पहले से भी अधिक हो गई माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई, खत्म हुआ चीन और नेपाल का विवाद

माउंट एवरेस्ट की बढ़ती ऊंचाई से सामान्य जनता को भले ही आश्चर्य हो रहा हो, पर भूवैज्ञानिकों को यह तथ्य बहुत पहले से पता है, दरअसल 2900 किलोमीटर लंबी हिमालय श्रंखला का निर्माण भूमि के अंदर स्थित इंडियन और यूरेसियन टेक्टोनिक प्लेट के आपस में टकराने से हुआ है और यह प्रक्रिया आज भी चल रही है....

Update: 2020-12-10 08:10 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

नेपाल और चीन के बीच हिमालय पर स्थित माउंट एवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है, जिसकी ऊंचाई अब तक 8848 मीटर बताई जाती थी, पर अब चीन और नेपाल के भूवैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने नए अध्ययन के बाद इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 8848.86 मीटर बताई है। हालांकि ऊंचाई में महज 0.86 मीटर की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है, पर इस नए अध्ययन के बाद चीन और नेपाल के बीच लंबे समय से चल रहा इससे संबंधित विवाद समाप्त हो गया है।

माउंट एवरेस्ट का नाम ब्रिटिश सर्वेयर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा गया है, जिसकी अनुशंसा ग्रेट ब्रिटेन की रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी ने की थी। पर, मजेदार तथ्य यह है कि जॉर्ज एवरेस्ट ने हिमालय के क्षेत्र में गहन सर्वेक्षण का लंबे समय तक काम करने के बाद भी माउंट एवरेस्ट को कभी देखा नहीं था और ना ही इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी थी। जॉर्ज एवरेस्ट के अनुसार कंचनजंघा हिमालय की सबसे ऊंची चोटी थी।

जॉर्ज एवरेस्ट का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भारत दौरे पर आये ब्रिटिश सर्वेयर जनरल एंड्रू वॉघ ने सबसे पहले दुनिया को बताया था कि संभवतः माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई, कंचंनजघा से अधिक है। इसके बाद एक ब्रिटिश सर्वेयर, जेम्स निकोल्सन ने थ्योडोलाईट के गणना की मदद से माउंट एवरेस्ट और कंचनजंघा में से किसकी ऊंचाई अधिक है, यह जानने के लिए विस्तृत अध्ययन किया, पर अंतिम नतीजे तक पहुँचने के पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।

एक भारतीय गणितज्ञ और सर्वेयर राधानाथ सिकदर ने जेम्स निकोल्सन के गणना को आधार बनाकर 19वीं शताब्दी में सबसे पहले पक्के तौर पर दुनिया को बताया कि माउंट एवरेस्ट ही हिमालय की नहीं बल्कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है।

इसके बाद से लगातार इसकी वास्तविक ऊंचाई पर विवाद बरकरार रहा। वर्ष 1954 में नेपाल ने सर्वे ऑफ़ इंडिया के वैज्ञानिकों की मदद से इसकी ऊंचाई का अध्ययन किया और यह ऊंचाई 8848 मीटर दर्ज की गई। तब से हाल के वर्षो तक दुनिया एवरेस्ट की इसी ऊंचाई का उल्लेख करती थी। इस ऊंचाई में एवेरेस्ट के ऊपर जमे बर्फीले आवरण की ऊंचाई भी शामिल थी।

वर्ष 2005 में चीन के भूवैज्ञानिकों के एक दल ने एवरेस्ट की ऊंचाई का अध्ययन किया और इसकी ऊंचाई नेपाल द्वारा बताई गई ऊंचाई से 3.7 मीटर कम, यानि 8843.43 मीटर दर्ज की गई। इस ऊंचाई में केवल ऊपरी चट्टान तक का अध्ययन किया गया था, बर्फीले आवरण का नहीं।

चीन के भूवैज्ञानिकों के अध्ययन के बाद से चीन ने वर्षों तक नेपाल पर इस ऊंचाई को स्वीकारने का दबाव बनाया। इस दबाव से परेशान नेपाल पिछले कुछ वर्षों से एवरेस्ट की ऊंचाई मापने की योजना बना रहा था और इस योजना को कार्यरूप 2019 के महीने में दिया। इसके वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक ग्लोबल नेविगेशनल सेटेलाइट सिस्टम की मदद से इसकी ऊंचाई को मापा और फिर चीन की सरकार को सूचित किया।

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इस वर्ष के शुरू में चीन के वैज्ञानिकों का एक दल भी ऊंचाई मापने के लिए भेजा गया और नेपाल की गणना सही साबित हुई। हाल में ही चीन और नेपाल के संयुक्त दल ने फिर से माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई मापने का बीड़ा उठाया और अब इसकी ऊंचाई 8848.86 मीटर पाई गई और इस तरह लंबे समय से चल रहा एक विवाद समाप्त हो गया। कंचनजंघा, जिसे कभी सबसे ऊंची चोटी समझा जाता था, उसकी ऊंचाई माउंट एवरेस्ट की तुलना में 237 मीटर कम है।

माउंट एवरेस्ट की बढ़ती ऊंचाई से सामान्य जनता को भले ही आश्चर्य हो रहा हो, पर भूवैज्ञानिकों को यह तथ्य बहुत पहले से पता है। दरअसल 2900 किलोमीटर लंबी हिमालय श्रंखला का निर्माण भूमि के अंदर स्थित इंडियन और यूरेसियन टेक्टोनिक प्लेट के आपस में टकराने से हुआ है और यह प्रक्रिया आज भी चल रही है। इसीलिए यह पूरा क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से बहुत संवेदनशील है।

नेपाल में वर्ष 2015 में रिक्टर स्केल के अनुसार 7.8 तीव्रता का घातक भूकंप आया था, जिसमें 9000 से अधिक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था और चारों तरफ केवल तबाही पसरी थी। इंडियन और यूरेसियन टेक्टोनिक प्लेट के आपस में टकराने के कारण पूरे हिमालय क्षेत्र की औसत ऊंचाई में लगातार बृद्धि होती रहती है, वर्तमान में यह दर 1 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष है। जाहिर है, 8848.86 मीटर ऊंचे माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई भी अस्थिर है, जो समय के साथ बढ़ती रहेगी।

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