Secret Concentration Camp Pakistan: पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों और ISI द्वारा चलाए जा रहे हैं गुप्त यातना शिविर, जानें क्यों लड़कियां बन रहीं हैं मानव बम

Secret Concentration Camp Pakistan: पाकिस्तान में बलूचिस्तान से आई महिला मानव बम का आत्मघाती हमला आपको याद होगा। चाइनीज नागरिकों को निशाना बनाते हुए महिला मानव बम ने खुद को उड़ा लिया था।

Update: 2022-06-22 11:25 GMT

मोना सिंह की रिपोर्ट

Secret Concentration Camp Pakistan: पाकिस्तान में बलूचिस्तान से आई महिला मानव बम का आत्मघाती हमला आपको याद होगा। चाइनीज नागरिकों को निशाना बनाते हुए महिला मानव बम ने खुद को उड़ा लिया था। आखिर उस महिला ने ऐसा क्यों कदम उठाया होगा। क्यों वो खुद मानव बम बनने को तैयार हुई होगी । ये तो पता है कि वो महिला पढ़ी-लिखी थी और बलूचिस्तान की रहने वाली थी। उस महिला की पूरी कहानी के बजाय वैसी लड़कियों के विरोध करने की हमने पड़ताल की तो उसके पीछे करीब एक दशक से चली आ रही प्रताड़ना की बात सामने आई। इसके पीछे वो दुख है जो लड़कियां अपनी शादी की तैयारी में तो जुटीं और रिश्ता भी तय हुआ लेकिन शादी से पहले ही मंगेतर को पाकिस्तानी आर्मी ने उन्हें अगवा कर अंधेरी काल-कोठरी में बंद कर दिया। और वो लड़की जिसके हाथों में मेहंदी सजने वाली थी वो दोनों बाहें फैलाए उस यातना शिविर के बाहर खड़ी होकर होने वाले शौहर की फोटो लेकर रोज दुआ मांगती है। ये आस लगाती है कि उसका मंगेतर कभी तो बाहर आएगा। क्योंकि शादी तय होने पर यहां की लड़की की जब तक उससे शादी नहीं हो जाती तब तक वो उसका इंतजार करेगी। ना दूसरी शादी करेगी और ना उससे रिश्ता तोड़ेगी। ऐसी हालात में ना जाने कितनी सैंकड़ों लड़कियां आज भी वहां जाकर अपने मंगेतर के आने का इंतजार करती हैं। तो एक मां अपने बेटे का तो एक बीवी अपने पति का।

असल में बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में यातना शिविर का विरोध लगभग एक दशक से ज्यादा समय से चल रहा है। यहां रोज सैकड़ों लोग अपने गायब हो चुके रिश्तेदारों जैसे पिता, पति, पुत्र, भाइयों की तस्वीरें लेकर इकट्ठा होते हैं। इन्हीं सैकड़ों लोगों में से एक हैं, बीबी गंज मलिक। जिनके बेटे गुलाम फारुख को सुरक्षाबलों ने 2 जून 2015 को जबरन उनके घर से अगवा कर लिया था और अब तक उनका कोई पता नहीं है। बीबी मलिक कहती हैं कि मेरे बेटे ने अगर अपराध किया है तो उसे अदालत में पेश करो, सजा दो लेकिन अंधेरे यातना गृहों में प्रताड़ित मत करो। इसी तरह 2013 में क्वेटा के इस शिविर से कुछ परिवारों के सदस्यों की रिहाई के लिए क्वेटा से 1500 मील दूर इस्लामाबाद तक पैदल मार्च किया गया। लेकिन रास्ते में ही उन्हें पुलिस और सेना द्वारा जबरन रोक लिया गया।

सितंबर 2020 में बलूचिस्तान के हाफिज उल्लाह मुहम्मद हसनी का क्षत-विक्षत शव मिला। घर से 30 अगस्त 2016 को उनका जबरन अपहरण कर लिया गया था, तब उनकी बेटी मुकद्दस सिर्फ 1 साल की थी। परिवार ने उनकी रिहाई के लिए मांगे गए 6.8 मिलियन रुपए की मांग भी पूरी कर दी। लेकिन फिर भी उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर यातना गृह में रखा गया। उनका शव मिलने तक उनकी बेटी मुकद्दस रोजाना क्वेटा के शिविर में उनकी तस्वीर लेकर खड़ी होती थी।

