PM Narendra Modi की सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगी, यह कैसे कह सकते हैं?, इसका जिम्मेदार कौन
PM Narendra Modi : अकेले अपनी बेहद मंहगी आयातित लक्ज़री सुरक्षा कार में बैठे मोदी को एसपीजी दस्ते ने सुरक्षा घेरे में लिया हुआ था, निकट ही बस और अन्य वाहन और तमाम तरह के लोग भी खड़े नजर आ रहे थे....
सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ पूर्व आईपीएस वीएन राय का विश्लेषण
PM Narendra Modi : 2001 में गुजरात भुज भूकंप के तीसरे दिन ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihar Vajpayee) वहां के दौरे पर गए। सब कुछ, सुरक्षा व्यवस्था भी अस्त-व्यस्त और तत्कालीन मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल (Keshubhai Patel) और उनकी कुर्सी हिलाने में लगे नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के बीच राजनीतिक उठा-पटक तेजी पकड़े हुए। अचानक पटेल ने वाजपेयी से करीब 50 किलोमीटर दूर उनके प्रभाव क्षेत्र वाले एक अन्य भूकंप प्रभावित क्षेत्र चलने को कहा जहां पहले से कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गयी थी। स्थानीय राजनीति का पेट भरने के लिए वाजपेयी, एसपीजी की सलाह को भी दरकिनार कर, वहां गए और सुरक्षित लौटे। दरअसल, अकस्मात दौरे अपने आप में प्रायः सुरक्षित भी होते हैं- वहां यदि सुरक्षा का प्लान नहीं हुआ तो हमले का कैसे होगा? मोदी के हालिया पंजाब दौरे को भी वहां हुयी 'अकस्मात' सड़क यात्रा के चलते असुरक्षित बताने वालों की कमी नहीं। लेकिन वस्तुस्थिति क्या है?
किसी भी भारतीय के लिए 5 जनवरी को पंजाब दौरे पर निकले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह एक स्तब्धकारी दृश्य रहा होगा। पाक सीमा से बमुश्किल 30 किलोमीटर दूर राज्य के फिरोजपुर जिले (Firozpur) में पड़ने वाले राजमार्ग के एक फ्लाई ओवर के बीच में मोदी को हुसेनीवाला ले जा रहा एसपीजी का काफिला रुका हुआ था। अकेले अपनी बेहद मंहगी आयातित लक्ज़री सुरक्षा कार में बैठे मोदी को एसपीजी दस्ते ने सुरक्षा घेरे में लिया हुआ था। निकट ही बस और अन्य वाहन और तमाम तरह के लोग भी खड़े नजर आ रहे थे। यह स्थिति 15-20 मिनट तक बनी रही और इस बीच भाजपा का झंडा लिए 10-15 व्यक्तियों का एक समूह 'श्री नरेंद्र मोदी जिंदाबाद' के नारे लगता प्रधानमंत्री की कार के समीप तक पहुंचा और कुछ देर वहां बना रहा। उसके बाद काफिला आगे जाना स्थगित कर वापस मुड़कर सिरसा एयर बेस चला गया, जहाँ से मोदी ने दिल्ली के लिए उड़ान ली।
हालाँकि, व्यक्तिगत सुरक्षा के जानकार आश्वस्त होंगे कि सड़क यात्रा में आयी इस बाधा के दौरान प्रधानमंत्री की सुरक्षा ड्रिल सलामत रही और मोदी कभी भी शारीरिक खतरे में पड़ते नजर नहीं आये। लेकिन, इससे मोदी की महाबली वाली राजनीतिक छवि को निश्चित ही धक्का पहुंचा है और, लिहाजा, राजनीतिक हलकों में आरोपों-प्रत्यारोपों की बाढ़ आ गयी है। स्वाभाविक रूप से केंद्र की भाजपा सरकार और पंजाब (Punjab) की मोदी सरकार के बीच भी एक दूसरे की प्रशासनिक खामियां निकलने की स्पर्धा देखी जा सकती है। दोनों सरकारों ने अपने-अपने तीन सदस्य के जाँच दल बिठा दिए हैं जबकि दोनों का एक संयुक्त जांच दल बेहतर निष्कर्षों और उपायों का जनक सिद्ध हुआ होता।
क्या यह प्रधानमंत्री के सुरक्षा बंदोबस्त में सेंध नहीं थी? दरअसल, सेंध तो लगी थी लेकिन माल सलामत रहा। यानी प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर आंच नहीं आने दी गयी। किसी भी क्षण यह नहीं लगा कि मोदी को शारीरिक रूप से नुकसान होने की स्थिति बन रही है।आइये इस पक्ष को तीन पेशेवर सवालों और उनके संभावित जवाबों के माध्यम से समझें।
पहला सवाल: पद से जुड़े सामान्य अंदेशों के अलावा क्या मोदी की इस पंजाब यात्रा में इंटेलिजेंस एजेंसियों को किसी विशेष खतरे का भी भान था?
