कोरोना टीके का इस्तेमाल भी राजनीतिक फायदे के लिए करना चाहती है मोदी सरकार
बिहार चुनाव में मोदी सरकार ने सबसे पहले कोरोना टीके का राजनीतिक इस्तेमाल करते हुए वादा किया था कि कोरोना का टीका आएगा तो सबसे पहले बिहार के लोगों को मुफ्त ही दिया जाएगा, यह एक हास्यास्पद किस्म की घोषणा थी....
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
गोदी मीडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'वैक्सीन गुरु' के आसन पर बिठाकर दर्शकों के जेहन में यह बात उतारने में जी जान से जुट गई है कि मोदी जी कोरोना महामारी से भारत की एक सौ तीस करोड़ जनता का बचाव सुपरमेन की तरह करते आ रहे हैं। पहले उन्होंने ऐतिहासिक लॉकडाउन लागू कर इन करोड़ों लोगों की जान बचाई। अब वैक्सीन गुरु बनकर मोदी जी इन करोड़ों लोगों को मुफ्त ही कोरोना का टीका उपलब्ध करवाने वाले हैं। गोदी मीडिया के अनुसार ऐसा करने वाले मोदी जी दुनिया के पहले महान और उदार प्रधानमंत्री हैं।
लेकिन गोदी मीडिया के इन खोखले दावों की असलियत को हर समझदार भारतीय अच्छी तरह समझता है। भक्त प्रजाति को छोड़ दिया जाये तो अधिकतर भारतीय कोरोना के नाम पर देश को तबाह करने के लिए मोदी द्वारा लागू किए गए लॉकडाउन के दंश को अभी तक भुगत रहे हैं। करोड़ों लोगों को रोजगार से वंचित होना पड़ा है। मजदूरों की त्रासदी के मंजर को कोई नहीं भूल सकता। जो मोदी सरकार महामारी के नाम पर अपने नागरिकों को पांच रुपए का मास्क तक देने के लिए तैयार नहीं हुई, बल्कि नागरिकों का खून चूसने के नए-नए तरीके आजमाती रही, वही आज मुफ्त टीका देने की बात कर रही है तो उसकी नीयत पर स्वाभाविक रूप से संदेह उत्पन्न हो रहा है।
बिहार चुनाव में मोदी सरकार ने सबसे पहले कोरोना टीके का राजनीतिक इस्तेमाल करते हुए वादा किया था कि कोरोना का टीका आएगा तो सबसे पहले बिहार के लोगों को मुफ्त ही दिया जाएगा। यह एक हास्यास्पद किस्म की घोषणा थी। इसके बाद जब केरल की वाम मोर्चा सरकार ने अपने नागरिकों को मुफ्त टीका देने की घोषणा की तो भाजपा ने इस घोषणा का विरोध जताना शुरू कर दिया। यानी कोरोना के टीके पर सिर्फ मोदी जी का ही एकाधिकार हो सकता है। और कोई पार्टी इसे मुफ्त में देने की जुर्रत कैसे कर सकती है--भाजपा ने इस तरह का संदेश देने का प्रयास किया।
जो मोदी सरकार मारे गए सैनिकों की तस्वीर लगा कर वोट मांग सकती है वह कोरोना के टीके के नाम पर किस तरह का पाखंड कर सकती है, इसका अनुमान गोदी मीडिया में जारी तमाशे को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। पहले भी दुनिया में पोलियो,प्लेग,टीबी,हैजा आदि महामारियों के लिए टीके बनाए गए और आबादी का टीकाकरण किया गया, लेकिन कभी भी भारत सहित दुनिया की किसी भी सरकार ने इन टीकों का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं किया। कभी भी जनता पर अहसान नहीं जताया गया कि हम मुफ्त टीका देकर जनता को कृतज्ञ बना रहे हैं। टीकाकरण अभियानों को पिछली सरकारों ने शोरगुल के बगैर कर्तव्यनिष्ठा के साथ संचालित किया। पहली बार मोदी सरकार कोरोना टीका अभियान को इवेंट के तौर पर पेश कर रही है। शहीदों की लाशों के नाम पर वोट मांगने की तरह अब वह भारत की जनता से कहेगी कि हमने तुम लोगों को मुफ्त टीका प्रदान किया, अब अपना वोट हमें दे दो। बेहयाई का ऐसा उदाहरण दुनिया के किसी भी देश में देखने को नहीं मिलेगा।
एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में 70.4 फीसदी लोगों ने खुद को टीका लगवाने को कहा तो 29.6 फीसदी ने टीका लगवाने को लेकर अनिच्छा जाहिर की। यह अध्ययन एपिडेमियोलॉजी जर्नल के अगले अंक में प्रकाशित होने जा रहा है। देश भर में 467 लोगों पर ऑनलाइन सर्वेक्षण करने वाले वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज के कम्युनिटी विभाग के निदेशक प्रोफेसर जुगल किशोर ने कहा कि लोगों से कोरोना टीकाकरण को लेकर कई प्रश्न पूछे गए। 70.4 फीसदी ने कहा कि वे टीका लगवाएंगे, लेकिन 29.6 फीसदी ने कहा कि नहीं लगवाएंगे। ऐसा लगता है कि टीके की सुरक्षा को लेकर लोगों के मन में कुछ सवाल हैं।
उन्होंने कहा कि जब लोगों से टीके की सुरक्षा को लेकर सवाल पूछे गए तो 42 फीसदी ने माना कि यह मनुष्य के लिए सुरक्षित है। 5.4 फीसदी सुरक्षित नहीं मानते हैं, लेकिन 54.7 फीसदी को इस बारे में कुछ पता नहीं। लोगों से यह पूछने पर कि यदि कोरोना टीका प्रभाव साबित होता है तो क्या आप अपने बच्चों को भी लगवाएंगे? 63.2 फीसदी ने हां कहा तथा 6.9 फीसदी ने ना कहा। लेकिन, 30 फीसदी ने कहा, शायद।
एक प्रश्न यह पूछा गया कि टीका लगाने के बाद क्या कोरोना से बचाव हो सकेगा? इसके जवाब में 49.5 फीसदी ने हां कहा, जबकि 11.1 फीसदी ने ना कहा। 39.4 फीसदी ने कहा कि उन्हें इस बारे में पता नहीं। 55.7 फीसदी लोग इंजेक्टेबल तथा 44.3 फीसदी ओरल टीका लगाने के पक्ष में हैं।
कोरोना टीके का दूसरा गंभीर पहलू नागरिकों की निजता के अधिकारों से जुड़ा है। जिस तरह से इसका ताना-बाना बुना गया है, उसे देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि इसके बहाने प्रत्येक नागरिक के डेटा को नियंत्रित करना मोदी सरकार और कारपोरेट का लक्ष्य है। यानी प्रत्येक नागरिक की निगरानी सुनिश्चित की जाएगी। इस आशंका को हम एक समाचार के आधार पर अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं। स्पेन के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि स्पेन सरकार ऐसे लोगों का एक रजिस्टर तैयार करेगी, जो कोरोनावायरस के खिलाफ टीकाकरण करने से इनकार करते हैं और इसे अन्य यूरोपीय संघ के देशों के साथ साझा करेगी। ऐसा ही रजिस्टर मोदी सरकार भी तैयार कर सकती है।
भले ही अभी सरकार कह रही है कि टीका लगवाना अनिवार्य नहीं होगा, लेकिन आधार की तरह वह अपनी बात से कभी भी पलट सकती है और हर नागरिक के लिए इसे अनिवार्य घोषित कर सकती है। टीका के प्रमाण के बिना नागरिकों की आवाजाही और अन्य सुविधाओं पर रोक लगा सकती है। यानी टीके की सुरक्षा को लेकर नागरिकों को आश्वस्त किए बिना मोदी सरकार टीकाकरण शुरू कर रही है। इसके बहाने लोगों की समस्त जानकारियों को एकत्रित कर निगरानी रखने का तंत्र भी तैयार कर रही है। गोदी मीडिया इन खतरों की कोई बात नहीं कर रही है। गोदी मीडिया तो केवल वैक्सीन गुरु मोदी के डंके बजाकर ऐसा माहौल तैयार कर रही है मानो मरणासन्न करोड़ों भारतीय लोगों की रक्षा करने के लिए मोदी जी ने सुदर्शन चक्र की जगह वैक्सीन की सुई हाथ में लेकर अवतार लिया है।