Rambhakt Rangbaaz Book Review : रामभक्त रंगबाज- हंसी और गम का पन्ने दर पन्ने चलता सफरनामा है यह उपन्यास
Rambhakt Rangbaaz Book Review: रामभक्त रंगबाज (Rambhakt Rangbaaz) पढ़कर खत्म करने के बाद सबसे पहले जो स्थिति हुई वह तमाम मिनटों तक कुछ कुछ उस जैसी रही जब मैंने राजेन्द्र यादव का 'सारा आकाश' पढ़ी थी।
पुस्तक समीक्षा : मनीष दुबे
Rambhakt Rangbaaz Book Review: रामभक्त रंगबाज (Rambhakt Rangbaaz) पढ़कर खत्म करने के बाद सबसे पहले जो स्थिति हुई वह तमाम मिनटों तक कुछ कुछ उस जैसी रही जब मैंने राजेन्द्र यादव का 'सारा आकाश' पढ़ी थी। तमाम मिनट तक ये लगा कि इसके लिए मैं क्या लिख सकता हूँ। एक ऐसा कथानक जिसको पढ़ते हुए आप पहली लाइन में दिल से मुस्कुराते हैं लेकिन अगली ही लाइन आपको गमजदा कर देने का माद्दा रखती है।
उपन्यास की शैली में लिखा गया एक बेजोड़ कथानक जिसका हर एक किरदार आपको पन्ने दर पन्ने बांधता चला जाता है। रामभक्त रंगबाज दरअसल एक मुस्लिम कैरेक्टर को केंद्र में रखकर लिखी गई है जिसके हर एक किरदार के साथ लेखक ने बखूबी न्याय किया है। आरामगंज के चौक पर टू इन वन टेलरिंग की दुकान चलाने वाले मुस्लिम किरदार आशिक की यह कहानी पाठकों को अंदर तक झकझोर कर रख देने वाली है। और किताब के खत्म होने के बाद मेरा दावा है कि पाठक बहुत देर तक इसे भूल नहीं सकता।
इस किताब का एक मजबूत पक्ष यह भी है कि पाठकों को इसमें वे सभी शब्द पढ़ने को मिलते हैं जो अब के कल्चर में बीत चुके हैं। जैसे बजाज चेतक, एलएमएल वेस्पा, दर्जी, यामाहा सरीखे तमाम शब्द हैं जो कहानियों को रोचकता प्रदान करते हैं।
इसके अलावा पूरा उपन्यास कुल 23 सब हैडिंगों के साथ पेश किया गया है। बशर्ते सभी भाग एक दूसरे से उसी तरह जुड़ाव रखते हैं जैसे किसी एक सीरियल का के अलग अलग एपिसोड। साथ ही साथ कहानी पॉलिटिकल चोट भी करती है जैसे, 'हफ्ते भर पहले सोमनाथ से रवाना हुआ रामरथ देश को दो हिस्सों में बांटता हुआ आगे बढ़ रहा है।'
किस्से का मार्मिक पहलू इस बात से झलकता है जिसमें उपन्यास के नायक के लिए लिखा गया है कि, 'यह रामजी की कैसी माया है कि आशिक दस दिन में दो बार अनाथ हुआ है।' आपको यह उपन्यास पढ़कर हंसी भी तमाम जगह आएगी जहां, गैर बिरादरी में शादी कर लेने वाले एक जोड़े का जिक्र आता है जिसके लिए लिखा गया है कि 'सत्यनारायण का प्रसाद लेने आई युवा पीढ़ी इस लेजेंडरी कपल को हसरत भरी निगाहों से देख रही है। उनके कानों में प्यार झुकता नहीं के गाने गूँज रहे हैं।'
उपन्यास का 'दंगाई बकरा' पाठक यकीनन दो मर्तबा पढ़ेंगे। इसकी कहानी में बकरे के गले में बंधी घंटी बहुत बड़ी मुसीबत लेकर आती है। मुहल्ले के लोग भागते बकरे की बजती घण्टी से समझते हैं कि कहीं आग लगने की बड़ी घटना हो गई है और अब फायर बिग्रेड की गाड़ी आ पहुंची है, जिसके चलते लोग पुलिस बुला लेते हैं और फिर जो होता है वह गुदगुदाता है।
