धंसती जा रही है दिल्ली और दुनिया के दूसरे शहर | Sinking Delhi & Other cities of the World |

Sinking Delhi & Other cities of the World | दिल्ली वायु प्रदूषण के लिए कुख्यात है, दिल्ली के बीच बहती यमुना नदी देश की सभी नदियों में सबसे प्रदूषित हिस्सा है, दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण रात हो या दिन – निर्धारित मानक से हमेशा अधिक रहता है, दिल्ली में कचरे के पहाड़ हैं और भी पर्यावरण से जुडी समस्याएं हमेशा मुंह बाए खडी रहती हैं|

Update: 2022-01-20 05:24 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Sinking Delhi & Other cities of the World | दिल्ली वायु प्रदूषण के लिए कुख्यात है, दिल्ली के बीच बहती यमुना नदी देश की सभी नदियों में सबसे प्रदूषित हिस्सा है, दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण रात हो या दिन – निर्धारित मानक से हमेशा अधिक रहता है, दिल्ली में कचरे के पहाड़ हैं और भी पर्यावरण से जुडी समस्याएं हमेशा मुंह बाए खडी रहती हैं| एक और भी बड़ी समस्या है, जिसकी चर्चा पानी की विकराल किल्लत के समय ही किया जाता है, वह है भूजल (Groundwater) का अत्यधिक दोहन और निकासी (excessive abstraction of groundwater)| दिल्ली के अधिकतर हिस्से का भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है| जब ऐसी समस्या खडी होती है, तब सरकारें वर्षा जल संचय की बातें करती हैं और फिर सब शांत हो जाता है|

हाल में ही प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका, नेचर (Nature), में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार दिल्ली और आसपास के इलाकों में भूजल का इतना अधिक दोहन किया गया है कि अब जमीन धंसती जा रही है| उपग्रहों से प्राप्त चित्रों के माध्यम से अध्ययन कर वैज्ञानिकों के एक अंतराष्ट्रीय दल ने यह बताया है कि दिल्ली का लगभग 100 वर्ग किलोमीटर हिस्सा धंसता जा रहा है और इसमें से अधिकतर हिस्सा नई दिल्ली के इंदिरागाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास है| इस अध्ययन को आईआईटी बाम्बे, जर्मनी के रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंस, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और अमेरिका के साउथर्न मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने संयुक्त तरीके (Scientists from IIT Bombay, German Research Centre for Geosciences, Cambridge University & Southern Methodist University of USA) से किया है|

इस अध्ययन के अनुसार दिल्ली एयरपोर्ट से लगा कापसहेड़ा का 12.5 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा सबसे तेजी से धंस रहा है| वर्ष 2014 से वर्ष 2016 के बीच इस क्षेत्र के धंसने की दर 11 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष थी जो वर्ष 2017 से 2019 के बीच बढ़कर 17 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष तक पहुँच गयी| इसी तरह दिल्ली हवाईअड्डे के पास के दूसरे क्षेत्र महिपालपुर में भी ऐसी ही स्थिति है, पर पैमाना अपेक्षाकृत कम है| इस क्षेत्र में वर्ष 2014 से 2016 के बीच धंसने की दर 15 मिलीमीटर प्रति वर्ष थी, जो वर्ष 2016 से 2018 के बीच बढ़कर 30 मिलीमीटर प्रतिवर्ष तक पहुँच गयी और इसके बाद के वर्षों में यह दर 50 मिलीमीटर प्रति वर्ष तक पहुँच चुकी है|

पूरे दक्षिण और दक्षिण पश्चिमी दिल्ली के अधिकतर हिस्सों में भूजल 80 मीटर या इससे भी अधिक गहराई पर मिलता है, और यह प्रतिवर्ष 3 से 4 मीटर अधिक गहराई में पहुँच जाता है| दिल्ली में आपूर्ति के लिए पानी की मांग 12360 लाख गैलन प्रतिदिन है, और वर्ष 2031 तक यह मांग 17460 लाख गैलन प्रतिदिन तक पहुँच जायेगी| इसका एक बड़ा हिस्सा भूजल से आता है, और इसके अतिरिक्त भूजल की अवैध निकासी भी बहुत की जाती है| अमेरिका के जियोलाजिकल सर्वे (US Geological Survey) के अनुसार दुनिया में भूमि धंसने की जितनी घटनाएं होती हैं उनमें से 80 प्रतिशत से अधिक का कारण भूजल की अत्यधिक निकासी है|

