BJP धर्म का सहारा ले वोट बटोरने का ​करती है जितना प्रयास, उसकी 5 फीसदी भी जातीय चेतना की दिशा में होने लगे तो मोदी की पार्टी के लिए चुनाव जीतना हो जायेगा असंभव

जिस दिन जातीय गोलबंदी सही से हो गई, उस दिन धर्म के नाम पर वोट माँगने वालों की जमानत ज़ब्त हो जाएगी। 1993 में यूपी में एक नारा निकला - “मिलें मुलायम-कांशीराम हवा हो गये जय श्रीराम।” जबकि उस समय मंदिर बनाने के लिए लोग ज़्यादा भावुक और संघर्षशील थे। परिणाम हुआ कि जब राम मंदिर बनाने की लहर चरम पर थी, उत्तर प्रदेश में बीजेपी हारी थी....

Update: 2024-06-15 13:29 GMT

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हिंदू धर्म और जाति पर दलित नेता डॉ. उदित राज की टिप्पणी

Ayodhya and BJP : अयोध्या और फ़ैज़ाबाद के आसपास की पाँच लोकसभा सीटें बीजेपी हारी तो हड़कंप मच गया। धर्म और जाति के बीच जब कुश्ती हो तो जिसका दांव और तैयारी अच्छी है वो बाजी मार जाता है। इससे कई बातें समझने में सहायक होती हैं। धर्म का जिस तरह से प्रचार किया गया उसके बावजूद जाति भारी पड़ी। राम मंदिर निर्माण का प्रचार और संसाधन बेशुमार था, जो मुक्ति और स्वर्ग का रास्ता प्रशस्त करता है। घर में सुख और शांति और मन्नत पूरी होती है। इसके बावजूद आनुपातिक असर बहुत कम रहा।

दूसरी तरफ़ जाति को संगठित करने के प्रयास में न तो इतना प्रचार था और न ही सरकारी समर्थन। मंदिर की तुलना में 5% का भी प्रयास नहीं दिखता। महीनों से जहां देखो राम मंदिर की चर्चा और हर घर तक अक्षत पहुँचाया। इसके बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं आये और दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक की मामूली हवा से ढह गया मंदिर का मुद्दा।

भारत की राजनीति में ये दोनों बड़े मुद्दे हैं और समय, परिस्थिति, संख्या और नेतृत्व आदि के कारण एक दूसरे के ऊपर हावी होते रहते हैं। समाजवादी पार्टी बहुजन राजनीति को साधती रही और नरमपंथ का रास्ता भी पकड़कर रखा। स्वामी प्रसाद मौर्य सनातन और हिंदू धर्म पर बराबर प्रहार करते रहे, लेकिन समाजवादी इसे उनका निजी बयान कहकर मुद्दे पर गौर नहीं किया। कुछ ज़मीन स्वामी प्रसाद मौर्य तैयार किये और अंत में पार्टी भी छोड़ दिया। शायद उन्हे आभास नहीं हो पाया कि इसकी परिणति क्या होगी?

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हिंदुत्ववादी बहुत क्रोधित हो रहे हैं कि कितने अहसान फ़रामोश लोग हैं कि धर्म से ग़द्दारी कर गये। क्यों वोट नही दिया? ये ग़द्दार हैं और इन्हें मुसलमानों से सीखना चाहिए। संघ और बीजेपी ने वर्षों आंदोलन चलाया और लोग मारे भी गए, तब रामलला का मंदिर बन पाया। लोगों ने घर को त्यागा, चन्दा इकट्ठा किया, कार सेवा की, समय लगाया, खून-पसीना बहाया फिर भी दलित/ पिछड़े भी धोखा दिये। उत्तर खोज रहे हैं कि हिंदुओं ने ग़द्दारी क्यों है, क्या दूसरे धर्म में ऐसा संभव है? नई सड़कें, रास्ते, होटल, हवाई अड्डा और क्या न किया गया, फिर भी चुनाव हरा दिया।

