हेट स्पीच रोकने में कितना कारगर होगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला, पहले भी कह चुका है राज्य के नपुंसक होने से हो रहे हैं नफरती भाषण
Hate Speech : सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जब भी कोई नफरत फैलाने वाला भाषण देता है तो सरकारें बिना किसी शिकायत के एफआईआर दर्ज करें, हेट स्पीच से जुड़े मामलों में केस दर्ज करने में देरी होने पर इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा...
वरिष्ठ पत्रकार अशोक मधुप की टिप्पणी
Hate Speech : सुप्रीम कोर्ट का 28 अप्रैल को आया फैसला हैट स्पीच पर रोक लगाने में ब्रह्मास्त्र का काम करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 28 अप्रैल को हेट स्पीच के मामलों में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तत्काल एक्शन लेने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि जब भी कोई नफरत फैलाने वाला भाषण देता है तो सरकारें बिना किसी शिकायत के एफआईआर दर्ज करें। हेट स्पीच से जुड़े मामलों में केस दर्ज करने में देरी होने पर इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा। कोर्ट ने कहा- ऐसे मामलों में कार्रवाई करते हुए बयान देने वाले के धर्म की परवाह नहीं करनी चाहिए। इसी तरह धर्मनिरपेक्ष देश की अवधारणा को जिंदा रखा जा सकता है। कोर्ट ने अपने 2022 के आदेश का दायरा बढ़ाते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह निर्देश दिए हैं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ यूपी, दिल्ली और उत्तराखंड सरकार को ये आदेश दिया था।
अदालत ने यह भी कहा कि हेट स्पीच एक गंभीर अपराध है, जो देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को प्रभावित कर सकता है। जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हम धर्म के नाम पर कहां पहुंच गए हैं? यह दुखद है।
न्यायाधीश गैर-राजनीतिक हैं और उन्हें पार्टी ए या पार्टी बी से कोई सरोकार नहीं है और उनके दिमाग में केवल भारत का संविधान है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट देश के विभिन्न हिस्सों से दाखिल हेट स्पीच से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
पहले पत्रकार शाहीन अब्दुल्ला ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर नफरत फैलाने वाले बयान देने वालों के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की थी। इस पर कोर्ट ने 21 अक्टूबर 2022 को दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों को ऐसे मामलों में बिना शिकायत के केस दर्ज करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने आज अपने आदेश का दायरा बढ़ा दिया है।
इससे पहले मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई में कहा था कि 'हर रोज टीवी और सार्वजनिक मंचों पर नफरत फैलाने वाले बयान दिए जा रहे हैं। क्या ऐसे लोग खुद को कंट्रोल नहीं कर सकते? उनकी यह भी राय है कि जिस दिन राजनीति और धर्म अलग हो जाएंगे। नेता राजनीति में धर्म का उपयोग करना बंद कर देंगे। उसी दिन नफरत फैलाने वाले भाषण भी बंद हो जाएंगे। हम अपने हालिया फैसलों में भी कह चुके हैं कि पॉलिटिक्स को राजनीति के साथ मिलाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।'
वहीं, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी की मिसाल देते हुए कहा, 'वाजपेयी और नेहरू को याद कीजिए, जिन्हें सुनने के लिए लोग दूर-दराज से इकट्ठा होते थे। हम कहां जा रहे हैं?
लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस केएम जोसेफ ने मामले में राज्य सरकार के रवैये पर तल्ख टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था, राज्य नपुंसक हैं। वे समय पर काम नहीं करते। जब राज्य ऐसे मसलों पर चुप्पी साध लेंगे तो फिर उनके होने का मतलब क्या है।
पिछले कुछ सालों से देश में हेड स्पीच देने का चलन तेजी से बढ़ा है। समाज के घृणा फैलाने वाले बयान देकर नेताओं का प्रयास अपने समाज के वोटर का रिझाना होता है। एक छोटे से हित के लिए ये नेता भूल जाते हैं कि वे समाज के पारस्परिक सौहार्द को खराब कर रहे हैं।
केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद भाजपा के कुछ छुटभैया नेता बेलगाम नजर आए। उनके मन में जो आया,वह कहा। इसे लेकर कई जगह पार्टी की स्थिति बहुत खराब हो गई। महाराष्ट्र में तो शिवसैनिक नफरती बयान देने के लिए प्रसिद्ध रहे हैं।
प्रदेश की पुलिस सत्तारूढ़ दल के नेताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज करते अबतक बचती थी। उसे अपनी सरकार के कोप भाजन का डर रहता था। अब तक सरकार ही अपने लोगों के बचाने में आ जाती है किंतु अब ऐसा नही हो सकेगा। सुप्रीम कोर्ट के यह कहने से कि जब भी कोई नफरत फैलाने वाला भाषण देता है तो सरकारें बिना किसी शिकायत के एफआईआर दर्ज करें। हेट स्पीच से जुड़े मामलों में केस दर्ज करने में देरी होने पर इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा।
नूपुर शर्मा के एक डिबेट में मुहम्मद साहब के बारे में की गई टिप्पणी से केंद्र सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ा। हालांकिभाजपा ने नूपुर शर्मा को पार्टी से निकालते हुए स्पष्ट किया था कि ये पार्टी का अपना बयान नही है। इसके बावजूद कई मुस्लिम देश अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। कुछ जगह बाय काट इंडिया अभियान चलाया गया। कुवैत के कुछ सुपर स्टोर्स ने भारत में बने सामानों की बिक्री रोक दी है।देश भर में शुक्रवार को कई जगह प्रदर्शन हुए। तोड़फोड़ हुई।कई स्थान पर इंटरनेट बंद करना पड़ा। कर्फ्यू भी लगाया गया।
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी कांड में स्वयं न्यायालय ने कहा कि यदि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा एक सभा में कुछ लोगों को भुगत लेने की धमकी देते न देते तो वह प्रदर्शन ही नही होता, जिसमें कार से कुचलकर प्रदर्शनकारी मरे। और बाद में प्रदर्शनकारियों ने कार सवारों को पीट −पीट की मार डाला।
इस लखीमपुर हादसे के बाद केंद्र सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। हो सकता है कि यदि ये हादसा न होता, केंद्र सरकार दबाव में न होती। उसे कृषि कानून वापस लेने के लिए बाध्य न होना पड़ता।
इन सब मामलों को देखते हुए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पार्टी नेताओं से कहना पड़ा था। बहुत संभाल कर बोले। पिछली जनवरी में फिर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी नसीहत पार्टी कार्यकर्ताओं को दी है। उन्होंने सख्ती के साथ कहा कि टिप्पणी करते मर्यादित भाषा का प्रयोग करें। एक रिपोर्ट के अनुसार उस समय भाजपा ने धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले अपने 38 नेताओं की पहचान की है। इनमें से 27 चुने हुए नेताओं को ऐसे बयान देने से बचने की हिदायत दी है। इनसे कहा गया है कि धार्मिक मुद्दों पर बयान देने से पहले पार्टी से परमिशन ले लें। इतना सब होने के बाद भी कोई मानने को तैयार नहीं।
कर्नाटक के भाजपा विधायक बासनगौड़ा ने शुक्रवार को सोनिया गांधी को विषकन्या कह दिया। उन्हें चीन और पाकिस्तान का एजेंट बताया। बीजेपी नेता ने यह बयान पीएम नरेंद्र मोदी पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की जहरीले सांप वाली टिप्पणी पर दिया है। बासनगौड़ा ने एक जनसभा में कहा, 'अब खड़गे पीएम की तुलना कोबरा सांप से कर रहे हैं और कह रहे हैं कि वे जहर उगलेंगे, लेकिन जिस पार्टी में आप नाच रहे हैं, क्या सोनिया गांधी विषकन्या हैं?'
दरअसल हमारा इलैक्ट्रानिक मीडिया भी अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए जानबूझकर ऐसे छुटभैय्यों नेताओं के बयान ले रहा है,जो विवादास्पद बयान देने के आदी हैं। होना यह चाहिए कि राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष के बयान पर प्रतिक्रिया देने के अधिकार संबधित पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष या पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता को होना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर के मामलों पर छुटभैय्या नेताओं से तो बात बिल्कुल न की जाए।किंतु ऐसा हो रहा है। धड़ल्ले से हो रहा है।इसपर पार्टी स्तर से ही रोक लगनी चाहिए।
शुक्रवार 28 अप्रैल को ही केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी सरकार की तुलना रावण से करने वाले एक बयान पर विवाद हो गया है। गजेंद्र सिंह शेखावत ने गुरुवार 27 अप्रैल को पत्रकारों से कहा, ‘‘राजस्थान के इस राजनीतिक रावण के 10 सिर हैं! इस राजनीतिक रावण को समाप्त करके राजस्थान में राम के राज्य की स्थापना करनी है।
समझ में नही आ रहा कि हमारे नेताओं को क्या हो रहा है। ऐसे में जब ये बड़बोले नेता मानने को तैयार नही, तब सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इनकी जवान पर ताला लगाने में कामयाब होगा। अच्छा रहे कि ये नेता खुद ही सुधार जांए, नही तो न्याय पालिका का चाबुक इन्हें सही कर ही देगा।