Glasgow Climate Change Conference: ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन को रोकने के नाम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन
Glasgow Climate Change Conference: स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) रोकने के नाम पर जिस कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के 26वें अधिवेशन (COP26) का आयोजन किया गया था, उसका समापन हो गया है.
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
Glasgow Climate Change Conference: स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) रोकने के नाम पर जिस कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के 26वें अधिवेशन (COP26) का आयोजन किया गया था, उसका समापन हो गया है. इस अधिवेशन से जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि पर लगाम लगने के संकेत तो नहीं मिलते, अलबत्ता यह अधिवेशन दुनिया के देशों के प्रधान मंत्रियों, राष्ट्रपतियों और पर्यावरण मंत्रियों के लिए कोविड 19 के दौर के बाद का पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय सामूहिक पर्यटन का अड्डा जरूर बन गया. इस सम्मलेन में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जिससे तापमान बृद्धि या जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने के आसार हों, और उम्मीद के अनुरूप हमारे देश के पर्यावरण मंत्री ने इसे सफल बताया है. वैज्ञानिक विश्लेषकों के अनुसार इस अधिवेशन में देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के जो राष्ट्रीय प्रस्ताव दिए हैं, उनसे इतना तो तय है कि इस शताब्दी के अंत तक तापमान बृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक पाना असंभव है, अलबत्ता यदि सभी देश अपने प्रस्तावों को पूरी प्रतिबद्धता से निभाते हैं तो शायद तापमान बृद्धि 2.4 डिग्री सेल्सियस पर रुक जाए.
भारत के पर्यावरण मंत्री (Environment Minister of India) और सरकार इस अधिवेशन से खुश है और इसे सफल मान रहे हैं, जाहिर है अधिवेशन में तमाम बातें हवा-हवाई रही होंगी और जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं हुआ होगा. हमारे प्रधानमंत्री ने अधिवेशन के पहले दिन ही अनेक ऐलान किये थे और सबसे अधिक चर्चा भी इन्हीं ऐलानों पर की गयी. दूसरी तरफ दुनिया को भारत के जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने वाले कार्यक्रम के बारे में कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि हमारे देश के सारे वादे मौखिक हैं. हरेक देश अपने कार्यक्रमों को विस्तार से नेशनल डीटरमाइंड कंट्रीब्युशन (National Determined Contribution), जिसे एनडीसी कहा जाता है, में प्रस्तुत करता है और इसे संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज के मुख्यालय (Registry of United Nations Framework Convention on Climate Change) में जमा करता है – पर भारत ने अभी तक इसे जमा नहीं किया है. इसी एनडीसी से दुनिया को किसी देश के जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित लक्ष्यों का पता चलता है.
प्रधानमंत्री ने घोषणा की, हमारा देश वर्ष 2070 तक कार्बन-न्यूट्रल (Carbon Neutral) बन जाएगा, पर यह भाषण में ही सीमित रहा, इसे लिखित तौर पर नहीं जमा किया गया. प्रधानमंत्री जी ने कहा वर्ष 2030 तक इन्सटाल्ड कैपेसिटी के सन्दर्भ में नवीनीकृत उर्जा स्त्रोतों की क्षमता 500 गीगावाट होगी, जो पूरे देश के बिजली उत्पादन के इन्सटाल्ड कैपेसिटी का 50 प्रतिशत होगा. इस सन्दर्भ में वर्ष 2030 तक हमारे देश की बिजली उत्पादन क्षमता कम से कम 1000 गीगावाट होनी चाहिए पर सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (Central Electricity Authority) के रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक देश में बिजली उत्पादन क्षमता 817 गीगावाट तक ही रहेगी.
प्रधानमंत्री के भाषण के अगले दिन उर्जा मंत्रालय के सचिव ने एक ऐसा बयान दे डाला, जो प्रधानमंत्री के दावों से मेल नहीं खाता है. सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के अनुसार वर्ष 2030 तक देश में जितनी बिजली की खपत होगी उसका 50 प्रतिशत नवीनीकृत उर्जा स्त्रोतों से आएगा, जबकि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इसे इन्सटाल्ड कैपेसिटी के सन्दर्भ में कहा था. यह सब क पता है कि बिजली उत्पादन के क्षेत्र में इन्सटाल्ड कैपेसिटी (Installed Capacity) और खपत (Consumption) में बहुत अंतर रहता है, क्योंकि नवीनीकृत उर्जा स्त्रोतों से बिजली बनाने में धूप की तीव्रता, हवा के वेग और दिशा इत्यादि पर वास्तविक उत्पादन निर्भर करता है, और जू वास्तविक उत्पादन हूट है खपत केवल उसी की होती है.
प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लासगो में ऐलान किया कि वर्ष 2030 तक भारत उत्सर्जन में 1 अरब टन की कटौती करेगा, पर यह स्पष्ट नहीं किया कि यह कटौती कार्बन के सन्दर्भ में है या फिर ग्रीनहाउस गैसों के सन्दर्भ में. दरअसल हमारे प्रधानमंत्री वैज्ञानिक अंतरराष्ट्रीय अधिवेशनों में संस्कृत के श्लोकों और उसका अर्थ समझाने को ही अपने प्राथमिक काम समझते हैं, और इस चक्कर में वैज्ञानिक तथ्य अस्पष्ट रह जाते हैं. यह भी किसी को नहीं मालूम कि प्रधानमंत्री ने जो दावे ग्लासगो में किये हैं, उन्हें किसी भी हाल में पूरा किया जाएगा या फिर सारे दावे और लक्ष्य अमीर देशों की आर्थिक सहायता पर टिके हैं.
डब्लूआरआई इंडिया की विशेषज्ञ अपुरबा मित्रा के अनुसार इस समय देश में नवीनीकृत उर्जा स्त्रोतों से लगभग 100 गीगावाट बिजली बनाई जा रही है, ऐसे में अगले 9 वर्षों में इसे 500 गिगावाट तक पहुचाना असंभव तो नहीं पर बहुत महात्वाकांक्षी ऐलान है, और इसके लिए मुद्रा कहाँ से आयेगी किसी को नहीं पता है. भारत के उर्जा का मसला विक्सित देशों से बिलकुल अलग है. हमारे देश में बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है, और इन्टरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार अगले 20 वर्षों में हमारे देश में बिजली की मांग पूरे यूरूपीय संघ के देशों की सम्मिलित मांग से भी अधिक होगी. हमारे देश में जिस हिसाब से गर्मी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, उसे देखले हुए आकलन है कि वर्ष 2050 तक केवल वातानुकूलन के क्षेत्र में बिजली की मांग 1350 टेरावाट घंटे तक पहुँच जायेगी जो वर्ष 2018 के मुकाबले 15 गुना अधिक होगी और वर्ष 2020 के दौरान देश के कुल बिजली उत्पादन के बराबर होगी. वर्ष 2018 में देश में कुल 3 करोड़ वातानुकूलन संयंत्र थे, जिनकी संख्या वर्ष 2050 तक एक अरब तक पहुँच जायेगी, और गर्मी के महीनों में देश के कुल बिजली खपत का 45 प्रतिशत से अधिक इन्हें चलाने में खर्च हो जाएगा.