भारत ने चीनी Apps तो बंद किए लेकिन नफरत-फेक न्यूज फैलाने वाले FB और इंस्टाग्राम पर कोई बात क्यों नहीं

देश की राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर भारत ने चीन की ऐप्स पर लगाया प्रतिबंध लेकिन दिनभर फेक न्यूज़ और जहर उगलते फेसबुक और इंस्टाग्राम पर नहीं की जाती कोई कार्रवाई....

Update: 2020-07-08 14:54 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

हाल में ही भारत सरकार ने चीन के ऐप्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को देश की अखंडता, संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर देश में प्रतिबंधित कर दिया है। ऐसा कोई उदाहरण अब तक नहीं सामने आया है जिससे पता चलता हो कि ये ऐप्स और सोशल मीडिया प्लेटफोर्म्स किसी भी तरह से देश की अखंडता, संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा पर धावा बोल रहे थे। दूसरी तरफ जनता के बीच दिनभर फेक न्यूज़ और जहर उगलते फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती।

हाल में ही रंगभेद के विरोध में चल रहे आंदोलनों के बीच फेसबुक और इंस्टाग्राम के बहिष्कार और इसे विज्ञापन ना देने की आवाज अमेरिका से उठी है और अब भारत छोड़कर पूरी दुनिया पर इसका असर देखा जा रहा है। इस मुहिम को अमेरिका के अनेक मानवाधिकार संगठनों ने सम्मिलित तौर पर शुरू किया है और इसे 'स्टॉप हेट फॉर प्रॉफिट' का नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत फेसबुक पर अपने विज्ञापन चलाने वाली कंपनियों से आग्रह किया गया है कि इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुलाई के महीने में विज्ञापन ना दें और इसके बहिष्कार की भी मांग की गई है।

स्टॉप हेट फॉर प्रॉफिट के तहत जुलाई शुरू होने के बाद से अब तक लगभग 800 अमेरिकी कंपनियों ने फेसबुक को विज्ञापन देना बंद कर दिया है। इसमें फोर्ड, हौंडा, लेविस स्ट्रास, टारगेट, युनिलिवर, और एडीडास जैसी कम्पनियां भी शामिल हैं। पेट्रोलियम कंपनी बीपी अभी इस सम्बन्ध में विचार कर रही है। यूरोप में वोक्सवैगन, हौंडा यूरोप, रोबिनसन, फोर्ड यूरोप, मार्स और ईडीऍफ़ जैसी कंपनियों ने भी विज्ञापन देना बंद कर दिया है।

सेंटर कोउन्तरिंग डिजिटल हेट के चीफ एग्जीक्यूटिव इनोरन अहमद ने यूरोपीय कंपनियों से इस मुहीम में शामिल होने का आह्वान किया है। उनके अनुसार फेसबुक को अमेरिका में राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है, लेकिन यूरोप के अधिकतर देश तो इसे गंभीर समस्या मानते हैं, इसलिए यूरोपीय कंपनियों की इस मुहीम में व्यापक भागीदारी होनी चाहिए। यूनाइटेड किंगडम के 37 मानवाधिकार संगठनों ने ब्रिटिश कंपनियों से इस मुहिम में शामिल होने का आग्रह किया है।

एक आकलन के अनुसार दुनियाभर के बड़े विज्ञापनदाताओं में से एक-तिहाई से अधिक 'स्टॉप हेट फॉर प्रॉफिट' में शामिल हो सकते हैं। यूरोप में अनेक जनमत संग्रह में जनता ने फेसबुक को सभी गलत सूचनाएं, भ्रामक प्रचार, हिंसा भड़काने और फेक न्यूज़ के लिए जिम्मेदार करार देने का समर्थन किया है। न्यूजीलैंड के सबसे बड़े मीडिया हाउस 'स्टफ' ने भी घोषणा की है कि उन्होंने अस्थाई तौर पर फेसबुक से नाता तोड़ लिया है। हालांकि इसके फेसबुक पर दस लाख से अधिक फ़ोलोवर्स हैं।