इस अध्ययन के हिसाब से भूमि धंसने के सन्दर्भ में सबसे संवेदनशील इलाके हैं – नई दिल्ली में बिजवासन, समालखा, कापसहेड़ा, साध नगर, बिंदापुर और महावीर एन्क्लेव; गुरुग्राम में डुंडाहेड़ा, सेक्टर 22ए और ब्लाक सी; और फरीदाबाद में संजय गाँधी मेमोरियल नगर का ब्लाक ए, बी और सी| इस अध्ययन के अनुसार इन इलाकों में इस समस्या पर ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है| हवाई अड्डे के अधिकारी इसे कोई बड़ी समस्या नहीं मानते, पर कुछ वर्ष पहले मलेशिया के क्वालालंपुर हवाई अड्डे (Kuala Lumpur Airport) के पास भी ऐसी ही समस्या खडी हुई थी, और तब हवाई अड्डे में अनेक परिवर्तन करने पड़े थे| इस अध्ययन के अनुसार हाल के वर्षों में गुरुग्राम में बारिश होते ही जलभराव की समस्या भी इसीलिए उठ खडी होती है| दिल्ली से गुरुग्राम के बीच हाईवे का 7.5 किलोमीटर हिस्सा पिछले 5 वर्षों के दौरान ही लगभग 70 सेंटीमीटर धंस चुका है|

दिल्ली में केवल धंसने की समस्या ही नहीं बल्कि द्वारका का कुछ हिस्सा पहले से उंचा होने लगा है| पहले वहां जल आपूर्ति का कोई साधन नहीं था, और पूरी आपूर्ति भूजल की वैध-अवैध निकासी से की जाती थी, पर पिछले कुछ वर्षों पर यहाँ भूजल की अवैध निकासी पर अंकुश लगाया गया है, और भूजल की गहराई कुछ क्षेत्रों में ऊपर आने लगी है| द्वारका की ऊँचाई वर्ष 2018 से 2019 के बीच 1.2 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ी है|

भूजल की अत्यधिक निकासी से शहरों का धंसना एक वैश्विक समस्या है| बीजिंग, वियतनाम के होची मिन्ह शहर, इटली के वेनिस, जापान के टोक्यो और अमेरिका के न्यू ओरलेंस समेत अनेक शहर इससे प्रभावित हैं| चीन में बीजिंग के धंसने की दर 11 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष है, जबकि अमेरिका के न्यू ओरलेंस शहर का बड़ा हिस्सा वर्ष 1990 से 2013 के बीच 113 सेंटीमीटर धंस गया|

भूजल की अत्यधिक निकासी के कारण धंसने वाले शहरों में सबसे चर्चित शहर इंडोनेशिया की वर्तमान राजधानी जकार्ता (Jakarta) है| इस समस्या का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इंडोनेशिया अब इस शहर को छोड़कर 2000 किलोमीटर दूर नया राजधानी शहर, नुसानतारा (Nusantara), बना रहा है| इस शहर के निर्माण के लिए हाल में ही वहां की संसद ने अनुमति दी है| जकार्ता के धंसते जाने के कारण राष्ट्रपति ने वर्ष 2019 में ही नए शहर बनाने का प्रस्ताव दिया था, पर कोविड 19 के कारण इस प्रस्ताव पर आगे कोई कदम नहीं उठाया गया था, पर अब संसद ने भी इसे अनुमोदित कर दिया है, और उम्मीद है कि वर्ष 2024 तक यह काम ख़त्म कर लिया जाएगा| पिछले अनेक वर्षों से इस सन्दर्भ में जकार्ता की चर्चा की जाती है| यह सागर-तटीय शहर है इसीलिए समस्या अत्यधिक गंभीर है| एक तरफ तो तापमान बृद्धि के गारण सागर तल उंचा होता जा रहा है और दूसरी तरफ धंसने के कारण इस शहर के अनेक क्षेत्र गहराई में जा रहे हैं| इसी कारण सागर में हाई टाइड होते ही शहर का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में आ जाता है| जकार्ता के धंसने की दर 25 सेंटीमीटर प्रति वर्ष है|

प्रसिद्ध दार्शनिक फ्रेडरिक एंगेल्स (Frederic Angels) ने कहा था, प्रकृति पर अपनी मानवीय विजय से हमें आत्म-प्रशंसा से विभोर नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रकृति हर ऐसी पराजय का हमसे प्रतिशोध लेती है| भूजल को पम्प से खींचने का तरीका इजाद कर हमने यही सोचा था कि हमने प्रकृति को पराजित कर दिया पर अब भयानक परिणाम सामने है| धरती का सीना चीर कर पानी निकालते-निकालते हम खुद ही धरती में समाने के कगार पर पहुँच गए हैं| 

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