इसी तरह के बहुत सारे मामले हैं जहां बहुत सारी लड़कियां अपने मंगेतरों का इंतजार कर रही हैं। बलूच परंपरा के अनुसार मंगेतरों का पता लगने तक वे किसी और से शादी नहीं कर सकती, उनकी स्थिति विवाहित और विधवा की स्थिति से भी ज्यादा खराब है। माता-पिता और अपने खोए हुए बेटे के इंतजार में है। बहनें अपने भाइयों की राह देख रही हैं। लेकिन किसी को यह नहीं पता कि वे उन्हें किस रूप में मिलेंगे जिंदा या फिर शव के रूप में।

गायब हो रहें लोगों पर इस्लामाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला

पाकिस्तान से 1999 से आज तक लगभग 8000 लोग गायब हो चुके हैं। इनमें बलूचिस्तान से गायब हुए लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। पाकिस्तान के इस्लामाबाद हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही है। 31 मई 2022 को इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि वर्तमान शरीफ सरकार के साथ-साथ पिछले समय से सत्ता में रही सरकारें भी जल्द से जल्द गायब हुए लोगों की खोजबीन करें और अगर सरकार गायब हुए लोगों का पता नहीं लगा पाती है, उस स्थिति में वर्तमान प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्रियों को अदालत में पेश होने के लिए बुलाया जाएगा। हाई कोर्ट के इस फैसले ने पाकिस्तान की राजनीति को हिला कर रख दिया है।

इस मामले की सुनवाई इस्लामाबाद हाई कोर्ट में जज अतहर मिन्नाह कर रहे हैं। अदालत ने साफतौर पर लोगों के गायब होने के पीछे वर्तमान सरकार और पिछले 20 दशक में सत्ता में रही सरकारों को दोषी माना है। इस फैसले में हाई कोर्ट ने कहा है कि 1999 परवेज मुशर्रफ के शासनकाल से ही लोगों के गुमशुदगी का सिलसिला चल रहा है और 5 से 8 हजार लोग गायब हो चुके हैं। अदालत ने कहा है कि यह सभी लोग राजनीति के चलते गायब हुए हैं। अदालत ने गायब हुए लोगों को ढूंढकर उनके परिवारों से मिलाने के निर्देश दिए हैं।

मानवाधिकार कार्यकर्ता द्वारा डाली गई थी याचिका

यह याचिका मानवाधिकार कार्यकर्ता शिरीन मजारी ने सेना सरकार और आईएसआई पर दायर की थी। इस याचिका में कहा गया था कि 1999 और 9/11 के आतंकी हमले के बाद अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व में लड़े जाने वाले युद्ध में पाकिस्तान की संदेहास्पद भूमिका की वजह से कई पाकिस्तानी लोगों को गिरफ्तार किया गया था जिसमें सबसे ज्यादा संख्या बलूचिस्तान के लोगों की थी। ऐसा माना जाता है कि इनमें से कई लोग अभी भी क्यूबा के ग्वांतानामो-बे की जेल में बंद हैं।

सबसे ज्यादा संख्या में गायब हुए बलूचिस्तान के लोग

पाकिस्तान की मीडिया के अनुसार, गुमशुदा लोगों की लिस्ट में सबसे ज्यादा लोग बलूचिस्तान के हैं। और यह लोग बलूचिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकॉनामिक कॉरिडोर के विरोध प्रदर्शनों में शामिल थे। यह लोग मानते हैं कि चीन के लोग बलूचिस्तान में अपार मात्रा में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं। और इसके बदले में केवल चीनी नागरिकों को ही रोजगार दे रहे हैं।