फिर भी स्टफ ने फैसला लिया है कि इस प्लेटफॉर्म् पर अगली सूचना तक कोई भी समाचार नहीं डाला जाएगा। कंपनी के अनुसार, 'हम ऐसे किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म् को आर्थिक लाभ नहीं पहुंचाना चाहते, जो आर्थिक लाभ का उपयोग हेट स्पीच और हिंसा बद्काने में करता हो'। न्यूजीलैंड की मेसी यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता की प्रोफ़ेसर कैथरीन स्ट्रोंग ने इस कदम की सराहना की है। उनके अनुसार 'फेसबुक और इंस्टाग्राम अपने आर्थिक लाभ के चलते फेक न्यूज़, समाज में पनपने वाली घृणा और हिंसा पर आखें बंद कर बैठे हैं। यह सब खतरनाक है। इस वैश्विक महामारी के दौर में भी ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म् कोविड 19 से सम्बंधित भ्रामक और खतरनाक समाचार फैलाने में व्यस्त हैं'।

न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्देर्न ने भी स्टफ द्वारा उठाये गए कदम का स्वागत किया है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि वे फिलहाल फेसबुक को नहीं छोड़ सकतीं क्योंकि इसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से वे जनता से जुडी हैं। जेसिंडा अर्देर्न ने कहा कि वे फेसबुक से फेक न्यूज़ पर नियंत्रण रखने का अनुरोध करेंगी। पिछले वर्ष क्राइस्टचर्च में मस्जिदों पर एक ऑस्ट्रेलियन कट्टरपंथी ने स्वचालित हथियारों से गोलीबारी कर जब 50 से अधिक नमाज अदा कर रहे लोगों को मार डाला था, तब फेसबुक पर लाखों की तादात में भड़काऊ और हिंसक प्रवृत्ति के पोस्ट और विडियो डाले गए थे, जिसकी न्यूजीलैंड ने सख्त शब्दों में भर्त्सना की थी।

फेसबुक अनेक वर्षों से अपने यूजर्स की व्यक्तिगत जानकारी भी लीक करता रहा है। वर्ष 2018 के दौरान तो कैम्ब्रिज ऐनेलेटिका मामले की खूब चर्चा की गई थी, जब करोड़ों लोगों की जानकारियां बाजार में पहुंच गई थीं। इसके बाद भी फेसबुक की कार्य प्रणाली में कोई अंतर नहीं आया। वर्ष 2019 में एक बार इंस्टाग्राम ने 5 करोड़ और फेसबुक ने 42 करोड़ यूजर्स के डेटा लीक किया था, यह मामला जबतक उजागर हुआ तबतक फेसबुक ने लगभग 27 करोड़ अन्य यूजर्स का डेटा बाजार में बेच दिया।

कैरोल कैडवलाद्र ने 5 जुलाई को 'द गार्डियन' में फेसबुक के बारे में लिखा है, 'दुनिया की कोई ताकत फेसबुक को किसी भी चीज के लिए जिम्मेदार बनाने में असमर्थ है। अमेरिकी कांग्रेस कुछ नहीं कर सकी और ना ही यूरोपियन यूनियन इसपर लगाम लगा पाई। हालत यहां तक पहुंच गई है कि कैंब्रिज ऐनेलेटीका मामले में जब अमेरिका के फ़ेडरल ट्रेड कमीशन ने फेसबुक पर 5 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया तब फेसबुक के शेयरों के दाम आसमान छूने लगे।'

