Rashtriya Swayamsevak Sangh News: आरएसएस की नई हाईटेक साजिश, जिससे पीढ़ियां होंगी बर्बाद

Rashtriya Swayamsevak Sangh News: कोई भी समाज और मुल्क कैसे आगे बढ़ेगा, इसका जवाब उस दर्शन से मिलता है, जिसमें वह विश्वास करता है। भारतीय समाज के संदर्भ में हम यदि कहना चाहें तो पारलौकिकता ही भारतीय दर्शन का मूल सिद्धांत है।

Update: 2022-02-14 07:40 GMT

Rashtriya Swayamsevak Sangh News: आरएसएस की नई हाईटेक साजिश, जिससे पीढ़ियां होंगी बर्बाद

नवल किशोर कुमार की टिप्पणी

Rashtriya Swayamsevak Sangh News: कोई भी समाज और मुल्क कैसे आगे बढ़ेगा, इसका जवाब उस दर्शन से मिलता है, जिसमें वह विश्वास करता है। भारतीय समाज के संदर्भ में हम यदि कहना चाहें तो पारलौकिकता ही भारतीय दर्शन का मूल सिद्धांत है। अब इस सिद्धांत का आलम यह है कि देश में पढ़े-लिखे लोग भी अपनी मेहनत से मिली सफलता को ईश्वर के नाम कर देते हैं। वे यह मानते हैं कि उन्होंने जो कुछ हासिल किया या फिर जो कुछ हासिल नहीं कर सके, उसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है। हर हाल में ईश्वर ही कर्ता है। सिर्फ इस एक मान्यता ने भारतीय समाज का बेड़ा गर्क कर दिया है।

मजे की बात यह कि सिर्फ इस एक सिद्धांत को स्थापित करने के लिए तथाकथित भारतीय दर्शन के नाम पर असंख्य बकवास बातें कही गई हैं। एक तो गीता का तथाकथित ज्ञान है, जो मनुष्यों से कहता है कि वह केवल कर्म करे और फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ दे। ऐसे ही राम जिसे आरएसएस अपना आराध्य मानता है और जो पुष्यमित्र शुंग का साहित्यिक चित्रण है, का जन्म भी अजीबोगरीब तरीके से बताया गया है। मतलब यह कि दशरथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता नहीं रखता था और इसके लिए वशिष्ठ के कहने पर उसने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। फिर उस यज्ञ में कोई अग्नि नामक देवता खीर लेकर प्रकट हुआ, जिसे खाकर कौशल्या और दो अन्य सौतनें गर्भवती हुईं।

तो कहने का मतलब यह कि ऐसी ही अश्लील बातों से अटा पड़ा है भारतीय दर्शन। आज इसी अदर्शन की बातें इसलिए कि ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) ने वेदों के लिए सर्च इंजन बनाए जाने के प्रस्ताव को सहमति दी है। नवंबर, 1945 को गठित एआईसीटीई तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारतीय जनमानस को दिया गया वह शानदार तोहफा था, जिसका मकसद भारत में वैज्ञानिक अध्ययनों को बढ़ावा देना था। आजादी के बाद एआईसीटीई के नाम अनेक उपलब्धियां हैं। यहां तक कि अंतरिक्ष विज्ञान से लेकर विनिर्माण विज्ञान व सूचना क्रांति तक में एआईसीटीई की अहम भूमिका रही है।

लेकिन मौजूदा शासक आरएसएस ने एआईसीटीई को गाय और गोबर का केंद्र बनाकर रख दिया है। एआईसीटीई से मिली जानकारी के अनुसार अब उसने एक ऐसे सर्च इंजन के निर्माण को सहमति दी है, जो कि इंटरनेट पर वेदों के बारे में समस्त जानकारियां लोगों को उपलब्ध कराएगा। इसके लिए आईआईटी के विभिन्न परिसरों को जवादेहियां दी गई हैं। अब सवाल यह है कि वेद, जो कि पूरी तरह से अमान्य साबित हो चुके हैं और बहुसंख्यक बहुजनों द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर खारिज किये जा चुके हैं, को फिर से मान्यता दिलाने के लिए विज्ञान उपयोग क्यों किया जा रहा है?

इसका जवाब बेहद आसान है। दरअसल, आरएसएस अब अतीत को बर्बाद करने के बाद भविष्य को तबाह कर देना चाहता है। वह चाहता है कि उनका वर्चस्व, जिसकी स्थापना के लिए वेदों और पुराणों की रचना उसके शातिर पूर्वजों ने की, उसके लपेटे में आनेवाली पीढ़ियों को भी लाया जाय।

अब यह कहने का कोई मतलब नहीं है कि वेदों में किस तरह का गोबर है। उपर से तर्क यह दिया जा रहा है कि वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं और इसे जबरदस्ती सार्वभौमिक सत्य करार दिया जा रहा है। जबकि वेद संस्कृत भाषा का शब्द है और ब्राह्मण इसका संबंध 'विद ' धातु से बताते हैं, जिसका अर्थ है जानना, अथवा ज्ञान। यह वही तथाकथित ज्ञान है जिसे सुन लेने के आरोप में शूद्रों के कानों में गर्म शीशा डाला जा सकता था और डालनेवाले को कोई सजा तो छोड़िए उसके उपर पुष्प वर्षा की जाती।

ब्राह्मण बताते हैं कि उनके चार वेद हैं– ऋृग, यजुर, साम और अथर्व। इनमें ऋृग के बारे में उनका दावा है कि यह सबसे प्राचीन वेद है। कुछ ब्राह्मणों के अनुसार वेद असल में तीन ही हैं, इसीलिए इन्हें त्रयी भी कहा गया है। चौथा वेद 'अथर्व' इस श्रृंखला में बाद में जोड़ा गया है। वेदों को श्रुति कहा गया है। श्रुति का अर्थ है इसे सुना गया है। किससे सुना गया? क्या इसको सुनानेवाला कोई मां की गर्भ के बजाय सीधे आसमान से उतरा था।

इतिहास कहता है कि वेदों का ग्रंथन और परिमार्जन ग्यारहवीं सदी के बाद हुआ। अब इस बात पर विचार करें तो हम एक अनुमान लगा सकते हैं कि वेद कहीं तुर्कों के आने के बाद इस्लामधर्मावलंबियों के लिए पवित्र कुरान की नकल हो, क्योंकि कुरान ऐसी ही अपौरुषेयता का दावा करता है, जिसमें ईश्वर के सन्देश सुनानेवाला आसमानी है। वेदों का पाठ रूप ऐसा है कि बाहर से सुनी गयी किसी बात का बोध होता नहीं दीखता। बल्कि बार-बार ऋषि ही देवताओं को सम्बोधित करता है। इसलिए इसकी अपौरुषेयता थोपी गयी प्रतीत होती है।

बहरहाल, एआईसीटीई तो महज एक उदाहरण है। मेरा तो मानना है कि आरएसएस ने अभी गोबर संस्कृति फैलाने का आगाज ही किया है। अभी तो उसे हर विश्वविद्यालय को गुरुकुल बनाना है, जहां आनेवाली पीढ़ी को गाय का गोबर खाने और उसका मूत्र पीने का ज्ञान दिया जाएगा। और यह सब केवल उनके लिए किया जाएगा जो दलित और पिछड़े वर्ग के रहेंगे। ब्राह्मणों के बच्चे पहले भी उत्कृष्ट शिक्षा पाते रहे थे और भविष्य में भी पाते रहेंगे। उनके लिए उत्कृष्ट निजी विश्वविद्यालय रोज-ब-रोज खोले जा रहे हैं।

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