मनीष सिसोदिया के घर CBI छापे का क्या है गुजरात से नाता, कहीं BJP की रणनीति केजरीवाल को Delhi में उलझाने की तो नहीं!

BJP VS AAP : गुजरात के चुनावी जोड़-तोड़ में मोदी और शाह का स्टेक पूरी तरह से दांव पर है। कांग्रेस लगभग सरेंडर की स्थिति में है। वहीं आम आदमी पार्टी को हार मिले या जीत दोनों स्थिति में लाभ ही लाभ है।

Update: 2022-08-19 11:19 GMT

मनीष सिसोदिया के घर CBI छापे का क्या है गुजरात से नाता, कहीं BJP की रणनीति केजरीवाल को Delhi में उलझाने की तो नहीं!


मनीष सिसोदिया के घर सीबीआई रेड VS गुजरात चुनाव पर धीरेंद मिश्र का विश्लेषण

BJP VS AAP : दिल्ली शराब घोटाले मामले में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ( Manish Sisodia ) के आवास सहित 7 राज्यों के 21 ठिकानों पर सीबीआई के छापे ( CBI raids Delhi ) के बाद आम आदमी पार्टी ( AAP ) और भारतीय जनता पार्टी ( BJP ) आमने-सामने आ गई है। दोनों के बीच ताजा सियासी तनाव उस समय उभरकर सामने आया है जब साढ़े तीन माह बाद गुजरात में विधानसभा का चुनाव ( Gujrat Election 2022 ) होना है। खास बात यह है कि इस बार गुजरात के चुनावी जोड़-तोड़ में मोदी ( PM Narendra Modi ) और शाह ( Amit shah ) का ' स्टेक'  पूरी तरह से दांव पर है। कांग्रेस ( Congress ) लगभग सरेंडर की स्थिति में है। वहीं आम आदमी पार्टी को हार मिले या जीत दोनों स्थिति में लाभ ही लाभ है। आइए, अब हम आपको बताते हैं क्या सीबीआई छापे का क्या है गुजरात चुनाव से संबंध।

गुजरात Congress का हाल बेहाल

दरअसल, गुजरात ( Gujrat ) में कांग्रेस ( Congress ) की स्थिति 2017 से बहुत ज्यादा खराब है। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को मनोबल गिरा हुआ है। प्रदेश नेतृत्व गुटबाजी का शिकार है। हार्दिक पटेल जैसे युवा नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। केंद्रीय नेतृत्व अभी एक्टिव नहीं है। भाजपा की बात करें तो वो 27 साल से वहां सत्ता पर काबिज है। भाजपा के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी फैक्टर है, पर उसे भुनाने वाला अभी तक कोई नहीं था। कांग्रेस के खस्ताहाल का लाभ अरविंद केजरीवाल ( Arvind Kejriwal ) लाभ उठा लेना चाहते हैं। दिल्ली में भी केजरीवला कांग्रेस का ही विकल्प बनकर उभरे थे। उसके बाद लगातार तीन चुनावों में भाजपा ( BJP ) को पटखनी दे चुके हैं। हर बार मोदी-शाह की मौजूदगी के बावजूद दिल्ली में आम आदमी पार्टी जीत हासिल करने में सफल हुई। इसकी सियासीं अहमियत ये है कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा आज भी दिल्ली में आप को सियासी मात देने की स्थिति में नहीं है। दूसरी तरफ केजरीवाल की पार्टी आप के सामने लिए खोने के लिए कुछ भी नहीं है। गुजरात में पहली बार आप ( AAP ) सभी सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है। इस चुनाव में आप का लक्ष्य भाजपा और काग्रेंस का विकल्प बनने की है। अपने लिए इस लक्ष्य का चयन भी आम आदमी पार्टी ने सोच समझकर ही किया है। वही भाजपा की परेशानी का सबब भी है।

BJP की चुनौती क्या है

भारतीय जनता पार्टी की अहम चुनौती केवल गुजरात तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां के चुनाव परिणाम मोदी-शाह की जुगलबंदी को राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रभावित करेंगे। ऐसा इसलिए कि इस बार गुजरात में भाजपा का सीधा संघर्ष कांग्रेस से नहीं है। भाजपा कांग्रेस से हार को तो पचा सकती है, पर आप से हार को पचा पाना उसके लिए नामुमकिन जैसा होगा। भाजपा चाहेगी कि गुजरात में आप के चुनावी मिशन को ही पंक्चर कर दिया जाए। कहने का मतलब यह है कि भाजपा के सामने आप को केवल हराने की चुनौती नहीं है बल्कि न्यूनतम सीटों पर उसकी जीत को रोकना होगा। अगर इसमें भाजपा चूकी तो पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सियासी पकड़ को बनाए रखने के लिए उसे कई मुश्किलों का सामना करना होगा। एक तो राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी विश्लेषण बदल जाएगा दूसरी बात ये कि वैसी स्थिति में मोदी और शाह चाहते हुए भी अरविंद केजरीवाल के राष्ट्रीय फलक पर तेजी से उभार को नहीं रोक पाएंगे। वहीं केजरीवाल के लिए गुजरात में चुनाव जीतना अहम नहीं है। आप की तो इसमें भी उपलब्धि ही होगी कि वो जैसे-तैसे एक से दो दर्जन सीटों पर अपने प्रत्याशी जिता ले। इतने भर से, केजरीवाल सोनिया, राहुल और प्रियंका के रोके नहीं रुकेंगे, न ही ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, शरद पवार और के चंद्रशेखर राव उन्हें रोक पाएंगे।

