नेपाल-भारत विवाद : क्या अयोध्या के राम को जनकपुर की सीता से अलग किया जा सकता है?

हमारा रिश्ता तो ऐसा है जैसा सम्पूर्ण विश्व में कोई और नहीं, क्या भारत और नेपाल की प्रगति अलग-अलग है? क्या बुद्ध को लुंबिनी और कुशीनगर में बाटा जा सकता है? क्या अयोध्या के राम को जनकपुर की सीता से अलग किया जा सकता है?

Update: 2020-06-29 12:29 GMT

मनोज लीला रमेशचंद्र 

पिछले कुछ समय से मीडिया, राजनेताओं और तथाकथित राष्ट्रभक्तों से लगातार नेपाल के खिलाफ नफरत भरी बाते सुन रहा हूं। वाट्सएप, फेसबुक, टीवी, अखबार, नेपाल और उसके लोगो के खिलाफ धीरे-धीरे नफरत से भरते जा रहे है। जानकारी के मुताबिक यही सारी चीजें लगभग नेपाल के अंदर भी घूम रही है जिसने मेरे जैसे एक आम भारतीय या आम नेपाली जो कि एक दुसरे से प्यार करते है, उन्हें बहुत दुःखी किया है।

मै आज तक नेपाल नही गया लेकिन मुझे पता है कि एक नेपाल ही है जहां मै कभी-भी जा सकता हूं। मुझे किसी वीजा या परमिशन की जरूरत नही होगी। ना मुझे अपने पैसे बदलने होगें। ना अपना खाना ढूंढना पड़ेगा। ना मै किसी से हिंदी में बात करने के लिये तरसूंगा। ये सब इसलिये क्योंकि मै किसी पराये मुल्क नही बल्कि अपने ही देश में जा रहा होऊंगा, जहां कभी भी जाया जा सकता है।

मेरे लिये नेपाल और भारत में कभी कोई फर्क रहा ही नही और मै ये जानता हूं कि मेरी ही तरह किसी नेपाली भाई-बहन के मन में भी कोई फर्क नही होगा। हमारा एकीकरण तो ऐसा है जैसा सम्पूर्ण विश्व में कोई और नहीं, क्या भारत और नेपाल की प्रगति अलग-अलग है? क्या बुद्ध को लुंबिनी और कुशीनगर में बाटा जा सकता है?

क्या अयोध्या के राम को जनकपुर की सीता से अलग किया जा सकता है? यदि नही! तो फिर चाहे वह कोई भी सरकार हो, मुझे अपने नेपाली भाईयो और बहनों से अलग नही कर सकती। मै उन तमाम भारतीयों को आज बताना चाहता हूं जो नेपाल को दुश्मन समझ रहे है कि आज जो भारत मौजूद है। वह जिन असंख्य कंधो पर खड़ा है, उनमें ना जाने कितने नेपालियों के कंधे शामिल हैं। उनकी गिनती करना भी मुमकिन नही, वीर गोरखाओं पर आखिर किसे गर्व न होगा जिन्होंने हमेशा अपने प्राणों की आहुति देकर भारतीयों के साथ इस देश की रक्षा की है। क्या मेरे नेपाली भाई-बहनो भारत आपके साथ हमेशा नही खड़ा रहा है।

आज जो भारतीय नेपाल को छोटा मुल्क कह रहे है। उन्हें मैं बता दूं कि ये वही मुल्क है जहां अंग्रेजों का कभी ना अस्त होने वाला सूरज आकर अस्त हो गया था। ये सिर्फ नेपालियों के लिये ही नहीं, हर भारतीय के लिये गर्व की बात होनी चाहिए।  जो नेपाली भाई कह रहे है कि भारत 1962 में हार गया था। तो उन्हें बता दूं कि उस वक्त चीन से सबसे पहला लोहा नेपाली गोरखाओं ने ही लिया था। भारत ने यदि आपकी रक्षा का वचन लिया था तो आपने भी भारतीय सैनिकों के साथ अपना खून बहाया है। 1962 से कारगिल तक शहीद हुआ हर शख्स चाहे वह भारतीय हो या नेपाली वह हम सबके लिये एक है। इसलिये हमें लड़कर उन शहीदों का अपमान नही करना चाहिए।

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आपदा केदारनाथ में आए या काठमांडू दोनो और के लोग साथ रोते हैं। पशुपतिनाथ से रामेश्वरम तक भारत नेपाल एक है। बुद्ध ही हमारा संबल है। हमारा जुड़ाव बराबरी और मैत्री का है। अब हम दोनों देश लोकतंत्र और समानाता के बंधन में बंधे है। जहां कोई न छोटा और बड़ा है। हमारा दुःख, आंसू, खुशी, संस्कृति, त्यौहार और हमारा जीवन सब एक है। कुछ भी अलग नही।

ये सब सिर्फ इसलिए हो रहा है कि एक सरकार ने महीनों भारत और नेपाल का रास्ता बंद रखा। तो एक सरकार ने कुछ भारतीय इलाकों को अपने नक्शे के तहत अपनी सीमा में शामिल कर लिया। इन सरकारों और इनके समर्थको पर तो हमारा बस नही, लेकिन बता दूं कि कोई सरकार किसी रास्ते को बंद कर नेपाली भाईयों के दिलो के रास्तों को बंद नही कर सकती। ना हमें मिलने से रोक सकती है।

भारतीय इलाकों को नक्शों में शामिल करने वाली सरकार को भी बता दूं कि किसी नेपाली को नक्शे की जरूरत नहीं, श्रीनगर से कन्याकुमारी तक हर नेपाली भाई का भारत पर वही हक है जो एक भारतीय का है। बिना किसी नक्शे, वीजा, पासपोर्ट के बिना एक आम भारतीय नागरिक की तरह आप मोहब्बत से आइये तो सही। इसलिये 5-10 साल रहने वाली सरकारो और नेताओ के लिए हमें हजारों सालो से एक रहे हमारे दिलो को अलग नही किया जा सकता।

( मनोज लीला रमेशचंद्र माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के रिसर्च डिपार्टमेंट में अध्यनरत हैं।)

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