महिला हितैषी होने का दम भरती मोदी सरकार, मगर भाजपा की पहली-दूसरी सूची में महिलाओं की संख्या मात्र 16 प्रतिशत
Election 2024 : एक-तिहाई महिलाओं के आरक्षण का नारा लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी के महिलाओं पर विश्वास का आलम यह है कि भाजपा के लोकसभा उम्मीदवारों की पहली और दूसरी सूची में शामिल कुल 267 नामों में से महज 43 महिलायें हैं, यानी महिला उम्मीदवारों की संख्या महज 16 प्रतिशत है...
जानिये क्यों कह रहे हैं वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय कि बहुत अंतर नहीं है भारत और रूस के चुनावों में
Indian General Elections have been declared in the midst of Russian Presidential Elections – there are conspicuous similarities between Russia and India. तीन दिन पहले बड़े तामझाम से एक देश एक चुनाव की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौपी गयी थी, मीडिया में खबरे चलीं तस्वीरें चलीं। सरकारी स्तर पर इसे मोदी जी की एक और उपलब्धि के तौर पर प्रचारित किया गया।
इसके दो दिनों बाद ही जम्मू और कश्मीर के तमाम राजनीतिक दलों के अनुरोध के बाद भी मुख्य चुनाव आयुक्त ने लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा चुनावों को कराने से साफ़ इनकार कर दिया। इसका कारण उन्होंने सुरक्षाकर्मियों की कमी बताया। चुनाव आयोग के इस ऐलान के बाद सभी राजनैतिक दलों ने इस निर्णय का विरोध किया, पर एक देश एक चुनाव की माला जपने वाली बीजेपी ने चुनाव आयोग के निर्णय का स्वागत किया है। यह एक ताजा उदाहरण है, मोदी जी, अमित शाह और बीजेपी की कथनी और करनी में अंतर का।
संसद में तथाकथित चुनावों में महिला आरक्षण बिल पास हुए बहुत दिन नहीं बीते हैं, और ढेर सारी महिलाओं के साथ मोदी जी की तस्वीर के साथ धन्यवाद मोदी जी वाला पोस्टर भी अभी तक बहुत जगह पर टंगा है। अपने चुनावी भाषणों में प्रधानमंत्री जी इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर जोरशोर प्रचारित भी करेंगे, पर एक-तिहाई महिलाओं के आरक्षण का नारा लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी के महिलाओं पर विश्वास का आलम यह है कि भाजपा के लोकसभा उम्मीदवारों की पहली और दूसरी सूची में शामिल कुल 267 नामों में से महज 43 महिलायें हैं, यानी महिला उम्मीदवारों की संख्या महज 16 प्रतिशत है। जाहिर है, बीजेपी के हरेक दावे महज दिखावा होते हैं, जिसे पोस्टरों में गारंटी का नाम दिया गया है।
यह एक महज इत्तेफाक हो सकता है कि रूस के राष्ट्रपति चुनावों के बीच में ही भारत में लोकसभा चुनावों की घोषणा की गयी है, पर यह हकीकत है कि दोनों देशों के चुनावों में बहुत समानता है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री दोनों ही सत्ता में बने रहने के प्रति सतही तौर पर आश्वस्त नजर आते हैं, हमारे प्रधानमंत्री को तो बीजेपी को कितनी सीटें आयेंगी, सहयोगी पार्टियों के सीटों की संख्या के साथ ही विपक्षी कांग्रेस पार्टी की सीटें भी पता हैं और इसका ऐलान वे संसद में भी कर चुके हैं।
सतही तौर पर आश्वस्त नजर आने के बाद भी दोनों देशों की सत्ता किस कदर खौफ में है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दोनों देशों में विपक्ष के साथ ही विरोध की हर आवाज को बेदर्दी से कुचला गया है। एक तरफ राष्ट्रपति पुतिन विपक्षियों की ह्त्या करा रहे हैं तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री सुरक्षा एजेंसियां, वित्तीय एजेंसियां, जांच एजेंसियां और सोशल मीडिया पर धमकियों का सहारा लेकर विपक्ष को कुचल रहे हैं।
राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी दोनों के सबसे करीबी पूंजीपतियों का समूह है और दोनों ही एक दूसरे के बेहद करीबी मित्र हैं। इन सबसे परे, रूस और भारत दोनों देशों पर अनेक देशों में उनके चुनावों को प्रभावित कराने का आरोप भी लगाया गया है। अबकी बार ट्रम्प सरकार का नारा तो सबको याद होगा। भारत और रूस, दोनों देशों में सत्ता निरंकुश है, प्रजातंत्र में भरोसा नहीं है – फिर भी दुनिया को दिखाने के लिए चुनाव आयोजित किये जा रहे हैं। हमारे देश में तो चुनावों को प्रजातंत्र का सम्मान नहीं बल्कि प्रजातंत्र का उत्सव कहा जाता है। जाहिर है, उत्सव से उपजे सांसद कभी गंभीर नहीं होते।
वैश्विक स्तर पर मीडिया बता रहा है कि वर्ष 2024, दुनिया में प्रजातंत्र के परीक्षा की घड़ी है क्योंकि इस वर्ष भारत, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका समेत दुनिया के 40 से अधिक देशों में चुनाव होने हैं। इन देशों में दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी बसती है और कुछ देश तो दुनिया के सबसे शक्तिशाली और समृद्धतम देश हैं। साउथ सूडान जैसे कुछ देश सबसे गरीब हैं, जबकि ईरान और रूस में निरंकुश और तानाशाह सत्ता है और ताइवान और यूक्रेन जैसे देश युद्ध या युद्ध जैसे हालात से घिरे हैं।
वर्ष 2023 में भी लगभग 40 देशों में चुनाव कराये गए थे, पर पोलैंड को छोड़कर कहीं भी जीवंत प्रजातंत्र की वापसी नहीं देखी गयी थी। जिन देशों को प्रजातंत्र की श्रेणी में रखा गया है उनमें से भी अधिकतर में सत्ता प्रजातंत्र को लगातार ख़त्म कर रही है और निरंकुश हो चली है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन भी लगातार प्रजातंत्र को नकार रहे हैं तो दूसरी तरफ भारत में तो प्रजातंत्र को पूरी तरह से दफ़न कर दिया है। इस समय प्रजातंत्र और मानवाधिकार के सन्दर्भ में भारत और रूस में कोई भी अंतर नहीं है।