मोदी सरकार में गरीबी हटाने के दावों की चौंकाने वाली हकीकत, भाजपा नेता ही नहीं जानते 9 साल में कितने करोड़ लोग निकले गरीबी रेखा से बाहर
मोदी सरकार की एक ही गारंटी है - हकीकत में जो मिलना है वह केवल अडानी और अम्बानी को ही मिलेगा। जनता को तो सिर्फ 5 किलो फ्री अनाज मिलेगा, यह योजना अपने आप में देश का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार हो सकता है, क्योंकि इसमें लाभार्थियों की कोई योग्यता निर्धारित नहीं की गयी है....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Dr Manmohan Singh Government was better than Modi Government in respect of eradication of multidinsional poverty. मोदी (सरकार) की गारंटी के तहत कुछ समय पहले तक बताया जा रहा था कि पिछले 5 वर्षों के दौरान 13.5 करोड़ व्यक्ति अत्यधिक गरीबी से बाहर आ गए। इसके विज्ञापन आज तक दिखाए जाते हैं, पर इसमें कौन से 5 वर्ष का कोई जिक्र नहीं है, फिर भी डीएवीपी के होर्डिंग वाले विज्ञापन, मोदी जी के भाषणों, समाचार पत्रों और टीवी के विज्ञापनों से देश की अधिकतर जनता को यह पता होगा कि 5 वर्षो में 13.5 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी से बाहर आये।
आश्चर्य यह है ऐसी तथाकथित उपलब्द्धि के बाद भी बीजेपी के स्टार प्रचारकों को इसकी जानकारी नहीं है। जो नेता अपना पूरा भाषण केवल मोदी चालीसा, विकास, 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था, पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सब्जबाग़ दिखाने और कांग्रेस को नकारा साबित करने पर केन्द्रित करते हैं उन्हें भी नहीं पता कि मोदी सरकार ने कितने साल में कितने करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर किया है।
मोदी सरकार में अत्यधिक गरीबी के आंकड़े ही एक मनोरंजन का विषय बन गए हैं। 3 जनवरी 2024 को उत्तर प्रदेश में विकसित भारत संकल्प यात्रा में हिस्सा लेते हुए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने मोदी जी को विकास का मसीहा बताते हुए पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था कि पिछले साढ़े नौ वर्षों के दौरान देश में 13 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी से मुक्त हो गए हैं। 7 फरवरी 2024 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में बताया था कि पिछले 9 वर्षों में गरीबी की रेखा को पार करने वालों की सख्या 13.5 करोड़ है। इसी बीच में 15 जनवरी 2024 को प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो ने एक प्रेस रिलीज़ कर जानकारी दी कि पिछले 9 वर्षों में 24.82 लोगों ने अत्यधिक गरीबी की सीमा को पार कर लिया है। अब तो, पूरी दिल्ली में इसके पोस्टर भी लग गए हैं। पीआईबी के प्रेस रिलीज़ का स्त्रोत नीति आयोग का एक डिस्कशन पेपर, मल्टीडाईमेंशनल पावर्टी इन इंडिया सिंस 2005-2006 है।
