Chutka Nuclear Power Plant : बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की भागीदारी 2 फीसदी भी नहीं, चुटका परमाणु परियोजना पर उठने लगे सवाल
Chutka Nuclear Power Plant : भारत सरकार द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2022 तक 1 लाख 75 हजार मेगावाट से बढाकर 2030 तक 4 लाख 50 हजार मेगावाट करने का लक्ष्य रखा गया है।
चुटका परियोजना पर राज कुमार सिन्हा का विश्लेषण
Chutka Nuclear Power Plant : भारत में मांग के हिसाब से बिजजी की आपूर्ति कम है। इस कमी को दूर करने और भविष्य की अतिरिक्त जरूरतों को पूरा करने के लिए अलग-अलग परियोजनाओं पर काम जारी है। जिन परियोजनाओं पर काम जारी है उनमें मुख्य रूप से नवीकरणीय और परमाुण ऊर्जा संयत्र पर आधारित परियोजनाएं प्रमुख हैं। परमाणु ऊर्जा पर आधारित उत्पादित बिजली महंगी और मानव स्वास्थ्य के लिए ज्यादा खतरनाक है, इसलिए उसे बेहतर व विवेकपूर्ण विकल्प नहीं माना जा सकता।
वर्ष 2020 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में स्थापित बिजली क्षमता 3 लाख 71 हजार 054 मेगावाट थी। इसमें नवीकरणीय (पवन और सौर) ऊर्जा की हिस्सेदारी 87 हजार 699 मेगावाट अर्थात कुल विद्युत उत्पादन की 23.60 प्रतिशत है, परंतु 1964 से शुरू हुए परमाणु ऊर्जा संयत्र से अब तक मात्र 6,780 मेगावाट ही स्थापित क्षमता विकसित हो पायी है, अर्थात कुल बिजली उत्पादन का 1.80 प्रतिशत। भारत सरकार द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2022 तक 1 लाख 75 हजार मेगावाट से बढ़ाकर 2030 तक 4 लाख 50 हजार मेगावाट करने का लक्ष्य रखा गया है।
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में 22 हजार 500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता है, जबकि अधिकतम बिजली डिमांड 12 हजार 680 मेगावाट है। मध्य प्रदेश में इस समय नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन 4,537 मेगावाट है, जबकि 5000 मेगावाट की 6 सौर परियोजनाओं पर कार्य जारी है।
16 हजार 500 करोड़ रुपए की चुटका परमाणु बिजली परियोजना (Chutka nuclear power project) से 1 मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत लगभग 12 करोड़ रुपए आएगी, जबकि सौर ऊर्जा से 1 मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत लगभग 4 करोड़ रुपए आएगी। सौर ऊर्जा संयंत्र 2 वर्ष के अंदर उत्पादन शुरू कर देगा, वहीं परमाणु बिजलीघर बनने में 10 वर्ष लगेंगे।
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन दिल्ली की एक रिपोर्ट के अनुसार परमाणु बिजली की लागत 9 से 12 रुपए प्रति यूनिट आयेगी। 40 वर्ष तक चलने वाली परमाणु संयंत्र की डी कमिशनिंग (बंद करना) आवश्यक होगी, जिसका खर्च स्थापना खर्च के बराबर होगा। अगर इस खर्च को भी जोङा जाएगा तो बिजली उत्पादन की लागत लगभग 20 रुपए प्रति यूनिट आएगी।
वहीं मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में रीवा की 750 मेगावाट सौर विद्युत 2.97 रुपए प्रति यूनिट की दर से बेची जा रही है। बिजली उत्पादन के स्थान से उपभोक्ताओ तक बिजली पहुंचाने में 30 प्रतिशत बिजली बर्बाद होती है। जितना पैसा और ध्यान परमाणु बिजली कार्यक्रम पर लगाया जा रहा है, उसका आधा पैसा पारेषण-वितरण में होने वाली बर्बादी को कम करने पर लगाया जाए तो यह बिजली उत्पादन बढ़ाने जैसा ही होगा।
परमाणु उर्जा संयंत्रों के इतिहास की तीन भीषण दुर्घटनाओं थ्री माइल आइस लैंड (अमेरिका), चेर्नोबिल (यूक्रेन) और फुकुशिमा (जापान) ने बार-बार हमें यह चेताया है कि यह एक ऐसी तकनीक है, जिस पर इंसानी नियंत्रण नहीं है।
फुकुशिमा में आसपास के 20 किलोमीटर दायरे में 3 करोड़ टन रेडियोएक्टिव कचरा जमा है। इस कचरा को हटाने में जापान सरकार ने 94 हजार करोड़ खर्च कर चुकी है। विकिरण को पूरी तरह साफ करने में 30 साल लगेंगे।
