Modi Govt neglects Environment & Human Rights : मोदी सरकार में बस प्रवचन तक सीमित है पर्यावरण और मानवाधिकार
Modi Govt neglects Environment & Human Rights : संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद में भारत समेत कुल 47 सदस्य हैं, और भारत को 2022 से 2024 तक के लिए भी सदस्य चुना गया है।
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
Modi Govt neglects Environment & Human Rights । अलग-अलग समय पर प्रदूषण से सम्बंधित मामलों की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) और अनेक उच्च न्यायालय (High Court) पर्यावरण को मानवाधिकार और मौलिक अधिकार बताते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) भी लगातार जलवायु परिवर्तन, नवीनीकृत ऊर्जा स्त्रोत (renewable energy sources), पर्यावरण संरक्षण और देश की 5000 वर्षों की पर्यावरण संरक्षण की परंपरा पर देश में कम और विदेश में ज्यादा प्रवचन देते हैं। दूसरी तरफ देश में सरकार की तरफ से हरेक गंभीर मानवाधिकार हनन के बाद प्रधानमंत्री जी मानवाधिकार के मसले पर तरह-तरह की कहानियां गढ़कर कांग्रेस (Congress) शासन को कोसते हैं और अपनी पीठ खुद ही थपथपाते हैं। पर, आप कथनी और करनी का फर्क तो देखिये – मोदी सरकार संयुक्त राष्ट्र (United Nation) में स्वच्छ पर्यावरण को मानवाधिकार में जोड़ने वाले प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए मतदान में शरीक नहीं होती।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद (UN Human Rights Council) में भारत समेत कुल 47 सदस्य हैं, और भारत को 2022 से 2024 तक के लिए भी सदस्य चुना गया है। इसी मानवाधिकार परिषद् में मानवाधिकार में स्वच्छ, स्वस्थ्य और सतत पर्यावरण के अधिकार को जोड़ने वाले (to recognize right to a safe, clean, healthy and sustainable environment as human right) एक प्रस्ताव को पारित करने के लिए मतदान किया गया था, जिसे 43 देशों की सहमति मिली। शेष चार देश – भारत, चीन, जापान और रूस – मतदान से अनुपस्थित रहे।
इसका स्पष्ट मतलब है कि मानवाधिकार पर विपक्ष को कोसने वाले और अपने आप को इसका मसीहा साबित करने वाले प्रधानमंत्री, जमीनी स्तर पर मानवाधिकार के मसले पर चीन और रूस जैसी तानाशाही और निरंकुश व्यवस्था के साथ खड़े हैं, फिर भी मानवाधिकार (Human Rights) और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दे पर उनके प्रवचनों में कुछ और ही झलकता है। हाल में ही 12 अक्टूबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) के स्थापना दिवस के अवसर पर पीएम मोदी (Narendra Modi) ने कहा था कि "भारत आत्मवत सर्वभूतेषु के महान आदर्शों, संस्कारों और विचारों को लेकर चलने वाला देश है। आत्मवत सर्वभूतेषु यानि जैसा मैं हूं वैसे ही सब मनुष्य हैं - मानव-मानव में, जीव-जीव में भेद नहीं है"। ऐसे महान प्रवचन के बाद भी स्वच्छ पर्यावरण को मानवाधिकार में शामिल करने वाले प्रस्ताव का विरोध केवल भारत सरकार ही कर सकती है।
ह्यूमन राइट्स वाच (Human Rights Watch) नामक संस्था की उप निदेशक लूसी मेकेर्नन (Lucy Mekernan, Deputy Director at Human Rights Watch) ने इस प्रस्ताव को विश्वव्यापी पर्यावरण संकट और जनजातीय/वनवासी आबादी के दमन को रोकने की दिशा में एक महत्वपुर्ण कदम बताया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव (Secretary General of UN) ने दुनिया के देशों में पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में तेजी लाने का आह्वान किया।
मानवाधिकार परिषद की प्रमुख मिचेल बकेलेट (Michelle Bachelet, UN High Commissioner for Human Rights) ने भी सभी देशों से पर्यावरण संरक्षण में तेजी लाने क कहा और इस प्रस्ताव को पर्यावरण संरक्षण और जनजातीय और वनवासी समुदाय के सशक्तीकरण, आजीविका और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण कदम बताया है। यह मानवाधिकार परिषद का प्रस्ताव संख्या 48/13 था और इसे कोस्टा रिका, मालदीव, मोरक्को और स्लोवेनिया ने स्विट्ज़रलैंड की मदद से तैयार किया था। आश्चर्य यह है कि शुरू से इस प्रस्ताव का विरोध करने वाले यूनाइटेड किंगडॉम ने मतदान में प्रस्ताव के पक्ष में मत दिया।
मोदी सरकार की पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकार से दूरी यहीं ख़त्म नहीं होती। इसी दिन, यानि 8 अक्टूबर को ही, प्रस्ताव संख्या 48/14 पर भी मतदान कराया गया था। इसे मार्शल आइलैंड ने तैयार किया था और इसमें मानवाधिकार परिषद् में एक विशेषज्ञ के नियुक्ति की मांग थी जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से मानवाधिकार हनन (Appoint an expert to mnitor human rights in context of climate emergency) पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर सके। इस प्रस्ताव के मतदान में भी भारतीय प्रतिनिधि अनुपस्थित रहे।
इस प्रस्ताव के समर्थन में 42 मत, विरोध में 1 मत और 4 देश अनुपस्थित रहे। रूस ने विरोध में मत डाला और भारत, चीन, जापान और एरिट्रिया ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। मानवाधिकार परिषद में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से मानवाधिकार हनन का आकलन करने वाले विशेषज्ञ की नियुक्ति तीन वर्षों के लिए की जायेगी।
दुनिया के अधिकतर पर्यावरणविदों ने मानवाधिकार परिषद् के प्रस्तावों का स्वागत किया है। पर्यावरण विनाश से पूरी दुनिया में मानवाधिकार का हनन हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में प्रतिवर्ष 1।37 करोड़ मौतें या कुल मौतों में से 24 प्रतिशत का कारण पर्यावरण विनाश है। इस समय दुनिया जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव-विविधता के नाश से प्रभावित है और हमारे युग में मानवाधिकार हनन का यही सबसे बड़ा कारण है। संयुक्त राष्ट्र ने तो इसे मानवाधिकार में शामिल कर लिया, पर क्या मोदी सरकार प्रवचनों से परे जाकर इस और कभी ध्यान देगी?