तालिबान कट्टर इस्लामिक समाज बनाना चाहता है और भारत कट्टर हिंदू देश बनने की राह पर
म्यांमार में सेना अपनी तरफ से गुंडों को बहाल कर शांतिपूर्ण आन्दोलनों को हिंसक बनाने की साजिश रचती है, हमारे देश में यही काम पुलिस और सरकार प्रायोजित हिंदूवादी संगठन करते हैं....
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। भारत और इसके पड़ोसी देशों, जिसे भारतीय उपमहाद्वीप के नाम से जाना जाता है, में मानवाधिकार और नहिला समानता के मुद्दे एक जैसे ही हैं। बांग्लादेश में एक उद्योग में कार्यरत श्रमिक जब कोविड काल के वेतन और वेतन.बृद्धि के मुद्दे पर आन्दोलन कर रहे थे, तब पुलिस में गोली चलाकर 5 आन्दोलनकारियों को मार डाला।
यह घटना राजधानी ढाका से 265 किलोमीटर दूर दक्षिण.पूर्व शहर चटगांव की है, जहां चीन के सहयोग से 1320 मेगावाट का तापबिजली घर स्थापित किया जा रहा है, इसके लिए चीन ने 2.4 अरब डॉलर का निवेश किया गया है और बांग्लादेश में विदेशी निवेश की सबसे बड़ी परियोजनाओं में एक है।
यह तापबिजली घर चीन के बांगलादेश से अच्छे सम्बन्ध का प्रतीक भी है। इस बिजली घर के लिए दोनों देशों में समझौता वर्ष 2016 में किया गया था और उस समय से ही निर्माण कार्य चल रहा है। वर्ष 2016 में भी यहाँ के निर्माण श्रमिकों ने वेतन को लेकर आन्दोलन किया था और उस वक्त भी पुलिस ने गोली से आन्दोलन शांत किया था, तब 4 श्रमिक मारे गए थे। इस बार भी लगभग 2000 श्रमिक कोविड काल के वेतन के लिए आन्दोलन कर रहे थे, फिर पुलिस ने गोली चलाकर आन्दोलन शांत किया जिसमें 5 श्रमिक मारे गए।
पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान ने हाल में ही एक टीवी कार्यक्रम में कहा था कि समाज में बलात्कार की घटनाएं बढ़ने का सबसे मुख्य कारण महिलाओं के कपडे हैं, यदि महिलायें परदे में रहती हैं तो बलात्कार कम होते हैं। इसके बाद पाकिस्तान के मानवाधिकार संगठन और महिला संगठनों ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन दिया, जिसमें कहा गया है की प्रधानमंत्री का वक्तव्य तथ्यों से परे, असंवेदनशील और समाज के लिए ख़तरनाक है।
इस ज्ञापन में उनसे देश से माफी माँगने को कहा गया है। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी प्रधानमंत्री के वक्तव्य की तीखे शब्दों में आलोचना की है और कहा है कि ऐसे वक्तव्य ही बलात्कारियों का मनोबल बढाते हैं। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि अपने वक्तव्य से इमरान खान ने बलात्कार का दोष भी महिलाओं पर ही मढ़ दिया, इससे ना तो प्रशासन इन पीड़ितों को न्याय दिलाएगा और ना ही बलात्कारियों में कोई खौफ रहेगा।
इमरान खान पिछले वर्ष भी महिला संगठनों के निशाने पर रह चुके हैं, जब एक टीवी कार्यक्रम में इस्लामी धर्मगुरुओं ने प्रधानमंत्री की उपस्थिति में कहा था कि कोरोना वायरस महिलाओं की अश्लीलता के कारण पनपा है और इमरान खान ने इस वक्तव्य पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान और सरकार के बीच गृहयुद्ध लगातार बढ़ता जा रहा है और इसके बीच अमेरिका ने घोषणा कर दी है कि वर्ष 2001 से अफ़ग़ानिस्तान में शांति के लिए बहाल किये गए अमेरिका और नाटो की सेना 11 सितम्बर तक वापस चली जायेगी।
इस घोषणा के बाद से अफ़ग़ानिस्तान में एक बार फिर नागरिकों के बीच डर का माहौल पनपने लगा है क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके बाद वहां तालिबान का राज कायम हो जाएगा, जो कट्टर इस्लामी कानूनों के पक्षधर हैं। तालिबान के क्षेत्रों में सबसे अधिक पाबंदियां महिलाओं पर होती है और इनका दर्जा समाज के सबसे वंचित समूह का होता है।
