Coronavirus disease (COVID-19): कोविड महामारी से लड़ने में वैक्सीन से अधिक असरदार सामाजिक समरसता

Coronavirus disease (COVID-19): कोविड 19 (COVID 19) से पहले तक चिकित्सा विज्ञान में इस कदर विकास के दावे किये जाते थे, मानो अब मनुष्य अजर-अमर बनाने की राह पर है

Update: 2022-03-26 16:23 GMT

Coronavirus disease (COVID-19): कोविड महामारी से लड़ने में वैक्सीन से अधिक असरदार सामाजिक समरसता

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Coronavirus disease (COVID-19): कोविड 19 (COVID 19) से पहले तक चिकित्सा विज्ञान में इस कदर विकास के दावे किये जाते थे, मानो अब मनुष्य अजर-अमर बनाने की राह पर है, पर सारी धारणाएं और विकास के सभी दावे कोविड 19 ने खोखले साबित कर दिए| यही नहीं सबसे अधिक प्रभावित देशों में अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसे देश शामिल हैं, जिन्हें विज्ञान के क्षेत्र में सबसे अग्रणी माना जाता है|

इसके बाद कोविड 19 का दौर आया और सारी चर्चा जनता के सरकार पर विश्वास और सरकारों द्वारा लागू किये जाने वाले प्रतिबंधों पर सिमट गयी| आज तक हम कोविड 19 के आंकड़ों की समीक्षा केवल सरकारों पर जनता के भरोसे के आधार पर कर रहे हैं, पर एक नए लेख में बताया गया है कि किसी भी महामारी को नियंत्रित करने में सबसे बड़ी भूमिका जनता में आपसी भरोसा (Interpersonal Trust) की है, और यह किसी भी वैक्सीन से अधिक कारगर है|

इस लेख को थॉमस हेल (Thomas Hale) ने लिखा है| थॉमस हेल यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं और ऑक्सफ़ोर्ड कोविड 19 गवर्नमेंट रेस्पोंस ट्रैकर (Oxford COVID 19 Government Response Tracker) के प्रमुख हैं| जाहिर है, थॉमस हेल ने पूरी दुनिया में कोविड 19 के विस्तार, प्रभाव और इससे होने वाली मौतों का गहराई से अध्ययन किया है|

उनके अनुसार समाज में परस्पर भरोसा कोविड 19 की रोकथाम में अहम् है और यह भरोसा सरकार या सरकारी संस्थाओं पर जनता के भरोसे से बिलकुल अलग है| दूसरी तरफ वर्ष 2020 के बाद से पूरी दुनिया में जनता का सरकारों पर भरोसा कम हुआ है और जनता का आपसी भरोसा बढ़ा है, पर जनता के आपसी भरोसे के परिप्रेक्ष्य में कभी भी कोविड 19 के प्रभावों का आकलन नहीं किया गया|

थॉमस हेल के अनुसार किसी भी महामारी के विस्तार को रोकने के लिए इसके प्रसार पर लगाम लगाने के लिए (to flatten the curve) समाज के हरेक सदस्य को कुछ सावधानियों के सख्ती से पालन की जरूरत होती है| कोविड 19 के सन्दर्भ में शारीरिक दूरी और मास्क का उपयोग सबसे आवश्यक हैं| हरेक देश की सरकार ने इस सन्दर्भ में दिशा निर्देश जारी किया और इन्हें सख्ती से लागू कराया, मगर जिस समाज में परस्पर विश्वास अधिक है, वहां लोगों ने एक-दूसरे के स्वास्थ्य का ख्याल रखा और हरेक समय इन सावधानियों का सख्ती से पालन किया|

दूसरी तरफ, जहां लोग केवल सरकारी सख्ती के कारण इन सावधानियों का पालन कर रहे थे, वहां ये सावधानियां एक दिखावा ही रहीं| इसी तरह टेस्टिंग और ट्रेसिंग के सन्दर्भ में भी सामाजिक समरसता वाले क्षेत्रों में लोगों ने जानकारी देने में पूरी इमानदारी दिखाई, जबकि दूसरे क्षेत्रों में लोगों ने महत्वपूर्ण जानकारियों को छुपाया|

थॉमस हेल के अनुसार ग्लोबल हेल्थ सिक्यूरिटी इंडेक्स (Global Health Security Index) ने कोविड 19 के दौर से पहले वर्ष 2019 में दुनिया के देशों की सूचि महामारी से निपटने की क्षमता के सन्दर्भ में जारी की थी| इस रिपोर्ट में बताया गया था कि दुनिया का कोई भी देश भविष्य में पनपने वाली महामारी से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है| इस इंडेक्स में अमेरिका पहले स्थान पर और यूनाइटेड किंगडम दूसरे स्थान पर थे, मगर इसके कुछ महीनों बाद ही कोविड 19 का सैलाब आया, और दोनों ही देशों की सारी तैयारी ताश के पत्तों की तरह हवा में उड़ गयी| इसके बाद इस रिपोर्ट के 2021 के संस्करण में बताया गया है कि दुनिया महामारी से निपटने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है|

थॉमस हेल के अनुसार समाज में आपसी भरोसा सरकार की जिम्मेदारी नहीं हैं, फिर भी सरकार इसमें कुछ योगदान जरूर कर सकती है| आमदनी में असमानता दूर कर और सोशल मीडिया पर झूठ और अफवाहों को नियंत्रित कर सरकारें सामाजिक समरसता को कुछ हद तक बढ़ा सकती है| दुखद यह है कि अधिकतर सरकारें सत्ता में लम्बे समय तक बने रहने के लिए सामाजिक समरसता ख़त्म कर रही हैं और महामारी के प्रभाव को बढ़ा रही हैं|

प्रधानमंत्री मोदी देश और दुनिया के मंच पर कोविड 19 के सन्दर्भ में लगातार अपनी पीठ थपथपाते रहे हैं, अपने आप को चैम्पियन साबित करते रहे हैं – पर महामारी से निपटने के इंडेक्स में भारत वर्ष 2019 में 57वें स्थान पर था, और वर्ष 2021 में यह लुढ़क कर 66वें स्थान पर पहुँच गया| हमारे देश में सामाजिक समरसता की बात ही बेमानी है, यहाँ तो सरकारी स्तर पर ही इसे ख़त्म किया जा रहा है| फूट डालो और राज करो वाली नीति का इस्तेमाल तो अंग्रेजों ने गुलाम भारत के दौर में भी इस हद तक नहीं किया था, जैसा बीजेपी सरकार कर रही है, और अफवाह और झूठी खबरों के विस्तार में तो हमारे प्रधानमंत्री से लेकर उनके समर्थक तक सभी लिप्त हैं|

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