PM Modi's Europe visit : ओह माय गॉड! प्रधानमंत्री के 'इंद्रजाल' पर भारत में बुद्धिजीवी निहाल क्यों?

PM Modi's Europe visit : पीएम मोदी ने तीन दिन में तीनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राष्ट्रप्रमुखों, भारतीय समुदाय और विशिष्ट प्रतिनिधियों के साथ तीन दर्जन मुलाकातें कीं....

Update: 2022-05-05 13:53 GMT

PM Modi's Europe visit : ओह माय गॉड! प्रधानमंत्री के ‘इंद्रजाल’ पर भारत में बुद्धिजीवी निहाल क्यों?

सौमित्र रॉय का विश्लेषण

PM Modi's Europe visit : ज्यादा नहीं, बीते साल की ही बात है। सितंबर का महीना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अमेरिका की हवाई यात्रा के बीच रास्ते में अपने विमान 'एयर इंडिया वन' (Air India One) में फ्लाइट वर्क मोड की एक फोटो सोशल मीडिया पर क्या साझा की, पूरे देश में मानों कयासों, बतकहियों का तूफान सा आ गया।

अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर यह तस्वीर शेयर करते हुए प्रधानमंत्री ने लिखा- एक लंबी हवाई यात्रा कुछ जरूरी दस्तावेजों को पलटने और फाइलें निपटाने का भी मौका देती है।

फिर क्या था, रात 11 बजे के आसपास ट्वीट हुई इस तस्वीर को लेकर अगले तीन दिन तक हल्ला रहा। लोगों ने मैग्नीफाइंग ग्लास लगाकर तस्वीर के हर कोने को छान मारा और नजर टिकी बगल में रखे पीएम के सूटकेस पर टंगे ताले पर। ताला क्यों? चिंता किसलिए और वह भी भारत के प्रधानमंत्री को ? वगैरह सवाल हुए।

प्रधानमंत्री 2-4 मई के बीच जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस (PM Modi's Europe Visit) की यात्रा पर गए और फिर उनकी पोशाक बदलने, भारतीय समुदाय (Indian Community In Germany) के बीच ढोल बजाने और जर्मनी से प्रस्थान पूर्व एक बच्चे से बात करने जैसे पलों को लेकर नुक्ताचीनी उनकी स्व्देश वापसी के बाद भी जारी है।

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी (Om Thanvi) ने डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडेरिक्सन के साथ मोदी की मुलाकात की दो तस्वीरें ट्वीट करते हुए कहा है कि 'पीएम को वेश पसंद है! डेनमार्क में रहनुमाई। विकासशील देश का दर्जा तक खो चुके भारत के प्रधानमंत्री ने पहले ही दिन दो बार वेशभूषा बदली, जबकि विकसित देश की मेजबान प्रधानमंत्री सुबह से शाम एक ही पहनावे में रहीं'।

थानवी की पोस्ट की गईं दोनों तस्वीरों में पांच घंटे का अंतर है और इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) काली जैकेट और दूसरी में ग्रे कलर के बंद गले वाले जवाहर कोट में नजर आ रहे हैं।

बात फिर वहीं घूम-फिरकर आ जाती है कि विदेश यात्रा के दौरान आखिर प्रधानमंत्री के सूटकेस में कितनी ड्रेस होती हैं। क्या प्रधानमंत्री हरेक पोशाक को राष्ट्राध्यक्षों और राष्ट्रप्रमुखों से अलग-अलग मुलाकात के अवसरों के आधार पर चुनते हैं? क्या वे स्थानीय भारतीय समुदाय के साथ बातचीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए अलग ड्रेस साथ में लेकर चलते हैं? वगैरह।

क्या पोशाक पर इतनी बहस जरूरी है ?

