दिल्ली दंगे में जांच के नाम पर मोदी सरकार कर रही कुख्यात गुजरात मॉडल का इस्तेमाल

CAA के खिलाफ देश भर में स्वतःस्फूर्त रूप से शुरू हुए आंदोलन का समर्थन करने वाले नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्र नेताओं आदि को सबक सिखाने के लिए मोदी सरकार उन पर दिल्ली दंगे की साजिश रचने या हिंसा भड़काने जैसे आरोप लगाकर मुकदमे दर्ज कर रही है....

Update: 2020-09-24 13:03 GMT

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दिनकर कुमार का विश्लेषण

जनज्वार। दिल्ली दंगे की जांच के नाम पर मोदी सरकार उसी कुख्यात गुजरात मॉडल का इस्तेमाल कर रही है, जिसके तहत दोषियों को अभयदान दिया जाता है और अपने विरोधियों को कानून की अलग-अलग धाराओं में फंसाकर प्रताड़ित किया जाता है। सत्ता प्रायोजित दंगे के पीछे जो चेहरे हैं, उन पर कोई आंच नहीं आ रही है, लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) के खिलाफ देश भर में स्वतःस्फूर्त रूप से शुरू हुए आंदोलन का समर्थन करने वाले नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्र नेताओं आदि को सबक सिखाने के लिए मोदी सरकार उनके ऊपर दिल्ली दंगे की साजिश रचने या हिंसा भड़काने जैसे आरोप लगाकर मुकदमे दर्ज कर रही है।

पिछले सप्ताह दिल्ली पुलिस द्वारा दायर एक आरोप पत्र में अभियुक्तों के खुलासे के बयान में कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, सीपीआई-एमएल पोलित ब्यूरो की सदस्य कविता कृष्णन, छात्र कार्यकर्ता कंवलप्रीत कौर, वैज्ञानिक गौहर रज़ा और अधिवक्ता प्रशांत भूषण पर पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगे में साजिश रचने का का आरोप लगाया गया है।

आरोपी खालिद सैफी के साथ-साथ कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां के बयानों में खुर्शीद का नाम है। 30 मार्च के सैफी के कबूलनामे में उल्लेख किया गया है कि विरोध को जारी रखने और इसे लंबे समय तक बनाए रखने के लिए उन्होंने और जहां ने खुर्शीद सहित कई लोगों को उत्तेजक भाषण देने के लिए बुलाया था।

उनके खुलासे में लिखा गया है, 'धरने पर बैठने वाले लोग इन उत्तेजक भाषणों को सुनने के लिए बैठे रहते थे और उनको सुनकर लोगों को सरकार के खिलाफ अभियान चलाने का जोश मिलता था।"

धारा 164 सीआरपीसी के तहत बनाए गए एक संरक्षित गवाह के बयान में खुर्शीद के उत्तेजक भाषण का भी उल्लेख किया गया है। खुर्शीद ने मीडिया से कहा है--अगर आप वहां से सारा कचरा उठाकर देखेंगे तो आपको 17,000 से अधिक पन्ने एक चार्जशीट में मिलेंगे। एक चार्जशीट को संज्ञेय अपराध का सटीक, प्रामाणिक, प्रभावी और उपयोगी सबूत माना जाता है। यदि कोई कहता है कि 12 लोग आए और उन्होने उत्तेजक भाषण दिया, तो यह साबित नहीं हो सकता है कि 12 लोगों ने एक ही तरह के भड़काऊ भाषण दिए और हर एक के उकसाने का स्तर समान था। इस देश में प्रेरित करना और श्रोता जुटाना कोई अपराध नहीं है।

वैज्ञानिक गौहर रज़ा का नाम खुरेजी में उनके भाषण के माध्यम से कथित रूप से "मुसलमानों को उकसाने" के लिए शामिल किया गया है। एक संरक्षित गवाह के एक बयान में कहा गया कि रज़ा ने दूसरे वक्ताओं के साथ सीएए, एनआरसी और वर्तमान सरकार के खिलाफ गलत और आपत्तिजनक बातें की और मुसलमानों को उकसाया।

रज़ा ने इस संबंध में कहा है, मैं अपने बयान और सीएए के खिलाफ अपने रुख पर कायम हूं। आज भी मैं इसका विरोध करता हूं और मैं इसका विरोध करता रहूंगा, क्योंकि मैं इसे भारत के संविधान पर हमला मानता हूं। मैं हमेशा किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ रहा हूं, इसलिए किसी के खिलाफ लोगों को उकसाने का कोई सवाल ही नहीं है।