परमाणु उर्जा स्वच्छ नहीं है। इसके विकिरण के खतरे सर्वविदित है। वहीं परमाणु संयंत्र से निकलने वाली रेडियोधर्मी कचरे का निस्तारण करने की सुरक्षित विधि विज्ञान के पास भी नहीं है। ऐसी दशा में 2.4 लाख वर्ष तक रेडियोधर्मी कचरा जैव विविधता को नुकसान पहुंचाता रहेगा। अध्ययन में यह बात भी सामने आयी है कि परियोजना के आसपास निवास करने वाले लोगों के बीच विकलांगता, कैंसर और महिलाओं में गर्भपात एवं बांझपन की मात्रा बढ़ जाती है, इसलिए अमेरिका और ज्यादातर पश्चिम यूरोप के देशों में पिछले 35 वर्षो में रिएक्टर नहीं लगाए गए हैं। दरअसल, परमाणु बिजली उद्योग में जबरदस्त मंदी है। अमेरिका, फ्रांस और रूस आदि की कंपनियां भारत में इसके ठेके और आर्डर पाने के लिए बेचैन हैं।
चुटका परियोजना (Chutka nuclear power project) के लिए 54.46 हेक्टेयर आरक्षित वन तथा 65 हेक्टेयर राजस्व वन कुल 119.460 हेक्टेयर जंगल खत्म होगा, जबकि बरगी बांध में पहले ही लगभग 8500 हेक्टेयर घना जंगल डूब चुका है, जिससे इस क्षेत्र का पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ेगा।
बरगी बांध से 4.37 लाख हेक्टेयर सिंचाई होनी प्रस्तावित है, परंतु 30 साल बाद अभी मात्र 70 हजार हेक्टेयर में ही सिंचाई हो पा रही है, जबकि वर्तमान में झाबुआ पावर प्लांट को बरगी जलाशय से 230 लाख घनमीटर पानी प्रतिवर्ष दिया जा रहा है। चुटका परियोजना के लिए भी 788.4 लाख घनमीटर पानी प्रतिवर्ष दिया जाना प्रस्तावित है, जिससे सिंचाई व्यवस्था पर विपरीत असर पड़ेगा चुटका संयंत्र से बाहर निकलने वाली पानी का तापमान समुद्र के तापमान से लगभग 5 डिग्री अधिक होगा, जो जलाशय में मौजूद जीव-जन्तुओं का खात्मा कर सकती है।
परमाणु संयंत्र (Chutka nuclear power project) से भारी मात्रा में गर्मी लगभग (3400 डिग्री सेंटीग्रेड ) पैदा होगी, जिसे ठंडा करने में भारी मात्रा में पानी का इस्तेमाल होगा जो काफी मात्रा में भाप बनकर खत्म हो जाएगा और जो पानी बचेगा वो विकिरणयुक्त होकर नर्मदा नदी को प्रदूषित करेगा। विकिरण युक्त इस जल का दुष्प्रभाव जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, बड़वानी सहित नदी किनारे बसे अनेक शहर और ग्रामवासियों पर पड़ेगा। ऐसा इसलिए कि वहां की जलापूर्ति नर्मदा नदी से होती है।
चुटका (Chutka nuclear power project) के आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा कारणों से बरगी जलाशय में मत्स्याखेट तथा डूब से खुलने वाली भूमि पर खेती प्रतिबंधित कर दी जायेगी, जिससे हजारों मछुआरे तथा किसान परिवारों की आजीवका खत्म हो जाएगी। बरगी जलाशय से खुलने वाली 260 हेक्टेयर भूमि को चुटका परियोजना को देने का निर्णय मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल ने 13 जुलाई, 2017 को ले लिया है, जबकि इस डूब की जमीन पर विस्थापित परिवार खेती करते हैं।
आपदा प्रबंधन संस्थान भोपाल की एक रिपोर्ट के अनुसार मंडला जिले की टिकरिया (नारायणगंज) भूकंप संवेदी क्षेत्रों की सूची में दर्शायी गयी है। वर्ष 1997 में नर्मदा किनारे के इस क्षेत्र में 6.4 रेक्टर स्केल का विनाशकारी भूकंप आ चुका है।
बरगी जलग्रहण क्षेत्र में भारी मात्रा में मिट्टी (गाद) से जलाशय भर रहा है। बांध की अनुमानित उम्र 100 वर्ष मानी जाती ह, परंतु गाद भराव के कारण 30 वर्ष कम होने का अनुमान है, जबकि नर्मदा में पानी की मात्रा लगातार घट रहा है। प्रश्न यह है कि अधिकतर समुद्र किनारे लगने वाली परियोजना को नदी किनारे लगाने की जल्दबाजी प्रदेश को गहरे संकट में तो नहीं डाल देगी? प्रदेश में दूसरा भोपाल गैस कांड की पुनरावृत्ति तो नहीं होगी?
(राज कुमार सिन्हा, बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ, (मंडला, सिवनी, जबलपुर) आंदोलन से जुड़े हैं।)
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