अब संगीत सुनना भी बन चुका है बड़ा अपराध, उत्तर कोरिया में 'के-पॉप' सुनने वाले 22 वर्षीय युवा को सार्वजनिक तौर पर दिया गया मृत्युदंड!

तालिबान ने घरों की तलाशी लेकर विभिन्न शहरों में वाद्य यंत्रों को जब्त कर उन्हें आग के हवाले कर दिया, अब, संगीत सुनने या गाने पर शारीरिक यातना, कैद या मृत्युदंड का प्रावधान है, वर्ष 2023 में अफ़ग़ानिस्तान की प्रतिष्ठित फ़रयब यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में मोरल पुलिस द्वारा डाले गए छापे के दौरान कुछ छात्र गाना सुनते मिले थे। इन्हें मोरल पुलिस ने शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया, कुछ दिनों तक हवालात में रखा, इनके सर को मुड़वा दिया गया और फिर हॉस्टल में इनके कमरों को सील कर दिया...

Update: 2024-07-04 09:41 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Music is not only enjoyment and relaxation, it may be crime and punishment too. हाल में ही दक्षिण कोरिया ने नार्थ कोरिया ह्यूमन राइट्स रिपोर्ट प्रकाशित किया है, जिसका आधार उत्तर कोरिया से भागकर दक्षिण कोरिया में शरण लेने वाले 649 नागरिकों से प्राप्त जानकारियाँ हैं। इस रिपोर्ट में उत्तर कोरिया में सत्ता द्वारा जनता पर थोपी गयी तमाम पाबंदियों का विस्तार से जिक्र किया गया है।

मानवाधिकार हनन और अभिव्यक्ति की गुलामी के बारे में तो पूरी दुनिया पहले से ही जानती है, पर चौंकाने वाला तथ्य यह है कि उत्तर कोरिया की सत्ता ने वर्ष 2020 के बाद से संगीत सुनने, विशेष तौर पर पूरी दुनिया में अलग पहचान बना चुके के-पॉप सुनने, पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया हुआ है। उत्तर कोरिया में यह इतना भीषण अपराध है कि इसका उल्लंघन करने पर मृत्युदंड भी दिया जा सकता है।

वर्ष 2022 में इस क़ानून का उल्लंघन करने पर 22 वर्षीय नागरिक को सार्वजनिक तौर पर मृत्यु दंड दिया गया था। उत्तर कोरिया की सत्ता के लिए संगीत विद्रोही मानसिकता और संस्कृति का प्रतीक है, और क़ानून के उल्लंघन की जांच के लिए पुलिस कहीं भी और कभी भी किसी भी नागरिक के मोबाइल फ़ोन की जांच कर सकती है।

संगीत को अपराध की श्रेणी में रखने वाला केवल उत्तर कोरिया ही नहीं है, अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन के बाद से संगीत को इस्लाम-विरोधी बताकर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। तालिबान ने घरों की तलाशी लेकर विभिन्न शहरों में वाद्य यंत्रों को जब्त कर उन्हें आग के हवाले कर दिया। अब, संगीत सुनने या गाने पर शारीरिक यातना, कैद या मृत्यु दंड का प्रावधान है। वर्ष 2023 में अफ़ग़ानिस्तान की प्रतिष्ठित फ़रयब यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में मोरल पुलिस द्वारा डाले गए छापे के दौरान कुछ छात्र गाना सुनते मिले थे। इन्हें मोरल पुलिस ने शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया, कुछ दिनों तक हवालात में रखा, इनके सर को मुड़वा दिया गया और फिर हॉस्टल में इनके कमरों को सील कर दिया गया।

इन दिनों फिलिस्तीन के गाजा में इजराइल की बमबारी और तमाम राहत सामग्रियों पर प्रतिबन्ध की खूब चर्चा की जा रही है, पर इजराइल के एक फिलिस्तीनी समर्थन मानवाधिकार संगठन 'गिशा' ने हाल में ही इजराइल द्वारा गाजा में प्रतिबंधों पर विस्तृत रिपोर्ट जारी की है और जिन सामानों को प्रतिबंधित किया गया है उसकी सूची तैयार की है। इस रिपोर्ट के अनुसार 1990 के दशक से इजराइल गाजा क्षेत्र में उपभोक्ता वस्तुओं की आवाजाही को नियंत्रित करता रहा है, पर वर्ष 2006 के चुनावों के बाद जब फिलिस्तीन में हमास बहुल सरकार का गठन हुआ, उसके बाद वर्ष 2010 तक इजराइल ने गाजा में अधिकतर उपभोक्ता वस्तुओं को प्रतिबंधित कर दिया था। इस रिपोर्ट के अनुसार इजराइल ने बस इतने वस्तुओं की इजाजत दी थी, जिससे नागरिक केवल जिन्दा रह सकें। उस दौर में खजूर, खिलौने, दूध, कागज़, पुस्तकें, सिलाई मशीन, स्लीपिंग बग्स, मसाले और फल भी प्रतिबंधित थे। इन प्रतिबंधित उपभोक्ता वस्तुओं में वाद्य यंत्र और संगीत सुनने के उपकरण भी शामिल थे।

इरान इन दिनों राष्ट्रपति चुनावों के कारण चर्चा में है, पर पिछले 2 वर्षों से मोरल पुलिस द्वारा मेहसा अमीनी की हत्या के विरोध में उपजे व्यापक जन-आन्दोलन के कारण लगातार चर्चा में रहा है। इस आन्दोलन में अनेक गायक ने अपने आन्दोलनकारी गीतों के माध्यम से जनता को आन्दोलन के लिए प्रेरित किया था। तूमाज सलेही नामक एक रैप-गायक को जन-आन्दोलन से जुड़े गानों के लिए पहले 6 वर्ष की सजा सुनाई गयी थी, पर अप्रैल 2024 में एक स्थानीय अदालत ने मौत की सजा सुना दी थी। इसके बाद तूमाज सलेही ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर किया था। इस अपील का निर्णय आश्चर्यजनक है और अब सर्वोच्च अदालत ने मृत्यु दंड की सजा वाले फैसले को पलट दिया है।

