विदेशों में बदहाल हैं भारतीय श्रमिक और छात्र, 2018 से 2023 के बीच 403 भारतीय छात्रों की विदेश में मौत-जान गंवाते मजदूरों की जिंदगी बदहाल !
वर्ष 2016 से मई 2019 के बीच विदेशों में 28794 भारतीयों की मृत्यु दर्ज की गयी, जिसमें सबसे अधिक मौतें, 9057 यानी 32 प्रतिशत मौतें अकेले सऊदी अरब में दर्ज की गईं, इसके बाद 5789 यानी 20 प्रतिशत मौतों के साथ संयुक्त अरब अमीरात का स्थान है। इसके बाद क्रम से कुवैत, ओमान, अमेरिका, मलेशिया, क़तर, बहरीन, कनाडा, सिंगापुर और इटली का स्थान है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Most of the Indian workers in foreign countries are exploited and number of dead workers is increasing year after year. हाल में ही जब इटली में जी7 देशों का भव्य जलसा आयोजित किया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी भी शिरकत कर रहे थे - लगभग उसी दौरान रोम के पास के ग्रामीण क्षेत्र, लैटिना में वहां काम करने गए एक भारतीय कृषि श्रमिक, 31 वर्षीय सतनाम सिंह, को घायल अवस्था में सड़क पर फेंक दिया गया था। इसके बाद इलाज के दौरान उनकी मृत्यु भी हो गयी।
सतनाम सिंह भारत से दो वर्ष पहले इटली काम की तलाश में गए थे, और फिर लैटिना में अंतोनेला लोवाटा के खेतों में कृषि श्रमिक के तौर पर काम करने लगे थे। किसी कृषि उपकरण को चलाते समय दुर्घटनावश उनका हाथ कट कर शरीर से अलग हो गया, और शरीर में दूसरे स्थानों पर भी गंभीर चोटें आईं थीं। इस दुर्घटना के बाद अंतोनेला लोवाटा ने उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाया, उनके कटे हाथ को फलों के एक डिब्बे में रखा और दूर ले जाकर सड़क के किनारे फेंक दिया। लगभग एक घंटे तक सड़क के किनारे पड़े रहने के बाद उन्हें किसी तरह चिकित्सा सहायता उपलब्ध हो पाई, पर इलाज के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गयी। यह एक ऐसा उदाहरण है जो प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा और अनिश्चित भविष्य बयान करता है। दुखद यह है कि ऐसे उदाहरण बार-बार अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हमारे सामने आते हैं, पर हमारे देश का दरबारी मीडिया इन खबरों से अनजान बना रहता है।
यहाँ के मीडिया के लिए विदेशों में भारतीय श्रमिकों की बदहाली कोई मायने नहीं रखती, बल्कि जब कभी मोदी सरकार विदेशों में श्रमिकों की मौत के बाद विशेष विमान से उनके शवों को भारत लाती है, तब दिनभर उसका लाइव टेलीकास्ट चलता है और मोदी जी का जयकारा सुनाया जाता है।
हाल में ही कुवैत में श्रमिकों के आवासीय परिसर में भीषण अग्निकांड की चपेट में आकर 49 भारतीय श्रमिकों की मौत हो गयी थी। इसकी खबर आने के बाद भी किसी भी मीडिया ने मध्य-पूर्व में भारतीय श्रमिकों की स्थिति पर कोई भी रिपोर्ट नहीं प्रस्तुत की, पर जिस दिन इनका शव भारत आया उस दिन तिरुअनंतपुरम से लेकर नई दिल्ली हवाईअड्डे से सीधी खबर ब्रेकिंग न्यूज़ के तौर पर चलीं और हरेक रिपोर्ट में प्रधानमंत्री मोदी की वाहवाही होती रही।
इस वर्ष सऊदी अरब के मक्का में भीषण गर्मी के प्रकोप और बदइन्तजामी के कारण 1300 से अधिक हज यात्रियों की मृत्यु हुई, जिसमें लगभग 100 भारतीय थे। हमारे देश में रोजगार की इस कदर कमी है कि मौक़ा मिलने पर भारतीय विदेशों में जाकर अत्यधिक खतरनाक रोजगार करने से भी नहीं चूकते। अनेक भारतीय रूस-उक्रेन युद्ध में रूस की सेना के तौर पर लड़ रहे हैं। इनमें से जब किसी की युद्ध में मृत्यु होती है तब ही कोई समाचार आता है। पहले तो भारत सरकार ने ऐसी हरेक खबर को नकारा, पर अब तो यह सार्वजनिक हो गया है, क्योंकि मोस्को में प्रधानमंत्री मोदी ने यह मुद्दा राष्ट्रपति पुतिन के साथ उठाया था। मोदी सरकार को तो ऐसे भारतीय सैनिकों की वास्तविक संख्या भी नहीं पता है। मई 2024 में रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस की सेना की तरफ से लड़ते 2 भारतीयों की मौत हुई थी। इजराइल-हमास युद्ध में भी इजराइल की तरफ से लड़ाई में शरीक कुछ भारतीयों की मौत हुई है।
भारतीय श्रमिकों की विदेशों में दुर्दशा का एक उदाहरण अभी स्विट्ज़रलैंड से भी सामने आया है। यूनाइटेड किंगडम के सबसे अमीर और भारतीय मूल के हिंदुजा परिवार पर स्विट्ज़रलैंड की एक अदालत में भारतीय श्रमिकों के शोषण के आरोपों की सुनवाई करते हुए इस परिवार के सदस्यों को जेल की सजा सुनाई गयी है। हिंदुजा परिवार स्विट्ज़रलैंड के अपने मैनसन में भारत से लाये हुए श्रमिकों को रखते थे।
