जनता की संपत्ति को प्रधानमंत्री मोदी ने कर दिया है अरबपतियों के हवाले, चौंकाने वाले आंकड़ों ने किया खुलासा
पूंजीवादी व्यवस्था का वर्चस्व बढ़ते ही सबसे पहले पारंपरिक प्रजातंत्र और मानवाधिकार ख़त्म होता है। पूरी दुनिया में ऐसा ही हो रहा है, हमारे देश में भी अडानी-अम्बानी के बढ़ते वर्चस्व के साथ प्रजातंत्र का निरंकुश स्वरूप सामने आ गया है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Mr Prime Minister is afraid of redistribution of assets and economy among poor people. हमारे प्रधानमंत्री जी का विकास आजकल झूठ और जहर में बदल गया है – हरेक भाषण झूठ का पुलिंदा है और जबान जहर हो चली है। आजकल भाषणों में उनका प्रिय काल्पनिक विषय है, विरासत क़ानून और मंगलसूत्र। इस पर लगातार हरेक भाषण में चीखने के बाद हालत यह है कि वही अपनी बातों को काट रहे हैं – कभी बताते हैं कि कांग्रेस विरासत कानून लाने वाली है तो कभी बताते हैं कि पहले यह क़ानून था पर इसे कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ख़त्म किया था। जब एक ही बात वे कुछ दिनों तक लगातार जोर देकर अपने भाषणों में कहते हैं तब यह निश्चित हो जाता है उनकी नीतियों में जरूर कुछ घोटाला है।
दरअसल वर्ष 2014 में सत्ता संभालने के बाद से देश पूंजीपतियों के हवाले कर दिया गया है और सामान्य जनता के संसाधनों को सरकार पूंजीपतियों के हवाले करती जा रही है। देशी-विदेशी हरेक रिपोर्ट यही बताती है कि हमारे देश में आर्थिक असमानता दुनिया के किसी भी देश की तुलना में अधिक है। आर्थिक असमानता का पैमाना यह है कि अब तो मोदी-राज की सरकारी रिपोर्ट भी यही तथ्य कहती है।
प्रधानमंत्री ने लगातार विरासत टैक्स और संपत्ति का पुनर्वितरण दुहराकर हमारे पत्रकारों और आर्थिक और सामाजिक विशेषज्ञों को एक गंभीर बहस और अध्ययन का मुद्दा दिया है, पर इस दौर में किसी गंभीर बहस की बात सोचना ही बेमानी है। हरेक पत्रकार और विशेषज्ञ प्रधानमंत्री और आरएसएस के विचारधारा को आगे बढाने में व्यस्त है। प्रधानमंत्री जी बार-बार पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के वर्ष 2006 में दिए गए वक्तव्य के बारे में अनर्गल प्रलाप करते हैं, पर शायद ही किसी पत्रकार ने क्रॉस-चेक के लिए ही सही मौलिक वक्तव्य को देखा हो। बहस यह होनी चाहिए कि संसाधनों पर पहल अधिकार किसका होना चाहिए – समाज के सबसे पिछड़े वर्ग का या फिर पूंजीपतियों का। प्रधानमंत्री के अनर्गल प्रलापों के बाद पूंजीवाद बनाम समाजवाद पर चर्चा होनी चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मानव विकास इंडेक्स 2023-2024 के अनुसार प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आमदनी वैश्विक स्तर पर औसतन 17254 डॉलर है, विकासशील देशों का औसत 11125 डॉलर है, दक्षिण एशिया में 6972 डॉलर है, पर भारत में यह आंकड़ा महज 6951 डॉलर ही है। दूसरी तरफ अरबपतियों के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है और इनकी संपत्ति साल-दर-साल बेतहाशा बढ़ती जा रही है।
इस दौर में भी संपत्ति का पुनर्वितरण हो रहा है, पर लाभार्थी अडानी-अम्बानी जैसे अरबपति है। जनवरी 2024 में केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय ने देश की अर्थव्यवस्था का आकलन कर बताया था कि हमारी मौजूदा अर्थव्यवस्था 3.7 ख़रब डॉलर की है। फोर्ब्स द्वारा प्रकाशित 38वीं एनुअल वर्ल्डस बिलियोनायर्स लिस्ट: फैक्ट्स एंड फिगर्स, के अनुसार वर्ष 2024 में सबसे अधिक, 813 अरबपति अमेरिका में हैं, इनकी सम्मिलित संपत्ति 5.7 खरब डॉलर की है।
