पुतिन पर लगे अपने कट्टर विरोधी एलेक्सी नवलनी को जहर देने के आरोप को ट्रंप ने दी क्लीनचिट
ट्रम्प किसी भी तरह से पुतिन के विरोध में खड़े होने का जोखिम नहीं ले सकते, क्योंकि आज वो जिस कुर्सी की धौंस जमा रहे हैं वह पुतिन की सहायता से ही उन्हें मिली है
महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
कुछ दशक पहले तक दुनिया के अधिकतर देश किसी भी देश में तानाशाही और बर्बरता का विरोध करते थे, संयुक्त राष्ट्र भी भर्त्सना करता था और उस देश पर तमाम प्रतिबन्ध लगाए जाते थे। पर, अब समय बदल चुका है और बर्बरता, तानाशाही, निरंकुशता जैसे गुण लोकतंत्र का हिस्सा बन गए हैं।
अब तो लोकतंत्र में सरकारों का दौर भी ख़त्म हो गया और व्यक्तिवाद ही लोकतंत्र कहलाने लगा है। हमारे देश में भी सरकार जैसी कोई बात नहीं है, जो कुछ हैं बस प्रधानमंत्री हैं। यही हाल अमेरिका का है – ट्रम्प अपने आप को अमेरिका से भी बड़ा समझने लगे हैं। ऐसे सभी शासक देश को देश नहीं, बल्कि जपनी जागीर समझते हैं और उस जागीर पर कबीले के निरंकुश सरदार की तरह शासन करते हैं।
रूस में दशकों से ऐसा ही शासन रहा है, जाहिर है नए लोकतंत्र की आड़ में पनपे निरंकुश शासकों को इस समय रूस के बर्बर और तानाशाह शासक व्लादिमीर पुतिन अचानक पथ-प्रदर्शक के स्वरुप में नजर आने लगे हैं। भारत-चीन विवाद के बीच में देश के रक्षामंत्री दूसरी बार रूस की यात्रा पर हैं। रक्षा मंत्री ने चीन के रक्षामंत्री से वार्ता भी रूस में ही की।
अभी लगभग दो सप्ताह पहले ही पुतिन पर अपने प्रबल विरोधी एलेक्सी नवलनी को जहर देकर मारने के प्रयास का आरोप लगा है। अलेक्सी को किसी तरह रूस से बाहर जर्मनी ले जाया गया, जहां उनका इलाज करने वाले डोक्टरों के अनुसार उन्हें तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाला रसायन नोवीचोक दिया गया था। अलेक्सी अभी तक कोमा में हैं।
इस खुलासे के बाद नाटो ने इसे भयानक बताते हुए पुतिन की कड़ी आलोचना की है। नाटो के प्रतिनिधि ने यह भी कहा कि इससे पहले भी अनेक पुतिन विरोधियों को जहर दिया गया है, और इसमें से कुछ की मौत भी हो गई है।
इस बीच बेलारूस के राष्ट्रपति ने आनन-फानन में वक्तव्य जारी किया कि रूस में एलेक्सी नवलनी को जहर देने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। खैर, बेलारूस के राष्ट्रपति का यह वक्तव्य कोई चौकाने वाला वक्तव्य नहीं था क्योंकि इस समय उनके देश में इतिहास के सबसे बड़े आन्दोलन लगातार चल रहे हैं, और बेलारूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से ही रूस की सेना भेजने का आग्रह कर रहे हैं, जिससे शांतिपूर्ण देशव्यापी आन्दोलन को कुचला जा सके। व्लादिमीर पुतिन भी लगातार जहर देने की बात से इनकार कर रहे हैं, पर रूस में विरोधियों को जहर देकर मारना और फिर इसे नकारना बहुत सामान्य है।
कुछ दिनों पहले ही अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी व्लादिमीर पुतिन को इस मामले में क्लीनचिट दी है। एक चुनावी भाषण में उन्होंने कहा कि, इस विषय में उन्हें पूरी जानकारी नहीं है, पर अलेक्सी नवल्न्य को जहर नहीं दिया गया है। पूरी जानकारी जिस विषय की नहीं हैं, उसके बारे में ट्रम्प इतने भरोसे से कह सकते हैं क्योंकि लगातार झूठ बोलना और जनता को गुमराह करने में उन्हें महारत है।
ट्रम्प ने अपना काम कर दिया, पर उनके आलोचक लगातार कहते रहे हैं कि राष्ट्रपति को अपने ही सरकार की खबर नहीं रहती, इसका नया सबूत भी दुनिया के सामने रख दिया। ट्रम्प के जहर नहीं देने वाले बयान के दो दिन पहले ही उनके विदेश विभाग ने अलेक्सी नवल्न्य के जहर देने के पूरे सबूत जुटाकर अमेरिका में रूस के राजदूत को तलब कर उन्हें फटकार लगाईं थी। इस घटना को अंतरराष्ट्रीय रासायनिक हथियार से सम्बंधित समझाते का उल्लंघन करार दिया था और रूस को निर्देश दिया था कि इस मामले में जांच के लिए बनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय दल से पूरा सहयोग करे।
ट्रम्प किसी भी तरह से पुतिन के विरोध में खड़े होने का जोखिम नहीं ले सकते, क्योंकि आज वो जिस कुर्सी की धौंस जमा रहे हैं वह पुतिन की सहायता से ही उन्हें मिली है। अगले चुनाव भी बस दो महीने दूर हैं, और इस दौर में उन्हें अमेरिकी मतदाताओं से अधिक भरोसा व्लादिमीर पुतिन पर ही रखना पड़ेगा।
इन सबके बीच संतोषजनक खबर यह है कि दो सप्ताह से अधिक समय से लगातार कोमा में रहे अलेक्सी नवल्न्य कोमा से बाहर आ गए हैं, और उनपर दवाइयों का असर भी हो रहा है।
यह व्लादिमीर पुतिन का ही असर है, जिसके चलते ट्रम्प चीन पर जितना बरसते हैं, उतना वास्तविकता में नहीं करते। हाल में ही चीन के अगस्त महीने के आर्थिक आंकड़ों के अनुसार निर्यात लगातार बढ़ता जा रहा है, और है कि अगले कुछ महीनों के दौरान ही चीन की अर्थव्यवस्था कोविड 19 के दौर के पहले जैसी हो जायेगी। अगस्त में निर्यात के आंकड़ों के बढ़ने में सबसे अधिक योगदान अमेरिका को किये गए निर्यात का है।
बड़े देशों में स्पष्ट तौर पर चीन से अच्छे सम्बन्ध आज के दौर में रूस के ही हैं और इसका असर हमारे देश में भी स्पष्ट है। हमारे प्रधानमंत्री हमेशा चीन का नाम लिए बिना ही उस पर बरसते हैं।