धरी रह गयी गोदी मीडिया की किसान आंदोलन को श्रद्धांजलि देने की तैयारी

यूं तो आम समझ है कि मीडिया न्यूट्रल यानि कि निष्पक्ष होती है, लेकिन देश के आम लोगों की तरह मीडिया भी एक तरह से धड़ों में बंट चुकी है और इसका सटीक नजारा किसान आंदोलन के दौरान गुरुवार को देखने को मिला..

Update: 2021-01-30 05:59 GMT

राजेश पांडेय का विश्लेषण

जनज्वार। केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर पिछले लगभग 2 महीनों से ज्यादा समय से जारी किसान आंदोलन ने अब नया मोड़ ले लिया है। गणतंत्र दिवस पर निकाले गए किसान ट्रैक्टर मार्च के बाद घटनाएं काफी तेजी से घटित हो रही हैं और उसी अनुसार माहौल भी बदल रहा है।

गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर मार्च के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन समाप्ति की ओर बढ़ता दिख रहा था, गुरुवार रात के घटनाक्रम ने आंदोलन में एक तरह से नई जान फूंक दी है। इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि मीडिया के धड़े भी इन सब घटनाओं की निष्पक्षता नहीं, बल्कि अपनी-अपनी निष्ठा(?) के हिसाब से व्याख्या कर रहे हैं।

यूं तो आम समझ है कि मीडिया न्यूट्रल यानि कि निष्पक्ष होती है, लेकिन देश के आम लोगों की तरह मीडिया भी एक तरह से धड़ों में बंट चुकी है और इसका सटीक नजारा किसान आंदोलन के दौरान गुरुवार को देखने को मिला। मीडिया से जुड़े पुराने लोग कहते रहे हैं कि जो भी घटित हो रहा है, उसको यथास्थिति लोगों के पास पहुंचा देना मीडिया का काम भी होता है और दायित्व भी। मीडिया का एक काम घटित घटनाओं का विश्लेषण करना भी होता है, लेकिन निष्पक्षता विश्लेषण की सबसे बड़ी शर्त होती है।

खैर, ये सब पुरानी बातें हैं और बस कहने-सुनने भर की रह गई हैं। आज के दौर की मीडिया ने अपनी परिभाषा खुद गढ़ ली है और उसी अनुरुप लोगों ने इन धड़ों का नामकरण भी कर दिया है। अब मीडिया की पहचान 'गोदी मीडिया', 'दलाल मीडिया', 'देशद्रोही मीडिया' सहित फलां पार्टी और विचारधारा की मीडिया के तौर पर किया जाने लगा है। हैरानी की बात यह है कि इनमें से किसी विश्लेषण(!) की चर्चा होते ही लोग समझ जाते जाते हैं कि किन चैनल-अखबार या पोर्टल की बात हो रही है।


26 जनवरी की घटना के बाद मीडिया के ये धड़े अपने-अपने तरीके से घटनाओं की प्रस्तुति और उनका विश्लेषण कर रहे हैं। गणतंत्र दिवस के बाद किसान आंदोलन में कई दौर आए। एक दफा यह लगा कि आंदोलन अब अपनी अंतिम सांसें ले रहा है। कुछ किसान संगठनों ने खुद को इस आंदोलन से अलग करने की घोषणा कर दी तो गाजीपुर बॉर्डर पर दिल्ली और उत्तरप्रदेश की पुलिस सहित अर्धसैनिक बलों का भारी जमावड़ा लग गया। खबर आई कि गुरुवार को ही बॉर्डर खाली करने का निर्देश दे दिया गया है। उसके बाद किसानों के टेंट-कनात भी उखड़ने लगे थे।

इस दौरान मीडिया के एक धड़े की खुशी देखते ही बन रही थी। इस धड़े के मीडिया घरानों ने अपने नामी एंकरों को इस आंदोलन को श्रद्धांजलि(?) देने के काम में लगा भी दिया था। वहीं दूसरा धड़ा मायूसी के आलम में दिख रहा था। हालांकि मीडिया के खुश होनेवाले धड़े की यह खुशी क्षणिक निकली और किसान नेता राकेश टिकैत के रोते हुए वीडियो के वायरल होने के बाद माहौल फिर से बदल गया।

हरियाणा, उत्तरप्रदेश सहित अन्य जगहों से किसानों का जत्था गाजीपुर बॉर्डर की तरफ बढ़ने लगा। हालांकि मीडिया के उस धड़े ने इस खबर को अपनी ओर से दबाने की कोशिश भी की, पर यह खबर लगातार चलती रही। इसके बाद मीडिया के उस धड़े की खुशी धराशायी हो गई और इसके साथ ही धरी रह गई आंदोलन को श्रद्धांजलि देने की तैयारी।


गुरुवार से अबतक की प्रमुख घटनाओं पर एक नजर

गुरुवार को गाजीपुर के मंच से भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने एक भावुक अपील की और उसके बाद बड़ी संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर पहुंच गए।

इसके साथ ही गुरुवार की देर रात गाजीपुर बॉर्डर से अचानक सुरक्षाकर्मियों को हटा लिया गया है। फिलहाल बॉर्डर पर सभी पीएसी जवानों को क्यों हटाया गया है, इसकी जानकारी अभी तक सामने नहीं आ पाई है।

हालांकि सुरक्षाकर्मियों द्वारा कहा गया कि सुबह से ड्यूटी पर तैनात थे, अब जाने के लिए बोला गया है। गाजीपुर बॉर्डर एक तरह से छावनी में तब्दील हो चुका था। बड़ी तादाद में पुलिस फोर्स और रैपिड ऐक्शन फोर्स की तैनाती की गई थी। उधर आधी रात से किसानों के नए समूह धरनास्थल पर पहुंचने लगे।

वहीं दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने जानकारी दी है कि NH-24, गाजीपुर बॉर्डर आने और जाने वाले मार्ग को बंद कर दिया गया है। वहीं टिकरी बॉर्डर पर बड़ी संख्या में सुरक्षाबल तैनात है। कृषि कानूनों के खिलाफ यहां किसानों का विरोध-प्रदर्शन जारी है।

गाजीपुर बार्डर पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। किसान नेता जगतार सिंह बाजवा ने बताया, "हमारे पास अभी ऐसा(प्रदर्शन स्थल खाली करने का) कोई आदेश नहीं आया है। कल शाम को डीएम के पास से एक नोटिस आया था, उसपर चर्चा के बाद उसका जबाब देंगे।

उधर राकेश टिकैत के समर्थन में मुजफ्फरनगर में आज महापंचायत करने की बात कही गई है। राकेश टिकैत के बड़े भाई और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा है कि छोटे भाई के आंसू व्यर्थ नहीं जाएंगे।

इससे पहले गुरुवार की देर रात उत्तर प्रदेश के कई गांवों से किसानों का काफिला गाजीपुर बॉर्डर की तरफ बढ़ना शुरू हो गया था।

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता व दिल्ली में संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत के समर्थन में वीरवार देर रात कंडेला गांव में ग्रामीणों ने जींद-चंडीगढ़ मार्ग पर जाम लगा दिया। जाम की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन लोगों ने करीब 15 मिनट बाद खुद ही जाम खोलते हुए शुक्रवार को गांव में पंचायत कर आगे की रणनीति बनाने का फैसला लिया।

भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश प्रवक्ता छाज्जूराम कंडेला ने बताया कि राकेश टिकैत की वीडियो वायरल होने के बाद गांव के युवाओं ने जाम लगा दिया। फिलहाल युवाओं को समझा कर जाम खुलवाया गया है, अब शुक्रवार को पंचायत की जाएगी। 

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