कैश खर्च करते समय रहते हैं अधिक जागरूक, मगर प्लास्टिक करेंसी और इलेक्ट्रोनिक पेमेंट से बढ़ता है अनावश्यक खर्च !
पूरी दुनिया में कैशलेस पेमेंट का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, सभी सरकारें इसे सबसे सुविधाजनक भुगतान और सुरक्षित बताया रही हैं, पर दूसरी तरफ दुनिया में गरीबी बढ़ती जा रही है और गरीबों के पास जीवन और स्वास्थ्य के लिए बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का साधन हो या न हो, पर विलासिता की वस्तुएं बढ़ती जा रही हैं...
महेंद्र पांडेय की टिप्पणी
When we make purchases through cash, it gives a feeling of parting with a piece of ourselves. एक नए अध्ययन के अनुसार जब हम कैश से खरीदारी करते हैं तब सोच-समझ कर और केवल आवश्यक खरीदारी ही करते हैं, जबकि प्लास्टिक करेंसी या इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट में वह बात नहीं है। कैश खर्च करते समय हम अधिक जागरूक रहते हैं और अनावश्यक खर्चों से बचते हैं। इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ सरे के अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों ने किया है और इसे क्वालिटेटिव मार्केट रिसर्च नामक जर्नल में प्रकाशित किया है। इस अध्ययन के अनुसार कैश की महक, महसूस करना और इसे गिनना – ऐसी क्रियाएं हैं, जिसे हम जाने अनजाने बार-बार करते हैं और इस कारण कैश से भावनात्मक जुड़ाव रहता है जो खर्च के दूसरे तरीकों में नहीं है।
भावनात्मक जुड़ाव के कारण कैश खर्च करने में किसी से बिछड़ने का एहसास जुड़ा है, अपने किसी हिस्से को खोने का एहसास जुड़ा है – इसलिए कैश खर्च करने से पहले हम सोचते हैं और बहुत जरूरी होने पर ही खर्च करते हैं। इस अध्ययन को 10 वर्षों के अंतराल पर दो देशों में किया गया – न्यूज़ीलैंड में वर्ष 2013 में और चीन में वर्ष 2023 में। इस अध्ययन को प्रश्नपत्र, साक्षात्कार और बाजार में वास्तविक अध्ययन द्वारा किया गया। दोनों अध्ययनों के नतीजे बिल्कुल एक जैसे रहे।
प्रतिभागियों के अनुसार कैश खर्च करने के समय वे अधिक जागरूक रहते हैं, जबकि कार्ड या इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट के समय उन्हें मुद्रा से लगाव नहीं रहता इसलिए अनावश्यक खर्च का अंदेशा राहत है। कैश का एक भावनात्मक वजन होता है। अधिकतर प्रतिभागियों के अनुसार कार्ड से खर्च करते समय उन्हें अपनी मुद्रा का एहसास नहीं रहता, जबकि कैश खर्च करने के समय एहसास रहता है कि अपनी कोई प्रिय चीज कम होती जा रही है या फिर खो रही है। कैश केवल मुद्रा नहीं है, बल्कि हमारे खर्चे से पूरी तरीके से जुड़े रहने का एक माध्यम है, और इसे खर्च करते समय इसकी कीमत समझ आती है।
एक दूसरे विस्तृत अध्ययन का भी स्पष्ट निष्कर्ष है – यदि बचत करनी है तो आप कैश से भुगतान करें। इस अध्ययन को जर्नल ऑफ रिटेलिंग के सितंबर 2024 अंक में प्रकाशित किया गया है और इसके लिए पिछले दशकों के दौरान इसी विषय पर प्रकाशित 17 देशों के अध्ययनों पर आधारित 71 शोधपत्रों का गहन विश्लेषण किया गया है। सभी शोधपत्र लोगों के खर्च की आदतों और भुगतान का माध्यम से संबंधित थे।
सामान्य अर्थशास्त्र में मुद्रा केवल मुद्रा होती है और इसे किस तरह से खर्च किया जा रहा है, इससे उपभोक्ता द्वारा किए जा रहे खर्च पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए, पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान अर्थशास्त्रियों ने “कैशलेस प्रभाव” नामक एक नया शब्द खोज निकाला है।
कैशलेस तरीके से भुगतान में लापरवाही को कैशलेस प्रभाव कहा जाता है और इसका कारण यह है कि कैश से भुगतान के दौरान ग्राहक अपनी जेब से निकालकर और गिनकर एक भौतिक वस्तु को विक्रेता को सौंपता है, जबकि कैशलेस विधि में यह एहसास नहीं रहता।
वर्ष 1996 में अर्थशास्त्र में कैश पेमेंट से संबंधित एक और शब्द विकसित किया था – पेन ऑफ पेइंग, यानी भुगतान का दर्द। जब कैश से भुगतान करते हैं तब यह भुगतान मस्तिष्क को कचोटता है, जबकि कैशलेस भुगतान में ऐसा नहीं होता है। इसके बाद इससे संबंधित कुछ न्यूरॉलॉजीकल अध्ययन किए गए, जिसके अनुसार कैश से भुगतान के दौरान वास्तव में मानसिक दर्द होता है।
वर्ष 2020 में जर्नल ऑफ द एसोसिएशन ऑफ कंज्यूमर रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार कैशलेस भुगतान करने वाले लोग जंक फूड का अधिक सेवन करते हैं, जबकि कैश से खाने की चीजों का भुगतान करने वाले अधिकतर समय खाने की चीजों को खरीदते समय उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करते हैं।
पूरी दुनिया में कैशलेस पेमेंट का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, सभी सरकारें इसे सबसे सुविधाजनक भुगतान और सुरक्षित बताया रही हैं, पर दूसरी तरफ दुनिया में गरीबी बढ़ती जा रही है और गरीबों के पास जीवन और स्वास्थ्य के लिए बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का साधन हो या नहीं हो पर विलासिता की वस्तुएं बढ़ती जा रही हैं – कहीं यह कैशलेस प्रभाव तो नहीं?
संदर्भ:
Jashim Khan et al, Money you could touch: cash and psychological ownership, Qualitative Market Research: An International Journal (2024). DOI: 10.1108/QMR-04-2023-0049
https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0022435924000216#bib0104
Joowon Park et al, Why Do Cashless Payments Increase Unhealthy Consumption? The Decision-Risk Inattention Hypothesis, Journal of the Association for Consumer Research (2020). DOI: 10.1086/710251