बलूचिस्तान के अलगाववादी आंदोलन की असली कहानी

बलूचिस्तान भारत-पाक बंटवारे के पहले आजाद देश था। पाकिस्तान बनने के बाद 1948 में इस्लामाबाद इस्लाम बहुल होने के कारण इसे पाकिस्तान का हिस्सा बना लिया गया। बलूचिस्तान के निजाम अलीखान पर जबरन दबाव डालकर इसे पाकिस्तान का हिस्सा बना लिया गया था। निजाम अलीखान ने बलोच संसद से अनुमति लिए बगैर ही दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए थे। इसलिए बलोच लोग आज भी इस निर्णय को अवैधानिक मानते हैं। तभी से बलूच राष्ट्रवादी पाकिस्तान की गुलामी से मुक्त होने के लिए संघर्षरत हैं। वैसे तो बलूच अलगाववादी संघर्ष 1948 से ही शुरू हो गया था लेकिन 1970 के दशक में बलूचिस्तान के अलगाववादी संघर्षों में 5 वर्ष से भी कम समय में लगभग 8000 बलोच राष्ट्रवादियों की हत्या कर दी गई थी।

बलूचिस्तान में अक्सर सड़क के किनारे बहुत बुरी अवस्था में शव पाए जाते हैं, जो कि गायब हुए बलूच राष्ट्रवादी नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के होते हैं। रहस्यमय सामूहिक कब्रों का भी पता अक्सर चलता रहता है, जो पिछले एक से दो दशक में गायब हुए लोगों की है। ऐसे लोगों की संख्या आंकड़ों में तो 5 से 8 हजार बताई जाती है लेकिन वास्तविकता में यह संख्या 10 हजार से भी ज्यादा है।

क्यों गायब हो जाते हैं बलूचिस्तान के लोग

बलूचिस्तान का अपना कोई मीडिया या समाचार पत्र नहीं है। यहां से एक भी अखबार नहीं निकलता है। जो भी बलोच नेता, वकील ,पत्रकार या आम आदमी अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाता है वह गायब कर दिया जाता है। ऐसे लोग या तो पूरी तरह से लापता हो जाते हैं, या फिर बाद में दूरदराज के निर्जन स्थानों पर उनका शव मिलता है। या फिर वे अत्यधिक घायल अवस्था में मिलते हैं। बलूचिस्तान और खैबरपख्तूनख्वा प्रांत में सक्रिय रूप से अलगाववादी आंदोलन चलते हैं, इसलिए वहां जबरन गायब होने की घटनाएं आमतौर पर सबसे ज्यादा होती हैं। बलूच नेशनल मूवमेंट नाम का राजनीतिक दल जो बलूचिस्तान में लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करता है। इसने पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों और मानवाधिकारों के हनन को उजागर किया है। इसके परिणाम स्वरूप इस राजनीतिक दल के कई सदस्य भी अब तक गायब हो चुके हैं और उनके परिवार पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों का सामना करने को मजबूर हैं।

लंदन में लगे बलूचिस्तान के लोगों के जबरन गायब होने के होर्डिंग्स

लंदन के प्रमुख मार्गों पर "क्या आप जानते हैं? बलूचिस्तान में 8000 से ज्यादा लोगों को जबरन गायब कर दिया गया है"! इस तरह के होर्डिंग लगे हैं। यह होर्डिंग जबरन गायब होने के मामलों में आने जाने वालों का ध्यान आकर्षित करते हैं। यह होर्डिंग विश्व बलूची संगठन के मानवाधिकार प्रचारकों ने बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के गंभीर स्थिति को दिखाने के लिए लगाए हैं।

बलूचिस्तान की मानवाधिकार परिषद के अनुसार दिसंबर 2021 में 63 से अधिक लोगों को गायब कर दिया गया था। जिनमें से 37 की मौत हो चुकी है। और बाकी लोग लापता हैं। गायब हुए लोगों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।

