माननीय राष्ट्रपति, क्या आपको झूठ बोलने पर पश्चाताप है?

मीडिया के विश्वव्यापी पतन और सच बोलने पर दमन के बाद भी कभी-कभी कुछ पत्रकार या मीडिया घराने के मालिक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जिसे आदर्श और साहसी पत्रकारिता की मिसाल माना जा सकता है.....

Update: 2020-08-18 14:49 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

मीडिया के पतन का पहला दौर तब था जब टीवी चैनलों पर अनेक समाचार चैनेल 24 घंटे के लिए आ गए और टीवी घर-घर पहुंच गया। इन चैनलों की लोकप्रियता के बाद तबतक मजबूती से खड़ा प्रिंट मीडिया भी जनता के सरोकार की खबरों से दूर होता चला गया। आज का दौर मीडिया के पतन का सबसे बुरा और खतरनाक दौर है, जब सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया लगभग एक हो गया है।

मीडिया जनता से दूर तो पहले ही चला गया था, पर आज के दौर की विडम्बना यह है कि मीडिया चाहे सोशल मीडिया हो या मेनस्ट्रीम मीडिया, सत्ता के कुचक्र का सहभागी बन गया है और जनता को अफ़ीम की तरह से झूठी और भ्रामक खबरों की मदद से हमेशा एक खुमारी में रखता है, नशे में रखता है।

सोशल मीडिया तो केवल सरकार की कमियों को छुपाने वाली झूठी खबरें ही आसानी से प्रचारित कर पाता है, इसीलिए दुनियाभर में इस समय दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी शासकों का, जिन्हें जनता से कोई मतलब नहीं है, परचम लहरा रहा है। ये शासक जनता के लिए कोई काम नहीं करते, पर दावा यही करते हैं कि उनसे अच्छा शासन इतिहास में किसी ने नहीं दिया है और ना ही भविष्य में कोई दे पायेगा।

इस प्रचार में मेनस्ट्रीम मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया भरपूर साथ निभा रहा है। इन दोनों मीडिया में अंतर इसलिए भी मिट गया है क्योंकि मेनस्ट्रीम मीडिया में समाचार देने वाले सभी पत्रकार सोशल मीडिया पर भी उतने ही सक्रिय हैं और सोशल मीडिया पर अधिक सक्रियता हमेशा यथार्थ से दूर ले जाती है। पूरी दुनिया में ऐसा ही हो रहा है।

मीडिया के विश्वव्यापी पतन और सच बोलने पर दमन के बाद भी कभी-कभी कुछ पत्रकार या मीडिया घराने के मालिक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जिसे आदर्श और साहसी पत्रकारिता की मिसाल माना जा सकता है।

पिछले सप्ताह अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प एक प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे। इसमें हफिंगटन पोस्ट के वाइटहाउस संवाददाता एस वी दाते भी थे और उस दिन उनकी बारी होने के कारण आगे की पंक्ति में बैठे थे। राष्ट्रपति ने जब उन्हें सवाल पूछने का इशारा किया तब दाते खड़े हुए और पूछा, माननीय राष्ट्रपति, क्या आपको पिछले साढ़े तीन वर्षों में झूठ बोलने और जनता को गुमराह करने का जरा सा भी पछतावा है?

ट्रम्प ऐसे सवाल की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, इसलिए थोड़ा हिचकिचाए और फिर हकलाते हुए पूछा, क्या? दाते ने फिर सधे हुई अंदाज में कहा, वो सभी झूठ और बेईमानी। ट्रम्प ने फिर हकलाते हुए पूछा, झूठ और बेईमानी किसने किया? दाते ने फिर कहा, आपने किया और हजारों की तादात में किया। इसके बाद ट्रम्प ने दाते से मुँह फेर लिया और दूसरे रिपोर्टर की तरफ सवाल पूछने का इशारा कर दिया।

वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार ट्रम्प अपने कार्यकाल में 20,000 से अधिक झूठ बोल चुके हैं और जनता को गुमराह कर चुके हैं। एस वी दाते के अनुसार ट्रम्प के कार्यकाल की कोई एक उपलब्धि जो अगले दस वर्षों तक याद के जायेगी, वह है उनका झूठ और इसीलिए यह प्रश्न उन्होंने राष्ट्रपति के सामने रखा था जिसका जवाब नहीं मिला।

दाते आश्वस्त हैं कि भविष्य में भी उन्हें ट्रम्प से सवाल पूछने का मौका मिलेगा, तब भी उनका सवाल यही होगा। दाते बताते हैं कि इसी वर्ष मार्च में भी उन्होंने ट्रम्प से यही सवाल पूछा था, जिसका जवाब नहीं मिला था। दाते के अनुसार इस बार ट्रम्प शायद उन्हें पहचान नहीं पाए, तभी उन्हें सवाल पूछने के लिए इशारा किया था।

कल्पना कीजिये, क्या हमारे मीडिया में इतना साहस है जो ऐसे सवाल वो प्रधानमंत्री जी से पूछ सके। प्रधानमंत्री तो क्या बीजेपी के प्रवक्ता या फिर छुटभैये नेता से भी ऐसा सवाल करने की हिम्मत देश का मीडिया नहीं करेगा। अपने देश का मीडिया समूह तो केवल सरकार की भक्ति के साथ-साथ देश के ज्वलंत मुद्दों को जनता से ओझल करने का काम करता है।

एस वी दाते आज भी हफिंगटन पोस्ट के वाइट हाउस संवाददाता बने हुए हैं, पर यदि भारत होता तो वे अबतक देशद्रोही बन गए होते, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा करार दिए गए होते, अर्बन नक्सल और टुकडे-टुकडे गैंग के सदस्य हो गए होते और उन्हें प्रधानमंत्री के सामने ही पुलिसवाले पकड़कर ले जाते और जुर्म की संगीन धारा में जेल में डाल देते। बात यहीं नहीं ख़त्म होती, प्रधानमंत्री और न्यायालय लगातार प्रेस की अभूतपूर्व आजादी के महाकाव्य रचाते पर उस रिपोर्टर को बेल भी नहीं मिलती।

यह भी संभव है कि पुलिस कहीं से एक विडियो फुटेज भी प्रस्तुत कर देती जिसमें वह रिपोर्टर किसी दंगे में पत्थर फेंकता दीखता और मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए जनता को गुमराह करने के लिए कई दिनों का मसाला मिल जाता और सोशल मीडिया पर लगातार उसके सिर पर, उसके बाजुवों पर या फिर उसकी आँखों पर बड़े इनामों की घोषणा होती और प्रधानमंत्री उन लोगों को फॉलो कर रहे होते।

दरअसल हमारे देश के मीडिया घरानों ने समाचार और मनोरंजन का फर्क ही ख़तम कर दिया है। हरेक समाचार चैनल दिनभर एक ऐसा मनोरंजन प्रस्तुत करते हैं जो हिंसक है, काल्पनिक है, पर इस सरकार के लिए आदर्श है।

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