मोदी ने पाल-पोसकर आईटी सेल को बनाया है 'आत्मनिर्भर', तो फिर क्यों खरीदेंगे इज़राइली स्पाईवेयर?
ये मोदी जी का काम नहीं हो सकता। ये तो सर्वविदित है कि मोदी जी जितना लोकतंत्र और निजता पर विश्वास रखते हैं उतना तो कभी किसी ने कभी किया ही नहीं....
डॉ. अंजुलिका जोशी की विश्लेषण
जनज्वार। आजकल जिसको देखो वो ही परेशान है अब चाहे वो आम जनता हो या खास, कोई महंगाई से परेशान है तो कोई बेरोज़गारी से लेकिन इन बेचारों को तो पता ही नहीं है कि कोई इनसे भी ज़्यादा परेशान है और वो हैं कुछ लोग जिनकी दिनचर्या पर लगातार नज़र रखी जा रही है कि वो कब और क्या कर रहे हैं, कहाँ जा रहे हैं, किस से बात कर रहे हैं? मतलब सबकुछ। अब ये तो बहुत ही गड़बड़ है!
कोई चोरी छुपे इश्क भी नहीं कर सकता। कमाल है लोगों की निजता कोई मायने रखती है या नहीं? चिंता का विषय तो है। लेकिन ये क्यों और कैसे हो रहा है? अब क्यों का उत्तर तो सदैव की तरह नेहरू जीही दे सकते हैं। लेकिन अब वो तो हैं नहीं तो सीधा संदेह विपक्ष की ओर ही जाता है। ऐसा लगता है कि यह सब विपक्ष की कारस्तानी है सरकार को बदनाम करने के लिए। तभी तो सब पर जासूसी करवाना शुरू कर दिया अब चाहें वो पत्रकार हों या सामाजिक कार्यकर्ता, जज हों या नेता या नेताओं के रिश्तेदार और यहाँ तक कि उनके नौकर भी। किन्तु ये तो धोखाधड़ी है देश के साथ और देश की जनता के साथ। सीधा प्रहार है उनकी स्वतंत्रता पर और उनकी स्वतंत्र सोच पर। ऐसे लोगों को तो तुरंत चिन्हित कर दंड मिलना चाहिए।
अब बात करते हैं की ये सब हो कैसे रहा है। भारतीय मीडिया संस्था "दवायर" और दुनिया के कुछ अन्य 17 मीडिया संस्थानों जैसे 'द वाशिंगटन पोस्ट' और'द गार्जियन' आदि ने सामूहिक पड़ताल में यह जानकारी दी कि ये सब इज़राइली कम्पनी NSO द्वारा बनाये गए एक नए सॉफ्टवेयर पेगासस द्वारा की जा रही है जिसे किसी के भी मोबाइल में एक रिंग करके ही डाला जा सकता है। भई कमाल की टेक्नोलॉजी है। लेकिन प्रश्न यह है कि ये जासूसी कौन कर रहा है? विपक्ष में तो बहुत लोग हैं और अब तो देश की मूर्ख जनता भी स्मार्ट सिटी की स्मार्टनेस और देश के विकास के बावजूद विरोध करने लगी है। तो फिर ये लोग कौन हैं ??
यही तो पता लगाना है। सोच रही हूँ 70 के दशक में रिलीज़ हुई मूवी के दो जासूसों से संपर्क किया जाए, ऐसा तो नहीं यही दो जासूस ही जासूसी कर रहे हों। अब देखिये मैं कोई जासूस तो हूँ नहीं और न ही करोना के चलते अम्बानी, अडानी की तरह मेरी संपत्ति में इजाफा हुआ है कि इज़राइल से पेगासस सॉफ्टवेयर खरीद लूँ। वैसे भी NSO अपना यह गुप्तचरी सॉफ्टवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचती है। तो क्या? नहीं-नहीं, मोदी जी और अमित शाह जी तो ऐसा कर ही नहीं सकते। उन बेचारों को तो पता ही नहीं कि ये सब किसने किया, क्यों किया? और वो करेंगे भी क्यों ? आखिर ज़्यादातर पत्रकार, पुलिस, वकील, जज तो उन्हीं की कठपुतली हैं। अगर खतरा है तो विपक्षी पार्टियों को। कुछ देशद्रोही पत्रकारों और कुछ गिनती के चैनल को छोड़कर न तो उन्हें कोई पूछता है न ही उनके कार्यों का प्रसारण ही होता है। देश का जो सर्वांगीण विकास हो रहा है उसी के कारण ये लोग फूफा बने बैठे हैं।
अब देखिये न मोदी जी ने भारत को विश्वगुरु बना दिया है बस यही बात सबकी आँख में किरकिरी बनी हुई है। चाहे देश हो या विदेश सब जानना चाहते हैं कि आखिरकार भारत का विकास जो 2014 तक बिलकुल रुका हुआ था, अचानक 7 साल में इतना ऊपर कैसे चला गया? हर चीज़ में विकास! अब चाहें वो पेट्रोल और तेल के दाम हों या रोज़मर्रा के अन्य सामान, गरीबी हो या बेरोज़गारी। औरतो और कोरोना के दौर में शवों की संख्या में भी विकास और इनके साथ-साथ अम्बानी और अडानी की संपत्ति में भी विकास !!
