सत्ता के सामने समस्याएं उजागर करने वाला हरेक नागरिक आतंकवादी, देशद्रोही और माओवादी और जानलेवा वायु प्रदूषण उपेक्षित विषय
सत्ता की नाकामियाँ उजागर करने का काम मीडिया का होता है, पर हमारे देश में सत्ता से अधिक नाकामयाबियाँ तो मीडिया की ही हैं.....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Air Pollution in Delhi shortens the life of its residents by 11.9 years. हमारे देश में सत्ता में व्यक्तिवाद इस कदर हावी हो गया है कि पूरे देश को समस्या नजर नहीं आती, क्योंकि सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता यह बताने में जुटे हैं कि अब देश में कोई समस्या नहीं है। सत्ता के सामने समस्याएं उजागर करने वाला हरेक नागरिक आतंकवादी, देशद्रोही और माओवादी करार दिया जाता है। सत्ता हमें यह बताने में कामयाब रही है कि अब देश में कोई समस्या नहीं है और विश्वगुरु भारत अब पूरे दुनिया की समस्याएं सुलझा रहा है।
सत्ता की नाकामियाँ उजागर करने का काम मीडिया का होता है, पर हमारे देश में सत्ता से अधिक नाकामयाबियाँ तो मीडिया की ही हैं। देश में वायु प्रदूषण साल-दर-साल विकराल स्वरूप ले रहा है, इसके प्रभाव पहले से अधिक घातक होते जा रहे हैं, पर इसे छोड़कर हम जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के सन्दर्भ में स्वघोषित विश्वगुरु बनाते जा रहे हैं। वायु प्रदूषण का आलम यह है कि जब बड़ी संख्या में दिल्ली में विदेशी राजनेता आये हैं तब हमें पूरी दिल्ली और आसपास के शहरों में लॉकडाउन लगाना पड़ता है।
ऐसी ही एक समस्या वायु प्रदूषण की है, जिस पर अब सत्ता और मीडिया सभी ने चुप्पी साध ली है, पर वायु प्रदूषण सक्रिय है और अपना असर दिखा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स 2023 के अनुसार केवल वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली के लोगों की औसत आयु में 11.9 वर्षों की कमी आ रही है। इस रिपोर्ट को वर्ष 2021 के वायु प्रदूषण के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पीएम2.5 की सांद्रता वायु में 5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए, पर हमारे देश में कोई भी जगह ऐसी नहीं है जहां पीएम2.5 की सांद्रता इससे अधिक नहीं हो।
दिल्ली में पीएम 2.5 की औसत सांद्रता वर्ष 2021 में 126.5 माइक्रोग्राम थी, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 25 गुना से भी अधिक है। हमारे देश में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पीएम2.5 का मानक विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक की तुलना में 8 गुना अधिक, यानि 40 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर निर्धारित किया है। दिल्ली में पीएम2.5 की औसत वार्षिक सांद्रता केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित मानक की तुलना में भी तीन-गुना से अधिक है, और यह बढ़ती जा रही है। वर्ष 2020 में पीएम2.5 की औसत वार्षिक सांद्रता 107 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर थी।
देश की 67.4 प्रतिशत आबादी अपनी सांस के साथ जो हवा लेती है, उसमें पीएम2.5 की सांद्रता केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित मानक से अधिक रहती है। अपनी बड़ी आबादी के कारण दुनिया के किसी भी देश की तुलना में वायु प्रदूषण का असर भारत में सबसे घातक होता है। हमारे देश में उत्तरी क्षेत्र और गंगा का मैदान – बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल - वायु प्रदूषण की दृष्टि से निकृष्ट है। देश के पूरे उत्तरी क्षेत्र में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की आयु औसतन 8 वर्ष कम हो रही है।
पूरे देश के सन्दर्भ में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की औसतन आयु 5.3 वर्ष कम हो रही है, यानि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुरूप यदि हम हवा में पीएम2.5 की सांद्रता रख पाते हैं तो लोगों की औसत आयु में 5.3 वर्ष की बढ़ोत्तरी होगी। यदि पीएम2.5 की सांद्रता केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों की सीमा में रहता है, तब भी लोगों की औसत आयु में 1.8 वर्षों की बढ़ोत्तरी होगी।
वायु प्रदूषण के लिए कुछ वर्ष पहले तमाम योजनायें बनाई गईं, बड़े तामझाम से नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को शुरू किया गया। शहरों में सार्वजनिक स्थानों पर बड़े-बड़े एयर प्युरिफायर लगाए गए, महंगे वाटर गन और वाटर स्प्रिंकलर सडकों पर दौड़ाने लगे और सडकों से धूल हटाने के लिए नई मशीनें दौड़ने लगीं – पर इसका क्या असर हुआ किसी को नहीं पता। इनमें से अधिकतर उपकरण अब काम भी नहीं करते। दूसरी तरफ दिल्ली में वर्ष 2013 से 2021 के बीच पीएम2.5 की सांद्रता में 9.5 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गयी। इस बीच रूम एयर प्यूरीफायर का एक बड़ा बाजार खड़ा हो गया।
हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है, वह है हरेक आपदा का इवेंट मैनेजमेंट। प्रदूषण भी अब एक इवेंट मैनेजमेंट बन गया है। इस दौर में गुमराह करने का काम इवेंट मैनेजमेंट द्वारा किया जाता है, इसके माध्यम से सबसे आगे वाले को धक्का मारकर सबसे पीछे और सबसे पीछे वाले को सबसे आगे किया जा सकता है। अब तो प्रदूषण नियंत्रण भी एक विज्ञापनों और होर्डिंग्स का विषय रह गया है, जिस पर लटके नेता मुस्कराते हुए दिनरात गुबार में पड़े रहते हैं।
पब्लिक के लिए भले ही वायु प्रदूषण ट्रेजिक हो, हमारी सरकार और नेता इसे कॉमेडी में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ते। सरकारें विरोधियों पर हमले के समय वायु प्रदूषण का कारण कुछ और बताती हैं, मीडिया में कुछ और बताती हैं, संसद में कुछ और बताती हैं और न्यायालय में कुछ और कहती हैं। दूसरी तरफ मीडिया कुछ और खबर गढ़ कर महीनों दिखाता रहता है। न्यायालय हरेक साल बस फटकार लगाता है, मीडिया और सोशल मीडिया पर खबरें चलती हैं, फिर दो-तीन सुनवाई के बाद मार्च-अप्रैल का महीना आ जाता है और न्यायालय का काम भी पूरा हो जाता है।
निरंकुश सत्ता के लिए जनता कुछ नहीं होती तभी हरेक कार्य एक इवेंट होता है, दिखावा होता है। चन्द्रमा पर पहुँचना एक अंतरराष्ट्रीय दिखावा है, सो हम वहां पहुँच गए। दूसरी तरफ देश में वायु प्रदूषण सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या है, पर इससे अधिकतर सामान्य नागरिक प्रभावित होते हैं – जाहिर है सत्ता इसे उपेक्षित विषय मानती है।