आत्मनिर्भर भारत में कोविड19 के कारण 40 करोड़ आबादी का भयानक गरीबी में आना बनाम गरीबी उन्मूलन के आंकड़ों की बाजीगरी

सरकार के आंकड़ों की बाजीगारी के आधार पर होने वाले वैश्विक अध्ययन की मानें तो 2021 तक भारत में मात्र तीन प्रतिशत आबादी ही गरीब रह जाएगी, लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट है...

Update: 2020-07-20 06:16 GMT

महेंद्र पांडेय का विश्लेषण

जुलाई के आरंभ में संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006 से 2016 के बीच भारत में 27.1 करोड़ लोग बेहद गरीबी की हालत से बाहर आ गए। इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यूएनडीपी और कैम्ब्रिज पोवेर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव ने संयुक्त रूप से तैयार किया है और इसमें विश्व के 101 देशों में व्याप्त बहुआयामी गरीबी का वर्ष 2006 से 2016 के बीच का आकलन किया गया है। बहुआयामी गरीबी के आकलन में स्वास्थ्य, शिक्षा, हिंसा, संपत्ति, खाना पकाने के इंधन, पोषण, स्वच्छता, बिजली, आवास और साफ़ पानी पर विशेष जोर दिया दिया जाता है।

दूसरी तरफ अप्रैल में इन्टरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कोविड19 के कारण लॉकडाउन और सरकारी उपेक्षा के कारण असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ से अधिक श्रमिक भयानक गरीबी की चपेट में आ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग दो अरब आबादी कोविड19 के दौर के पहले असंगठित क्षेत्र में काम कर रही थी और अब इनमें से अधिक का भविष्य असुरक्षित हो गया है। भारत में कुल वेतनभोगियों में से 90 प्रतिशत से अधिक असंगठित क्षेत्र में कार्यरत थे। कोविड19 के दौर में जिन देशों में असंगठित क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित है उसमें भारत, नाइजीरिया और ब्राज़ील प्रमुख हैं।

जुलाई में प्रकाशित स्टेट ऑफ़ फ़ूड सिक्यूरिटी एंड न्यूट्रीशन नामक रिपोर्ट के अनुसार कोविड19 के व्यापक प्रभाव के कारण वर्ष 2030 तक पूरी आबादी के लिए खाद्य और पोषण का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकेगा। इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन, यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन मिलकर तैयार करते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में यानी कोविड 19 के दौर के पहले, दुनिया में भूखी आबादी 69 करोड़ थी। ऐसा नहीं था कि दुनिया में भूखे लोगों की संख्या साल दर साल घटती जा रही थी, बल्कि वास्तविकता इसके विपरीत थी। पिछले पांच वर्षों के दौरान दुनिया में छह करोड़ से अधिक आबादी भूखी आबादी में शामिल हो गई थी। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि देशों ने भूख से निपटने की कोई कारगर रणनीति बनाई ही नहीं है और लगभग सभी देश केवल इस संबंध में दावों से अधिक कुछ करते नहीं हैं। सबसे अधिक भूखी आबादी एशिया में और फिर अफ्रीका में है। इस वर्ष कोविड19 के प्रभाव और सरकारों द्वारा बड़ी आबादी की उपेक्षा के कारण लगभग 13 करोड़ आबादी भूख और कुपोषण की चपेट में आ जायेगी। रिपोर्ट के अनुसार सरकारों द्वारा लापरवाही का अगर यही आलम रहा तब वर्ष 2030 तक भूख की चपेट में आबादी 89 करोड़ तक पहुँच जायेगी जो दुनिया की कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत होगा। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स, जिसे सभी देश स्वीकार कर चुके हैं के अनुसार वर्ष 2030 तक भूखे लोगों की संख्या शून्य तक पहुंचानी है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार, बहुआयामी गरीबी से निजात पाने में भारत ने सराहनीय काम किया है। वर्ष 2006 में जहां देश की 51.1 प्रतिशत आबादी गरीब थी वहीं 2016 में यह संख्या 27.9 प्रतिशत ही रह गयी। यहाँ यह ध्यान देना आवश्यक है की वर्ष 2006 से 2014 तक देश में मनमोहन सिंह की सरकार थी, जबकि इसके बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार आयी। इसका सीधा-सा मतलब है की एक बड़ी आबादी को गरीबी रेखा से बाहर लाने में मनमोहन सिंह की सरकार ने सराहनीय काम किया था। भारत में 27.1 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से बाहर आयी और यह संख्या दुनिया के किसी भी देश से अधिक है।