फेसबुक के माध्यम से अमेरिका के 2016 के चुनावों में सारी विदेशी शक्तियां संलिप्त हो गयीं और इस कारण चुनाव के परिणाम प्रभावित हुए। फेसबुक ने तो अनेक बार नरसंहार के मामलों का भी सीधा प्रसारण किया है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक के माध्यम से म्यांमार में रोहिंग्या के लिए घृणा इस पैमाने पर फैलाई गई कि इसने हिंसा का स्वरुप ले लिया, सामूहिक नरसंहार किये गए और आज भी किये जा रहे हैं। इसके चलते हजारों रोहिंग्या मारे गए और लाखों को अपने घरबार छोड़ना पड़ा।

हाल में फिलीपींस में जिस पत्रकार (मारिया रेसा) को 7 वर्ष के कैद के सजा सुनाई गई है, उन्होंने भी समय-समय पर फेसबुक के संदिग्ध भूमिका के बाते में आगाह किया था। मानवाधिकार कार्यकर्ता मारिया रेस की सजा को फेसबुक के प्रतिकार के तौर पर ही देखते हैं। ब्रिटेन के पूर्व उप-प्रधानमंत्री फेस्बुल को समाज का आइना बताते हैं, लेकिन अनेक बुद्धिजीवी फेसबुक को आइना नहीं बल्कि हथियार बताते हैं, वह भी बिना लाइसेंस वाला हथियार, जिससे आप किसी की हत्या कर दें तब भी पकड़े नहीं जायेंगे।

कुल 2.6 अरब लोग फेसबुक से जुड़े हैं। इस मामले में यह संख्या चीन की आबादी से भी अधिक है। मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इसकी तुलना चीन से नहीं की जा सकती बल्कि इसे उत्तर कोरिया कहना ज्यादा उपयुक्त है, लेकिन मार्क जुकरबर्ग तानाशाह किम जोंग से भी अधिक शक्तिशाली हैं। कुछ लोगों के अनुसार फेसबुक की यदि किसी हथियार से तुलना करनी हो तो वह हथियार बन्दूक, राइफल, तोप या टैंक नहीं होगा बल्कि सीधा परमाणु बम ही होगा। यह केवल एक तानाशाह, मार्क जुकरबर्ग के अधिकार वाला वैश्विक साम्राज्य है।

जुकरबर्ग का एक ही सिद्धांत है, भले ही पूरी दुनिया में हिंसा फ़ैल जाए, नफरत फ़ैल जाए, कितने भी आरोप लगें – पर किसी आरोप का खंडन नहीं करना, किसी पर ध्यान नहीं देना – बस अपने साम्राज्य का विस्तार करते जाना और अधिक से अधिक धन कमाना। यही कारण है कि फेसबुक का रवैया कभी नहीं बदलता। हाल में ही जुकरबर्ग ने एक साक्षात्कार में कहा है कि चिंता की कोई बात नहीं है, जितने लोगों ने विज्ञापन बंद किया है वे जल्दी ही फिर वापस आ जायेंगें। फेसबुक तो प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर मुख्य मीडिया को भी संचालित करता है।


फेसबुक के फेक न्यूज़ या हिंसा को भड़काने वाले पोस्ट केवल एक रंग, नस्ल या देश को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि इसका असर सार्वभौमिक है और दुनिया भर के लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। इसे केवल एक संयोग कहकर नहीं टाला जा सकता कि कोविड 19 से सबसे अधिक प्रभावित देशों में अमेरिका, ब्राज़ील, भारत और इंग्लैंड सम्मिलित हैं।

जनवरी से अगर गौर करें तो फेसबुक और इंस्टाग्राम के पोस्ट इन देशों में इस महामारी के खिलाफ झूठे और भ्रामक प्रचार में संलग्न थे। ये चारों ही देशों की सरकारें ऐसी हैं, जो ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर प्रचार के बलबूते ही सत्ता पर काबिज हैं। फेसबुक का हाल तो ऐसा है, जो केवल चीन से ही बड़ा नहीं है बल्कि पूरे पूंजीवाद से बड़ा है। आज के पूंजीवाद को टिके रहने के लिए फेसबुक सबसे बड़ा सहारा है। 

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