हार से बौखलाये और पगलाये ट्रम्प जैसे हालात कहीं भारत को भी न देखने पड़ें
जो हरकत ट्रम्प के अंधभक्तों ने की है, मोदी की चुनावी हार के बाद मोदी के अंधभक्त भी संसद पर इसी तरह हमला कर दें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी...
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की टिप्पणी
जनज्वार। ट्रम्प के अंधभक्तों ने सत्ता हस्तांतरण न होने के लिए व्हाइट हाउस पर हमला किया है। खुद को लोकतंत्र का सबसे बड़ा हिमायती बताने वाला अमेरिका आज एक दक्षिणपंथी तानशाह प्रवृत्ति वाले शासक की निरंकुशता का दंश झेलने के लिए मजबूर हुआ है।
जिस तरह ट्रम्प के मन में लोकतंत्र के प्रति जरा भी सम्मान नहीं है उसी तरह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में भी लोकतंत्र के प्रति कोई आस्था नहीं है। दुनिया ने आज ट्रम्प के अंधभक्तों के हमले को देखा है, जबकि भारत में पिछले सात सालों से मोदी के अंधभक्त इसी तरह की हिंसक हरकतें करते रहे हैं।
ये अंधभक्त कभी गोरक्षक बनकर निर्दोष मुसलमानों की हत्या करते रहे हैं तो कभी लव जिहाद का बहाना बनाकर निर्दोष मुसलमानों की जान लेते रहे हैं। अंधभक्त लगातार दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों पर हमले करते रहे हैं और मोदी उनको अभयदान प्रदान करते रहे हैं।
मोदी ने तमाम संवैधानिक संस्थाओं का बंध्याकरण कर दिया है और आज मोदी की आलोचना का अर्थ देशद्रोह बन चुका है। जो हरकत ट्रम्प के अंधभक्तों ने की है, मोदी की चुनावी हार के बाद मोदी के अंधभक्त भी संसद पर इसी तरह हमला कर दें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
अमेरिका में ट्रम्प युग के हिंसक अंत का मंजर सामने आ चुका है। राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड जॉन ट्रम्प का कार्यकाल क्रोध, विभाजन और षड्यंत्र भड़काने के साथ शुरू हुआ था और अंत में एक हिंसक भीड़ ने संसद पर हमला कर दिया जिसे एक पराजित नेता ने उकसाया जो पराजित होकर भी सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रहा है। वह जाता रहा है कि अमेरिका लोकतंत्र की जगह एक अधिनायकवादी राष्ट्र है।
वाशिंगटन में एक ऐसे दृश्य की पहले कल्पना भी नहीं की गई होगी। अमेरिकी लोकतंत्र के गढ़ पर हमला। हाउस चैंबर का बचाव करने के लिए एक सशस्त्र गतिरोध में बंदूक तानते पुलिस अधिकारी। रोटुंडा में टियर गैस का उपयोग। कानून बनाने वाले छिपने के लिए मजबूर। चरमपंथी सीनेट के उपाध्यक्ष की सीट पर खड़े हैं और सदन के स्पीकर की मेज पर बैठे हैं।
इसका वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किए गए शब्द समान रूप से खतरनाक हैं, तख्तापलट। विद्रोह। राजद्रोह। अचानक संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना 'बनाना रिपब्लिक' से की जा रही है और अन्य देशों से चिंता के संदेश प्राप्त हो रहे हैं। ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में अमेरिका का ध्रुवीकरण कर दिया है। जिन लोगों ने सबसे खराब स्थिति की चेतावनी दी थी उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। अब उनकी चेतावनी सच साबित हुई है। इस हिंसक घटना के बाद कुछ रिपब्लिकन ने जो बाइडन के पद संभालने के लिए दो सप्ताह की प्रतीक्षा के बजाय 25वें संशोधन के तहत ट्रम्प को हटाने का सुझाव दिया है।
कैपिटल भवन पर असाधारण आक्रमण राजनीतिक निष्कासन का सामना करने वाले एक गुट का हताशा से भरपूर अंतिम कदम माना जा सकता है। बुधवार 6 जनवरी की दोपहर इमारत में भीड़ के घुसने से पहले ही ट्रम्प के हाथ से राष्ट्रपति पद फिसल गया था। डेमोक्रेट्स सीनेट पर जॉर्जिया की चुनावी जीत के साथ नियंत्रण की स्थिति में थे, जबकि रिपब्लिकन राष्ट्रपति ट्रम्प के अनियमित व्यवहार के चलते गुस्से में थे।