दूसरे स्थान पर 473 अरबपतियों के साथ चीन है, जिनकी सम्मिलित संपत्ति 1.7 खरब डॉलर है। तीसरे स्थान पर 200 अरबपतियों के साथ भारत है, जिनकी कुल सम्पदा 954 अरब डॉलर है। जाहिर है, 140 करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश की कुल 3.7 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था में से महज 200 अरबपतियों के हिस्से में 0.95 खरब डॉलर हैं, यानी लगभग 26 प्रतिशत। वर्ष 2023 की तुलना में भारत के अरबपतियों की सम्मिलित सम्पदा में 41 प्रतिशत का उछाल आया है, वर्ष 2023 में यह 675 अरब डॉलर थी।
वर्ष 2025 के लिए यदि देश के सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है तो देश की अर्थव्यवस्था 4 खरब डॉलर की होगी और अरबपतियों की संपत्ति में 40 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी का अनुमान लगाए तो इनकी हिस्सेदारी 1.33 खरब तक पहुँच जायेगी। जाहिर है, अगले वर्ष इन गिने-चुने अरबपतियों की भागीदारी देश की कुल अर्थव्यवस्था में 26 प्रतिशत से बढ़कर 33 प्रतिशत पहुँच जायेगी। जाहिर है, इसीलिए प्रधानमंत्री जी कांग्रेस पार्टी के नाम पर संपत्ति के बंटवारे के नाम पर दुष्प्रचार में लगे हैं, जिससे देश की आर्थिक असमानता पर किसी का ध्यान न जाए।
मानवाधिकार संस्था 'ग्लोबल जस्टिस नाउ' की डेज़ी पेअरसन के अनुसार अरबपतियों की बढ़ती संख्या के साथ ही पूरी दुनिया में बढ़ती गरीबी से यह स्पष्ट है कि यह असमानता अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण और संपत्ति और सम्पदा पर अमीरों के एकाधिकार से ही बढ़ रही है। मानवाधिकार से जुडी दूसरी संस्था 'हाई पे सेंटर' के अध्यक्ष ल्युक हिल्द्यार्ड के अनुसार फोर्ब्स की सूचि केवल यह नहीं बताती है कि दुनिया में कितने अरबपति हैं और उनकी संपत्ति कितनी है, बल्कि यह भी बताती है कि पूरी दुनिया में किस कदर आबादी को लूटा जा रहा है और संसाधनों पर कब्जा किया जा रहा है।
आर्थिक असमानता तो अब सरकार द्वारा बड़े तामझाम से प्रकाशित रिपोर्ट से भी जाहिर होता है। भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की एक रिपोर्ट, पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-2023, के अनुसार देश का ग्रामीण व्यक्ति हरेक महीने औसतन 3773 रुपये खर्च करता है, जबकि शहरी व्यक्ति औसतन 6459 रुपये खर्च करता है। यहाँ तक तो सब सामान्य दिखता है, पर जब बारीकी से रिपोर्ट को पढेंगें तब यह स्पष्ट होता है कि इस औसत तक देश की 60 प्रतिशत से अधिक जनता नहीं पहुँचती है। रिपोर्ट से दूसरा तथ्य यह उभरता है कि देश की सबसे गरीब 50 प्रतिशत जनता जितना सम्मिलित तौर पर हरेक महीने खर्च कर पाती है, लगभग उतना खर्च देश की सबसे अमीर 5 प्रतिशत आबादी कर लेती है।
पूंजीवाद किस तरह से आर्थिक असमानता और अरबपतियों की बेतहाशा बढ़ती संपत्ति से खुश होता है, इसका उदाहरण हाल में ही अमेरिका के सबसे बड़े बैंक, जेपी मॉर्गन चेज, के अध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री जी की आर्थिक नीतियों की प्रशंसा के तौर पर देखने को मिला। इसके अध्यक्ष जामें डाईमन अनेक वर्षों से इस बैंक के अध्यक्ष हैं और स्वयं एक अरबपति हैं। जाहिर है, उनके हरेक विचार कट्टर पूंजीवाद की झलक देते हैं।