प्रशांत भूषण का नाम सैफी और इशरत जहां के बयानों में आया है क्योंकि खुरेजी में उन्होंने भाषण दिया गया था। इसके बारे में भूषण ने कहा है--यह दिल्ली पुलिस की रणनीति का एक हिस्सा है जिसके तहत किसी भी प्रमुख व्यक्ति को फंसाया जा रहा है, जिसने सीएए के खिलाफ आंदोलन के समर्थन में कुछ कहा था। मैं कुछ जगहों पर गया और सीएए के खिलाफ काफी मजबूती से बोला। मैं कभी भी ऐसा भाषण नहीं देता जो उत्तेजक हो या हिंसा को भड़काता हो। मैंने सरकार के खिलाफ वक्तव्य रखा।

सैफी के 25 मई के वक्तव्य में कौर के नाम एक उल्लेख मिलता है, जिसमें वह कहता है कि वह दूसरों के साथ साथ कौर से संपर्क में था ताकि उनके साथ योजना बनाकर उत्तेजक संदेश व ट्वीट भेजकर मुस्लिम समुदाय को सरकार के खिलाफ भड़काया जा सके।

एक आरोपी शादाब अहमद के 27 मई के खुलासे में चंदन बाग विरोध स्थल पर "भड़काऊ भाषण" देने वालों में कृष्णन, कौर और उमर खालिद के पिता एस क्यू आर इलियास सहित 38 व्यक्तियों के नामों का उल्लेख है।

सैफी के वकील हर्ष बोरा ने कहा, प्रकटीकरण संबंधी बयान अदालत में मान्य नहीं होते क्योंकि पुलिस फर्जी खुलासों पर अपनी हिरासत में खुद ही बयान लिखकर किसी अभियुक्त के हस्ताक्षर प्राप्त करने के लिए बलप्रयोग करती है। खालिद (सैफी) के मामले में यही हुआ है। हमने मार्च और अप्रैल में अदालत को जल्द से जल्द सूचित किया कि उन्हें हिरासत में झूठे बयान और खाली पन्नों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था।

इसी तरह इशरत के वकील प्रदीप तेवतिया ने कहा है, यह बयान इशरत ने नहीं लिखा था। उसने कुछ भी खुलासा नहीं किया है। यह पुलिस द्वारा लिखा गया था। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के तहत ऐसे खुलासे का उल्लेख अनुचित है।

कविता कृष्णन ने कहा, हमने जो भाषण दिए, जिन बैठकों में हमने भाग लिया, समान नागरिक आंदोलन में हमारी भागीदारी सार्वजनिक रिकॉर्ड में है और गर्व का विषय है। दिल्ली पुलिस यह दावा करने की कोशिश कर रही है कि भाषण और कार्यकर्ताओं के बीच बैठक के पीछे कोई साजिश है।

कौर ने कहा, मेरे खिलाफ लगाए गए आरोप बेतुके और झूठे हैं। इस में से कोई भी सत्य नहीं है। मेरे किसी भी भाषण में हिंसा की बात नहीं हुई। सैफी के साथ मैं व्हाट्सएप या अन्य प्लेटफार्मों पर संपर्क में नहीं थी। यह सरकार के खिलाफ असंतोष व्यक्त करने वाले कार्यकर्ताओं को फंसाने की बड़ी साजिश है।

इससे पहले सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव, अर्थशास्त्री जयति घोष, डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद और फिल्म निर्माता राहुल रॉय के नामों को भी पुलिस चार्जशीट में विवेचनात्मक बयानों के आधार पर शामिल किया गया था।

स्पष्ट है कि मोदी के नेतृत्व में संघ परिवार ने मुसलमानों को सबक सिखाने का जो अभियान गुजरात से शुरू किया था, उस प्रयोग को अब बड़े पैमाने पर पूरे देश में लागू करने की कोशिश हो रही है। पुलिस तंत्र और न्यायपालिका को पालतू बनाकर विरोध में उठने वाली लोकतांत्रिक आवाजों को खामोश करने के लिए और भय का वातावरण बनाने के लिए चुन चुनकर ऐसे लोगों को निशाना बनाया जा रहा है जो निरंकुश सत्ता को चुनौती देते हुए लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की कोशिश कर रहे हैं।

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