जात-पात पर भी लेखक ने अच्छा-खासा व्यंग रचा है। एक जगह अपने झंझावतों में फंसा कहानी का मुख्य किरदार रंगबाज आशिक जिसकी बेटी बुखार में तप रही है और उसकी पत्नी से हुई कहासुनी के बाद वह घर से निकल जाता है। रास्ते मे एक जगह बैठकर वह अपनी जान देने की भी सोचता है। फिर हंसकर टाल देता है। लेकिन उससे पहले उसके मन मे जो विचार आते है वह ऐसे थे कि, 'छोटी वाली काली चींटी हिन्दू होती है, बदन पर चढ़ जाए तो हल्की हल्की गुदगुदी होती है। और लाल चींटी मुसलमान होती है, सिर्फ हिंदुओं को काटती है, मुसलमानों को नहीं। पांडेय बाबा की पाठशाला में यह रहस्य पवन ने आशिक को बताया था।
इस कहानी का सबसे मार्मिक पल तब आता है जब इस कहानी के नायक यानी रामभक्त रंगबाज आशिक की एक हादसे में मौत हो जाती है। यहां लिखा गया है कि 'चौक का रंगबाज अपनी तमाम ग़द्दारियों का प्रायश्चित कर चुका रैयत टोली का मिसिर कब्र पर लेट गया। टू इन वन टेलर के पास पहुंचा तो मनोज ने गौर किया कि शटर पर बने अनिल कपूर के चेहरे पर उदासी है।'
यहीं एक प्रसंग यह भी की, 'नन्हें आशिक की कल्पना में चौक से होते हुए जिन घने जंगलों में रामजी गए थे, उसी जंगल में रामभक्त रंगबाज अपनी पूरी ठसक के साथ सो गया। कहानी की आखिर में आशिक का लड़का शमी 30 बरस बाद लौटकर रैयत टोले में आता है जिसका जिक्र भी बेहद मार्मिक अंदाज में किया गया है। लड़के का ख्याल आशिक से भी चार कदम आगे है। वह सोचता है, 'यहां बेहया बनकर रहिए...मार खाते जाइये और मूंछों पर ताव देते जाइये। मजा रो तब है जब जल्लाद के पैरों तले आकर भी अकड़ बनी रहे।'
उपन्यास के लेखक राकेश कायस्थ को मैंने पहली दफा हंस पत्रिका में पढ़ा था। जिसमें उनकी कहानी 'डर लागे अपनी उमरिया से' पढ़ी थी। तब वह आज तक में थे। 2007 की हंस का वह एडिशन था। उसके बाद उनने 'कोस कोस शब्दकोष' 'प्रजातंत्र के पकौड़े' जैसी तमाम रचनाएं पाठकों को दी। आसान भाषा मे बड़ी से बड़ी कहानी और बात कह सकने की कला में राकेश कायस्थ को महारत हासिल है।
रामभक्त रंगबाज में कुछ ऐसे भी शब्द हैं जो साहित्य की नजर में प्रतिबंधित कहे जा सकते हैं। लेकिन इन प्रतिबंधित शब्दों को कहानियों में इस कदर पिरोया गया है जिन्हें कहानी की जान या यूं कहें कि माला में धागे के समान नजर आते हैं। जिसलिये यह कहानी को पढ़ते वक्त बिल्कुल भी अखरते नहीं हैं। कुल मिलाकर एक बेहद अप्रतिम और शानदार कलमकारी की गई है..लेखक की तरफ से। यह पुस्तक हिंदी साहित्य में एक बड़ा मुकाम हासिल कर पाने की क्षमता रखती है। और हां अली, बजरंगबली और स्पाइडरमैन में आज के समय जो अधिक शक्तिशाली है वह स्पाइडरमैन ही है।
पुस्तकः रामभक्त रंगबाज
लेखकः राकेश कायस्थ
विधाः उपन्यास
भाषाः हिंदी
प्रकाशकः हिन्द युग्म
मूल्य: 199 रुपए
पृष्ठ संख्याः 240