नहीं, ऐसा संभव नहीं लगता न किसानों की ओर से और न पाकिस्तान की ओर से। क्योंकि उस हालत में प्रधानमंत्री का दौरा होता ही नहीं। पंजाब में किसान संगठनों ने अपनी मांगे मनवाने की रणनीति के तहत मोदी यात्रा के विरोध भर का ऐलान किया था न कि मोदी को क्षति पहुँचाने का। इसी तरह, स्थापित बॉर्डर प्रोटोकॉल के मुताबिक पाकिस्तान सरकार ने भी दुगनी सावधानी बरती होगी कि कोई ऐसी अवांछित घटना न घटे जिसका दोष उस पर मढ़ा जाए। इस दौरे में, किसी ड्राइविंग दुर्घटना की स्थिति छोड़कर, मोदी की जान को जीरो फीसद खतरा था।
दूसरा सवाल: क्या प्रधानमंत्री की 120 किलोमीटर लम्बी सड़क यात्रा का निर्णय अकस्मात और खतरनाक था और यह किसने लिया होगा?
सड़क यात्रा का निर्णय न अकस्मात रहा होगा और न इसे खतरनाक कहा जाएगा। प्रधानमन्त्री की हर यात्रा प्रबंधन में संभावित मौसम का हिसाब भी शामिल किया जाता है और तदनुसार वैकल्पिक व्यवस्था की जाती है। 5 जनवरी को बारिश की संभावना के चलते सड़क मार्ग के विकल्प पर निश्चित ही यात्रा पूर्व सम्बंधित एजेंसियों में चर्चा और सहमति हुयी होगी, और जरूरी सुरक्षा प्रबंधों पर भी। हेलिकॉप्टर से यात्रा संभव न होने पर सड़क मार्ग से जाने का विकल्प चुनना स्वयं मोदी का विशेषाधिकार था, जबकि मार्ग-सुरक्षा प्रबंध की जिम्मेदारी पंजाब पुलिस की। सभी जानते हैं कि एसपीजी प्रधानमन्त्री की निकट सुरक्षा (प्रोक्सिमेट सिक्यूरिटी) के लिए सीधी जिम्मेदार है और शेष सुरक्षा प्रबंध में उसकी भूमिका एएसएल (एडवांस सिक्यूरिटी लिअसों) में भागीदारी तक सीमित होती है। यहाँ सड़क मार्ग की अनिश्चितता में ही निहित सुरक्षा भी रहती है। समीकरण यह बनता है कि संभावित हमलावर भी तयशुदा पैरामीटर पर ही अपनी योजना को अंजाम देना चाहेंगे न कि अनुमान के आधार पर अपने प्रयास को नाकाम होते देखना।
तीसरा सवाल: इस दौरे में सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगी, यह कैसे कह सकते हैं? इसके लिए किसे जिम्मेदार कहा जाएगा?
जैसा कि कई विडियो में नजर आ रहा था, फ्लाई ओवर पर, बिना तकनीकी जाँच के अपरिचित लोगों/वाहनों से प्रधानमंत्री की जरूरी दूरी रख पाने में विफलता एक बड़ी सुरक्षा-प्रबंध चूक थी। जहाँ सुरक्षा सम्बन्धी आशंकाएं हों वहां प्रधानमंत्री को एक पल भी रखने का मतलब नहीं हो सकता। अगले सुरक्षा प्रबंधों में इस पक्ष को मजबूत करना चाहिए। सड़क मार्ग एक ऐसा क्षेत्र है जो हर तरह की संभावनाएं पैदा करता है और हर बार इसका सुरक्षा आकलन नए सिरे से हो।