मोदी का जन्मदिवस बनाम किसानों का भारत बंद : तानाशाही के हाईवे पर लोकतंत्र की प्रतिरोध शिला

लोकतांत्रिक मर्यादाओं का इतना बड़ा मखौल उड़ाने की दीदादिलेरी दुनिया भर में शायद ही किसी और शासक ने दिखाई होगी, जो सकल ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी पार्टी बताने वाली भाजपा, मोदी और उनकी भक्त मण्डली ने 17 सितम्बर को व्यवहार में लाई है....

Update: 2021-09-24 12:14 GMT

'संयुक्त किसान मोर्चा' के आह्वान पर 27 सितम्बर को देशभर में किया गया था भारत बंद

 बादल सरोज का विश्लेषण

जनज्वार। चारण और भाटों ने कसीदे काढ़े, नई-नई उपमा और विशेषण गढ़े, "आसमां पै है खुदा (नहीं-नहीं, ईश्वर) और जमीं पै ये"- मार्का प्रचार के तूमार खड़े करने के लिए पूरी अक्षौहिणी सेना झोंक दी, कर्ज में डूबे, दिवालिया होने की कगार पर पहुंचे सरकारी खजाने को खोलकर दरबारियों में खैरात, ईनाम- इकराम और जागीरें बँटी, और कुछ इस तरह आत्ममुग्ध महाराजाधिराज नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का जन्मदिन मना।

देश जब हर तरह की मुश्किलों के दौर से गुजर रहा हो ; जब प्रगति के सारे सूचकांक पाताल की ओर और बेरोजगारी, भुखमरी, तबाही और बर्बादी सहित अवनति के सारे पैमाने आकाश की ओर जा रहे हों - ठीक ऐसे कुसमय में जन्मदिन समारोह का भव्य आयोजन करना एक ख़ास तरह की ढिठाई और अहमन्यता की दरकार रखता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि मौजूदा शासक समूह और उसके निर्विवाद चीफ में बाकी कुछ हो या न हो, इन दोनों - ढिठाई और अहंकार - की मौजूदगी इफरात में है। सार्वजनिक आचरण में निर्लज्ज ख़ुदपरस्ती और प्रचारलिप्सा इसके साथ अलग से है।

अपने जन्मदिन (Narendra Modi Birthday) की दावत में बगीचे में रोशनी के लिए अनेक गुलाम खम्भे से बांधकर ज़िंदा जलाने वाले रोम (Rome) साम्राज्य के पहली सदी के पांचवे शासक नीरो के बर्बर राजतंत्र युग से विकसित होकर समाज के पूंजीवादी लोकतंत्र की अवस्था में पहुँचने का एक दर्शनीय फर्क यह था कि इसमें शासकों की निजी सनक और व्यक्तिगत आत्मश्लाघा को काफी हद तक नियंत्रित किया गया। भले दिखावे के लिए ही सही, किन्तु लोक को तंत्र के ऊपर रखा गया। शासन-प्रशासन और शासक समूह के बीच अंतर की एक झीनी चादर खड़ी की गयी।

मोदी के 2021 के जन्मदिन समारोहों में इस झीनी चादर को तार तार कर दिया गया; जन्मदिन मोदी का था, मना रही थी भाजपा और पैसा फूँका जा रहा था उस सरकारी खजाने का, जिसे 135 करोड़ जनता से वसूली करके, उसी जनता की जरूरतें पूरी करने के लिए भरा जाता है। लोकतांत्रिक मर्यादाओं का इतना बड़ा मखौल उड़ाने की दीदादिलेरी दुनिया भर में शायद ही किसी और शासक ने दिखाई होगी, जो सकल ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी पार्टी बताने वाली भाजपा, मोदी और उनकी भक्त मण्डली ने 17 सितम्बर को व्यवहार में लाई है।

भारतीय लोकतंत्र (Indian Democracy) में मोदी युग की ख़ास पहचान सरकार और पार्टी का फर्क मिटना भर नहीं है - पार्टी का भी सिमट कर एक व्यक्ति और उसके चहेते दूसरे व्यक्ति में समाहित होकर 'हम दो - हमारे दो' में बदल जाना है। यह तानाशाही का हाईवे हैं। डॉ. अम्बेडकर संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले दिन ही इसकी चेतावनी दे चुके थे।

