अमीर और अमीर हो रहे हैं और दुनिया भूखी है | Pandemic Billionaire in Asia-pacific |
Pandemic Billionaire in Asia-pacific | हमारे प्रधानमंत्री समय और परिस्थिति के हिसाब से आंकड़े और वक्तव्य इस हद तक बदलते हैं कि एक जगह कहे गए तथ्य के ठीक विपरीत दूसरी जगह कह जाते हैं| “इज ऑफ़ डूइंग बिज़नस” (Ease of Doing Business) यानि पूंजीपतियों का विकास तो बार-बार सुनने को मिलता है, और यह प्रधानमंत्री के साथ ही पूरी सत्ता का बुनियादी उद्देश्य भी है|
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Pandemic Billionaire in Asia-pacific | हमारे प्रधानमंत्री समय और परिस्थिति के हिसाब से आंकड़े और वक्तव्य इस हद तक बदलते हैं कि एक जगह कहे गए तथ्य के ठीक विपरीत दूसरी जगह कह जाते हैं| "इज ऑफ़ डूइंग बिज़नस" (Ease of Doing Business) यानि पूंजीपतियों का विकास तो बार-बार सुनने को मिलता है, और यह प्रधानमंत्री के साथ ही पूरी सत्ता का बुनियादी उद्देश्य भी है| आखिर पार्टी चलाने के लिए चंदा भी तो चाहिए| पर, ग्लासगो में आयोजित जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि (COP26 at Glasgow) को रोकने से सम्बंधित वैश्विक अधिवेशन में भाषण देते समय प्रधानमंत्री ने "इज ऑफ़ लिविंग" (Ease of Living) की चर्चा की थी| इसका मतलब, जीवन को सुगम करना, यानि जनता का विकास समझा जा सकता है| इसकी दुनिया में चर्चा भी की गयी, पर लगभग ढाई महीने बाद ही वर्ल्ड इकोनॉमिक्स फोरम के डावोस एजेंडा 2022 (Davos Agenda 2022 at World Economic Forum) को संबोधित करते हुए हमारे प्रधानमंत्री फिर से पूंजीपतियों के विकास, यानि "इज ऑफ़ डूइंग बिज़नस" पर वापस लौट आये|
दरअसल "इज ऑफ़ डूइंग बिज़नस" और "इज ऑफ़ लिविंग" का मतलब बिलकुल विपरीत है| एक में उद्योगपतियों का साथ और विकास है, जबकि दूसरे में पूरी आबादी के जीवन स्तर सुधारने का आश्वासन है| पिछले अनेक दशकों से सरकारें उन्मुक्त अर्थव्यवस्था के नाम पर केवल पूंजीपतियों को बढ़ावा देने में जुटी हैं, हालां कि हमारे देश में वर्ष 2014 के बाद से इसका पैमाना बहुत बढ़ गया है| इसका नतीजा भी स्पष्ट है, अमीर लगातार पहले से अधिक अमीर होते जा रहे हैं, और देश की आबादी भूख और बेरोजगारी की तरफ बढ़ती जा रही है| इस सरकार के बाद से देश के प्राकृतिक संसाधनों से जनता को बेदखल कर इसे पूंजीपतियों के हाथ में दिया जा रहा है| अब तो हालत यहाँ तक पहुँच गयी है कि हरेक आपदा पूंजीपतियों की दौलत बेइन्तहां बढाने लगी है और जनता को पहले से अधिक गरीब कर जाती है| सरकारें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम पूंजीपतियों को तोहफे के तौर पर देती है, जबकि जनता के हिस्से 5 किलो अनाज आता है|
चर्चित गैर-सरकारी संस्था, ऑक्सफैम, (Oxfam) ने दावोस एजेंडा से ठीक पहले "इनइक्वलिटी किल्स – इंडिया सप्लीमेंट 2022" (Inequality Kills – India Supplement 2022) के नाम से एक पुस्तिका प्रकाशित की है| इसके अनुसार कोविड 19 के कारण देश के 84 प्रतिशत परिवारों की सम्मिलित आय में कमी आई, पर इसी दौरान देश में अरबपतियों (Billionaire) की संख्या 102 से बढ़कर 142 पहुँच गयी| यदि देश के महज 96 सबसे अमीर लोगों पर 1 प्रतिशत का अतिरिक्त टैक्स लगा दिया जाए तो इससे पूरे आयुष्मान भारत (Ayushman Bharat) पर होने वाले खर्च की भरपाई की जा सकती है| वर्ष 2021 में देश के सबसे अमीर 100 लोगों की कुल संपत्ति 57.3 लाख करोड़ रुपये थी| कोविड के दौर में मार्च 2020 से नवम्बर 2021 के बीच इन पूंजीपतियों की कुल संपत्ति 23.14 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ तक पहुँच गयी| संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की एक रिपोर्ट के अनुसार इसी दौरान देश के 4.6 करोड़ परिवार अत्यधिक गरीबी में पहुँच गए और यह संख्या दुनिया के कुल सबसे गरीब आबादी की संख्या की लगभग आधी है| इसी रिपोर्ट के अनुसार देश की 10 प्रतिशत सर्वाधिक अमीर आबादी पर 1 प्रतिशत का अतिरिक्त टैक्स लगाकर देश के शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार की समस्या को मिटाया जा सकता है|