नीति आयोग की इस रिपोर्ट को इसके सदस्य प्रोफ़ेसर रमेश चन्द और वरिष्ठ सलाहकार डॉ योगेश सूरी ने तैयार किया है। इस रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर यह भी लिखा है कि “यह इसके लेखकों के निजी विचार हैं”। जाहिर है, इस रिपोर्ट का कोई महत्व नहीं है क्योंकि आज के दौर में सरकार से जुड़े हरेक अधिकारी के निजी विचार केवल अपने आका को खुश करना है। यह रिपोर्ट भी इसी नीयत से बनाई गयी है, जिससे बीजेपी चुनावों में इस मुद्दे पर अनर्गल प्रलाप करती रहे। गरीबी जैसे गंभीर विषय पर इससे फूहड़ कोई रिपोर्ट हो ही नहीं सकती। इस रिपोर्ट में सुविधानुसार कहीं भी आबादी का प्रतिशत तो कहीं आबादी की संख्या का समावेश किया गया है।
दूसरी तरफ इस रिपोर्ट में वर्ष 2005-6 से अबतक के आंकड़े प्रस्तुत किये गए हैं, पर कांग्रेस के समय की उपलब्द्धियों को पूरी तरह नकार कर यह बताया गया है कि अत्यधिक गरीबी से बाहर आने का सिलसिला मोदी जी की नीतियों का नतीजा है। रिपोर्ट बनाने वालों को यह पता होगा कि मैंस्ट्रीम मीडिया बकवास रिपोर्ट को बिना पढ़े इसके निष्कर्ष को दिनरात शिद्दत से दिखाना शुरू करेगी। इस रिपोर्ट को लिखने वालों की मानसिक स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसमें टेबल 1 का शीर्षक है – स्टेटवाइज पावर्टी एस्टिमेट्स इन लास्ट 9 इयर्स (2013-14 टू 2022-23) – और यह टेबल वर्ष 2005-06 के आंकड़े भी बताती है।
इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले 9 वर्षों के दौरान 24.8 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी से बाहर आ चुके हैं। लेखकों के निजी विचारों वाले रिपोर्ट के आंकड़ों से इतना तो स्पष्ट है कि मनमोहन सिंह सरकार कम से कम गरीबी उन्मूलन के सन्दर्भ में मोदी सरकार से बहुत बेहतर थी, जिसने 10 वर्षों में 28 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला था। मनमोहन सिंह सरकार कम से कम समाज के आख़िरी वर्ग तक पहुँचती थी। दूसरा तथ्य यह है कि 5 वर्षों में 13.5 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर करने वाली मोदी सरकार 9 वर्षों में 24.8 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाल पाई – यानि पिछले 9 वर्षों में सबसे अंतिम आदमी तक पहुँचने के दावों और प्रचार के बाद भी कम से कम इस क्षेत्र में कोई तेजी नहीं आई। इस रिपोर्ट में यह भी माना गया है कि देश की आबादी 2005-2006 के बाद से बढ़ी ही नहीं है – हरेक वर्ष की आबादी एक ही रही है।
मोदी सरकार की एक ही गारंटी है - हकीकत में जो मिलना है वह केवल अडानी और अम्बानी को ही मिलेगा। जनता को तो सिर्फ 5 किलो फ्री अनाज मिलेगा। यह योजना अपने आप में देश का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार हो सकता है, क्योंकि इसमें लाभार्थियों की कोई योग्यता निर्धारित नहीं की गयी है – कम से कम सरकारी और प्रधानमंत्री के वक्तव्य से तो यही समझ में आता है। अत्यधिक गरीब आबादी के नाम पर शुरू की गयी इस योजना को अगले पांच वर्ष तक बढाया गया है। हाल में ही प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले 9 वर्ष के दौरान 25 करोड़ अत्यधिक गरीब लोग गरीबी रेखा से ऊपर पहुँच गए, पर उन्हें भी मुफ्त अनाज मिलता रहेगा। बीजेपी को हरेक विपक्षी पार्टी द्वारा जनता को लाभ पहुंचाने वाले और मुफ्त या कटौती के साथ दिए जाने वाली वस्तुएं “मुफ्त की रेवड़ी” और अर्थव्यवस्था पर बोझ नजर आता है, फिर गरीबी रेखा पार कर चुके लोगों को भी मुफ्त अनाज क्या है?