उन्होंने कहा था कि : "राजनीति में भक्ति या व्यक्ति पूजा संविधान के पतन और नतीजे में तानाशाही (Dictatorship) का सुनिश्चित रास्ता है।" अपनी शक्तियां किसी व्यक्ति - भले वह कितना ही महान क्यों न हो - के चरणों में रख देना या उसे इतनी ताकत दे देना कि वह संविधान को ही पलट दे, "संविधान और लोकतंत्र' के लिए खतरनाक स्थिति है।" 17 सितम्बर की फूहड़ भक्ति के कोलाहली वृंदगान में बाबा साहब की यह चेतावनी बार-बार याद आ रही थी।

इस जन्मदिन को विशेष बनाने और बताने के लिए जिस तरह कीर्तिमानों के गढ़ने का प्रहसन किया गया, वह इसी कड़ी में था। सरकार का दावा है कि इस दिन 2 करोड़ 16 लाख टीके लगाए गए। हालांकि स्वयं बर्थडे बॉय मोदी जी ने ढाई करोड़ वैक्सीन लगने की बात बोली है। इस दावे में कितना दूध और पानी है, यह इन पंक्तियों के लेखक के परिवार में आये फाइनल वैक्सीनेशन के दो-दो प्रमाणपत्रों से समझा जा सकता है। पहला प्रमाणपत्र 26 अप्रैल का है, जिस दिन सचमुच में दूसरा टीका लगा था। मगर इसके बाद 17 सितम्बर को दूसरा प्रमाणपत्र भी आ गया, जिसमे इस दिन फिर दूसरा टीकाकरण संपन्न होने की इत्तला दी गयी। ऐसा फर्जीवाड़ा कितनों के साथ हुआ होगा, इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है।

इसी तरह का दूसरा फर्जीवाड़ा खुद सरकारी आंकड़ों (Govt Data) से उजागर हो जाता है, जिसमे 17 सितम्बर के जन्मदिन को लगे टीकों और ठीक उसके एक दिन पहले और एक दिन बाद के टीकों की संख्या में जमीन आसमान का अंतर है।

ज्यादा विस्तार में जाने की बजाय सिर्फ पक्के भाजपा शासित 5 राज्यों के ही आंकड़े देख लेना ठीक होगा। इन पांच प्रदेशों में हैप्पी बर्थ डे के दिन सबसे ज्यादा 31 लाख 77 हजार 382 टीके लगाने का दावा कर्नाटक का है, जबकि ठीक एक दिन पहले 16 सितम्बर को यहां मात्र 81 हजार 383 और एक दिन बाद 18 सितम्बर को सिर्फ 2 लाख 47 हजार 464 टीके लगे।

मोदी जी जिसे अपना मानते हैं, उस गुजरात में 17 सितम्बर को जो संख्या 24 लाख 73 हजार 539 दिखाई गयी, वह 16 सितम्बर को दस गुना कम सिर्फ ढाई लाख और 18 सितम्बर को छह गुना कम केवल चार लाख रह गयी।

मध्यप्रदेश में रिकॉर्ड वाले दिन 29 लाख 4 हजार 611 टीके लगना बताया गया, जबकि एक दिन पहले यह संख्या सिर्फ 6 लाख 85 हजार 339 और एक दिन बाद 7 लाख 4 हजार 721 थी।

यही हाल योगी के उत्तरप्रदेश का था, जहां 17 सितम्बर का दावा 25 लाख 20 हजार 473 था, जबकि 16 सितम्बर को सिर्फ 4 लाख 43 हजार 926 तथा 18 सितम्बर को 6 लाख 13 हजार 572 टीके लगे।

असम में भी यह अंतर् 6 गुना था। यहां 17 सितम्बर को 7 लाख 90 हज़ार 293 का दावा किया गया, जबकि इसके एक दिन पहले यह संख्या 1 लाख 69 हजार 21 और एक दिन बाद 1 लाख 98 हजार 344 थी।

इस तरह इस कथित उपलब्धि पर भी गोयबल्स का ही सील सिक्का लगा हुआ था। झूठ बड़ा बोलो, आंकड़ों सहित बोलो और बार-बार बोलो। वैसे अमिधा में देखा जाए, तो मोदी जी के लिए ऐसी ही बर्थडे गिफ्ट उचित है। इसलिए भी कि उनके तो जन्मदिन भी दो-दो बताये जाते हैं।