स्वयं अरबपति रहे और कट्टर पूंजीपतियों का प्रतिनिधित्व करते जामें डाईमन के हरेक वक्तव्य को पूंजीपतियों की सोच से जोड़ कर देखा जा सकता है। पूंजीवादी व्यवस्था निरंकुश होती है, जिसमें सारे अधिकार चन्द व्यक्तियों के हाथ में केन्द्रित होते हैं और शेष उसके गुलाम होते हैं। इसीलिए पूंजीवादी व्यवस्था का वर्चस्व बढ़ते ही सबसे पहले पारंपरिक प्रजातंत्र और मानवाधिकार ख़त्म होता है। पूरी दुनिया में ऐसा ही हो रहा है।
हमारे देश में भी अडानी-अम्बानी के बढ़ते वर्चस्व के साथ प्रजातंत्र का निरंकुश स्वरूप सामने आ गया है। पारंपरिक प्रजातंत्र का एक मजबूत स्तम्भ समाजवाद है, जिसमें सबको बराबर अधिकार और संपदा पर अधिकार की बात की जाती है। यह समाजवाद और पूंजीवाद एक दूसरे के ठीक विपरीत ध्रुव हैं और स्वस्थ्य समाजवाद में पूंजीवाद की जगह नहीं होती।
अध्यक्ष जामें डाईमन समाजवाद पर करारा प्रहार करते रहे हैं। उनके अनुसार समाजवाद विकास में अवरोध, भ्रष्टाचार और दूसरे सामाजिक और आर्थिक बुराइयों का सबसे बड़ा कारण है और यह किसी भी समाज के लिए एक आपदा से कम नहीं है। उन्होंने आगे कहा था कि इन दिनों एक नई वामपंथी विचारधारा देखने को मिल रही है, जिसे प्रजातांत्रिक समाजवाद कहा जा सकता है, इसे बढ़ावा देना समाज के लिए घातक है। इसमें बड़े व्यवसाय को अनेक छोटे हिस्सों में विभाजित करने और बैंकिंग क्षेत्र पर पहले से अधिक नियंत्रण की बातें कही जा रही हैं – यदि ऐसा हुआ तो अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जायेगी।
जब सरकारें उद्योगों और व्यवसायों को नियंत्रित करने लगती हैं, तब कुछ समय बाद अर्थव्यवस्था का उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाने लगता है। इससे बाजार और कम्पनियां अक्षम हो जाती हैं, भ्रष्टाचार और पक्षपात बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि पूंजीवाद में भले ही कुछ कमियाँ हों पर दुनिया के लिए यही अर्थव्यवस्था का सर्वश्रेष्ठ स्वरुप है। अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी वर्ष 2020 में चुनाव प्रचारों में कहा था कि वे अमेरिका को कभी भी समाजवादी देश नहीं बनने देंगे।
नरेंद्र मोदी, डोनाल्ड ट्रम्प और जामें डाईमन - सभी कट्टर और चरम पूंजीवाद का प्रतीक हैं, जाहिर है समाजवाद से उन्हें चिढ़ है। समाजवादियों की प्रबल आलोचना हमारे देश में भी अर्बन नक्सल, टुकड़े-टुकड़े गैंग, देशद्रोही, पाकिस्तान समर्थक के उपनामों से की जाती है। समाजवाद की मुखर आलोचना का सीधा मतलब है प्रजातंत्र और मावाधिकार का विरोध – यही आज पूरी दुनिया में हो रहा है, जहां पूंजीपति अपना मुनाफ़ा बढ़ा रहे हैं और जनता और गरीब हो रही है। पूंजीवाद आर्थिक असमानता की खबरों को दबाकर जनता को एक सुनहरा भविष्य दिखाता है और फिर मानवाधिकार, समानता और पारंपरिक विचारधारा छीन लेता है। यही हमारे देश में हो रहा है जिसमें प्रधानमंत्री जी भी शामिल ही नहीं, बल्कि पूंजीवादी-नायक और प्रवक्ता के तौर पर काम कर रहे हैं।
सन्दर्भ:
1. Human Development Report 2023/2024, United Nation’s Development Programme (2024)
2. Household Consumption Expenditure Survey 2022-2023 – Fact Sheet, Ministry of Statistics & Programme Implementation, Government of India (2024)
3. Forbes 38th Annual World’s Billionaires List: Facts & Figures - https://www.forbes.com/sites/chasewithorn/2024/04/02/forbes-38th-annual-worlds-billionaires-list-facts-and-figures-2024/?sh=8888f7443a60