बीजेपी का थिंक-टैंक बौद्धिक स्तर पर बहुत कमजोर है। तथाकथित सरकारी विकास के दावों वाली किसी रिपोर्ट को उठाकर देखने पर उसमें आपको तमाम भ्रामक आकडे और जानकारियाँ नजर आयेंगी। यदि रिपोर्ट हिंदी में हो, तब तो उसे बनाने वाला भी उसे पढ़कर कुछ समझ नहीं पायेगा। जी20 देशों के नई दिल्ली डिक्लेरेशन का हिंदी अनुवाद गलतियों और अस्पष्ट वाक्यों का पिटारा था। यही हाल नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट का भी है।
प्रधानमंत्री वर्ष 2014 से ही पिछली सरकार की अर्थव्यवस्था पर अनर्गल प्रलाप करते रहे हैं, उनके अनुसार उस समय की अर्थव्यवस्था के बारे में सच्चाई बताते ही देश की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाती। दूसरी तरफ वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ, एशियाई डेवलपमेंट बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक या वर्ल्ड इकनोमिक फोरम जैसी किसी की उस दौर की कोई रिपोर्ट नहीं है जो प्रधानमंत्री के इन दावों की पुष्टि करता हो। मोदी सरकार तो शुरू से ही अपनी आर्थिक नीतियों का और पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का डंका पीट रही है, पर नीति आयोग की रिपोर्ट में प्रस्तुत आकड़ों से पता चलता है कि मनमोहन सिंह सरकार में 10 वर्षों के दौरान 28 करोड़ व्यक्ति अत्यधिक गरीबी की जंजीरों से मुक्त हो चुके थे।
मनमोहन सिंह सरकार के दौर में भले ही 5 ख़रब वाली अर्थव्यवस्था या तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के ख़्वाब नहीं दिखाए गए, पर उस दौर में सामान्य जनता तक आर्थिक लाभ उतना ही पहुंचा था, जितना मोदी सरकार चीख-चीखकर और पोस्टरों और मीडिया के माध्यम से प्रचारित कर रही है। सबसे बड़ा अंतर यह है कि मनमोहन सिंह सरकार के आंकड़ो पर भरोसा किया जा सकता है, जबकि इस सरकार के आंकड़े समय और परिस्थितियों के अनुसार हरेक भाषण में बदल जाते है।
यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) की एक रिपोर्ट है, ग्लोबल मल्टीडाईमेंशनल पावर्टी इंडेक्स 2023। इस रिपोर्ट को सरकार भी बकवास या झूठा नहीं बता सकती है, क्योंकि इसका सन्दर्भ नीति आयोग की अनेक रिपोर्ट में है, और इसी के आधार पर नीति आयोग ने इंडिया नेशनल मल्टीडाईमेंशनल पावर्टी इंडेक्स तैयार किया है। यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने बहुआयामी गरीबी को दूर करने के क्षेत्र में बहुत बेहतर कार्य किया है, जिसके कारण वर्ष 2005-2006 से 2019-2021 के बीच के 15 वर्षों में 41.5 करोड़ व्यक्ति गरीबी रेखा से ऊपर पहुँच गए।
इसी के आधार पर नीति आयोग ने बताया था कि 2015-2016 से 2019-2021 के 5 वर्षों में 13.5 करोड़ व्यक्ति गरीबी रेखा से बाहर आये। यदि आप अभी तक एक स्वतंत्र विश्लेषक सोच रखते हैं तब इन आंकड़ों से समझ सकते हैं कि वर्ष 2005-2006 से 2015-2016 के बीच 28 करोड़ लोग गरीबी रेखा पार कर गए थे, और लगभग इस पूरे दौर में मनमोहन सिंह की सरकार थी, जिसकी अनर्गल आलोचना मोदी सरकार की गारंटी है। यदि 5 वर्षों में 13.5 करोड़, जो मोदी सरकार की गारंटी है, की तुलना में मनमोहन सिंह सरकार के 10 वर्षों के दौरान गरीबी रेखा से बाहर आने की गति अधिक तेज थी। देश की मीडिया इतनी नंगी है कि उसे न तो ये रिपोर्ट दिखती हैं और न ही आंकड़े, उसे तो बस गारंटियां और रेवड़ियां दिखती हैं।
सन्दर्भ:
1. niti.gov.in/sites/default/files/2024-01/MPI-22_NITI-Aayog20254.pdf
2. pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1996271
3. undp.org/india/global-multidimensional-poverty-index-mpi-2023
4. niti.gov.in/sites/default/files/2023-08/India-National-Multidimensional-Poverty-Index-2023.pdf