मानवाधिकार कार्यकर्ता को बेरहमी से किया गया प्रताड़ित

नार्वे के नागरिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता एहसान अर्जमंडी बलूचिस्तान से लोगों के जबरन गायब होने की जांच करने के लिए 31 जुलाई 2009 को बलूचिस्तान पहुंचे। वहां पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने उनके कहीं भी आने-जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस वजह से वह अपनी जांच पूरी नहीं कर पाए। 6 अगस्त को वह करांची जाने वाली बस में सवार हुए। 7 अगस्त को बलूचिस्तान और सिंध के बीच पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने उन्हें बस से नीचे उतार लिया, यहां से उन्हें गुप्त यातना शिविर में ले जाकर 12 साल से अधिक समय तक कड़ी यातनाएं दी गई। उन्हें उल्टा लटकाया गया, सिर पानी की बाल्टी में डुबोया गया, आराम , नीद और पानी से वंचित रखा गया। लेकिन उन्हें कभी किसी अदालत में पेश नहीं किया गया। और ना ही उन पर कोई आरोप लगाया गया। 24 ,25 अगस्त 2021 को पाकिस्तान में सुरक्षा बलों ने उन्हें रिहा किया और यह सब कुछ किसी को भी ना बताने की हिदायत दी।

पाकिस्तानी हुक्मरान ये नहीं चाहते कि बलूचो की कोई मदद करे और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह बात सामने आए। बलूच राष्ट्रीय आंदोलन के मानवाधिकार सचिव, नजीर नूर बलूच ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त, ह्यूमन राइट्स वॉच और पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर कहा है कि पिछले दो दशकों में बलूचिस्तान में खतरनाक स्तर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। पाकिस्तानी सुरक्षाबलों द्वारा जनता को दैनिक आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा है। पाकिस्तानी सुरक्षाबलों द्वारा महिलाओं बच्चों को प्रताड़ित करना, हत्या, जबरन गायब करना और उत्पीड़न बढ़ता ही जा रहा है। बलूच लोग और शिक्षित बलूच महिलाएं भी आत्मघाती बम विस्फोटक के अनोखे रूप में इसका विद्रोह कर रही हैं।

पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों और ISI द्वारा चलाए जा रहे हैं गुप्त यातना शिविर

जिन लोगों पर अलगाववादियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से संबंध होने का संदेह होता है उन्हें बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के सुरक्षाबलों या आईएसआई के अधिकारियों द्वारा जबरन उठा लिया जाता है। इसके बाद उन्हें गुप्त हिरासत केंद्रों में ले जाकर दिनों महीनों या सालों तक यातनाएं दी जाती हैं। कुछ लोगों को जीवित छोड़ दिया जाता है तो कुछ के क्षत-विक्षत शव सड़कों के किनारे सुनसान इलाकों में पाए जाते हैं। और कुछ लोगों का तो कभी पता भी नहीं चल पाता कि वे जिंदा भी है या नहीं। 2006 में हाईकोर्ट ने गायब होने के मामले की पहली बार जांच शुरू की थी लेकिन कभी तत्कालीन प्रधानमंत्री परवेज मुशर्रफ ने आपातकाल की स्थिति घोषित कर सभी जजों को अपदस्थ कर दिया था। फिर 2011 में पाकिस्तान में गायब हुए लोगों की जांच के लिए एक जांच आयोग का गठन भी किया गया था। मानवाधिकार संगठन वायस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन के अनुसार बलूचिस्तान से लगभग 6000 से ज्यादा लोग लापता है। सुरक्षाबलों द्वारा अपहृत 64 में से 37 मृत पाए गए और उनके शवों पर गोलियों और ड्रिल से छेदने के निशान मौजूद थे। 2018 में इमरान खान ने प्रधानमंत्री बनने के बाद लोगों को जबरन गायब होने की प्रथा के खत्म होने का आश्वासन दिया था। लेकिन यह प्रथा अभी भी जारी है। मानवाधिकार कार्यकर्ता इदरीश खट्टक का अपहरण 2019 में किया गया था। इस मामले में पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव डालने पर पाकिस्तानी सेना ने स्वीकार किया था कि खट्टक उनकी हिरासत में है। लेकिन उन्हें अभी तक रिहाई नहीं मिली है।

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