प्रजातंत्र से जनता का हो रहा मोहभंग, बड़े पैमाने पर जनता मानती है इसे सामाजिक और आर्थिक समस्यायें विकराल होने का कारण

आज का युवा प्रजातंत्र से विमुख होता जा रहा है, उसे प्रजातंत्र के सिद्धांतों से समस्या नहीं है पर उसे लगता है कि प्रजातंत्र जीवन स्तर सुधारने में असफल रहा है। वैश्विक स्तर पर लोगों की द्विविधा यह है कि उन्हें मानवाधिकार तो प्रिय है, पर सैन्य शासन और तानाशाही से भी उन्हें परहेज नहीं है....

Update: 2023-09-13 11:15 GMT

(प्रतीकात्मक फोटो)

दुनियाभर में प्रजातंत्र की कम होती लोकप्रियता पर महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

A new survey tells that Democracy is popular at global level, but younger generation may support Anarchy, Dictatorship and even Military rule. अमेरिका के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन ने हाल में ही भारत समेत दुनिया के 30 देशों में व्यापक सर्वेक्षण कर बताया है कि सत्ता के तौर पर प्रजातंत्र लोकप्रिय तो है, पर असमानता और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्याओं का कोई हल न निकल पाने के कारण युवा वर्ग प्रजातंत्र से विमुख होता जा रहा है।

वैश्विक स्तर पर 86 प्रतिशत लोगों ने प्रजातंत्र का समर्थन किया, जबकि 20 प्रतिशत लोगों ने निरंकुश या तानाशाही का समर्थन किया। 18 से 35 वर्ष के आयुवर्ग के 57 प्रतिशत प्रतिभागियों ने ही प्रजातंत्र का समर्थन किया, जबकि 56 वर्ष से अधिक आयुवर्ग में 71 प्रतिशत प्रतिभागियों ने प्रजातंत्र का समर्थन किया था। दूसरी तरफ 18 से 35 वर्ष के प्रतिभागियों में से 42 प्रतिशत ने सैन्य शासन का समर्थन किया, जबकि दूसरे आयुवर्गों में से महज 20 प्रतिशत ने ही इसका समर्थन किया था। युवा प्रतिभागियों में से 35 प्रतिशत ऐसे भी हैं जिन्हें ऐसा निरंकुश शासक चाहिए, जिसे चुनाव की जरूरत ही न पड़े और संविधान से न बंधा हो। इस रिपोर्ट का नाम है, कैन डेमोक्रेसी डिलीवर (Can Democracy Deliver?)।

जाहिर है, पीढ़ी—दर-पीढ़ी प्रजातंत्र से लोगों का मोहभंग हो रहा है। यह मोहभंग प्रजातंत्र की संरचना से नहीं है, बल्कि लोगों को इसके परिणाम से परेशानी है। वैश्विक स्तर पर एक बड़ी आबादी को यह महसूस होने लगा है कि प्रजातंत्र से उनका जीवन स्तर नहीं सुधर रहा है और सामाजिक और आर्थिक समस्याएं विकराल होती जा रही हैं। यह एक विरोधाभास ही है कि प्रजातंत्र से विमुख होती आबादी भी मानवाधिकार चाहती है, इसे खोना नहीं चाहती। सर्वेक्षण के दौरान हरेक भौगोलिक क्षेत्र में 85 से 95 प्रतिशत आबादी ने मानवाधिकार को सुरक्षित रखने पर जोर दिया, इसकी साथ ही वर्ण, जाति और लिंग आधारित भेदभाव का विरोध किया।

इस सर्वेक्षण ने सबसे प्रमुख वैश्विक समस्याएं गरीबी और असमानता, जलवायु परिवर्तन और भ्रष्टाचार उभर कर सामने आया है। कुल 23 प्रतिशत प्रतिभागियों ने भ्रष्टाचार, 21 प्रतिशत ने गरीबी और असमानता, 7 प्रतिशत ने विस्थापन और प्रवासी को सबसे बड़ी समस्या बताया। 53 प्रतिशत प्रतिभागियों ने अपने देश के सन्दर्भ में बताया कि उनकी देश गलत दिशा में जा रहा है और लगभग एक-तिहाई प्रतिभागियों ने बताया कि सत्ता में बैठे लोग जनता के आकांक्षाओं की उपेक्षा कर रहे हैं। सत्ता की नजर में आबादी कितनी उपेक्षित है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 49 प्रतिशत प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि पिछले वर्ष कम से कम एक दिन ऐसा था, जब पैसे की कमी के कारण उन्हें भूखा रहना पड़ा। कुल 58 प्रतिशत प्रतिभागियों को लगता है कि राजनैतिक अस्थिरता से हिंसा के संभावना बढ़ जाती है। लगभग 42 प्रतिशत लोगों के अनुसार उनके देश में नागरिकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त क़ानून नहीं हैं।

सर्वेक्षण में 70 प्रतिशत लोगों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन भविष्य का सबसे बड़ा खतरा है, जिससे वे और उनका रोजगार प्रभावित होगा। बांग्लादेश के 90 प्रतिशत प्रतिभागी, तुर्की के 85 प्रतिशत, केन्या ए 83 प्रतिशत, भारत के 82 प्रतिशत, चीन के 45 प्रतिशत, रूस के 48 प्रतिशत और यूनाइटेड किंगडम के 54 प्रतिशत प्रतिभागी जलवायु परिवर्तन को भविष्य का सबसे बड़ा खतरा मानते हैं।

सर्वेक्षण में 45 प्रतिशत प्रतिभागियों की राय थी कि चीन की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होने पर वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ उनके देश में सुधार होंगें। पहले पसंद के देशों में सबसे आगे 29 प्रतिशत प्रतिभागियों ने अमेरिका का नाम लिया, दूसरे स्थान पर 27 प्रतिशत के साथ यूनाइटेड किंगडम, तीसरे पर 20 प्रतिशत के साथ फ्रांस, छठे स्थान पर साउथ अफ्रीका 17 प्रतिशत, पांचवें स्थान पर चीन 15 प्रतिशत, छठे स्थान पर 12 प्रतिशत के साथ रूस और सातवें स्थान पर 10 प्रतिशत के साथ भारत है।

इस सर्वेक्षण से इतना तो स्पष्ट है कि आज का युवा प्रजातंत्र से विमुख होता जा रहा है, उसे प्रजातंत्र के सिद्धांतों से समस्या नहीं है पर उसे लगता है कि प्रजातंत्र जीवन स्तर सुधारने में असफल रहा है। वैश्विक स्तर पर लोगों की द्विविधा यह है कि उन्हें मानवाधिकार तो प्रिय है, पर सैन्य शासन और तानाशाही से भी उन्हें परहेज नहीं है।

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