बहरहाल, जैसा कि होता है कि मोर जब आत्ममुग्ध होकर नाच रहा होता है, तब असल में खुद की नग्नता को ही उजागर कर रहा होता है। ठीक उसी तरह जब रिकॉर्ड टीकाकरण की सफलताओं की डींगें हाँकी जा रही थीं, तब अपरोक्ष तरीके से मोदी सरकार वैक्सीनेशन (Vaccination) करने के मामले में अपनी आपरधिक असफलताओं को स्वीकार कर रही थी। यदि मोदी-दिवस पर दो-ढाई करोड़ टीके लगाए जाने की क्षमता देश के पास है, (वैसे इस देश में एक ही दिन में 12 करोड़ वैक्सीनेशन का रिकॉर्ड रहा है) तो फिर टीकाकरण की रफ़्तार इतनी सुस्त क्यों हैं? क्या 40-50 लाख मौतों का इंतज़ार इसीलिये किया गया कि जन्मदिन के दिन एक रिकॉर्ड बनाया जा सके?

जो भी है, वह अक्षम्य है। जिसे उपलब्धि बताया जा रहा है, वह दरअसल अभियुक्त द्वारा खुद के खिलाफ एक स्वप्रमाणित दस्तावेजी सबूत है - जिसके आधार पर सामान्य रिवाज संसदीय लोकतंत्रों में सरकारों के इस्तीफे होने का है। मगर इधर स्वयंसिद्ध नाकाबलियत को सुर्खाब का पर मानकर मुकुट की तरह धारण किया जा रहा है। शाखा में यही तो सिखाया जाता है।

लेकिन अभी तो यौमे पैदाइश के जश्न का सिर्फ आगाज़ हुआ है, रंगारंग कार्यक्रमों और घर फूंक आतिशबाजी के नजारों तक पहुँचने का अंजाम तो अभी बाकी है। साहिर लुधियानवी के शब्दों में कहें तो "फ़क़ीर-ए-शहर के तन पर लिबास बाक़ी है / अमीर-ए-शहर के अरमाँ अभी कहाँ निकले!!"

'वाह मोदी जी वाह' की इसी धुन में सुनते हैं कि डाकखाने को हुकुम दिया गया है कि वह 5 करोड़ पोस्टकार्ड छापे - जिसे थैंक्यू मोदी जी लिख कर बर्थडे बॉय के लिए भिजवाने के लिए भाजपा की इकाइयों को दिया जाएगा। सवाल यह नहीं है कि पहले से ही खाली जेब चौराहे पर नीलामी के लिए खड़े कर दिए गए डाक विभाग पर क्या गुजरेगी -- सवाल यह है कि ये डाकखाने है या भारतीय जनता पार्टी के पोस्टर बॉय के पर्चे-पोस्टर छापने वाले छापाखाने?

इन सारी जुगुप्सा जगाने वाली वारदातों के बीच खैरियत की बात यह है कि 'भारत दैट इज इंडिया' नाम के सॉवरिन सेक्युलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक में एक पब्लिक है अभी और वो सब जानती है। यही पब्लिक 17 सितम्बर के इस झूठे, कल्पित और आभासीय रिकॉर्ड के खिलाफ 27 सितम्बर को भारत बंद करके प्रतिरोध का सच्चा, स्वरचित और वास्तविक विश्व रिकॉर्ड बनाएगी।

दस महीने पूरे कर चुके ऐतिहासिक किसान आंदोलन के रिकॉर्ड को और आगे बढ़ाते हुए, इसमें मजदूरों, कर्मचारियों, महिलाओं और छात्र-युवाओं की सचमुच की हिस्सेदारी कराते हुए कारवां उत्तरप्रदेश और उत्तराखण्ड (Uttarakhand) होते हुए और आगे बढ़ेगा। इस किसान आंदोलन के साथ खड़ी हुयी 19 राजनीतिक पार्टियों का मुद्दा आधारित एकता बनाना भविष्य की राह हमवार करेगा ; क्योंकि झूठ दीर्घायु नहीं होते - क्योंकि अंधियारे की होती उम्र दराज नहीं।

(लेखक पाक्षिक 'लोकजतन' के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)

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