अलविदा विनोद दुआ: जनपक्षधर पत्रकारिता के लिए समर्पित जीवन

Vinod Dua Passed Away: देश के प्रसिद्ध पत्रकार विनोद दुआ, जो इस साल की शुरुआत में कोविड के साथ अस्पताल में भर्ती हुए थे, आईसीयू में हैं और उनकी बेटी मल्लिका दुआ ने सोमवार को कहा है कि उनकी हालत "अत्यंत गंभीर" है।

Update: 2021-12-04 12:24 GMT

दिनकर कुमार की टिप्पणी

Vinod Dua Passed Away: देश के प्रसिद्ध पत्रकार विनोद दुआ, जो इस साल की शुरुआत में कोविड के साथ अस्पताल में भर्ती हुए थे, आईसीयू में हैं और उनकी बेटी मल्लिका दुआ ने सोमवार को कहा है कि उनकी हालत "अत्यंत गंभीर" है। "मेरे पापाजी आईसीयू में गंभीर हालत में हैं। अप्रैल से उनकी तबीयत तेजी से बिगड़ रही है। वह अपने जीवन का प्रकाश खोना भी स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने एक असाधारण जीवन जिया है और हमें वही दिया है,"मल्लिका दुआ ने लिखा।

दूरदर्शन और एनडीटीवी जैसे समाचार चैनलों के लिए सेवाएं दे चुके और हिंदी पत्रकारिता के जाने माने चेहरे 67 वर्षीय विनोद दुआ की पत्नी पद्मावती 'चिन्ना' दुआ का कोविड-19 के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने के बाद जून में निधन हो गया था। 1947 में भारत-पाक विभाजन से पहले विनोद दुआ का परिवार दक्षिण वज़ीरिस्तान के सिरे पर बसे एक शहर डेरा इस्माइल खान में रहता था, जो बाद में तालिबान के प्रभाव में आ गया। 1947 में उनका परिवार मथुरा चला गया, जहाँ वे शुरू में एक धर्मशाला में एक साल तक रहे और दो कमरों के घर में रहने लगे, जिसका किराया चार रुपये था।

भारत आने पर उनके पिता ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में एक क्लर्क के रूप में काम करना शुरू किया और एक शाखा प्रबंधक के रूप में सेवानिवृत्त हुए। अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में विनोद ने कई गायन और वाद-विवाद कार्यक्रमों में भाग लिया और 1980 के दशक के मध्य तक थिएटर किया। श्री राम सेंटर फॉर आर्ट एंड कल्चर के सूत्रधार कठपुतली ने बच्चों के लिए विनोद द्वारा लिखे गए दो नाटकों का प्रदर्शन किया। वह थिएटर यूनियन के सदस्य थे, जो एक स्ट्रीट थिएटर ग्रुप था, जो दहेज जैसे सामाजिक मुद्दों के खिलाफ नाटकों का निर्माण और प्रदर्शन करता था।

नवंबर 1974 में, विनोद ने हिंदी भाषा के युवा कार्यक्रम युवा मंच में अपना पहला टेलीविजन प्रदर्शन किया, जिसे दूरदर्शन (पहले दिल्ली टेलीविजन के रूप में जाना जाता था) पर प्रसारित किया जाता था। उन्होंने 1985 में 'जनवाणी' (पीपुल्स वॉयस) शो की एंकरिंग की, जहां आम लोगों को सीधे मंत्रियों से सवाल करने का मौका मिला। यह अपनी तरह का पहला शो था।

वह 2000 से 2003 तक सहारा टीवी से जुड़े रहे, जिसके लिए वे 'प्रतिदिन' और परख' की एंकरिंग करते थे। विनोद एनडीटीवी इंडिया के कार्यक्रम 'ज़ाइका इंडिया का' की मेजबानी करते थे, जिसके लिए उन्होंने शहरों की यात्रा की; सड़क किनारे बने ढाबों के कई व्यंजनों का स्वाद चखें। भारत सरकार ने उन्हें 2008 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया।

उन्होंने द वायर हिंदी के लिए 'जन गण मन की बात' की एंकरिंग शुरू की। यह शो 10 मिनट का करंट अफेयर्स कार्यक्रम है जो द वायर की वेबसाइट पर प्रसारित होता है जहां वह अक्सर सरकार की आलोचना करते हैं, लेकिन आवश्यक तथ्यों और संख्याओं के साथ।

