचेगा और यह केवल भारत और पाकिस्तान के ऊपर ही नहीं सीमित रहेगा बल्कि पूरी दुनिया में फैलेगा, जिससे सूर्य की किरणे पृथ्वी पर नहीं पहुँच पाएंगी। इस कारण पूरी दुनिया में औसत तापमान में 12 से 15 सेल्सियस तक कमी आयेगी। इस स्थिति को वैज्ञानिक भाषा में 'न्यूक्लियर विंटर' कहा जाता है। पूरे वैज्ञानिक जगत को यह शब्द देने वाले इस अध्ययन के मुख्य वैज्ञानिक ब्रायन तून ही हैं। इस युद्ध के कारण पृथ्वी का तापमान इतना कम हो जाएगा जितना पिछले हिम युग (लगभग 12000 वर्ष पहले) के बाद कभी नहीं हुआ।
तापमान में यह कमी कई वर्षों तक बनी रहेगी और इसकी विभीषिका पूरी दुनिया झेलेगी। वायुमंडल में धुएं के मिलने से सूर्य की धूप में जो कमी आयेगी और तापमान कम होने के कारण पूरी दुनिया में कृषि प्रभावित होगी, हरेक फसल की उत्पादकता कम होगी। दूसरी तरफ महासागरों में पादप प्लवक के कम होने के कारण मछलियों और दूसरे समुद्री खाद्य पदार्थों में भी कमी होगी। कुल मिलाकर एक ऐसी स्थिति होगी जब दुनिया में खाने की कमी हो जायेगी।
ट्रीटी ऑन द प्रोहिबिशन ऑफ़ न्यूक्लीयर वेपन्स के बारे में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव आश्वस्त हैं, उनके अनुसार यह पूरी दुनिया के लोगों की आकांक्षाओं का सम्मान है क्योंकि दुनियाभर में लोग मानवता को नष्ट करने में सक्षम परमाणु हथियारों के विरुद्ध लम्बे समय से आवाज उठा रहे हैं। यह समझौता परमाणु हथियारों को पूरी तरह से ख़त्म करने की दिशा में पहला कदम है। इसी वर्ष जापान के नागासाकी और हिरोशिमा में अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने की 75वीं वर्षगाँठ अगस्त के महीने में मनाई गई थी और उसके बाद इस समझौते में देशों की रूचि पहले से अधिक बढ़ गई। रेड क्रॉस के प्रेसिडेंट पीटर मौरेर ने जिस दिन होंडुरास ट्रीटी ऑन द प्रोहिबिशन ऑफ़ न्यूक्लीयर वेपन्स पर हस्ताक्षर करने वाला 50वां देश बना, उसी दिन कहा था, आज उन सभी लोगों की विजय के जश्न का दिन है, जो पृथ्वी पर एक सुरक्षित भविष्य की कामना करते हैं।
ट्रीटी ऑन द प्रोहिबिशन ऑफ़ न्यूक्लीयर वेपन्स के ड्राफ्ट बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली और 2017 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित संस्था, इंटरनेशनल कैंपेन टू अबोलिश नुक्लेअर वेपन्स, ने कहा कि यह शुरुआत है और इसका असर लम्बे समय बाद देखने को मिलेगा। जाहिर है, परमाणु हथियारों से लैस देश इसे जल्दी स्वीकार नहीं करेंगे, पर इससे उनकी मानसिकता में जरूर बदलाव आएगा और संभवतः नए हथियारों का निर्माण बंद हो जाएगा।आखिर दुनिया ने लगभग 45 वर्ष पहले जैविक हथियारों को और 25 वर्ष पहले रासायनिक हथियारों को त्याग दिया है। अब बारी परमाणु हथियारों की है।