ईरान में ही जन-आंदोलनों से जुड़े और ग्रामी पुरस्कार प्राप्त गायक शेर्विन हजिपौर के विद्रोही गानों के लिए 3 वर्ष और 8 महीने कैद की सजा सुनाई गयी है। यह फैसला केवल कैद की सजा ही नहीं है, बल्कि शेर्विन हजिपौर को सजा के अंतर्गत इरान में अमेरिकी ज्यादतियों के विरुद्ध गाने भी लिखने हैं और इससे सम्बंधित एक पुस्तक भी लिखने का आदेश दिया गया है।

अमेरिका में रैप विधा में क्रिस्टोफर डोरसे, जो बीजी के नाम से प्रसिद्ध हैं, एक जाना माना नाम हैं। 1990 के दशक से वे संगीत के क्षेत्र में हैं और उनके कुछ गाने बेहद लोकप्रिय हुए हैं। उनपर आरोप है की उनके गानों में बंदूकों से उपजी हिंसा का महिमामंडान किया जाता है। कुछ वर्ष पहले उन्हें इन्हीं आरोपों के कारण जेल भी जाना पड़ा था। जेल से बाहर आने पर उन्हें आदेश दिया गया था कि अपने गानों में वे हिंसा का उल्लेख नहीं करें, वरना उन पर फिर से मुकदमा दायर किया जाएगा। इन आदेशों की अवाहेलना करते हुए उन्होंने पिछले वर्ष कुछ गानों में हिंसा का फिर से महिमामंडन किया।

इसके बाद एक डिस्ट्रिक्ट अदालत में उनपर मुकदमा दायर किया गया और मांग की गयी कि उन्हें सख्त हिदायत दी जाए कि अपने गानों में हिंसा से सम्बंधित शब्दों का किसी भी तरीके ने प्रयोग नहीं करें। डिस्ट्रिक्ट अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि किसी के भी गाने में किसी शब्द या भावार्थ को वे प्रतिबंधित नहीं कर सकते हैं क्योंकि इससे अभिव्यक्ति की आजादी का हनन होगा, पर अपने फैसले में न्यायालय ने आगे लिखा कि क्रिस्टोफर डोरसे यानी बीजी, आगे से अपने लिखे हरेक गाने को पहले सरकार से अनुमोदित करायेंगें उसके बाद ही उसे रिलीज़ कर सकते हैं।

दूसरे देशों में जहां गाने विद्रोह का प्रतीक बन रहे हैं, हमारे देश में इन्हीं गानों का उपयोग सामाजिक ध्रुवीकरण, हिंसा फैलाने और मुस्लिमो के लिए जहर उगलने के लिए किया जाने लगा है। बीजेपी राज में यह एक नया “न्यू नार्मल” है और चुनावों के समय या फिर अपनी रैलियों में बीजेपी ऐसे गानों का व्यापक इस्तेमाल करती है।

समाज विज्ञान के अनुसार सामूहिक संगीत से मनुष्य का सम्बन्ध विकास के हरेक दौर में रहा है। आज भी दुनिया की हरेक जनजाति में सामूहिक संगीत, गायन और नृत्य हरेक अवसर पर किया जाता है। दुनिया की बहुत कम जनजातियाँ ऐसी हैं जिसमें एकल गायन या नृत्य की परम्परा है। विकास के दौर में सामूहिक गायन और नृत्य संभवतः आपसी सौहार्द्य का ही प्रतीक रहा होगा।

विकास के दौर में जबतक पूरी आबादी एक ही प्रकार के काम करती रही तब तक केवल सामूहिक गायन की ही परंपरा रही होगी, पर बाद में आधुनिकता की दौड़ में एकल गाना की शुरुआत हुई होगी। आज भी शादी-विवाह या फिर पर्व-त्योहारों पर परम्परागत तौर पर सामूहिक गान का ही आयोजन होता है। आन्दोलनों में भी सामूहिक गानों का विशेष महत्व है, समाज विज्ञान के अनुसार जिन आन्दोलनों में संगीत या सामूहिक गायन का समावेश रहता है, वैसे आन्दोलन अधिक लोकप्रिय और सफल होते हैं। पर कोई भी विज्ञान और समाज विज्ञान यह नहीं बताता कि संगीत को अपराध घोषित करने वाले लोग कौन हैं और सामाजिक विकास के साथ ही उनका मानसिक विकास क्यों नहीं हो पाया।

संदर्भ:

1. https://www.independent.co.uk/asia/east-asia/north-korea-executes-kpop-kdrama-b2572275.html

2. https://kabulnow.com/2023/09/taliban-detain-shave-students-heads-as-punishment-for-playing-music-in-faryab/

3. https://www.theguardian.com/world/article/2024/jun/24/gaza-blockade-israel-banned-items

4. https://abcnews.go.com/International/wireStory/iran-overturns-death-sentence-rapper-famous-songs-after-111339364

5. https://edition.cnn.com/2024/03/01/middleeast/shervin-hajipour-iran-jail-intl/index.html

6. https://time.com/6242156/hindutva-pop-music-anti-muslim-violence-india/

7. https://www.theguardian.com/music/article/2024/jul/02/rapper-bg-government-song-approval

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