इस देश में टेलिविजन ने 1959 में दस्तक दी, लेकिन सही मायनों में उसे अस्सी के दशक में पंख लगे। जाहिर है अकेला सरकारी दूरदर्शन था तो उसने उस जमाने में पक्ष और प्रतिपक्ष, दोनों की सशक्त भूमिका निभाई। आज तो यह सत्ता का प्रवक्ता बनकर रह गया है। इसीलिए संसार का सबसे बड़ा नेटवर्क होते हुए भी स्वतंत्र पहचान के लिए छटपटा रहा है। मगर उस दौर का डीडी ऐसा नहीं था। एक बेहद लोकप्रिय शो 'जनवाणी' आया करता था। उसके कर्ता-धर्ता विनोद दुआ ही थे। सरकार कांग्रेस की थी। उस कार्यक्रम में सरकार के मंत्रियों की ऐसी खबर ली जाती थी कि उनकी बोलती बंद हो जाती। अनेक दिग्गज मंत्रियों ने प्रधानमंत्री से शिकायत की कि विनोद दुआ तो संघी हैं। विपक्ष की तरह व्यवहार करते हैं। सरकार के दूरदर्शन पर यह नहीं दिखाया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने उन्हें ठंडा पानी पिलाकर चलता किया। उनसे कहा कि पहले अपना घर ठीक करो। फिर शिकायत लेकर आना।

उन दिनों चुनाव परिणाम हाथ से मतपत्रों की गिनती के बाद घोषित किए जाते थे। इस प्रक्रिया में दो-तीन दिन लग जाते थे। रात दिन दूरदर्शन पर खास प्रसारण चलता था। विनोद दुआ और डॉक्टर प्रणव रॉय की जोड़ी इन चुनाव परिणामों और रुझानों का चुटीले अंदाज में विश्लेषण करती थी। यह जोड़ी सार्थक और सकारात्मक पत्रकारिता करती थी। कांग्रेसी नेताओं की जमकर बखिया उधेड़ती तो बीजेपी के नेता भी पानी मांगते थे। कम्युनिस्ट दलों के प्रति भी उतनी ही निर्मम रहती थी। इसके बावजूद राजीव गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, सिकंदर बख्त, कुशाभाऊ ठाकरे, इंद्रजीत गुप्त, बसंत साठे, अर्जुनसिंह, शरद पवार, मधु दंडवते, बाल ठाकरे, जॉर्ज फर्नांडिस और ज्योति बसु जैसे धुरंधर इन दोनों के मुरीद थे। लोगों को याद है कि 1989 और 1991 के चुनाव में राजीव गांधी, वीपी सिंह और चंद्रशेखर की आलोचना तिलमिलाने वाली होती थी। कभी उन पर किसी दल विशेष का पक्ष लेने या विरोध करने का आरोप नहीं लगा।

नरसिंह राव सरकार बनी तो विनोद दुआ को साप्ताहिक समाचार पत्रिका परख की जिम्मेदारी सौंपी गई। परख में उन दिनों संवाद उप शीर्षक से एक खंड होता था। इसमें भी देश के शिखर नेताओं और अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साक्षात्कार होते थे। कई बार इस कार्यक्रम में मंत्रियों के लगभग रोने की स्थिति बन जाती। उनके पास अपने मंत्रालयों की ही पुख्ता जानकारी नहीं होती थी। उन्होंने भी प्रधानमंत्री से विनोद दुआ की शिकायत की। कहा कि विनोद दुआ भाजपाई हैं, हिंदूवादी हैं। नरसिंह राव ने भी उन्हें वही उत्तर दिया, जो राजीव गांधी ने दिया था। उन्होंने कहा कि अपना काम और मंत्रालय का काम सुधारिए।

परख की कामयाबी के बाद सरकार ने विनोद दुआ को न्यूज वेब नामक दैनिक बुलेटिन सौंपा। भारत का यह पहला निजी बुलेटिन था। सरकारें कांपती थीं। विनोद दुआ ने पत्रकारिता की निर्भीकता और निष्पक्षता से कभी समझौता नहीं किया। न्यूज वेब के साथ बाद में ब्यूरोक्रेसी ने कुछ कारोबारी शर्तें रखीं। विनोद नहीं झुके और बुलेटिन की चंद महीनों में ही हत्या हो गई।

इसके बाद भी विनोद दुआ की पारी स्वाभिमान और सरोकारों वाली पत्रकारिता की रही है। दशकों से एनडीटीवी के डॉक्टर प्रणव रॉय के वह खास दोस्त थे। एनडीटीवी पर अपना खास बुलेटिन करते थे। इसके अलावा 'जायके का सफर' भी उनकी बड़ी चर्चित श्रृंखला थी। उसमें भी उन्होंने अपने पत्रकारिता धर्म से कोई समझौता नहीं किया। एक रात कुछ बात हुई और एक झटके में विनोद ने एनडीटीवी को सलाम बोल दिया। न्यूजट्रैक, ऑब्जर्वर न्यूज चैनल और सहारा चैनल से भी उन्होंने कुछ ऐसे ही अंदाज में विदाई ली। पत्रकारिता के मूल्यों को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा, लाखों की नौकरियां पल भर में छोड़ते रहे।

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