किसे किस मौके पर क्या पहनना है, इसका कोई निश्चित प्रोटोकॉल नहीं है। हालांकि, पोशाक में भारतीय संस्कृति, मर्यादा, गरिमा और भारत देश की पहचान का जरूर ख्याल रखा जाता है। रंग, बनावट या डिजाइन का चुनाव इसी दायरे में व्यक्ति अपनी पसंद से करता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता है और इस पर बहस के बजाय इसका सम्मान करना चाहिए। लेकिन यह दूसरी बार है कि भारत में बुद्धिजीवी तबका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की तीन दिवसीय यूरोप यात्रा के नतीजों और भविष्य की संभावनाओं का आंकलन करने के बजाय ऐसी फिजूल बातों पर बहस कर रहा है।

इसका सबसे बड़ा खामियाजा यह होता है कि भारत की आम जनता के पैसों पर देश की प्रगति की कामना लिए विदेश यात्रा पर गए प्रधानमंत्री की यात्रा यूं बन जाती है, जैसे वह ग्रीष्मकालीन अवकाश पर हों और कुछ घंटों में पोशाक बदलना उनका 'इंद्रजाल' हो।

जरूरी सवाल- मोदी किन उम्मीदों के साथ यूरोप की यात्रा पर गए ?

प्रधानमंत्री की यात्रा (PM Modi's Europe visit) से एक दिन पहले विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने यह साफ कर दिया था कि मोदी रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर न केवल तीनों देशों के साथ भारत का पक्ष रखेंगे, बल्कि द्विपक्षीय सहयोग के ढांचे को और मजबूत करने पर भी बात करेंगे। मोदी ने तीन दिन में तीनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राष्ट्रप्रमुखों, भारतीय समुदाय और विशिष्ट प्रतिनिधियों के साथ तीन दर्जन मुलाकातें (PM Modi's Europe visit) कीं। इनमें सबसे प्रमुख थी इंडो-नॉर्डिक सम्मेलन- जिसमें डेनमार्क, नॉर्वे, फिनलैंड, स्वीडन और आइसलैंड ने भी भाग लिया।

जर्मनी फिलहाल जी-7 देशों का मुखिया है और जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज के साथ मोदी की परस्पर वार्ता जून में होने वाले जी-7 देशों के आउटरीच सम्मेलन में भारत के भाग लेने का रास्ता भी खोलती है। दोनों नेताओं की बैठक में कुछ अहम समझौते हुए, जिनमें स्वच्छ ऊर्जा के लिए भारत को 2030 तक मिलने वाली 10.5 अरब डॉलर की मदद महत्वपूर्ण है।

क्यों 'इंद्रजाल' में उलझ गई बहस ?

बर्लिन में भारत और जर्मनी के बीच साझा बयान के दौरान प्रेस को सवाल पूछने की अनुमति न देने से विवाद शुरू हुआ और जो सम्मेलन स्थल से बाहर निकले मोदी के भारतीय प्रेस को दिए गए 'ओह माय गॉड' वाले बयान तक जारी है। इसके अलावा डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में मोदी के द्वारा भारतीय समुदाय के साथ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में ढोल बजाने के वीडियो को ट्वीट करते हुए कांग्रेस के नेता सुरेंद्र राजपूत ने लिखा कि 'अपना डंका खुद बजाया जा रहा है! बजाते रहो।'

इस फिजूल बहस में क्या छूट गया ?

प्रधानमंत्री के आगमन से ऐन पहले फ्रांस (PM Modi In France) ने भारतीय नौसेना के साथ मिलकर पी75आई परियोजना के तहत 6 परंपरागत पनडुब्बियां बनाने के करार को रद्द कर दिया। इस करार में एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन प्रणाली एक प्रमुख शर्त थी। इसी प्रणाली की मदद से पनडुब्बियां गहरे पानी में ज्यादा लंबे समय तक रहकर अपनी गतिविधियों को अंजाम दे सकती हैं। अब 43 हजार करोड़ रुपए की यह पूरी परियोजना खटाई में पड़ गई है। लेकिन सोशल मीडिया और मुख्यधारा के चैनलों पर इसकी बात नहीं हो रही है। देश की रक्षा जरूरतों के लिहाज से यह अहम समझौता था।

दरअसल, फिजूल की बहस के जरिए मुद्दों से भटकाने का काम दोनों तरफ से- यानी सरकार और मीडिया के प्रबुद्ध ताकतवर वर्ग से हो रहा है। अगर भारत के प्रधानमंत्री की कार्यप्रणाली उनकी पोशाक या उन निजी पलों पर आकर केंद्रित हो जाए, जो कि उनकी अपनी निजता है तो देश की अवाम बहुत से गंभीर मुद्दों से अछूती रह जाएगी। सरकार को अपने वाजिब सवालों से घेरने की मीडिया की जिम्मेदारी अगर इस तरह निभाई जाएगी तो यह देश के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जाएगा।

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