तालिबान के अनुसार महिलाओं का गाना, नृत्य और घर से बाहर निकलना भी प्रतिबंधित है। अमेरिका की सेना के रहते भले ही पूरी शांति कभी बहाल न हुई हो पर कुछ क्षेत्रों में तरक्की तो हो रही थी, जाहिर है इसके बाद तरक्की तो दूर, समाज और पीछे चला जाएगा। वर्ष 2001 में अमेरिकी सेना की तैनाती के पहले अफ़ग़ानिस्तान में 10 से भी कम बच्चे स्कूल जाते थे, जबकि अब 90 लाख से अधिक बच्चे स्कूल जाते हैं और इसमें 40 प्रतिशत बालिकाएं हैं। वर्ष 2001 से पहले अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों की औसत उम्र 44 वर्ष थीए जो अब बढ़कर 60 वर्ष से ऊपर पहुँच चुकी है।
म्यांमार में सेना और लोकतंत्र के समर्थक आन्दोलनकारियों के बीच लड़ाई फरवरी से लगातार जारी है। इसमें अब तक कम से कम 728 आन्दोलनकारी मारे जा चुके हैं और 3141 को हिरासत में रखा गया है। पूरी दुनिया इस मामले में लगभग खामोश है, जबकि चीन से सम्बंधित मानवाधिकार और लोकतंत्र हनन की कड़े शब्दों में भर्त्सना की जाती है।
इस बीच 17 अप्रैल को म्यांमार की सेना और पुलिस ने वहां के पारंपरिक नववर्ष के दिन 23047 कैदियों को रिहा किया है, पर किसी को यह नहीं मालूम की इसमें हाल में कैद किये गए लोकतंत्र समर्थक आन्दोलनकारी शामिल हैं या नहीं। इन रिहा किये गए कैदियों में से वर्ष 2019 में जेल में डाले गए 3 कलाकार भी है, जिनका सम्बन्ध पीकॉक जेनेरेशन नामक ग्रुप से है।
यह ग्रुप पारंपरिक लोककला थांगयात करता है जो कविता, हास्य और संगीत का मिलाजुला स्वरुप है। पिछले वर्ष इसके कलाकारों ने सेना की वर्दी में एक प्रदर्शन किया था और इसमें सेना के संसद में शामिल होने और कारोबार में सेना की भागीदारी पर तीखे व्यंग किये गए थे। इससे पहले 12 फरवरी को भी म्यांमार के यूनियन डे के दिन 23000 कैदियों को रिहा किया गया था और इसमें अधिकतर सेना द्वारा बहाल किये गए अराजक तत्व थे, जिनका काम शांतिपूर्ण आन्दोलनों में भगदड़ फैलाना या हिंसा फैलाना था। मार्च में भी 600 कैदियों को रिहा किया गया था, जिसमें अधिकतर 18 वर्ष से कम उम्र वाले लोग थे और जो आन्दोलनकारी नहीं थे, पर आन्दोलनों के बीच में फंस गए थे।
इन सभी देशों में जो कुछ हो रहा है, उसमें भारत की छवि दिखाई देती है। बांग्लादेश की तरह यहाँ भी पुलिस पूंजीपतियों का साथ देती है और श्रमिकों पर गोलियां चलाती है, आन्दोलनों को कुचलती है। पाकिस्तान की तरह महिलाओं के खिलाफ दुष्प्रचार तो हमारे देश में बहुत व्यापक पैमाने पर होता है।
पश्चिम बंगाल में इन विधानसभा चुनावों के दौर में प्रधानमंत्री जी जिस तरह से हाथ मसलते हुए 'दीदी ओ दीदी' का जाप करते हैं उसे देखकर गर्ल्स कॉलेज के बाहर भटकते सड़कछाप गुंडों की याद आती है। वैसे भी लड़कियों के कपड़ों पर और बलात्कार पर बीजेपी नेताओं के वक्तव्यों पर तो पूरी एक किताब तैयार की जा सकती है।
तालिबान जिस तरह महिलाओं को घर में कैद करना चाहता है, ठीक उसी तरह हमारे देश में बीजेपी नेताओं की सोच भी है। तालिबान कट्टर इस्लामिक समाज बनाना चाहता है तो हम कट्टर हिन्दू देश बनाने की राह पर हैं। म्यांमार में सेना अपनी तरफ से गुंडों को बहाल कर शांतिपूर्ण आन्दोलनों को हिंसक बनाने की साजिश रचती है, हमारे देश में यही काम पुलिस और सरकार प्रायोजित हिंदूवादी संगठन करते हैं।