उनके दो सबसे वफादार सहयोगी उपराष्ट्रपति माइक पेंस और केंटकी के सांसद मिच मैककोनेल ने ट्रम्प का साथ देने से इनकार कर दिया। उन्होंने पहले कभी ऐसा नहीं किया था। उन्होंने लोकतांत्रिक चुनाव को पलट देने के ट्रम्प के अभियान का समर्थन करने से इनकार कर दिया। चार साल के जहरीले संघर्ष, लांछन और नाटकीयता के दौरान वे ट्रम्प का साथ देते रहे थे। कैपिटल को घेरने के बाद रिपब्लिकन ने धैर्य खो दिया।
'हमने आज जो कुछ भी देखा है वह गैरकानूनी और अस्वीकार्य है...' वाशिंगटन राज्य की प्रतिनिधि कैथी मैकमोरिस रॉजर्स ने कहा। वह हाउस रिपब्लिकन नेतृत्व की एक सदस्य हैं, जिसने चुनाव परिणामों को अवरुद्ध करने के ट्रम्प के प्रयास में शामिल होने की योजनाओं को उलट दिया हाई। 'मैंने फैसला किया है कि मैं इलेक्टोरल कॉलेज के परिणामों को बनाए रखने के लिए मतदान करूंगी और मैं डोनाल्ड ट्रम्प को इस पागलपन की निंदा करने के लिए अनुरोध करती हूं।'
रिपब्लिकन नेता, व्योमिंग की प्रतिनिधि लिज़ चेनी ने कहा कि हिंसा के लिए ट्रम्प जिम्मेदार थे। फॉक्स न्यूज को अपनीऑनलाइन पोस्ट की गई टिप्पणियों में उन्होंने कहा, 'कोई संदेह नहीं है कि राष्ट्रपति ने भीड़ को एकत्रित किया, राष्ट्रपति ने भीड़ को उकसाया, राष्ट्रपति ने भीड़ को संबोधित किया। उन्होंने हिंसा को बढ़ावा दिया। यह अमेरिका का चरित्र नहीं है।'
एक वरिष्ठ रिपब्लिकन मिसौरी के सेन रॉय ब्लंट ने कहा कि ट्रम्प को जो कहना था, उसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। उन्होंने कहा, 'मैं कुछ भी नहीं सुनना चाहता। यह एक दुखद दिन था और मुझे लगता है कि ट्रम्प इसके पीछे हैं।'
ट्रम्प के वफ़ादारों ने भी आलोचना की है। उनके सलाहकारों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि वह एक चुनाव हारने की वजह से कितनी हदों को लांघने के लिए तैयार हैं। कम से कम तीन सहयोगियों, स्टेफ़नी ग्रिशम, सारा मैथ्यूज़ और रिकी निकेता ने इस्तीफा दे दिया और अधिक सहयोगी उनका साथ छोडने वाले हैं। शुरू में ट्रम्प ने कैपिटल में भीड़ को शांत करने के लिए केवल हल्के बयान देने की पेशकश की। ट्रम्प की टीम के कई सदस्यों ने सार्वजनिक रूप से उन्हें और अधिक कहने के लिए प्रेरित किया।
मिक मुलवेनी, जिन्होंने ट्रम्प के व्हाइट हाउस के प्रमुख के रूप में काम किया और अभी भी एक विशेष दूत के रूप में कार्य करते हैंए ने हिंसा रोकने की अपील की। 'सबसे अच्छी बात यह है कि ट्रम्प अभी ओवल ऑफिस से राष्ट्र को संबोधित कर सकते हैं और दंगों की निंदा कर सकते हैं...' उन्होंने लिखा।
जब जो बाइडन कैपिटल में ष्विद्रोहष् को रोकने के लिए लाइव टेलीविज़न पर गए और ट्रम्प से टीवी पर आने का आग्रह किया, तब ट्रम्प ने एक रिकॉर्ड किया गया वीडियो ऑनलाइन जारी किया, जिसमें मिश्रित संदेश दिए गए थे। यहां तक कि जब उन्होंने समर्थकों को बताया कि यह वापस लौटने का समय है तो उन्होंने उनके हमले की निंदा करने के बजाय उनकी प्रशंसा की और विरोधियों की भर्त्सना की जो 'बेहद बुरे थे।'
'मुझे पता है कि आप आहत हैं...' उन्होंने दंगाइयों से कहा, 'हमारे पास एक चुनाव था जो हमसे चुराया गया। यह एक शानदार चुनाव था और हर कोई इसे जानता है, खासकर दूसरे पक्ष को। लेकिन आपको अभी घर जाना है।'
उन्होंने कहा, 'हम आपसे प्यार करते हैं। आप बहुत खास हैं।' हिंसा को शांत करने के बजाय, वीडियो के जरिये उन्होंने समर्थकों को उकसाया। ट्विटर ने ट्रम्प के खाते को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है।