इसमें से तीन श्रमिकों ने अदालत में एक याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया था कि श्रमिकों के स्विट्ज़रलैंड पहुंचते ही हिंदुजा परिवार उनके पासपोर्ट जब्त कर लेता है और फिर बहुत कम वेतन पर और बिना किसी आजादी के ही उनसे काम लिया जाता है। दूसरे शब्दों में श्रमिकों को बंधुआ मजदूर जैसा रखा जाता था। अदालत ने इन सभी आरोपों को सही देखते हुए प्रकाश हिंदुजा और पत्नी कमल को 4 वर्षों के कारावास और बेटे अजय हिंदुजा और बहू नम्रता को साढ़े चार वर्षों के कारावास की सजा सुनाई है।
मई 2024 में संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर माइग्रेशन ने वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2024 प्रकाशित किया था, इसके अनुसार लगभग 2 करोड़ भारतीय श्रमिक दुनियाभर के देशों में रोजगार में हैं। इन श्रमिकों द्वारा भारत में वर्ष 2022 में 111.22 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा आई। श्रमिकों द्वारा अपने देश में पैसे भेजे जाने के मामले में पिछले कई वर्षों से भारत दुनिया में पहले स्थान पर है, और यह श्रमिकों द्वारा अपने देश में 100 अरब डॉलर से अधिक मुद्रा भेजने वाला पहला देश भी है। भारतीय श्रमिकों द्वारा अपने देश में भेजी जाने वाली मुद्रा में लगातार बृद्धि दर्ज की जा रही है – वर्ष 2010 में यह राशि 53.48 अरब डॉलर, 2015 में 68.91 अरब डॉलर और 2020 में 83.15 अरब डॉलर थी। जाहिर है, यह बृद्धि अपने देश में रोजगार की दयनीय स्थिति ही बयान करती है।
वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2024 के अनुसार भले ही विदेशों में बेहतर भविष्य की तलाश में श्रमिक जाते हों पर इनका हरेक तरीके से इनका शोषण किया जाता है। इन्हें कोई अधिकार नहीं मिलते, इन्हें अनुबंध से भी कम पैसे मिलते है, इनसे बंधुआ मजदूरों जैसा व्यवहार किया जाता है और अनेक श्रमिक तो जितना पैसा खर्च कर विदेशों में पहुंचते हैं, उतना भी नहीं कमा पाते।
एक आकलन के अनुसार वर्ष 2022 में देश से लगभग 13.4 लाख छात्र बेहतर शिक्षा की आशा में विदेशों में गए थे। दिसम्बर 2023 में विदेश मंत्रालय ने सूचना जारी कर बताया था कि वर्ष 2018 से 2023 के मध्य तक 403 भारतीय छात्रों की मृत्यु विदेशों में हो गयी थी। सबसे अधिक मौत, 91, कनाडा में दर्ज की गयी थी। रूस, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी मृत भारतीयों छात्रों की प्रभावी संख्या थी। भारतीय छात्रों की स्थिति अब पहले से भी बदतर हो चली है – अमेरिका में वर्ष 2024 के शुरू से अबतक 11 से अधिक छात्रों की हत्या, 1 आत्महत्या या रहस्यमय परिस्थितियों में मौत और 6 छात्रों के लापता होने का मामला दर्ज किया गया है।
17 जुलाई 2019 को लोकसभा में तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री ने बताया था कि वर्ष 2016 से मई 2019 के बीच विदेशों में 28794 भारतीयों की मृत्यु दर्ज की गयी, जिसमें सबसे अधिक मौतें, 9057 यानी 32 प्रतिशत मौतें अकेले सऊदी अरब में दर्ज की गईं, इसके बाद 5789 यानी 20 प्रतिशत मौतों के साथ संयुक्त अरब अमीरात का स्थान है। इसके बाद क्रम से कुवैत, ओमान, अमेरिका, मलेशिया, क़तर, बहरीन, कनाडा, सिंगापुर और इटली का स्थान है। आश्चर्य यह है कि विदेशों में विशेषकर मध्य-पूर्व के देशों में, बड़ी संख्या में श्रमिकों की मौत के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी की किसी भी देश से द्विपक्षीय वार्ता में श्रमिकों की स्थिति और बेहतर सुविधाएं चर्चा में नहीं रहता।
संदर्भ:
1. https://www.independent.co.uk/news/world/europe/indian-labour-death-italy-farm-severed-arm-b2566383.html
2. https://www.forbes.com/sites/sarahyoung/2024/06/24/how-the-billionaire-hinduja-family-members-prison-sentences-compare-to-other-super-rich-time-spent-behind-bars/
3. https://worldmigrationreport.iom.int/msite/wmr-2024-interactive/
4. https://www.mea.gov.in/lok-sabha.htm?dtl/31614/QUESTION+NO4041+INDIANS+ KILLED+ABROAD
5. https://fsi.mea.gov.in/rajya-sabha.htm?dtl/37350/QUESTION+NO546+SAFETY+OF+ INDIAN+STUDENTS+ABROAD