और जहाँ तक पेगासस का सवाल है मुझे तो लगता है इसी के चलते इस्राइली कंपनी NSO अपने सॉफ्टवेयर से ये पता लगाने की कोशिश में है कि आखिर ये कमाल हुआ तो हुआ कैसे? अब लोकतंत्र में तो सभी की भूमिका होती है, तो जी करा दिया सबका फ़ोन टैप। लेकिन विपक्ष कोतोहल्ला मचाना है। उन्हें इस तरह के इलज़ाम लगाने के पहले ये भी तो सोचना चाहिए कि वो भारत को किन देशों के समकक्ष खड़ा कर रहे हैं? अज़रबैज़ान, बहरीन, हंगरी, रवांडा, कज़ाकिस्तान, मोरोक्को, मैक्सिको, सऊदी अरब आदि-आदि। मतलब अब हम ऐसे देशों के साथ खड़े कर दिए गए हैं जहाँ लोकतंत्र तकरीबन ख़त्म हो गया है या कभी था ही नहीं। अब ये भी दिन देखने थे ? सत्तर सालों में ऐसा नहीं हुआ जो इन सात सालों में हो गया। पता है, पता है नेहरूजी ही सबकी जड़ हैं।
हालाँकि मोदीजी ने स्पष्ट रूप से बता दिया है कि भारत में लोकतंत्र है और यहाँ पर हर कार्य नियमानुसार कानून के दायरे में ही होता है। ये बात अलग है कि इसी कानून के सौजन्य से भीमा कोरेगाँव 16 मतलब (अब 15) के तहत सामाजिक कार्यकर्ता तीन साल से जेल में पड़े हैं बिना किसी ट्रायल के। लेकिन इसमें हमारी सरकार का क्या दोष? कानून देने वाली महारानी जी की आँख में काली पट्टी जो बंधी है।
मुझे तो पूरा विश्वास है कि विपक्ष अमेरिका के वाटरगेट काण्ड की तर्ज पर काम कर रहा है, जिसमे 1972 में निक्सन की रिपब्लिकन सरकार को डेमोक्रेट्स पार्टी के मुख्यालय की जासूसी करने के कारण इस्तीफ़ा देना पड़ा था। लेकिन मोदीजी इतने भी कच्चे खिलाडी नहीं हैं जो गीदड़भभकी से डर जाएँ। इसीलिए उन्होंने यह साफ़ कर दिया है कि पेगासस से उनका या उनकी पार्टी का कोई लेना देना नहीं है। और वैसे भी ये कहाँ लिखा है कि पेगासस का मतलब जासूसी है? बताया था न आई. टी मिनिस्टर अश्वनी वैष्णव ने संसद में। लेकिन नहीं जी विपक्ष को तो बस मौका मिलना चाहिए हमारी लोकतान्त्रिक सरकार को घेरने में। अरे भई कैसे बताया जाय कि यह भारत सरकार की कारस्तानी नहीं है। दोपन्नों का बयान देकर पूरा मामला ख़ारिज भी कर दिया।
ये बात अलग है कि वो बयान किसी लेटर हेड में नहीं है और न ही किसी ने उस बयान पर हस्ताक्षर किये हैं। और दूसरी बात सरकार NSO को पैसा क्यों देगी पेगासस खरीदने के लिए ? मतलब कुछ भी। सालों से आईटी सेल को पैसा दे देकर पाला पोसा है…दूसरों से सॉफ्टवेयर खरीदने के लिए? इतने दिनों से अनहोनी को होनी वही तो कर रहे थे। अब चाहे वो ट्रॉलिंग हो या हैकिंग। आत्मनिर्भर का नारा ऐसे ही तो नहीं दिया है हमारे प्रधानमंत्रीजी ने।
दूसरी बात कि अगर जासूसी की भी गयी तो उन्हीं लोगों की करी जाएगी न जो प्रसिद्द हैं, जिनकी देश के विकास में सजीव भूमिका है। लेकिन मूर्ख विपक्ष को उसमे भी परेशानी? मै तो कहती हूँ कि एक सयुंक्त संसदीय समिति बनाकर करा ही दीजिये निष्पक्ष जांच। परिणाम तो अपने हाथ में ही है। हमें तो पूरा विश्वास है कि इसका भी नतीजा वैसा ही होगा जैसे भारत में ऑक्सीजन की कमी से कोई मरा ही नहीं। इससे सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। चाणक्य नीति मोदी जी !!
