कोविड 19 के टीके पर क्यों उठ रहे सवाल, जानिए कहां तक मिली कामयाबी ?
भारत सरकार के नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार टीके को सबसे पहले बुजुर्गों और स्वास्थ्यकर्मियों के साथ ही कोविड 19 से सम्बंधित फ्रंटलाइन वर्कर्स को लगाया जाएगा, दूसरी तरफ बीजेपी बिहार में इसे देने की बात करती है, मध्य प्रदेश सरकार भी यही दावा कर रही है....
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
कोविड 19 को लेकर इन दिनों भारत समेत लगभग सभी देश लापरवाही की हदें पार कर चुके हैं और दूसरी तरफ इसके टीके का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। फाइजर और मोडेर्ना ने अपने टीकों से दुनिया की उम्मीदों को बढ़ा दिया है, आशा है कि इस वर्ष के अंत तक या फिर अगले वर्ष के आरम्भ में इन दोनों कंपनियों के टीके उपलब्ध होने लगेंगें। इस बीच कम्पनियां रहस्यमय तरीके से अपने दावों को बदलती जा रहीं हैं। दो दिनों पहले तक फाइजर का दावा था कि उसका टीका 90 प्रतिशत तक कामयाब है, इसके बाद अमेरिकी कंपनी मोडेर्ना ने अपने टीके के 94.5 प्रतिशत सफलता दर का दावा पेश किया। इस दावे के अगले दिन ही फाइजर ने बताया कि उसने फिर से टीके की सफलता का आकलन किया है और यह 95 प्रतिशत है। जाहिर है, इन दोनों कंपनियों में अपने टीके को अधिक प्रभावी बताने की होड़ लगी है।
इन दावों के बीच एक महत्वपूर्ण तथ्य भी है, जिसपर अभी चर्चा भी नहीं की जा रही है। फाइजर के टीके को शून्य से भी 70 डिग्री सेल्सियस कम तापमान पर रखने की जरूरत होगी। ऐसे में सवाल यह है कि भारत जैसे कितने गरीब देश हरेक जगह ऐसी सुविधा विकसित कर पायेंगें? इसी तापमान पर इन्हें एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाना भी पड़ेगा, फिर गावों में ऐसा तापमान किस तरह पाया जा सकेगा? दूसरी तरफ मोडेर्ना का दावा है कि उसके टीके का भंडारण शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस नीचे लगभग 3 महीने तक किया जा सकता है। देश के बड़े अस्पतालों में तो यह तापमान मिल जाएगा, पर कस्बों और गाँव में यह तापमान भी कठिन होगा। दरअसल ये दोनों टीके एक नई तकनीक, जिसमें मैस्सेंजर आरएनए की प्रमुख भूमिका है, पर आधारित हैं और इसमें टीकों को बहुत ठंढे तापमान पर रखना ही पड़ेगा, नहीं तो टीके जल्दी ही खराब हो जायेंगें।
इन दोनों टीके का मूल्य भी एक समस्या है। फाइजर के टीके की कीमत 20 डॉलर है जबकि मोडेर्ना के टीके की कीमत 37 डॉलर है। हरेक टीके का एक बूस्टर टीका भी होगा, ऐसे में इस कीमत को कितने लोग टीके का खर्च उठा पायेंगें? मोडेर्ना ने वक्तव्य जारी किया है कि कोविड 19 जब तक समाप्त नहीं हो जाता तब तक अपने टीके को वह पेटेंट के दायरे से बाहर रखेजा। इसका मतलब है कि कोई भी दूसरा देश इसे फिलहाल अपने देश में बना सकता है, और अपनी जनता को सस्ते दरों पर उपलब्ध करा सकता है। पर, अनेक विशेषज्ञ इस दावे को बकवास करार देते हैं।
मेडिसिन्स सैंस फ्रंटियर्स नामक गैर सरकारी संस्था के अनुसार यह सोचना भूल होगी कि मोडेर्ना जैसी व्यवसायिक कंपनी अमेरिका सरकार के सहयोग से कोई टीका बनाएगी और उससे मुनाफ़ा नहीं कमाएगी। इस संस्था ने बताया कि संभवतः इसीलिए मोडेर्ना ने पेटेंट न लागू करने की कोई निश्चित समयसीमा के बारे में बात नहीं की है। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका का टीका अभी अंतिम परीक्षण के दौर में है, पर इसके बारे में स्पष्ट बताया गया है कि जुलाई 2021 तक इससे कोई मुनाफ़ा नहीं कमाया जाएगा।
हमारे देश में तो किन्हे प्राथमिकता के आधार पर टीका मिलेगा यह भी तय नहीं है। भारत सरकार के नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार टीके को सबसे पहले बुजुर्गों और स्वास्थ्यकर्मियों के साथ ही कोविड 19 से सम्बंधित फ्रंटलाइन वर्कर्स को लगाया जाएगा। दूसरी तरफ बीजेपी बिहार में इसे देने की बात करती है, मध्य प्रदेश सरकार भी यही दावा कर रही है। कुछ महीनों बाद बंगाल के चुनावों के दौरान भी बीजेपी निश्चित तौर पर बंगाल ले लोगों के साथ टीके का सौदा करेगी। पर, अंत में जब टीका आएगा तब प्राथमिकता निश्चित तौर पर विधायिका और वरिष्ठ कार्यपालिका तक पहुँच जायेगी।
फ्रांस के स्ट्रासबर्ग यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में किये गए अध्ययन के अनुसार कोविड 19 से संक्रमित होकर ठीक होने वाले पुरुषों के शरीर में स्त्रियों की अपेक्षा अधिक तेजी से एंटीबॉडीज नष्ट हो रहे हैं। यहाँ पर कोविड 19 से ग्रस्त होने वाले 308 मरीजों का 6 महीने तक गहन अध्ययन किया गया और एंटीबॉडीज के स्तर को 172 दिनों के अंतराल पर मापा गया। कोविड 19 के बारे में शुरू से बताया जा रहा है कि महिलायें इससे अधिक ग्रस्त होती हैं, पर मृत्यु दर के सन्दर्भ में पुरुष बहुत आगे हैं। संक्रमण के शुरू में भी स्त्रियों की तुलना में पुरुषों के शरीर में एंटीबॉडीज अधिक बनाते हैं, और नए अध्ययन के अनुसार पुरुषों के एंटीबॉडीज अपेक्षाकृत अधिक तेजी से नष्ट भी होते हैं।
जाहिर है, पुरुषों और स्त्रियों का रोग-प्रतिरोधक तंत्र इस वायरस के सन्दर्भ में अलग व्यवहार करता है। ऐसे में एक ही टीके से सबको एक समान रोग से बचा पाना असंभव है, पर किसी भी टीके के परीक्षण में ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया है। कोविड 19 का टीका इस दौर में शुद्ध मुनाफे का सौदा है, और पूंजीवाद में करोड़ों लोगों की जिन्दगी दांव पर लगाना कोई नई बात नहीं है।