Dharmyuddh : भारत में मुसलमान सार्वजनिक रूप से अपनी धार्मिक आस्था का इजहार नहीं कर सकते - इस्लामिक मीडिया
Dharmyuddh : भारतीय अदालतों में याचिकाओं की झड़ी लगाने का मकसद है कि मुस्लिमों को हद में रखा जाए और सांप्रादायिक तनाव फैलाया जाए। ये मुस्लिमों को बताने का एक तरीका है कि भारत में अब सार्वजनिक रूप से वे अपनी धार्मिक आस्था का इजहार नहीं कर सकते हैं।
Dharmyuddh : ज्ञानवापी मंदिर-मस्जिद विवाद ( Gyanvapi mandir-masjid controversy )केवल देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया के देशों में भी सुर्खियों में है। खासकर इस्लामिक राष्ट्रों ( Islamic Countries ) में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर खबर से लेकर संपादकीय भी लिखे जा रहे हैं। इस्लामिक देशों की मीडिया ( Islamic media ) में इस बात पर बहस में जोरदार तरीके से जिक्र हो रहा है कि भारत ( India ) में अब मुसलमानों को सार्वजनिक रूप से अपनी धार्मिक आस्था का इजहार करने का समय नहीं रह गया। राष्ट्रवादी हिंदू ( nationalist Hindu ) मुगलकालीन शासकों के गलत नीतियों का बदला अब लेना चाहते हैं।
भारत में जारी इस विवाद पर पाकिस्तान ( pakistan ) , बांग्लादेश ( Bangladesh ) और तुर्की ( Turkey ) के अखबारों खासतौर से इन मुद्दों पर बहस चरम पर है। आइए, हम बताते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद ( Gyanvapi masjid Case ) मुद्दे पर क्या कहती है इस्लामिक देशों की मीडिया ( Islamic Countries Media ) ।
पाकिस्तानी मीडिया : बाबरी मस्जिद तोड़ने के लिए जिला अदालतों ने हिंदुओं को उकसाया
पाकिस्तान ( Pakistan ) के प्रमुख अखबार डॉन ने ज्ञानवापी मुद्दे को लेकर प्रकाशित अपनी एक खबर में लिखा है कि भारत की निचली अदालतों ने इस तरह के विवादों को बढ़ाने का काम किया है। बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए भी लोगों को जिला अदालत के फैसले ने ही उकसाया था। अयोध्या विवाद की सुनवाई करने वाले जस्टिस एसयू खान के एक बयान का हवाला देते हुए रिपोर्ट में लिखा गया है कि 1986 में उत्तर प्रदेश की एक जिला अदालत के एक आदेश का ही परिणाम था जिसने पांच सालों बाद हिंदुत्व कार्यकर्ताओं को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए उकसाया।
मस्जिद विवाद को भाजपा की मौन स्वीकृति
पाकिस्तान के ही एक अन्य अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि पीएम नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद, उत्तर प्रदेश की कई मस्जिदों में से एक है, जिसके बारे में कुछ हिंदुओं का मानना है कि इसे मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था।
भारत के 20 करोड़ मुसलमानों के नेता मानते हैं कि इस तरह मस्जिद के अंदर सर्वेक्षणों को भाजपा की मौन स्वीकृति है। भाजपा के इस प्रयास को वो अपने धर्म को कमजोर करने के रूप में देखते हैं। ऐसे धार्मिक जगहों पर धार्मिक समुदायों के बीच भारत की आजादी के बाद से ही विवाद होता रहा है। भाजपा सरकार के शासन में इस तरह की घटनाएं आम हो गई हैं। भारतीय मुसलमान भाजपा की मौन सहमति को खुद को हाशिए पर डालने की कोशिश के रूप में देखते हैं। पाकिस्तान टुडे ने लिखा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है। हिंदू संगठनों ने मस्जिद परिसर के अंदर पूजा करने की अनुमति मांगी है।
तुर्की मीडिया : सांप्रदायिक तनाव का बरकरार रखना चाहती है भाजपा
पूरी दुनिया को पता है कि पिछले कुछ समय से एर्दोगन शासित तुर्की ( Turkey ) भारत के खिलाफ जहर उगलने में लगा है। तुर्की के अखबार में भी ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा छाया हुआ है। तुर्की की समाचार एजेंसी Anadolu की एक खबर को Daily Sabah ने प्रकाशित करते हुए लिखा है कि मस्जिदों पर दक्षिणपंथी हिंदुओं के दावे से भारत में दहशत का माहौल है। भाजपा अपने वोट बैंक के लिए इस तरह के ऐतिहासिक घावों को कुरेदकर सांप्रदायिक तनाव को बरकरार रखना चाहती है। अखबार ने नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निरंजन साहू से बातचीत के हवाले से रिपोर्ट में लिखा है कि राज्य के चुनावों में भाजपा की हालिया जीत ने दक्षिणपंथी तत्वों को प्रेरित किया है। ये सब मुद्दे सत्ताधारी पार्टी को मुद्रास्फीति, मूल्य वृद्धि और बढ़ती बेरोजगारी के वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने में बहुत मदद करते हैं। इस तरह के विवाद धार्मिक ध्रुवीकरण पैदा करते हैं, जिससे सत्ताधारी पार्टी को लाभ होता रहा है। भाजपा की इसी राजनीति ने 1992 में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था।
बांग्लादेशी मीडिया : मुसलमानों को हद में रखने का यही एक तरीका है
बांग्लादेश ( Bangladesh ) के अखबार 'द डेली स्टार' ने समाचार एजेंसी एपी की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा है कि ज्ञानवापी मस्जिद विवाद भारत के मुसलमानों की धार्मिक स्थानों के लिए खतरा पैदा करते हैं। मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर हाल के वर्षों में हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा लगातार हमले किए जा रहे हैं। ये हिंदू राष्ट्रवादी आधिकारिक तौर पर धर्मनिरपेक्ष भारत को एक हिंदू राष्ट्र में बदलना चाहते हैं। द डेली सअज्ञश्र भारत के राजनीतिक विश्लेषक निलंजन मुखोपाध्याय के हवाले से लिखता है कि अदालतों में याचिकाओं की झड़ी लगाने का एक ही मकसद है कि मुस्लिमों को हद में रखा जाए और सांप्रादायिक तनाव फैलाया जाए। ये मुस्लिमों को बताने का एक तरीका है कि भारत में अब सार्वजनिक रूप से वे अपनी धार्मिक आस्था का इजहार नहीं कर सकते हैं। मध्यकालीन शासकों के द्वारा उनके कथित अपमान का हिसाब करने का वक्त आ गया है।
बता दें कि वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद ( Gyanvapi mandir-masjid controversy ) में हिंदू पक्ष ने शिवलिंग मिलने का दावा किया है लेकिन मुस्लिम पक्ष इस बात से इनकार करता है। मुस्लिमों का कहना है कि वो शिवलिंग नहीं बल्कि एक फव्वारा है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने शिवलिंग मिलने वाले जगह को संरक्षित रखने का आदेश देते हुए कहा है कि मुस्लिम पक्ष वहां पहले की तरह नमाज अदा करता रहेगा।
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