जिन्होंने वोट नहीं दिया, उनको समझते हैं। जब जाति तमाम सारी सामाजिक और राजनीतिक अपेक्षयायें पूरी करती है तो उसके साथ खड़ा होना ही है। कुछ अधिकार और सरंक्षण जाति में पैदा होते ही स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाते हैं। पैदा होते ही रिश्तेदार और जाति बिरादरी के लोग पहुंच जाते हैं। मुंडन, जन्मदिन, दुख-सुख में जाति ही काम आती है। शादी से ज़्यादा अनिवार्य क्या कुछ हो सकता है, जिसकी गारण्टी है कुछ अपवाद को छोड़कर। लड़ाई-झगड़ा में जाति ही काम आती है। जब इतने सारे फ़ायदे जाति से हों तो ग़ैर जाति वाले को क्यों कोई वोट दें? जितना धर्म का सहारा लेकर वोट बटोरने का काम होता है उसका 5% का प्रयास जातीय चेतना और संगठित करने में लगा दिया जाये तो बीजेपी के लिए कोई भी चुनाव जीतना संभव नहीं होगा।

राम मंदिर बना और 13 प्रबंधकों में केवल नाम के वास्ते एक दलित है? आपको वोट नहीं दिया तो चिल्ला पड़े और दलित और पिछड़ों को जगह नहीं दिया तो क्या वे उपेक्षित नहीं महसूस कर रहे हैं? जब तक जागृति नहीं हुई थी तब तक मुसलमानों से लड़ा देना मामूली बात थी। भेड़-बकरी की तरह हाँका, लेकिन अब समय बदल गया है।

ग़नीमत है दलित और पिछड़े वोट के लिए इतना प्रयास नहीं करते जितना सवर्ण करते हैं। क्या जाति को गोलबंद करने के लिये कोई आंदोलन चलता है? जहां-तहाँ बैठक और सभा आदि ज़रूर करते हैं। आरक्षण का विरोध क्या कोई मुसलमान या ईसाई करता है? संविधान खत्म किया जा रहा है, क्या दलित-पिछड़े नहीं देख रहे हैं। क्या वोट लेने के लिए हिंदू-मुसलिम नहीं करते हैं? जिस दिन जातीय गोलबंदी सही से हो गई, उस दिन धर्म के नाम पर वोट माँगने वालों की जमानत ज़ब्त हो जाएगी। 1993 में यूपी में एक नारा निकला - “मिलें मुलायम-कांशीराम हवा हो गये जय श्रीराम।” जबकि उस समय मंदिर बनाने के लिए लोग ज़्यादा भावुक और संघर्षशील थे। परिणाम हुआ कि जब राम मंदिर बनाने की लहर चरम पर थी, उत्तर प्रदेश में बीजेपी हारी थी।

जाति की दीवार नहीं टूटती। एक जाति से दूसरी जाति में परिवर्तित नहीं हो सकता, लेकिन धर्म में ऐसा होता रहता है। क्या कोई दलित ब्राह्मण बन सकता है? कदापि नही! बौद्ध, ईसाई या मुसलमान बनते रहते हैं। जिन्हें लगता है बीजेपी को वोट नहीं दिया, जबकि वो हिंदू हैं, बेहतर होगा कि अपने धर्म की कुरीति, अन्याय और शोषण को समझें? हज़ारों वर्षों से सुख, संपत्ति और सम्मान लेकर बैठे हो, अब इसे बांटो। दलितों और पिछड़ों की ज़िंदगी जीकर महसूस करो। अखिलेश यादव ने जब मुख्यमंत्री का निवास ख़ाली किया था तो गंगाजल से पवित्र किया गया था तो ऐसे में क्या कोई यादव बीजेपी को वोट देगा। जिस तरह से तुम हिंदू होने का गर्व करते हो तो एक यादव अपनी जाति पर क्यों न करे और वोट दे? जाति तोड़ो, सब झगड़ा ख़त्म हो जाएगा।

(पूर्व सांसद रहे डॉ. उदित राज असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) के चेयरमैन और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।)

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