आप समझते रहे हैं न, मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, क्योंकि, ऐसा होते ही केजरीवाल की पार्टी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के करीब पहुंच जाएगी। आम आदमी पार्टी की तीन राज्यों की राजनीति में सीधी दखल होगी। जो अभी भाजपा के बाद कांग्रेस के पास भी नहीं है। अन्य पार्टियां तो एक-एक राज्यों तक सिमटी हुई है। एक राज्य में सरकार होने के बावजूद लोग पीएम बनने के सपने भी देख रहे हैं। फिर, देश में एक मात्र केजरीवाल की पार्टी आप ही है जो ताल ठोककर केंद्रीय एजेंंसियों यानि ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स, सीबीडीटी, एनआईए आदि एजेंसियों को सीधे तौर पर ललकारने की स्थिति में है। आम आदमी के पार्टी के नेताओं पर कई बार सीबीआई के छापे पड़े हैं, लेकिन किसी भी एजेंसी को कोई सफलता नहीं मिली है। एक मात्र सत्येंद्र जैन हैं, जिन पर आरोप साबित हुए नहीं है, जांच एजेंसियां प्रारंभिक सबूतों के आधार पर उन्हें जेल में डाले हुई है।

Gujrat में ताजा सियासी समीकरण 

गुजरात में विधानसभा चुनाव दिसंबर 2022 में होना है। गुजरात विधासभा में सीटों की कुल संख्या 182 है। वर्तमान में 100 से ज्यादा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। शेष सीटें कांग्रेस, एनसीपी व निर्दलीय प्रत्याशियों की हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 में आप का कोई वजूद नहीं था लेकिन एक साल पहले सूरत नगर निगम चुनाव में आप ने 23 सीटों पर जीत दर्ज कर गुजरात की राजनीति में तलका मचा दिया था। कांग्रेस को आप से भी कम सीटें मिली थीं। भाजपा को 93 सीटों पर जीत मिली थी। आप को सूरत नगर निगम चुनाव की 23 पार्षदों की जीत से संकेत मिल गया था कि गुजरात में कांग्रेस ने अपनी सीटें खाली कर दी है। अब आप की उसी पर नजर है। गुजरात में आप की सरकार नहीं बनेगी, इस सच्चाई को केजरीवाल और उनका कुनबा भलीभांति जानता है, पर भाजपा की हवा टाइट कर सकते हैं इसका अंदाजा भी उन्हें है।

ये है केजरीवाल की रणनीति

पिछली बार जब 2017 में जब गुजरात विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे तो दिल्ली में आपकी नई सरकार थी। आपका का केंद्र से सियासी झगड़ा चल रहा था। इस बार आप के पास गुजरात के लोगों को दिखाने के लिए लगभग सात साल डिलीवरी और दिल्ली मॉडल का ट्रैक रिकॉर्ड है। साथ ही पंजाब विधानसभा चुनाव में जीत का तमगा भी है। इतना ही नहीं अब आप के पास दिल्ली का शिक्षा मॉडल, स्वास्थ्य मॉडल, बिजली और पानी की सब्सिडी जैसे सियासी हथियार भी हैं। अब गुजरात के लोग भी इन बातों पर भरोसा कर सकते हैं कि आप गुजरात में दिल्ली और पंजाब जैसा कुछ कर सकती है। अब लोग आप को भी दो राज्यों में सरकारें होने से भाजपा के विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। इससे पहले यानि 2017 में भाजपा का विकल्प सिर्फ कांग्रेस थी। आप सत्येंद्र जैन को जेल भेजने और मनीष सिसोदिया के आवास पर छापेमारी व अन्य एजेंसियों द्वारा दिल्ली सरकार को परेशान करने की कार्रवाई को विक्टिम कार्ड के रूप में पेश कर रही है। पार्टी इस बात को साबित करने में जुटी है दिल्ली मॉडल की सफलता से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में घबराहट है। ?

इसके अलावा आप गुजरात में छोटूभाई वसावा के नेतृत्व वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी यानि बीटीपी से गठबंधन करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। गुजरात में शराबबंदी के बावजूद शराब पीने से बड़ी संख्या में मौतों को मुद्दा बनाने में जुटी है। खासकर भावनगर और बटोद में शराब से होने वाली मौतों को पार्टी के नेता ज्यादा उछाल रहे हैं। आप का जोर सौराष्ट्र क्षेत्र में 50 सीटों सहित मेहसाणा, भावनगर, सूरत आदि क्षेत्रों में है। गुजरात के सरकारी स्कूलों में निम्नस्तरीय शिक्षा व्यवस्था को भी आम आदमी पार्टी मुद्दा बनाने में जुटी है। इस योजना के तहत आप के राष्ट्रीय नेता अप्रैल मई से ही गुजरात का लगातार दौरा कर रहे हैं। अगस्त में सीएम अरविंद केजरीवाल गुजरात का चार बार दौरा कर चुके हैं। गुजरात में पार्टी का संकल्प यानि हस्ताक्षर अभियान जारी है। डोर टू डोर हस्ताक्षर अभियान काफी लोकप्रिय भी हो रहा है।

गुजरात में AAP के सामने चुनौतियां

ऐसा भी नहीं है कि गुजरात में आपके लिए सबकुछ अच्छा ही है। उसके पास चुनौतियां भी कम नहीं हैं। दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी, तत्कालीन आबकारी नीति पर दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई रेड और स्कूल भवनों में कक्षाओं के निर्माण में कथित वित्तीय अनियमितताओं की लोकायुक्त जांच, दिल्ली सरकार के कामकाज को सीएजी ऑडिट रिपोर्ट विधानसभा में पेश न कराना, दिल्ली जल बोर्ड और दिल्ली परिवहन निगम का हजारों करोड़ घाटे में चलना आदि मुद्दे दिल्ली मॉडल को झुठलाने के लिए भाजपा सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।

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