झारखंड में अदाणी का स्वागत, किन शर्तों पर कर रहे हैं हेमंत सोरेन?

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि एलन मस्क और अदाणी दुनिया के अमीर हैं और दोनों शुद्ध रूप से व्यापारी हैं. अपने व्यावसायिक हितों के लिए वे किसी से भी मिल सकते हैं. मूल सवाल है कि अदाणी से हेमंत सोरेन ने अपने सरकारी आवास पर दो घंटे क्या बात की...;

Update: 2025-03-29 16:27 GMT
झारखंड में अदाणी का स्वागत, किन शर्तों पर कर रहे हैं हेमंत सोरेन?
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पढ़िए क्यों कह रहे हैं वरिष्ठ लेखक विनोद कुमार अदाणी ‘झुकने’ आये हैं या ‘झुकाने’ इसका खुलासा तो आगे होगा!

Adani in Jharkhand: तो, अदाणी का झारखंड में अवतरण हो गया. कुछ लोग बाग-बाग हैं कि अदाणी को झारखंडी शेर ने झुका दिया. जिस तरह मोदी भक्तों को लगता हैं कि ट्रंप को मोदी ने झुका दिय. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह एलन मस्क मोदी के प्रिय पात्र और वर्तमान में अमेरिका के नियंता बने हुए हैं, उसी तरह अदाणी मोदी के नाक के बाल हैं और वे भले ही घोषित रूप से सरकार में एलन मस्क की तरह कोई महत्वपूर्ण पद नहीं रखते, लेकिन देश में तथाकथित विकास की तमाम योजनाएं, खास कर औद्योगिक नीति अदाणी के दिशा निर्देश में या कहिए उनके व्यावसायिक हितों के अनुकूल बन रहे हैं.

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि एलन मस्क और अदाणी दुनिया के अमीर हैं और दोनों शुद्ध रूप से व्यापारी हैं. अपने व्यावसायिक हितों के लिए वे किसी से भी मिल सकते हैं. मूल सवाल है कि अदाणी से हेमंत सोरेन ने अपने सरकारी आवास पर दो घंटे क्या बात की? इसकी कोई जानकारी नहीं. बस गुलदस्ता पकड़े दोनों दिखाई देते हैं और दोनों के चेहरे पर मुसकान है. सरकारी विज्ञप्ति में बस इतना कहा गया है कि राज्य के विकास और राज्य में निवेश के मसले पर दोनों ने बात की.

सवाल उठता है कि निवेश करने के लिए तो अदाणी हमेशा तत्पर रहेंगे. उनके पास पैसा है और उसका फायदा निवेश में ही है. लेकिन निवेश किन शर्तों पर. क्योंकि झारखंड में उनका ट्रैक रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है. जो जमीन खुले मार्केट में 43-44 लाख रुपये एकड़ थी, गोड्डा में अपने पावर प्रोजेक्ट के लिए महज 3-4 लाख रुपये प्रति एकड़ अधिग्रहित की. वह भी संथाल परगना टीनेंसी एक्ट के खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर. पूर्व के नियमानुसार उन्हें 25 फीसदी बिजली सरकार द्वारा तय मूल्य पर राज्य सरकार को देनी चाहिए थी, लेकिन वे उत्पादित बिजली सीधे बांग्लादेश को भेज रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि अभी के बजट सत्र में इन मुद्दो पर गंभीर चिंता व्यक्त की गयी थी और राज्य सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी के गठन की भी घोषणा की थी. जाहिर है कि अदाणी इसी वजह से भागे-भागे झारखंड आये हैं. लेकिन वे झुकने आये हैं या राज्य सरकार को झुकाने, यह तो आने वाले कुछ दिनों में पता चलेगा.

अहम सवाल यह है कि क्या छोटानागपुर टीनेंसी एक्ट का उल्लंघन कर रघुवर सरकार ने जिस तरह जमीन का अधिग्रहण कर अदाणी को दिया, उसका कोई समाधान निकलेंगा?

पावर प्रोजेक्ट बंद कर दिया जाये, इसकी तो कोई उम्मीद नहीं, लेकिन क्या जमीन के मूल्य में कोई संशोधन करने के लिए अदाणी को बाध्य किया जायेगा? विस्थापितों को पक्की नौकरी देने के लिए कहा जायेगा?

क्या उनसे पूछा जायेगा कि जब वे आस्ट्रेलिया से परिष्कृत कोयला आयात कर ही रहे हैं पावर प्रोजेक्ट के नाम पर, तो फिर उन्हें माईनिंग के लिए और जमीन की जरूरत क्यों है?

यहां यह समझना जरूरी है कि झारखंड में कृषि योग्य भूमि बहुत कम है. आगे किसी तरह के निवेश का मतलब यह कि कृषि योग्य जमीन या वन क्षेत्र की जमीन कारपोरेट को दिया जायेगा. इसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं कि वन क्षेत्र की जमीन कारपोरेट को नहीं दिया जा सके. केंद्र सरकार वन कानूनों में पहले से ही संशोधन कर चुकी है जिसके तहत विकास के नाम पर वन क्षेत्र की जमीन का अधिग्रहण बिना ग्राम सभाओं से पूछे किया जा सकता है.

यह तो हेमंत सरकार को तय करना है कि वह किन शर्तों पर राज्य में अदाणी से निवेश करवाने वाली है?

इसी से इस बात का भी खुलासा होगा कि अदानी ‘झुकने’ के लिए आये हैं या सरकार को ‘झुकाने’ के लिए?

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