ऑक्सफैम की एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार केवल कोविड 19 के दौर में एशिया में 20 बिलकुल नए अरबपति सामने आये| रिपोर्ट में इन्हें महामारी पूंजीपति कहा गया है क्योंकि महामारी के दौर में इनके अमीर बनने का कारण सुरक्षा उपकरण बनाने, औषधि या जांच किट तैयार करने या फिर सर्विस सेक्टर का मजबूत होना है| इसी दौरान एशिया में 14 करोड़ से अधिक आबादी बेरोजगारी के कारण गरीबों की श्रेणी में पहुँच गयी| इस नए अरबपतियों का उदय चीन, भारत, हांगकांग और जापान में हुआ है| मार्च 2020 से नवम्बर 2021 के बीच एशिया-प्रशांत क्षेत्र (Asia-Pacific) में अरबपतियों की संख्या 803 से बढ़कर 1087 तक पहुँच गयी और इनकी सम्मिलित संपत्ति में 74 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी| इस पूरे क्षेत्र की सर्वाधिक अमीर 1 प्रतिशत आबादी के पास जितनी संपत्ति है, उतनी सर्वाधिक गरीब 90 प्रतिशत आबादी के पास भी नहीं है| ऑक्सफैम एशिया के मुस्तफा तालपुर (Mustafa Talpur of Oxfam Asia) के अनुसार आंकड़ों से स्पष्ट है कि कोविड काल में पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में असमानता बढ़ी है और महामारी के दौरान सरकारी नीतियों का फायदा गरीबों तक नहीं पहुंचा और गरीबों का हक़ अमीरों के हिस्से में पहुँच गया|
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार वर्ष 2020 के दौरान दुनियाभर में 8 करोड़ से अधिक रोजगार छीन गए और कार्य अवधि में कटौती के कारण इसके अतिरिक्त 2.5 करोड़ रोजगार में वेतन में कटौती कर दी गयी| इसी वर्ष एशिया-प्रशांत क्षेत्र के अरबपतियों की संपत्ति में 1.4 ख़रब डॉलर की बृद्धि दर्ज की गयी – इस बृद्धि से क्षेत्र के सभी बेरोजगारों को 10000 डॉलर का वेतन दिया जा सकता है|
कोविड 19 का असर एशिया के देशों पर भयावह था और इस क्षेत्र में 10 लाख से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु हुई| तालाबंदी के कारण बहुत से लोग रोजगार से बाहर कर दिए गए, असंगठित क्षेत्र का सारा कामकाज लम्बे समय के लिए ठप्प रहा| इन सब कारणों से गरीबी बड़ी और संभव है कि कोविड 19 की तुलना में भूखमरी से अधिक मौतें होने लगी हों| सबसे अधिक प्रभावित महिलायें रहीं – इनसे रोजगार के अवसर छीने, घरों पर काम का बोझ पड़ा, हिंसा का शिकार होती रही, शिक्षा प्रभावित हो गयी| दूसरी तरफ इस पूरे क्षेत्र में 70 प्रतिशत स्वास्थ्य कर्मी और 80 प्रतिशत से अधिक नर्सें महिलायें हैं - जिन्होंने कोविड 19 का सबसे आगे रहकर मुकाबला किया और भारी संख्या में संक्रमित भी हुईं और इनकी मौत भी होती रही|
आर्थिक बृद्धि का आकलन करने वाली संस्था क्रेडिट सुइस (Credit Suisse) के अनुसार वर्ष 2025 तक एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 1.53 करोड़ व्यक्तियों की संपत्ति दस लाख डॉलर से अधिक होगी, 42000 नए अमीरों की संपत्ति 5 करोड़ डॉलर से अधिक होगी जबकि 99000 अरबपति होंगें| इन सारे आंकड़ों से इतना तो स्पष्ट है कि जिस खुली अर्थव्यवस्था की हम बात करते हैं और सरकारें जिसपर भरोसा करती हैं उससे लाभ किसे होता है| प्रधानमंत्री मोदी के "इज ऑफ़ डूइंग बिज़नस" से गरीबों की दौलत डकार कर अमीर और अमीर होते जा रहे हैं|