दुनिया के 10 देश ऐसे हैं जहां सम्मिलित तौर पर 1.3 अरब आबादी बेहद गरीब है, ये देश हैं: बांग्लादेश, कम्बोडिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, इथियोपिया, हैती, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, पेरू और वियतनाम। इसमें से भारत ने सराहनीय प्रयास किया हैं पर दुनिया से गरीबी मिटाने के लिए अन्य देशों को भी युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे। रिपोर्ट में भारत की सराहना बेहद गरीबी उन्मूलन का काम झारखंड जैसे बहुत पिछड़े क्षेत्रो में करने के लिए भी की गयी है।

ब्रूकिंग्स इंस्टिट्यूट ने मई 2018 में बताया था की अब भारत में बेहद गरीबों की सबसे बड़ी संख्या नहीं है, बल्कि यह श्रेय अब नाइजीरिया को जाता है। बेहद गरीब आबादी वह है, जिनकी दैनिक आय 1.9 डॉलर से कम है। ब्रूकिंग्स इंस्टिट्यूट ने वैश्विक स्तर पर गरीबी की घड़ी का इजाद किया है, जिसमें किसी भी समय किसी भी देश में गरीबों की संख्या देखी जा सकती है। इस घड़ी के अनुसार मई 2018 में भारत में 7.06 करोड़ गरीब थे जबकि नाइजीरिया में यह आबादी 8.7 करोड़ थी। मई 2018 के पहले अनेक वर्षों तक दुनिया में गरीबों की सबसे बड़ी आबादी भारत में थी। भारत इस क्षेत्र में लगातार प्रगति करता रहा जबकि नाइजीरिया समेत अनेक अफ्रीकी देश इस मामले में पिछड़ते जा रहे हैं। मई 2018 में भारत में हरेक मिनट 44 व्यक्ति गरीबी रेखा से ऊपर उठ रहे थे जबकि इसी अवधि में नाइजीरिया में छह लोग गरीब होते जा रहे थे। भारत में अनुमान है की वर्ष 2021 तक केवल तीन प्रतिशत आबादी ही गरीब रहेगी। अफ्रीका में वर्तमान में दो-तिहाई आबादी गरीब है और यदि हालात ऐसे ही रहे तो वर्ष 2030 तक इसकी 90 प्रतिशत आबादी गरीब की श्रेणी में होगी। एशिया में पहले चीन, इंडोनेशिया, वियतनाम जैसे देशों ने गरीबी उन्मूलन के संदर्भ में सराहनीय प्रयास किये और अब भारत भी इसी दिशा में बढ़ रहा है। विश्व बैंक के अनुसार वर्ष 1990 के बाद से दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से ऊपर उठ गयी है।

अब सवाल यह उठता है की क्या सही में हमने गरीबी मिटाने के लिए इतने काम किये हैं या फिर यह भी आंकड़ों की बाजीगरी है। हमारे देश में बड़े शहर हों, कस्बे हों या फिर गाँव हों, हरेक जगह भूखे, कुपोषित, बेसहारा और बेरोजगार लोगों की फ़ौज मिल जायेगी। बहुत बड़ी संख्या में लाचार किसान मिल जायेंगे, गरीबी से तंग आकर जितने किसान हमारे देश में आत्महत्या करते हैं उतने कहीं नहीं करते। फिर भी गरीबी पर विजय अटपटा जरूर लगता है। विश्व बैंक ने विकासशील देशों में गरीबी के आकलन के लिए कुछ वर्ष पहले प्रति व्यक्ति प्रतिदिन आय के पुराने आंकड़े 1.90 डॉलर को संशोधित कर 3.20 डॉलर कर दिया था। अब अधिकतर देश, जिसमें अफ्रीकी देश भी सम्मिलित हैं, संशोधित दर से गरीबी का आकलन करते हैं, जबकि हमारे देश में अभी तक वही पुराना फार्मूला चलता आ रहा है।

ऐसे में जाहिर है, वैश्विक सन्दर्भ में हम गरीबी को मात दे रहे हैं जबकि अफ्रीकी देशों में गरीबों की संख्या लगातार बढ़ रही है। भारत में यदि 3.2 डॉलर की दर से गरीबी का आकलन किया जाए तब देश की एक तिहाई से अधिक आबादी गरीब होगी। न्यू यॉर्क टाइम्स ने फरवरी 2019 में एक समाचार प्रकाशित किया था, जिसके अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सरकारी रिपोर्ट को प्रकाशित नहीं होने दिया जिसके अनुसार वर्ष 2017 में गरीबी दर स्वतंत्र भारत में सबसे अधिक थी। दुनिया के सबसे गरीब बच्चों में से 30.3 प्रतिशत भारत में हैं। गरीबों की संख्या बढ़ती रहेगी, गरीबी बढ़ती रहेगी पर आंकड़ों में हम जरूर गरीबी मिटा कर दम लेंगे। 

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