म्यांमार की हत्यारी सेना के साथ खड़ा है भारत ?
फरवरी 2021 से दिसम्बर 2022 के बीच म्यांमार की सेना ने 382 बच्चों को या तो मार डाला या फिर अगवा कर लिया, 142 बच्चों को यातनाएं दी गईं और 1400 से अधिक बच्चे जेलों में बंद कर दिए गए...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
The military in Myanmar, killer of democracy, thanked India for cooperation and support. म्यांमार के 75वें स्वतन्त्रता दिवस समारोह में दिए गए भाषण में जनरल मिन औंग ह्लैंग ने कहा है कि तमाम अंतर्राष्ट्रीय दबावों और आलोचनाओं के बाद भी सेना के साथ सहयोग और सम्बन्ध के लिए चीन, भारत, थाईलैंड, लाओस और बांग्लादेश जैसे देशों को बहुत बहुत धन्यवाद – हम भविष्य में भी क्षेत्र के बेहतर स्थाईत्व और विकास के लिए साथ साथ काम करते रहेंगे।
जनरल मिन औंग ह्लैंग म्यांमार में तत्मदव, यानि सेना के कमांडर इन चीफ हैं और इनके नेतृत्व में ही फरवरी 2021 में आंग सन सूकी की लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी सरकार का तख्ता पलट कर सैन्य शासन लाद दिया गया। इसके बाद से दिसम्बर तक प्रजातंत्र की बहाली के लिए आन्दोलन कर रहे 2680 लोगों को, जिनमें अधिकांश युवा थे, को सेना ने मार डाला और 17000 से भी अधिक प्रजातंत्र समर्थकों को जेल में बंद कर दिया गया।
संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि थॉमस अन्द्रेव्स के अनुसार फरवरी 2021 से दिसम्बर 2022 के बीच सेना ने 382 बच्चों को या तो मार डाला या फिर अगवा कर लिया, 142 बच्चों को यातनाएं दी गईं और 1400 से अधिक बच्चे जेलों में बंद कर दिए गए। पिछले सप्ताह ही सेना की एक टुकड़ी ने देर रात खिन यू प्रांत के एक गाँव में हमला कर दिया और 8 नागरिकों को मार डाला और 20 नागरिकों को हवालात में बंद कर दिया। पिछले सप्ताह ही प्रजातंत्र समर्थक एक 25 वर्षित प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक को न्यायालय ने मृत्युदंड के सजा सुनाई है।
म्यांमार की सेना पर मानवाधिकार हनन, तख्ता पलट और लोकतंत्र समर्थकों के ह्त्या के आरोप लगते रहे हैं। अमेरिका और अधिकतर यूरोपीय देश म्यांमार के सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार के तख्तापलट की कड़े शब्दों में आलोचना करते रहे हैं और सेना पर तमाम प्रतिबन्ध लगाते रहे हैं।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जनरल मिन औंग ह्लैंग ने अपने जिस भाषण में भारत को सहयोग के लिए धन्यवाद दिया, उसी भाषण में पश्चिमी देशों और अमेरिका की सख्त शब्दों में आलोचना की और उनके द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को म्यांमार के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप बताया। संयुक्त राष्ट्र में भी एक प्रस्ताव पारित कर म्यांमार सेना की आलोचना की गयी और लोकतंत्र बहाली की मांग की गयी। यहाँ ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के सेना की आलोचना करने वाले प्रस्ताव पर मतदान में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था।
हाल में पूरी दिल्ली में भारत के जी20 की अध्यक्षता वाले पोस्टर लगाए गए हैं, इनमें से अनेक पोस्टर पर भारत को लोकतंत्र की माँ बताया गया है। एक तरफ तो मोदी सरकार देश को लोकतंत्र की माँ बताती है तो दूसरी तरफ प्रजातंत्र की हत्या करते देशों के साथ मजबूती से खडी नजर आती है। भारत की तारीफ़ म्यांमार की हत्यारी सेना करती है, चीन हमारे देश का सबसे बड़ा आर्थिक सहयोगी है, रूस से पेट्रोलियम पदार्थों का रिकॉर्ड आयात हो रहा है, फिलिस्तीनियों की जमीन हड़पता इजराइल भारत का मित्र है, इस वर्ष गणतंत्र दिवस के मेह्मान मानवाधिकार के हनन का पर्याय बन चुके इजिप्ट के राष्ट्रपति हैं।
हाल में ही एक नए मामले में आंग सान सूकी को 7 वर्षों के कारावास की सजा सुनाई गयी है। अब तक सेना ने उनपर भ्रष्टाचार, वाकी-टाकी रखना, सरकारी जमीन का दुरूपयोग और सरकारी कोष के दुरूपयोग के आरोप लगाये हैं, और सजा भी स्वयं तय की है। सभी मामलों में मिले कारावास की सजा को एक साथ जोड़ दिया जाए तो उन्हें 34 वर्ष कारावास की सजा दी जा चुकी है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता सेना की इस हरकत को प्रजातंत्र के हत्या की साजिश करार देते हैं और सभी आरोपों को झूठ का पुलिंदा बताते हैं। सेना द्वारा 77 वर्षीय आंग सान सूकी पर प्रहार नागरिकों पर सेना द्वारा हमले का एक हिस्सा है और यह खेल कई दशकों से लगातार चल रहा है।
म्यांमार के प्रजातंत्र समर्थकों को एक हल्की उम्मीद थी कि शायद इस वर्ष 4 जनवरी को 75वें स्वाधीनता दिवस समारोह के दिन आंग सान सूकी की सजा माफ़ या का करने का ऐलान सेना द्वारा किया जाए, पर ऐसा हुआ नहीं। सेना ने इस दिन 7000 से अधिक कैदियों की सजा माफ़ की, जिसमें कुछ पत्रकार और लेखक भी शामिल हैं।