पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकार के वैश्विक नाटक के बीच ईजिप्ट में 65000 से अधिक मानवाधिकार-पर्यावरण कार्यकर्ता लंबे समय से जेलों में कैद

संयुक्त राष्ट्र की हालत लगातार खराब होती रही और अब इसके हरेक कमेटी और अंग पर भारत, रूस, चीन, दौड़ी अरब और ईजिप्ट जैसे देशों का कब्जा है, जहां मानवाधिकार शून्य हो चुका है, हमारे देश में भी आजादी का अमृत महोत्सव वही नेता मना रहे हैं जो मानवाधिकार के समर्थन की आवाज को नक्सली आवाज बताते हैं....

Update: 2022-11-07 08:36 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

United Nations is not concerned about human rights and environmental protection. पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकार, आम आदमी के अधिकार हैं और पूरे विश्व में दोनों का हनन किया जा रहा है। इस हनन में और आम आदमी को कुचलने में संयुक्त राष्ट्र के साथ ही पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकार पर प्रवचन देने वाले सभी देश सम्मिलित हैं। इसी वर्ष जुलाई में संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा ने पर्यावरण संरक्षण को मानवाधिकार में शामिल किया है – और दूसरी तरफ पर्यावरण विनाश और मानवाधिकार हनन के सन्दर्भ में अग्रणी देश, ईजिप्ट में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज का 27वां अधिवेशन आयोजित किया जा रहा है।

ईजिप्ट में 65000 से अधिक राजनीतिक विरोधी, मानवाधिकार और पर्यावरण कार्यकर्ता लम्बे समय से जेल में बंद हैं। कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के अधिवेशन से पहले भी अनेक पर्यावरण कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया गया है। दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अपने हरेक भाषण में पर्यावरण कार्यकर्ताओं की सराहना करते हैं और उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी बताते हैं, पर संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण के अधिवेशन पिछले कुछ वर्षों से लगातार ऐसे देशों में आयोजित किये जा रहे हैं, जहां पर्यावरण संरक्षण के लिए आवाज उठाने पर अर्बन नक्सल, आतंकवादी या देशद्रोही का खिताब दिया जाता है।

कुछ दिनों पहले ही ईजिप्ट में एक भारतीय पर्यावरण कार्यकर्ता को जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के लिए जागरूकता के उद्देश्य से किये जा रहे पदयात्रा के दौरान पुलिस ने हवालात में बंद कर दिया था। केरल के अजित राजगोपाल ईजिप्ट में कैरो से अधिवेशन स्थल शर्म अल-शेख तक की पदयात्रा कर रहे थे, और उनके हाथ में गिरफ्तार किये जाने के समय एक तख्ती थी, जिस पर जलवायु परिवर्तन रोकने को कहा गया था। अजित राजगोपाल को 5 दिन हिरासत में रखा गया। इस पदयात्रा में शामिल 67 पर्यावरण कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, उनमें से कुछ कार्यकर्ता अभी तक हिरासत में ही हैं।

ईजिप्ट में अला अब्द अल फतह सबसे चर्चित गिरफ्तार पर्यावरण और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। उन्हें पिछले अनेक वर्षों से जेल में बंद रखा गया है। पिछले 7 महीनों से उन्होंने जेल में भूख हड़ताल की है और केवल पानी के सहारे जिन्दा हैं। भूख हड़ताल के बाद से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पहचान मिली है, पर एक ऐसी दुनिया में जहां रूस यूक्रेन पर 250 से अधिक दिनों से हमले कर रहा हो और दुनिया तमाशा देख रही हो, वहां किसी पर्यावरण कार्यकर्ता की कैद कोई मायने नहीं रखती। अला अब्द अल फतह ने घोषणा की है कि कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के अधिवेशन के पहले दिन से वे पानी भी छोड़ देंगे। आशंका यह है कि यदि उन्होंने पहले दिन से पानी छोड़ दिया, तब दो सप्ताह तक चलने वाले इस अधिवेशन के दौरान ही कहीं उनकी मौत नहीं हो जाए।

जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार जैसे शब्द आज की पूंजीवादी दुनिया में महत्व खो चुके हैं, पर बड़े देश और संयुक्त राष्ट्र इनका जाप करता रहता है। वर्ष 2019 में जब संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के 75 वर्ष पूरे हुए थे, तब दुनियाभर की मीडिया ने संयुक्त राष्ट्र की लुप्त हो चुकी गरिमा और स्थापना के उद्देश्य पर लम्बे लेख प्रकाशित किया था। पर, संयुक्त राष्ट्र की हालत लगातार खराब होती रही और अब इसके हरेक कमेटी और अंग पर भारत, रूस, चीन, दौड़ी अरब और ईजिप्ट जैसे देशों का कब्जा है, जहां मानवाधिकार शून्य हो चुका है। हमारे देश में भी आजादी का अमृत महोत्सव वही नेता मना रहे हैं, जो मानवाधिकार के समर्थन की आवाज को नक्सली आवाज बताते हैं।

जहां तक कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज का सवाल है, तो यह वैश्विक नेताओं के लिए एक वार्षिक पिकनिक का अड्डा बन चुका है, जहां हरेक बड़ा देश जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के लिए प्रतिबद्ध होने का दावा करता है, और फिर अगले कांफ्रेंस तक जलवायु परिवर्तन पहले से भी अधिक घातक हो चुका होता है। ईजिप्ट में अधिवेशन एन पंजीकरण के लिए ऑफिसियल एप्प है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे डाउनलोड करने के बाद आप अपनी लोकेशन, फोटो एल्बम और ईमेल तक पहुँचाने का अधिकार एप्प के संचालकों को दे देते हैं। जाहिर है, इस एप्प को डाउनलोड करने के बाद आप पूरी तरह ईजिप्ट की निरंकुश सरकार के नियंत्रण में आ जाते हैं।

पूंजीवादी दुनिया में मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण जैसे शब्द पूरी तरह से विलुप्तीकरण के कगार पर पहुँच गए हैं, और इसमें संयुक्त राष्ट्र और तथाकथित प्रजातांत्रिक देशों का भी भरपूर योगदान है।

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