मोदी के दोस्त ट्रम्प अगर हार गए तो क्या बदलाव आ सकता है?

अमेरिकी पत्रिका अटलांटिक ने ट्रम्प शब्द की जीत से सबसे अधिक लाभ पाने वाले 'लोकलुभावन और राष्ट्रवादी नेताओं' की एक सूची प्रकाशित की है और इसमें मोदी भी शामिल हैं, इसमें कहा गया है कि ट्रम्प-मोदी की मित्रता उनके साझा हितों में निहित है, जिसमें सुरक्षा, रक्षा और चीन के बढ़ते वर्चस्व के बारे में चिंताएं शामिल हैं.......

Update: 2020-10-26 15:56 GMT

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

सोशल मीडिया पर अक्सर लोग चर्चा करते रहते हैं कि झूठ बोलने की कोई प्रतियोगिता हो तो मोदी और ट्रम्प के बीच चैंपियन का चुनाव करना कठिन हो जाएगा। दोनों नेताओं में प्रगाढ़ मित्रता है। भले ही इस मित्रता की कीमत भारत को स्वाभिमान और तटस्थ विदेश नीति को त्याग कर चुकानी पड़ रही है। मोदी अपने पूंजीपति आकाओं के स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए ट्रम्प के सामने नतमस्तक होते रहे हैं। ट्रम्प एक तरफ मोदी को मित्र बताते रहे हैं दूसरी तरफ मौका आने पर भारत के हितों पर चोट भी करते रहे हैं। कोरोना की दवा धमकाकर मंगवाने का प्रसंग हो या भारत के लोगों के रोजगार पर रोक लगाने का फैसला हो, वे अपने दोस्त को झटके देते रहे हैं। अभी पिछले हफ्ते उन्होंने भारत को 'गंदा' कहा तो मोदी ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की।

डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी के बीच दोस्ती पिछले साल ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम के दौरान और इस साल फरवरी में 'नमस्ते ट्रम्प' के दौरान अच्छी तरह से प्रदर्शित की गई थी, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री को 'महान व्यक्ति, भारत के लोगों द्वारा पसंद किया गया पीएम' कहा था।

दो सप्ताह से कम समय के भीतर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के साथ अमेरिकी मीडिया इस बात की चर्चा कर रहा है कि मोदी और भारत के लिए ट्रम्प की फिर से जीत या जो बिडेन की जीत का क्या मतलब होगा।अमेरिकी राष्ट्रपति ने पिछले महीने दावा किया था कि उन्हें मोदी का 'बड़ा समर्थन' प्राप्त है जबकि उनके बेटे डोनाल्ड ट्रम्प जूनियर ने चेतावनी दी थी कि बिडेन 'भारत के लिए प्रतिकूल' थे।

अमेरिकी पत्रिका अटलांटिक ने ट्रम्प शब्द की जीत से सबसे अधिक लाभ पाने वाले 'लोकलुभावन और राष्ट्रवादी नेताओं' की एक सूची प्रकाशित की है और इसमें मोदी भी शामिल हैं। इसमें कहा गया है कि ट्रम्प-मोदी की मित्रता उनके साझा हितों में निहित है, जिसमें सुरक्षा, रक्षा और चीन के बढ़ते वर्चस्व के बारे में चिंताएं शामिल हैं, साथ ही साथ उनकी समान नेतृत्व शैली भी शामिल है।

'दोनों ने अपनी आलोचना को रोकने की कोशिश की। चाहे आलोचना प्रेस ने की हो या शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों ने विरोध किया हो, वे बर्दाश्त नहीं करते। और दोनों ने अपने संबंधित जनाधार को भड़काने के लिए नफरत राष्ट्रवादी भावना का उपयोग किया है।' अटलांटिक ने कहा कि ट्रम्प के रूप में 'मोदी ने एक ऐसे राष्ट्रपति को देखा है जो उनके हिंदू-राष्ट्रवादी एजेंडे को नजरअंदाज करने के लिए तैयार है।' इस लेख में उल्लेख किया गया है कि फरवरी 2020 में अपनी भारत यात्रा के दौरान ट्रम्प ने दिल्ली में हुए दंगों पर कोई टिप्पणी नहीं की थी।

