पूंजीवाद के आगे नतमस्तक सत्ता, अनंत अंबानी के विवाह पूर्व आयोजन के लिए जामनगर एयरपोर्ट 10 दिन के लिए बन गया इंटरनेशनल !

पूंजीवाद अब मदारी है, सत्ता और व्यवस्था जो हुक्म मेरे आका वाली जमूरा बन चुकी है और हरेक संवैधानिक संस्था के साथ मेनस्ट्रीम मीडिया मदारी के इशारे पर उछल-कूद मचाने वाला बन्दर बन चुकी है। आश्चर्य यह है कि इसके बाद भी जनता इस खेल में ताली बजा रही है। अभी इंतज़ार कीजिये, अनंत अम्बानी के तथाकथित पर्यावरण प्रेम से सम्बंधित एक अध्याय शीघ्र ही स्कूलों में पढ़ाया जाने लगेगा....

Update: 2024-03-06 09:47 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

The capitalists are running the government and the country. अमिताभ बच्चन ने किसी फिल्म में कहा था – हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है। दरअसल इस प्रसिद्ध डॉयलॉग में “हम” किसी प्रसिद्धी का प्रतीक नहीं बल्कि ताकत का प्रतीक है। यह ताकत आज के दौर में पूंजीवाद के पास है, जिसके एक इशारे पर सत्ता कुछ भी कर सकती है। अब तक पूंजीपतियों के अपने हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर के बारे में सुना जाता था, पर मोदी राज में तो पूंजीपतियों के इशारे पर हवाई अड्डे का भी आनन-फानन में विस्तार कर दिया जाता है, और वायु सेना के संवेदनशील क्षेत्र में भी सामान्य लोगों की पहुँच हो जाती है।

अनंत अम्बानी और राधिका मर्चेंट के गुजरात के जामनगर में विवाह-पूर्व आयोजन में विशिष्ट अतिथियों के स्वागत के लिए केंद्र सरकार की तरफ से हवाई अड्डों में बदलाव किये गया – देश के इतिहास में संभवतः ऐसा पहली बार किया गया है। राजकोट के हवाई अड्डे को 10 दिनों तक अंतरराष्ट्रीय वायुयानों के संचालन के लिए अस्थाई स्वीकृति प्रदान की गयी। वायु सेना के संवेदनशील तकनीकी क्षेत्र को महमानों के लिए खोल दिया गया। केंद्र सरकार के तीन मंत्रालयों ने इमीग्रेशन, कस्टम्स और क्वारंटाइन सुविधाओं के लिए सभी आवश्यक संसाधन मुहैय्या करवाए। दूसरी तरफ जामनगर के यात्री टर्मिनल के क्षेत्र का विस्तार 475 वर्ग मीटर से बढ़ाकर 900 वर्ग मीटर किया गया, जिससे अम्बानी के मेहमानों को कोई दिक्कत नहीं हो।

क्या अभी भी किसी को यह शंका है कि यह देश पूरी तरीके से पूंजीवाद के चंगुल में है। इस देश के किसान अपने देश की राजधानी तक नहीं पहुँच पाते और दूसरी तरफ पूंजीवाद अपनी आवश्यकतानुसार हवाई अड्डों का भी विस्तार करा लेता है, वायु सेना के क्षेत्र में भी प्रवेश कर जाता है। यह महज संयोग नहीं हो सकता कि आन्दोलनकारी किसानों ने अपने पहले दौर के आन्दोलन के दौरान अडानी, अम्बानी और पूंजीवाद के विरुद्ध आवाज बुलंद की थी। सरकार सभी पर्यावरण कानूनों को निर्जीव करती जा रही है और अनंत अम्बानी देश के एकलौते पर्यावरणविद करार दिए गए हैं।

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पूंजीवाद का दूसरा उदाहरण इस कार्यक्रम में बारबाडोस की पॉप गायिका रिहाना का कार्यक्रम भी था। वर्ष 2021 के शुरू में किसान आन्दोलन से सम्बंधित रिहाना द्वारा किये गए एक ट्वीट की देश में सत्ता स्तर पर जिसमें गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हैं, सत्ता-समर्थक स्तर पर, मुकेश अम्बानी के स्वामित्व वाले टीवी समाचार चैनलों पर और तमाम कलाकारों और खिलाड़ियों के स्तर पर भर्त्सना की गयी। अम्बानी के एक चैनल के एंकर ने रिहाना का नाम बदलकर रेहाना रख दिया था। किसी ने रिहाना को पोर्न स्टार कहा, किसी ने उनके रंग का मजाक उड़ाया, किसी ने उनके पाकिस्तान से सम्बन्ध बताये, किसी ने आतंकवादी संगठनों से रिश्ते बताये तो किसी ने टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य करार दिया। किसी ने देश की संप्रभुता पर हमला बताया तो किसी ने इसे देश को तोड़ने की साजिश बताया।

पूंजीवाद का असर तो देखिये – फिर से किसान आन्दोलन चल रहा है और सरकार उनके साथ आतंकवादियों से भी बुरा व्यवहार कर रही है। सड़क रोकने और सड़क पर कील बिछाने के अलावा भी सरकार उनके सोशल मीडिया अकाउंट ब्लाक करा रही है, इन्टरनेट बंदी कर रही है और सरकारी अमला ऊपर आंसू गैस ही नहीं, बल्कि रबर बुलेट और वास्तविक गोलियां चलवा रहा है। इन सबके बीच वर्ष 2021 में आन्दोलनकारी किसानों के समर्थन में ट्वीट करने वाली रिहाना भारत आती हैं, सबसे बड़े पूंजीपति के कार्यक्रम में शिरकत करती हैं, गाती हैं, कपड़े फटने तक थिरकती हैं, फोटो खिंचवाती हैं और फिर मोटी रकम लेकर वापस चली जाती हैं।

अम्बानी के जिस मीडिया ने उन्हें वर्ष 2021 में आतंकवादी और देश के खिलाफ बगावत करार दिया था, वही मीडिया बता रहा है कि देश की परंपरा के मद्देनजर रिहाना ने नंगे पांव पूरा कार्यक्रम किया।

अमित शाह जिनके ट्वीट के खिलाफ “इंडियाअगेंस्टप्रोपगंडा” और “इंडियायूनाइटेड” हैशटैग के साथ ट्वीट कर रहे थे और बयान दे रहे थे – पूंजीवाद ने उन्हें इसी देश में आदर-सत्कार के साथ ला खड़ा किया। रिहाना के कार्यक्रम में अनेक ऐसी हस्तियाँ भी मौजूद थीं, जिन्होंने रिहाना के ट्वीट के बाद उसके विरोध में ट्वीट किया था।

पूंजीवाद ने देश की सत्ता और व्यवस्था को पूरी तरह अपने अनुरूप ढाल लिया है। पूंजीवाद अब मदारी है, सत्ता और व्यवस्था जो हुक्म मेरे आका वाली जमूरा बन चुकी है और हरेक संवैधानिक संस्था के साथ मेनस्ट्रीम मीडिया मदारी के इशारे पर उछल-कूद मचाने वाला बन्दर बन चुकी है। आश्चर्य यह है कि इसके बाद भी जनता इस खेल में ताली बजा रही है। अभी इंतज़ार कीजिये, अनंत अम्बानी के तथाकथित पर्यावरण प्रेम से सम्बंधित एक अध्याय शीघ्र ही स्कूलों में पढ़ाया जाने लगेगा। अब हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है, के बदले डॉयलॉग् होगा – लाइन हमीं से शुरू होकर हमीं पर ख़त्म होती है।

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