मोदीजी कोई कांग्रेसी नेता थोड़े ही हैं जो देश की सुरक्षा के बहाने लोगों का फ़ोन टैप करें जैसाकि UPA सरकार ने 2013 में RTI के जवाब में कबूला था कि 9000 फ़ोन और 500 ईमेल की जांच हो रही थी और यह कार्य किस कंपनी को दिया गया था। जब मोदीजी या उनके किसी भी अफसर ने जासूसी सॉफ्टवेयर का उपयोग किया ही नहीं तो वो कैसे बताएं कि यह किसकी कारस्तानी है। वैसे भी हमारे प्यारे सर्वेसर्वा मोदीजी अपने मन की बात कहने में विश्वास रखते हैं न की दूसरे के मन की बात सुनने में। तो वो भला हमारी बात क्यों सुनेंगे ? उनसे क्या मतलब हमारे घर में खाना बन रहा है या नहीं? हम पेट्रोल भरा रहे हैं या डीज़ल। बिना नौकरी कैसे खर्चा चल रहा है ? या हम किसको वोट दे रहे हैं?
इसका सब इंतज़ाम तो उन्होंने बखूबी कर दिया है सबको आत्मनिर्भर बनाकर। वो तो सिर्फ और सिर्फ देश के चौकीदार का किरदार निभा रहे हैं। मुझे तो पूरा विश्वास है ये मोदी जी का काम नहीं हो सकता। ये तो सर्वविदित है कि मोदी जी जितना लोकतंत्र और निजता पर विश्वास रखते हैं उतना तो कभी किसी ने कभी किया ही नहीं। निजता के तो न जाने कितने उदहारण हैं। स्नूपगेट की याद है न ? उसे कहते हैं निजता।
निजता के कारण ही वो किसी भी आन्दोलन को देश से नहीं जोड़ते बल्कि उसे निजी आंदोलन करार देते हैं अब चाहे वो शाहीनबाग़ का हो या नागरिकता कानून, छात्र आंदोलन हो या किसान आंदोलन। सबके सब निजी आंदोलन। आपने कभी देखा कि उन्होंने कोई कार्यवाही करी? सभी को समझना चाहिए निजता की महत्ता। क्या ज़रूरत थी ये छापने की कि कोरोनाकाल में कुम्भमेला लगा या चुनावी प्रचार हुआ? क्या ज़रूरत थी असंख्य शवों को जलाते हुए या गंगा में बहते हुए दिखाने की? अरे आंदोलनकारी-आंदोलन कर रहे हैं तो क्या करें उसको दिखाकर देश की छवि तो ख़राब मत करो।
लेकिन क्या करें कहावत है न- घर का भेदी लंका ढाए। अब तो विदेशी भी ट्वीट कर करके देश को बदनाम करने लगे हैं। और ऊपर से ये विपक्ष ? अब चाहे राफेल का मुद्दा हो या पेगासस बस जी हल्ला मचाना है। क्या ज़रूरत है सवाल पूछने की? अब लोकतंत्र का मतलब ये तो नहीं की सीने पर ही सवार हो जाओ। मैं तो कहती हूँ संविधान ही बदल दीजिये। वैसे भी ये विपक्षी कौन सा सदन चलने ही देते हैं? हर समय होहल्ला और बहिष्कार। आपको अपने दम पर ही तो सारे बिल बिना बहस पास करने पड़ते हैं तो ये भी करवा ही लीजिये और उन्हें खेलने दीजिये कुर्सी-कुर्सी। अब जब संविधान ही बदल जायेगा तो कैसे सवाल और कैसे जवाब।
(डॉ. अंजुलिका जोशी मूलत: बायोकैमिस्ट हैं और उन्होंने NCERT के 11वीं-12वीं के बायोटैक्नोलॉजी विषय पाठ्यक्रम को सुनिश्चित करने में अपना योगदान दिया है।)