'फिर भी यह कल्पना करना मुश्किल है कि जीतने पर बिडेन ट्रम्प की तरह ही कुछ मुद्दों को नजरअंदाज करने के लिए तैयार होंगे, जैसे कि मोदी का जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्वायत्तता को रद्द करने का निर्णय या पड़ोसी देशों के मुसलमानों को बाहर करने के लिए भारत के नागरिकता कानूनों को बदलने के उनके कदम।'

इस लेख में 2016 से 2018 तक भारत के राजदूत रहे नवतेज सरना के हवाले से लिखा गया है कि इस तरह की आलोचनाओं की मात्रा बहुत अधिक नहीं होगी, भले ही राष्ट्रपति पद पर किसी की भी जीत हो।

अपनी भारत यात्रा के बाद ट्रम्प ने मोदी की प्रशंसा की लेकिन दिल्ली के दंगों का उल्लेख नहीं किया। दोनों नेताओं ने अपनी बैठकों और दर्शनीय स्थलों की यात्रा जारी रखी और इस बात के लिए उनकी आलोचना हुई। ट्रम्प के भारत से रवाना होने के बाद ही मोदी ने हिंसा की बात को स्वीकार किया और दंगों के तीसरे दिन शांति की अपील की।

अमेरिकी पत्रिका एनपीआर ने यह चर्चा की है कि व्हाइट हाउस में बदलाव होने पर अमेरिका-भारत संबंध कैसे बदलेंगे। एनपीआर के लॉरेन फ्रायर ने कहा कि 'मोदी और ट्रम्प दोनों राष्ट्रवादी हैं, जिन पर अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया गया है और वे एक-दूसरे की पीठ ठोक चुके हैं।'

फ्रायर ने यह भी कहा कि ट्रम्प ने मोदी के शासन में घृणा अपराधों में वृद्धि को लेकर मानवाधिकार समूहों और संयुक्त राष्ट्र के आरोपों की तुलना में मोदी की बातों पर अधिक यकीन किया है।

एनपीआर ने पश्चिमी वाशिंगटन विश्वविद्यालय के एक राजनीतिक वैज्ञानिक बिदिशा बिस्वास के हवाले से कहा कि बिडेन-हैरिस प्रशासन इस मामले में अधिक मुखर हो सकता है।

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फ्रायर ने निष्कर्ष निकाला कि यदि बिडेन 'मानवाधिकारों, कश्मीर या पर्यावरण के मुद्दों को उठाते हैं, तो वह ऐसा करते हुए इस बात का ध्यान रखेंगे कि भारत के साथ निकट संबंधों को बहाल रखा जाये, जो दोनों देशों के हितों में हैं।'

सितंबर के एक लेख में अमेरिकी पत्रिका फॉरेन पॉलिसी ने कहा कि बिडेन-हैरिस प्रशासन का अर्थ कश्मीर पर 'सख्त रुख' होगा। इसने नोट किया कि कैसे कश्मीर एकमात्र मुद्दा नहीं है, जहां बिडेन ने बराक ओबामा द्वारा उठाए गए मुद्दों की तुलना में अधिक चिंताओं को व्यक्त किया है।

'बिडेन नागरिकता संशोधन अधिनियम के साथ-साथ नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर के खिलाफ भी दृढ़ता से सामने आए हैं - मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की दोनों परियोजनाएं, जिनको लेकर आलोचक कहते रहे हैं कि ये नागरिकों के साथ भेदभाव करते हैं और अंततः भारत से मुसलमानों को बाहर निकालने की राह आसान बना देंगे।'

पत्रिका ने यह भी कहा कि सितंबर 2019 में राष्ट्रपति पद के लिए एक अभियान के दौरान कश्मीर में अशांति के बारे में पूछे जाने पर हैरिस ने कहा, 'हम सभी देख रहे हैं'। मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की घोषणा की थी।

लेख में उल्लेख किया गया है, 'उन्होंने मोदी सरकार के उस फैसले के जरिये भारत सरकार द्वारा किए गए मानवाधिकारों के हनन की बात कहकर जोरदार हमला किया था।'

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